Ram Rachi Rakha - 4 - 2 in Hindi Moral Stories by Pratap Narayan Singh books and stories PDF | राम रचि राखा - 4 - 2

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राम रचि राखा - 4 - 2

राम रचि राखा

मरना मत, मेरे प्यार !

(2)

अच्छा हो या बुरा, समय तो बीतता ही रहता है। देखते ही देखते तीन साल बीत गए।

जैसे-जैसे समय समय बीतता गया मेरे और प्रिया के संबंधों की मिठास कड़वाहट में बदलती गई। एक तरफ जहाँ प्रिया को समझ पाना मेरे लिए दिनों दिन और मुश्किल होता जा रहा था वहीं प्रिया के लिए मेरा व्यवहार उत्तरोत्तर असहनीय होता जा रहा था। पहले तो सुबह-शाम ताने दिया करती थी। बाद में चुप्पी साध ली। जो कि मुझे बहुत खलती थी।

उस दिन जब सुबह उठा तब प्रिया और वर्तिका दोनों सो रही थीं, जो कि अस्वाभाविक था। साढ़े सात बजे चुके थे। वर्तिका की स्कूल बस जा चुकी होगी। प्रिया रोज मुझसे पहले जाग जाती थी। वर्तिका को तैयार करती थी। जब वर्तिका स्कूल जाते समय मुझे चूम कर बाय बोलती तब मैं जागता था।

मैंने प्रिया के माथे को छुआ। थोड़ा गर्म था। वह अचकचाकर जाग गई। मैंने कहा- सॉरी, सो जाओ फिर से।"

"न...नहीं..." प्रिया उठ बैठी "क्या टाइम हुआ।।" बड़बड़ाती हुयी उसने दीवार घड़ी की ओर देखा। फिर सोयी हुई वर्तिका की ओर देखकर बोली, "ओह, आज नहीं जा पाई।" उसके स्वर में अफ़सोस था।

"कोई बात नहीं। तुम थोड़ा और आराम कर लो। बुखार लग रहा है।" कहकर मैं उठकर बाथरूम में चल गया। जब नहा-धोकर बाहर निकला तो देखा कि प्रिया किचन में थी।

"प्लीज यार, तुम रहने दो। मैं खुद बना लूँगा। तुम फ्रेश हो जाओ। बिस्किट खाकर एक पैरासीटामॉल ले लो।" मैंने प्रिया को जबरदस्ती बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर बिठाया और किचन में लौट आया। प्रिया सैंडविच के लिए खीरा, लेटस आदि काट चुकी थी। मैंने ब्रेड सेंका, चीज़ स्लाइस और कटी सब्जियों से सैंडविच तैयार किया और डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

"प्रिया तुम भी तैयार हो जाओ, तुम्हें डॉक्टर को दिखाकर जाऊँगा" मैंने नाश्ता करते हुए कहा।

इस बीच प्रिया वर्तिका को जगा चुकी थी। वह जागकर मेरे पास आ गई।

"गुड मॉर्निंग डैडी।" रोज की तरह मेरे गालों पर चूमते हुए वह बोली।

"वेरी गुड मॉर्निंग बेटा!" कहते हुए मैंने उसे उठाकर बगल वाली कुर्सी पर बिठा दिया। फिर आगे कहा, "सैंडविच खाएगा मेरा बच्चा?"

"मैंने तो अभी मुँह भी नहीं धोया है डैडी।"

"हाँ वो तो है...अभी मैं आपका मुँह धुलवाता हूँ।"

मैं नाश्ता करते समय वर्तिका से बातें कर रहा था तभी प्रिया आ गई ।

"तुम फ्रेश हो गयी?" मैंने प्रिया से पूछा।

"चलो बाथरूम में।" प्रिया मेरी बात को अनसुनी करके वर्तिका से बोली और उसे ले जाने लगी।

"प्रिया! मैं तुमसे कुछ कह रहा हूँ।"

"अभी इतनी सुबह कौन सा डॉक्टर बैठा होगा। तुम ऑफिस जाओ। मेरी चिंता न करो।"

"डॉ वशिष्ठ साढ़े नौ बजे तक आ जाते हैं क्लीनिक पर। मैं थोड़ी देर रुक जाता हूँ।"

प्रिया ने जाते-जाते शायद मेरी आधी बात सुनी होगी।

मैं आधे घंटे तक प्रतीक्ष करता रहा लेकिन प्रिया तैयार नहीं हुई। सोच रहा था कि प्रिया को डॉक्टर को दिखाकर वापस घर छोड़कर ऑफिस जाऊँगा। लेकिन वह तैयार नहीं हुई तो मैं चला गया।

दिन भर ऑफिस में एक के बाद एक ऐसा काम में उलझा रहा कि प्रिया को फ़ोन करने तक की फुर्सत नहीं मिल पाई। यहाँ तक कि बीमारी की बात मेरे ध्यान से निकल गई। जब घर लौटने को हुआ तब याद आया। मैंने प्रिया को फ़ोन किया। उसने नहीं उठाया। घर पहुँचा तो प्रिया मुझसे बात नहीं कर रही थी। मैं समझ गया कि दिन में फ़ोन न करने से वह नाराज़ थी।

"कैसी है तबियत तुम्हारी। सॉरी…इतना बिजी दिन था कि फ़ोन तक नहीं कर पाया।" मैंने उसका माथा छूते हुए कहा, "अरे तुम्हारा माथा तो अभी तक गर्म है। डॉक्टर के यहाँ गई थी?"

