Dugdugi, chhadi aur mantar in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | डुगडुगी, छड़ी और मंतर

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डुगडुगी, छड़ी और मंतर

एक जंगल में रहता था एक बंदर. मस्त कलंदर.सारा दिन बंदरपन करता फिरता. कभी सोते भालुओं के कान में चींख कर उन्हें डराता तो कभी डाल हिलाकर पक्षियों को उड़ाकर खिलखिलाता. अपनी शैतानियों से सबको हंसाता, सबको रूलाता.

अपने इसी बंदरपने में एक दिन वह निकल आया शहर की तरफ. एक छत से कूदकर दूसरी छत और एक दीवार को लांघ कर दूसरी दीवार तक पहुंचते हुए वह जा पहुंचा एक चौराहे तक. वहां उसने देखा कि एक मदारी,एक हाथ में डुगडुगी और दूसरे हाथ में छड़ी लिए हुए एक बंदर को नचा रहा है.

मदारी डुगडुगी बजाता और बंदर ठुमके लगाता.

मदारी छड़ी पटकता और बंदर कलाबाजी खाता.

यानी मदारी डुगडुगी और छड़ी से जो-जो आदेश देता, मदारी का बंदर उसका पालन करता.

जंगल के बंदर को डुगडुगी का यह खेल बड़ा मजेदार लगा.

खेल खत्म होने पर मदारी ने एक चादर बिछायी और घूम-घूम कर हुगडुगी बजाने लगा.

तुरंत ही लोग उसकी चादर पर पैसे और फल तथा मिठाई रखने लगे.

थोड़ी ही देर में मदारी की चादर में बहुत सारे पैसे, फल और मिठाई जमा गई. तब मदारी ने उन्हें समेटा और बंदर को लेकर अपने डेरे की तरफ लौटने लगा.

जंगल का बंदर भी उनके पीछे हो लिया. उसे मदारी की डुगडुगी बड़ी कमाल की चीज लगी. उसने सोचा, इस डुगडुगी में जादू है, इसे बजाकर किसी को भी नचाया जा सकता है और लोगों को आदेश देकर अपनी कोई भी फरमाइश पूरी की जा सकती है जैसा कि यह मदारी कर रहा है.

यह सोचते-सोचते वह मदारी पीछा करता हुआ उसके डेरे पर पहुंच गया. जब रात हुई और मदारी तथा उसका बंदर दोनों सो गए तो यह जंगल का बंदर दबे पांव नीचे उतरा और बदारी की डुगडुगी उठाकर रफूचक्कर हो गया.

भागते-भागते वह जंगल पहुंच गया. बाकी रात उसने किसी तरह सोते-जागते हुए बिताई. सुबह हुई तो बंदर डुगडुगी लेकर निकल पड़ा, उसे आजमाने, जंगल के जीव-जंतुओं पर उसका जादू देखने.

सामने भेड़ों का एक झुंड घास चर रहा था. वह उनके बीच में जाकर डुगडुगी बजाने लगा. भेड़ों पर उसका कोई असर नहीं हुआ, वे डुगडुगी की आवाज को अनसुना कर मजे से घास चरती रहीं.

‘‘ बुद्धू कहीं के!’’ कहकर बंदर भेड़ों के बीच से निकल आया.

अब उसकी नजर पड़ी गन्ना चूसते चार हाथियों पर. उसने सोचा अगर हाथियों को वश में कर लिया जाए तो सारे जंगल पर उसका राज हो जाएगा. फिर क्या था, उसने हाथियों के सामने जाकर डुगडुगी बजाना शुरू कर दिया. हाथियों ने इसे अपनी शान के खिलाफ समझा और एक हाथी ने उसकी डुगडुगी छीन कर अपने भारी पैरों से पिचका डाला, तो दूसरे हाथी ने उसे हवा में उछाल दिया, जमीन पर आते ही बंदर को अक्ल आ गई कि डुगडुगी में कोई जादू नहीं है.

रात को दुखती पीठ को सहलाते हुए उसने सोचा कि, हो न हो, जादू मदारी की छड़ी में है. वह डुगडुगी बेकार में ही उठा लाया.

