30 शेड्स ऑफ बेला
(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)
Episode 8 by विधुरिता पटनायक (Vidhurita Patnaik)
जिंदगी और एक कप कॉफी
मां...मां..मम्मा...!!!! 3 साल की रिया के नन्हे हाथों ने बेला को ट्रांस से निकाला... पैकर्स के खोले सामानों से कमरा बिखरा पड़ा था। तबादले में एक और शहर जुड़ गया अब उसकी ज़िन्दगी से। खिड़की से सामने समंदर को अपलक देख रही थी ...समंदर की लहरें दादी के संगीत के उतार-चढ़ाव सी क्रमबद्ध अपना सर पटक कर वापस लौट जाती। इस महानगरी में आना बेला को काफ़ी अशांत सा कर गया था.. जुड़ नहीं पा रही थी इस शहर से!!
रिया ने वापस उसे हिलाया , ‘ममा, मुझे कलर्ज़ चाहिए..प्लीज़ ..!!’ बेला पता नहीं कहाँ खोती जा रही थी .. रिया को ‘अपनी गुड़िया से खेलो’ कहकर पुचकारा और कहा, ‘मुझे सामान समेटने दो.. फिर हम कलर्ज़ खोजेंगे।’ रिया को रंगों से खेलता देखती तो मां की बहुत याद आती ...!! एक लम्बी सांस लेकर वह वापस कमरे को व्यवस्थित करने में लग गयी!!
इस शहर को अपना बनाने की कोशिश में लगी बेला अपने २१वे मंजिल से कभी सामने समंदर को समझने की कोशिश करती तो कभी रात को मायावी सी लगते बिलबोर्ड्स को देखती।सच दादी का छोटा सा शहर कितना याद आता है.. तुम उस नुक्कड़ वाले सक्सेना जी की पोती हो ना?..कितना अपनापन था लोगो में,खैर अब तो इन्ही ऊंचाइयों में अपने को समेटना होगा। सच दादी तुम तो पागल हो जाती यहां!
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लैंड लाइन की घंटी ने उसे अपनी सोच से बाहर निकाला, भाग कर फ़ोन उठाया, दूसरी तरफ डांटती सी आवाज़..'अजीब लड़की हो !' रागिनी की तेज़ आवाज़ ने जैसे उसे सपने से जगाया, ‘ महीने हो गए तुम्हे यहां आकर , न कोई फ़ोन न कुछ...तुम ठीक तो हो..वो तो आज समीर मिल गया अचानक बुक स्टोर में, तब जाना कि तुम सब अब इस शहर में आ गये! चलो अब मिलो मुझसे कल ही कॉफ़ी पर!’
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समीर ... बनारस में मिली थी उससे .। समीर को पापा के दोस्त ने उसकी मदद करने को कहा था... उसकी दोस्त समीना ऋषिकेश से अपने पति के साथ दिल्ली पहुंच गई थी पापा की खोजखबर लेने और साथ ही बेला के बारे में बताने, पर पापा घर पर नहीं मिले।बेला के गायब होने के बाद से वे बुरी तरह टूट गए थे। सालों पहले पत्नी का गायब होना, मां का गुजर जाना और अब बेटी… !! अचानक ही वह एक सुबह घर से निकल गए। दूसरों की तरह जिदंगी का सच ढूंढने। उस वक्त उन्हें कहां पता था बनारस में उनकी बेटी बेला किन मुसीबतों से जूझ रही है। घर के पुराने नौकर दीनानाथ ने आखिरकार मौसी के घर जाने का फैसला किया, वही मौसी जिन्होंने सालों पहले बेला की मां की जिंदगी में तूफान ला दिया था। इन सबमें दस दिन लग गए। शायद यही वजह थी कि बेला जब भी पापा को कॉन्टेक्ट करने की कोशिश करती, मोबाइल स्विच्ड ऑफ आता और लैंड लाइन कोई नहीं उठाता।
जिस दिन समीना दिल्ली पहुंची, मौसी उसी दिन दीनानाथ के साथ घर लौटी थीं।पापा के दोस्त से मौसी ने ही संपर्क किया और उन्होंने समीर को बेला की मदद के लिए लगा दिया।
समीर एक इंटरनेशनल मैगज़ीन का इन्वेस्टिगेटिंग करसपोंडेंट था और इस वक़्त बनारस कवर कर रहा था...अघौरी बाबा शायद इसी मंजिल की बात कर रहे थे। उसकी मदद से बेला ने इंद्रपाल के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करायी। समीर ने आगे बढ़ कर जैसे उसकी सारी जिम्मेवारी ले ली थी। वैसे बेला पापा की बीमारी सुन कर बेचैन हो उठी थी। समीर ने उसे वापस दिल्ली ट्रेन में बैठाया और कहा सीधी घर जाए।
…और फिर 4 महीने बाद बांसुरी के फ़्यूज़न कॉन्सर्ट में समीर से फिर से मुलाक़ात हो गयी दिल्ली में। बनारस के अनुभव से हिली बेला ने सोचा लगता है कृष ने नया दोस्त भेज दिया...दोस्ती प्यार में बदली और फिर शादी में!!!