वह बिना कुछ कहे मेरे सामने पड़ा खाली गिलास उठाकर किचन में चली गयी। मैं उसके पीछे-पीछे किचन में गया।

"चलो अभी, डॉक्टर को दिखा कर आते हैं" मैंने जोर देकर कहा। वह काम में लगी रही। मैंने उसके हाथों को रोकते हुए कहा, ‘चलो न ...इस तरह तो तबियत ज़्यादा बिगड़ सकती है।"

"प्लीज, ये सब नाटक मत करो। नहीं मरूँगी मैं। दिन भर में एक बार फ़ोन तक करने की फुर्सत नहीं मिलती है तुम्हें और अब आकर...प्लीज...।"

"आई एम रियली वेरी सॉरी। बताया न कि काम में बहुत बिजी हो गया था।" मुझे सच में बहुत पछतावा हो रहा था। मैंने कहा,"चलो डॉक्टर को तो दिखा लो।"

वह अनसुनी करके बेडरूम में चली गयी। वहाँ वर्तिका अपना होमवर्क कर रही थी। रात में खाने के बाद उसने क्रोसिन लिया।

सुबह जब मैं उठा तब प्रिया वर्तिका को स्कूल के लिए तैयार कर चुकी थी। उसका बुखार भी उतर चुका था। मैं भी तैयार होकर ऑफिस चला गया। शाम को जब ऑफिस से लौट कर सोसाइटी के गेट पर पहुँचा, तभी वहाँ प्रिया ऑटो रिक्शा से उतरी। वह कमजोर लग रही थी। मैंने कार को बाहर ही जल्दी से पार्क किया और उतरकर प्रिया के पास गया। उसे सहारा देने के लिए बाहों से पकड़ लिया। उसका शरीर गर्म था। डॉक्टर के यहाँ से दिखा कर आयी थी। मैं उसे सहारा देकर ले जाने लगा।

"इतनी तबियत ख़राब थी तो फ़ोन कर दी होती, मैं आ जाता।" मैंने धीरे से कहा।

प्रिया को पूरी तरह ठीक होने में लगभग एक सप्ताह लग गया।

बुखार वाली घटना के बाद से प्रिया ने बिलकुल ही मुझसे बात करनी बंद कर दी थी। अजीब सी घुटन होने लगी थी घर के अंदर।

एक दिन सुबह जब प्रिया ने टेबल पर मेरे नाश्ता रखा तब मैंने कहा, "बैठो मुझे तुमसे बात करनी है।" मैं चाहता था कि जो भी स्थिति है उससे निकला जाए और उसके लिए बात करना बहुत जरूरी था। मेरी बात अनसुनी करके प्रिया बेडरूम में चली गई।

मैं उसके पीछे-पीछे गया।

"प्लीज प्रिया, एक बार बात करो।" वह जाकर बेड पर बैठ गयी थी। "फ़ॉर गॉड शेक कुछ कहो। जो भी कहना चाहती हो। अच्छा, बुरा कुछ भी।"

"मुझे तुमसे कुछ भी नहीं कहना है" प्रिया ने एकदम सपाट स्वर में कहा।

"आखिर ऐसा कब तक चलेगा?" वह एकदम खामोश रही। "एक छत के नीचे कब तक हम अजनबियों की तरह रहेंगे। मेरा दम घुटता है।" मैंने झल्लाकर कहा।

"मैं भी यही सोच रही हूँ।" कहती हुई वह बाथरूम में घुस गई। मैं बहुत देर तक प्रतीक्षा करता रहा किन्तु वह बाहर नहीं निकली। आखिर मैं ऑफिस चला गया।

शाम को जब लौटा तब सोसाइटी के गेट कीपर ने मुझे फ्लैट की चाभी दी और कहा, "मैडम बाहर गयी हैं। आपको चाभी देने को कहा था।"

मैं फ्लैट में पहुँचा। फ़्रिज से पानी की बोतल निकाली और सोफे पर बैठकर पीने लगा, तभी मेरी नज़र सेंटर टेबल पर पेन से दबाकर रखे गए कागज पर पड़ी। मैंने उसे उठा लिया। प्रिया का नोट था- तुमने सुबह सही कहा था कि घुटन होने लगी है। तुम्हें उस घुटन से मुक्ति दे रही हूँ। रायबरेली जा रही हूँ। प्लीज आना मत।

प्रिया का नोट पढ़कर मेरा सिर चकरा गया। इतनी सी बात के लिए कोई घर छोड़कर जाता है। प्रिया का दिमाग खराब हो गया है। मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था। वर्तिका की पढ़ाई के बारे में भी उसने एक पल नहीं सोचा। जो मर्ज़ी करे। किस बात पर इतना गुस्सा। मैंने किया ही क्या है। मैंने अपनी तरफ से हमेशा उसे खुश रखना चाहा। क्या सोचती है कि मैं उसके बिना रह नहीं सकता। नहीं जाऊँगा उसे मनाने। जब मर्जी आए या न आए।

क्रमश..