बना रहे यह अहसास
सुषमा मुनीन्द्र
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फेमिली पेंशन।
सनातन, अम्मा को बैंक ले गया था -
‘‘अम्मा, कितना रुपिया निकालना है ?’’
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‘‘ एक महीने की पूरी पिनसिन। देखें इतना रुपिया कैसा लगता है।’’
पेंशन लेकर अम्मा मजबूत चाल से घर आईं। हाव-भाव में दृढ़ता। चेहरे में गौरव। अब अपनी मर्जी से जियेंगी। लेकिन वाल्व खराब ..................।
तैयारी यामिनी की। दिल्ली जा रही है सरस। गौतमजी ने स्पष्ट कहा ‘‘यामिनी, तुम अम्मा के घर की चाकरी बजाने नहीं जाओगी।’’
‘‘अम्मा की सर्जरी होनी है। मान-अपमान भूलकर उनकी मदद करनी चाहिये। उनके न रहने पर वैसे भी कोई नहीं पहचानेगा।’’
हमारा समाज शास्त्र जटिल है।
एक माता-पिता की संतानों के अलग परिवार बन जाते हैं। प्राथमिकतायें बदल जाती हैं। विभेद आ जाते हैं। बहुयें घर में कब्जा जमा लेती हैं और बेटियाँ भूल जाती हैं वे इसी घर में भाइयों के साथ खेलती-खाती थीं।
अम्मा रेलवे स्टेशन जा रही हैं।
भरा है दिल।
यदि डाँक्टरों ने तत्काल आपरेशन कर दिया और आपरेशन में हम चल बसे तो यह लौटना नहीं होगा। बहुयें लापरवाह। महरी बर्तन चुराती है, कहो पूरी गृहस्थी चुरा लें। यह घर सनातन और पंचानन का हो जायेगा। बिल्डर को बेंच कर लाखों कमा लेंगे। बहनों को अवसर-शादी में भी बुलायें, न बुलायें।
पप्पा की तरह मातृ भक्त नहीं है जो माताराम के न रहने पर भी उनकी बहनें मलकाना झाड़ने आती रहती थीं। पप्पा स्वागत में तैनात रहते थे।
इस परिवार ने यात्रायें कम की हैं। महा कौशल एक्सप्रेस के ए0सी0 कोच की ठण्डक और तरतीब ने चारों मूर्तियों के चेहरों में श्रेष्ठता का पुट भर दिया। अम्मा के लिये नितांत नया अनुभव है। तबादले पर कार से जाती थीं। पप्पा की सेवा निवृत्ति पर गृह नगर आ गईं। फिर कहीं जाना नहीं हुआ। अनायास कहने लगीं -
‘‘बड़ी अच्छी ट्रेन है अवंती। भड़-भड़ सुनाई नहीं दे रहा है।’’
पंचानन ने रहस्य कहा ‘‘यह रहीसों का डिब्बा है। न ट्रेन का शोर सुनाई देता है न आलतू-फालतू लोग बैठते हैं।’’
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सुखद यात्रा कर अम्मा दिल्ली पहुँची। भीड़ और भव्यता देख ठगे जाने जैसी दशा में हैं। घर से कम निकलती थीं। बाजार-हाट का काम अर्दली करते थे। पप्पा, अल्प शिक्षित होने के कारण उन्हें सभा-समारोह-आयोजनों में नहीं ले जाते थे। अब तो अपना कमरा, कमरे का एकांत, एकांत की सुविधा अच्छी लगने लगी है।
हार्ट रिसर्च सेन्टर के समीप उचित से होटेल में कमरे मिल गये।
शाम को व्याख्या आ गई। व्याख्या की उपस्थिति अम्मा को जोश से भर देती है -
‘‘अब आ रही हो ?’’