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समय से पहुंच गयी थी बेला और रागिनी का इंतज़ार करने लगी...आस पास नज़रें घुमाई,लोग बस अपनी ही धुन में थे। रागिनी की आवाज़ ने वापस उसे सपनों से निकला, ‘यार कमाल करती हो...कितने सालो बाद मिले हैं हम।’
‘बाप रे रागिनी, कितना खुल के हंस लेती हो यार ..कुछ भी तो नहीं बदला तुममे..!’
रागिनी के कहा, ‘बॉस, तुम देखो आगे-आगे क्या होता है...चलो तुम मेरे लिए फ्री लांस का काम करो।थोड़ी कॉपी राइटिंग का..क्यों भूल गयी ऐसे क्या देख रही हो? भाई तुम तो ज़िन्दगी को बड़े अलग अंदाज़ से जी चुकी हो...भूल गयी तुम्हारा बनारस का एक्सपीरियंस ...उफ़्फ़ क्या था..!! चलो अब तुम मेरे लिए काम करोगी।‘
रागिनी को भला कैसे इंकार करती! बनारस से वापस आकर बेला ने पढ़ायी शुरू की। डिज़ाइन से हट कर क्रिएटिव राइटिंग में! अब वह शब्दों से ज़िंदगी का चित्रण करना चाहती थी। तब उसी इन्स्टीट्यूट की गेस्ट लेक्चरार थी यंग और दबंग रगिनी जो अब इस महानगरी में एक बहुत सफल एडवरटाइिजंग स्टुडियो की पार्ट्नर है!
हामी भर दी रगिनी को।
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‘समीर, प्लीज आज तुम रिया को स्कूल के बाद पिक कर लोगे? मेरी आज एक ज़रूरी क्लाइंट मीट है..’ ‘ज़रूर मैडम...’समीर ने चाय पीते हुए धीरे से जवाब दिया।
लौट आयी है बेला वही पुरानी वाली…बनारस के घाटों से ज़िंदगी के मायनों को खोजती आज मुंबई जैसी माया नगरी में रहने वालों के चेहरों में ज़िंदगी को तलाशती है.. सच ही कहा है किसी ने इस मायानगरी में हज़ारों की भीड़ अपनी आंखों में सपने लेकर आते हैं किसी के सच होते, तो कोई इन्ही में गुम हो जाते हैं।बेला तो किसी के सपने का हिस्सा बन कर आई थी और अब वो अपनी टैग लाइनों से लोगों को सपने बेचती है।
एक ठंडी सांस लेकर बेला लिफ्ट से निकली, ऑफिस की लॉबी पार कर केबिन की तरफ मुड़ी...
‘बेला लुकिंग स्मार्ट..!!’ रश्मि के कॉम्पलिमेंट को हंसकर स्वीकारा। आज तो रिया ने भी चलते हुए कहा था, ‘मां, यू लुक गुड!’ और समीर ने मुस्कुरा कर उसे देख सर हिलाया, ‘यस, शी इज..!!’
सच अब समीर हवा के झोंके सा आता जाता नहीं है। थम सा गया है । पर कब तक..!!! कुछ समय से लगा था जैसे ज़िन्दगी संभल सी गयी है..
वह केबिन के सामने रुकी और दरवाजे पर लगे अपने नेम प्लेट को धीरे से छुआ 'बेला अनुकृति’ अच्छा लगा मां का दिया नाम…
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तीन साल गुज़र गए रागिनी से कॉफ़ी पर मिले!! उस दिन चाय की शौकीन बेला ने कॉफ़ी के लिए हामी भरी थी, न जानते हुए कि आगे क्या होगा I अब बेला के शब्द थमते नहीं!! मन ही मन शुक्रिया कहा, उस कॉफ़ी के कप को !!