पूर्ण-विराम से पहले....!!!
16.
प्रखर जब इस तरह की बातें करता तो शिखा को समीर और उसके शादी के बाद के दिन बहुत बार याद आते| जब दोनों का विवाह हुआ समीर बहुत कम बोलते थे| शिखा बहुत कोशिश करती दोनों के बीच संवाद बना रहे पर समीर की कम बोलने की आदत उसकी कोशिशों को नाकाम कर देती|
समीर जब भी बोलते बहुत सीधा-सपाट बोलते। उनकी बातों में लेप-लपाट नही था। तभी तो उनका प्यार भी रूखा मगर साफ़ था। पर उनकी बातें और विचार बहुत अच्छे थे| उन्होंने कभी भी शिखा से कोई शिकायत नहीं की| जीवन में जो भी उनको मिला वो उससे भरपूर संतुष्ट थे|
विवाह से पहले शिखा को प्रखर से इतना अधिक भावनात्मक प्रेम में मिल चुका था कि समीर का न बोलना उसको बहुत अखरता था| कई-कई दिन दोनों के बीच बगैर बात किए निकल जाते समीर को कोई फर्क नहीं पड़ता था| पर शिखा स्कूल से आने के बाद अक्सर बहुत अकेलापन महसूस करती थी|
घर में फैले हुए सुई पटक सन्नाटे में उसे खुद की ही आवाज़ें गूंजती हुई सुनाई देती थी। कई बार शिखा को लगता इतने बड़े घर में वो पागल न हो जाये। आस-पास के घरों से बच्चों की आवाज़ें आते हुए सुनती तो बैचैन हो जाती| उसको लगता कोई किलकारी उनके यहां भी गूंजे तो कम से कम ख़ुद की ही आवाज़ों से डर न लगे। विवाह को तब तीन साल गुज़र चुके थे| एक रोज़ उसने ने समीर से कहा था.. "समीर हम बच्चा गोद ले ले। हम दोनों इतना कमाते है। क्या होगा इतने रुपये का हमारे बाद।"
"क्या होगा?.. इतना भी क्या सोचना है। अगर होना होगा तो अपना ही बच्चा होगा नही तो मुझे दूसरे कहीं से बच्चे को गोद लेकर नहीं पालना| प्लीज तुम भी गोद लेने जैसी बातों को सोचना नही। हम दोनों में जब कोई कमी नहीं तो समय आने पर बच्चा भी हो जाएगा|"
इतना सब कुछ बोलते हुए समीर के दिमाग में शिखा की फीलिंग का जरा भी ख्याल नहीं आता था| समीर अगर शिखा के मन की सोचते तो आपस में मिलकर निर्णय लेते। उस रोज समीर की बातें सुनकर उसको लगा था कि समीर सिर्फ अपना फैसला सुना रहे है।..
समीर के जब पोस्टिंग मथुरा हुई| वहाँ उनके पड़ोस में एक बुजुर्ग आंटी अकेले रहा करती थी| उनके कोई बाल-बच्चे नहीं थे| दो साल पहले ही अंकल की मृत्यु हुई थी| जब समीर ने आंटी को अकेले हर बात के लिए परेशान होते हुए देखा तो उनको भी यह एहसास हुआ कि कभी उनके साथ भी ऐसा हो गया तो..
तब समीर ने शादी के सात साल बाद खुद शिखा से कहा..
"तुम कहो तो एक बच्चा गोद ले लेते हैं। समय का क्या पता कब अकेला रहना पड़े। कम से कम जो भी अकेला होगा उसके साथ कोई तो होगा|”..
शादी के इतने सालों बाद समीर का इस तरह सोचना ही पल भर में शिखा को खुशियों से भर गया था|
दोनो ने अनाथाश्रम से सार्थक को गोद लिया था। ज्यों-ज्यों सार्थक बड़ा हुआ उन दोनो की ज़िंदगियों में भी रफ्तार आ गई। समीर के साथ जो बातचीत में खाई बन गई थी वो सार्थक के आने के बाद पटने लगी थी।
बच्चे के बहाने ही दोनो में किसी न किसी बात पर बातचीत होती। दोनों उसकी चुलबुली हरकतें देखकर साथ-साथ मुस्कुराते। जैसे-जैसे सार्थक बड़ा हुआ पढ़ -लिखकर समर्थ हुआ.....उसकी सोच अपने माँ-पाप से बिल्कुल नही मिलती थी। जीन्स का फर्क था शायद। समीर और शिखा ने उसको खूब लाड़ प्यार दुलार किया| पर उसकी सोच दोनो से कभी नही मिली।
उसने बगैर दोनों को बताए मीता नाम की लड़की से पिछले साल शादी कर ली। सार्थक जब मीता को ब्याह करके घर ले आया| तभी दोनों को उसके विवाह कर लेने का पता लगा| शिखा ने ही सार्थक के घंटी बजाने पर दरवाजा खोला था.. सार्थक ने दरवाज़े पर माँ को देखकर कहा....…
"मां! मैंने मीता से शादी कर ली हैं। आपसे और पापा से आशीर्वाद लेने आया हूँ।"
पहले तो शिखा चकित रह गई| फिर उसने दौड़कर पूजा की थाली तैयार की और दोनों की आरती उतारकर घर के अंदर लिया| दोनो बच्चो के पैर छूने पर समीर और शिखा ने आर्शीवाद दिया। समीर तो सार्थक की इस हरकत पर हक्का-बक्का रह गया|
उस रोज ही समीर ने सार्थक को अपने कमरे में बुलाया और बातें की। पहली बार शिखा ने समीर को सार्थक से इतनी सारी बातें करते हुए देखा था| जितनी बातें शायद उसके आने और नौकरी पर जाने के बीच नही की होंगी।
"सार्थक कुछ बात करनी हैं तुमसे बेटा..मेरे कमरे में आना।"..