‘‘क्लास थी। एकदम फ्रेश लग रही हो।’’
‘‘इतना लम्बा सफर। परेसान लग रहे हैं।’’
सनातन ने विरक्ति दिखाई ‘‘व्याख्या अम्मा की परेशानी कभी खत्म नहीं होती। दिल्ली नहीं ला रहे थे परेशान थीं। ले आये, पारेशान हैं।’’
अम्मा ने अरज की ‘‘नरम होकर बात करो बेटा। अब तो आ ही गये हैं।’’
‘‘मेरा लहजा ही ऐसा है।’’
‘‘पापा चुप रहो न।’’ व्याख्या ने व्यवधान डाला।
‘‘थोड़ा धूम कर आता हूँ।’’ कहते हुये सनातन चल दिया।
अम्मा सुबह हार्ट रिसर्च सेन्टर में।
भव्य अस्पताल।
बहुत बड़ी लाँबी में भव्यता, शांति, ठण्डक है। भव्यता अम्मा को भयभीत कर रही है। शांति, अशांत बना रही है। ठण्डक नसों को ठण्डा किये दे रही है। ढाढ़स चाहिये पर पूतों को उनकी मनः स्थिति से मतलब नहीं। अम्मा ठगे जाने जैसी दशा में। पंचानन की भुजा जकड़ ली।
‘‘सर्जरी के वक्त भी मेरा हाथ जकड़े रहना अम्मा।’’
अम्मा न समझीं पंचानन ढाढ़स दे रहा है या भयभीत कर रहा है। अम्मा खुद को मजबूत दिखाना चाहती हैं -
‘‘डरते नहीं हैं।’’
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अम्मा, अवंती, सरस को लाँबी में तरतीब से लगी कुर्सियों में बैठा कर सनातन और पंचानन जरूरी जानकारी लेने चले गये। कुछ देर बाद सनातन आया -
‘‘अम्मा, कुछ दिखाता हूँ।’’
सनातन, अम्मा को ले चला। पीछे-पीछे अवंती और सरस। लाँबी में चार-पाँच प्लाज्मा टी0वी0 लगे हैं। बाइपास, पेस मेकर, वाल्व सर्जरी, एंजियोप्लास्टी जैसी शल्य क्रिया की सी0डी0 दिखाई जा रही है।
‘‘देख लो अम्मा। डर मत जाना।’’
लाल रुधिर और लब्ब-लब्ब धड़कता हृदय। अम्मा को लगा ऐसे अनुभव मिलने वाले हैं जो उनकी कल्पना में नहीं हैं। लाल रंग देख अम्मा की धड़कनें हलक में आ रही हैं। लगा घर लौट जायें। पर जीने की अब तो जिद हुई है। लटपटाती जबान से पूँछा ‘‘यह वाल है ?’’
सरस ने अम्मा को देखा, जैसे अकोविद को देख रही है। हार्ट को वाल्व समझ रही हैं लेकिन सर्जरी करानी है।
अवंती ने बताया ‘‘हार्ट है।’’
‘‘हार्ट देख लिया। अब हम बैठेंगे।’’
अम्मा पुनः अपनी सीट पर बैठ गईं। दिल तेज गति से धड़क रहा है। चित्त कुछ स्थिर हो इसलिये गर्दन घुमा-घुमा कर लाँबी में बैठे लोगों को देखने लगीं। देखती हैं तीस-पैंतीस वर्ष की एकहरी स्त्री व्हील चेयर पर लाई जा रही है। गर्दन से नीचे, गाउन से झाँकता लम्बा लाल चीरा और टाँकों के चिन्ह बताते हैं सर्जरी हुई है। अम्मा को कुछ स्थिरता मिली। आपरेशन के बाद यह जीवित है, शायद हम भी ..................। व्हील चेयर को सतर्कतापूर्वक ठेल रहा स्त्री का पति, अम्मा के समीप से गुजरा। अम्मा ने अस्थिरता और घबराहट में पूँछ लिया -
‘‘आँपरेशन हुआ है ?’’
‘‘जी।’’ स्त्री के चेहरे में दर्द है और मुस्कुराहट है ‘‘विश्वास नहीं होता मैं जल्दी ही अपने घर जाने वाली हूँ।’’
‘‘थैंक गाँड। सर्जरी बहुत अच्छी हो गई। दो छोटे बच्चे हैं। इन्हें कुंछ हो जाता तो मेरा घर बर्बाद हो जाता। इन्हें लाँन में घुमाने जा रहा हूँ। कहती हैं बेड पर पड़े-पड़े ऊब गई हैं।’’
अम्मा ने देखा स्त्री के पति के चेहरे में संतोष है और स्त्री के लिये करुणा है। चाहता है चाहे जिस कीमत पर लेकिन यह स्त्री जीवित रहे। परिवार को इसकी जरूरत है।
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वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर घर के लिये अनपेक्षित हो चुकी हैं। बोझ। निठल्ली। किसी ने ठीक कहा है लोग मरने वाले के लिये कम, उससे प्राप्त सुविधाओं के लिये अधिक रोते हैं। उनके पास पैसा है अन्यथा बिना इलाज खाँसते हुये दम तोड़ देतीं।