"हाँ आता हूँ पापा। मीता के साथ कमरे में सामान रखवा दूँ। फिर आपके पास आता हूँ।"
बोलकर सार्थक मीता के साथ अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर में आने का बोलकर वो समीर और शिखा के पास तीन घंटे बाद आया और बोला .
"सॉरी पापा थोड़ा लेट हो गया। मीता के साथ सामान लगवाने लग गया। कल ही हम दोनों को वापस लखनऊ के लिए निकलना हैं। मीता नही चाहती थी सभी सामान अपने साथ ले जाना सो उसके साथ सब सेट करवा रहा था।
"सार्थक कल ही निकल रहे हो...क्यों? कुछ दिन मीता और तुम रुकते तो हमको भी अच्छा लगता।“ शिखा ने सार्थक को कहा|
“नही माँ.. मीता की भी जॉइनिंग थी दो दिन बाद ही....सो सोचा बस एक बार आप दोनो से मिलवा कर लौट जाएंगे। वापसी की टिकट करवा ली थी मैने।"
शिखा चुपचाप अपने बेटे की बातों को सुनकर विश्लेषण कर रही थी। तभी समीर ने सीधी और सपाट बात सार्थक से की..
"सार्थक तुमने लड़की पसंद कर रखी थी और अपने पेरेंट्स को बताने की भी जरूरत नही समझी। अगर तुम हमें मीता से प्यार और शादी की बात को शेयर करते तो हम तुम दोनो की शादी के लिए मना क्यों करते? क्या तुमको हम पर विश्वास नही था बेटा? तुमने तो हमारे लिए बहुत विपरीत स्थिति कर दी। नई बहु के घर आने की हम कोई तैयारी भी नही कर पाए। तुमको इतना तो पता ही है न...नई बहु के आने पर घर में पूजा रखी जाती है। तुमने तो सब उल्टा कर दिया।"
"कोई बात नही पापा..मैं ऐसा कुछ भी नही सोचता। शादी का निर्णय बहुत जल्दी में लेना पड़ा। मीता के घर वाले उसकी शादी कहीं और करवाने पर तुले थे। वो चाहते ही नही थे हम दोनों शादी करें।"
"इसका मानी मीता के घर वालों को तुम्हारे प्यार का पता था। बस हमको ही नही पता था। तुमको नही लगा अपने माँ-पापा को भी विश्वास में लेना चाहिए..."
"पापा सब बहुत जल्दी हुआ। हमने मंदिर में जाकर शादी कर ली है.....कोर्ट में जाकर अपनी शादी रजिस्टर करने के लिए फॉर्म भर दिया है। जैसे ही कोर्ट में हम शादी करेंगें....आप अपनी मर्ज़ी की रस्में करवा लीजिएगा।"....
सार्थक की बातें सुनकर समीर बेहद चिढ़ गए थे। उनकी चिड़चिड़ाहट को महसूस करके शिखा ने चुपचाप समीर के हाथ पर हाथ रख कर शांत रहने को कहा..
"अपनी मर्ज़ी की रस्में...भूल जाओ सार्थक। अब ऐसा कुछ नही होगा। जब तुमने अपनी शादी की किसी भी बात में हमें कहीं जगह ही नही दी तो अब मैं और तुम्हारी माँ पागल नही है कि अपने मेहनत के रूपयों को यूं ही जाया करें।"...शिखा ने कभी भी समीर को इस तरह से बातें करते हुए नहीं सुना था|
"सॉरी पापा आपको बुरा लगा..मुझे लगा था आप दोनो अंडरस्टैंड करोगे।"..
"सही कहा बेटा हम दोनों अंडरस्टैंड करेंगे......पर तुम हमको अंडरस्टैंड क्यों नही कर पाए ..आज मुझे अफ़सोस हो रहा है। हमारी खुशियां तुम्हारे साथ थी पर तुम्हारी खुशियों में हम नही है बेटा। मैं और तुम्हारी माँ हमेशा चाहेंगे तुम दोनो बहुत खुश रहो। हमारी ब्लेसिंग हमेशा तुम्हारे साथ है। कल तुम दोनो वापस निकल रहे हो अच्छे से पहुंचो। दुनिया जहान की खुशियां तुमको मिले हम दोनों यही चाहते हैं|”
बोलकर समीर चुप हो गए।
इसके बाद समीर ने एक बार भी सार्थक से बात नहीं की|
तब सार्थक शिखा के पास आकर बैठ गया तो शिखा बोली..
"सार्थक खुश रहो बेटा...तुम्हारे पापा और मेरे विचार इस टॉपिक पर एक ही हैं। ख़ैर अब छोड़ो। अपने कमरे में जाकर रेस्ट करो| कल तुमको निकलना भी है। अपना सब सामान देख लेना बेटा। नई नौकरी में जल्दी आना नही होगा। मेरी कहीं जरूरत हो तो बता देना। मदद को आ जाऊंगी|”
बस इतना-सा बोलकर शिखा चुप हो गई और सार्थक उठकर अपने कमरे में चला गया। शिखा ने आज पहली बार समीर को इतनी बातें करते देखा था। समीर ने इस तरह कभी भी सार्थक से बातें नही की। यह पहली बार थी जब समीर ने सार्थक से इतने क्रोध में बात की थी|
क्रमश..