सो अगली रात को वह चुपचाप से मदारी के डेरे में पहुंचा और सोए मदारी और उसके बंदर से बचते हुए उसकी छड़ी को उठाकर एक बार फिर जंगल लौट गया.

अगले दिन जंगल का बंदर छड़ी लेकर निकला. छड़ी का जादू आजमाने. सबको अपना गुलाम बनाने.

सामने से राजा शेर को गुजरते देखा तो छड़ी आजमाने की हिम्मत नहीं हुई, वह झट से एक पेड़ की डाली पर जा छिपा.

शेर के गुजर जाने के बाद जंगली गधों को आते देखा तो बंदर की हिम्मत बढ़ गई और वह नीचे उतर कर गधों के आगे छड़ी लहराते हुए बोला, ‘‘ बैठ जाओ सब’’.

गधों ने कान फैलाकर सुना और फिर उसकी बात को अनसुना कर दूसरी तरफ निकलने लगे तो बंदर उनके सामने आकर छड़ी दिखाते हुए बोला, ‘‘ खबरदार जो आगे बढ़े, चलो सब मिलाकर एक गाना गाओ.’’

यह सुनकर एक गधे को इतना गुस्सा आया कि उसने जोरदार दुलत्ती मारी और बंदर बेचारा दूर जा गिरा. गधे की दुलत्ती खाकर उसे होश आ गया कि जादू मदारी की छड़ी में भी नहीं है.

लेकिन इस खुराफाती बंदर को इतने में चैन कहां. वह सोचने लगा कि अगर जादू डुगडुगी में नहीं छड़ी में नहीं, तो किसमें है. और जादू कहीं न कहीं तो ज़रूर है, वरना लोग पैसा और खाने-पीने की चीजें क्यों लुटाते.

इसका जवाब पाने के लिए जंगल का बंदर अगली रात जा पहुंचा मदारी के बंदर के पास. उसके सोने से पहले.

वह साथ में कुछ फल भी ले गया था. इसलिए जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. फिर जंगल के बंदर ने पूछ ही लिया कि मदारी की डुगडुगी और छड़ी में जादू नहीं, तो जादू कहां है?

यह सुनकर मदारी का बंदर बोला, ‘‘ जादू मदारी के मंतर में है!’’

जंगल का बंदर चौंक कर बोला, ‘‘ यानी वह बात, जो मदारी बोलता है. तो भय्या मुझे बता दो, वो बोलता क्या है?’’

मदारी का बंदर बेरूखी से बोला, ‘‘ मुझे क्या पता वह क्या बोलता है. मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं. बस वह मुझे भरपेट खाना देता है. प्यार करता है, सेवा करता है. मैं इतने में खुश हूं.’’

जंगल का बंदर हाथ जोड़कर बोला, ‘‘ मेरे भाई किसी तरह मुझे वह मंतर बता दो. कल याद कर लेना और रात को मुझे बता देना. बदले में मैं तुम्हें खूब फल लाकर दूंगा.

मदारी का बंदर बोला, ‘‘नहीं-नहीं, मदारी की बात मेरी समझ नहीं आती. वैसे भी मेरी याददाश्त कमजोर है. मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता.’’

जंगल का बंदर बोला, ‘‘ अरे भाई, कोई तो रास्ता होगा? सोचो जरा, मैं हर कीमत में ये मंतर पाना चाहता हूं.’’

मदारी का बंदर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘ तब तो एक ही रास्ता है, मेरी जगह कल तुम मदारी के साथ खेल दिखाने जाओ, और वो जो कुछ बोले उसे रट लो. शाम को जब मदारी और तुम लौटोगे तो फिर हम अपनी-अपनी जगह बदल लेंगे.’’

‘‘ अरे वाह! क्या कमाल का रास्ता खोज निकाला है तुमने ’’ जंगल का बंदर बोला.

‘‘ तो अब मेरे गले की जंजीर खोल दो ’’ मदारी का बंदर बोला.

जंगल के बंदर ने फौरन मदारी के बंदर को खोल कर आजाद कर दिया और फिर मदारी के बंदर ने उसी जंजीर से शहर के बंदर को बांध दिया,

मदारी के बंदर की जगह लेने के बाद जंगल का बंदर जोश में आकर बोला, ‘‘ मुझे अभी से कल सुबह का इंतजार है.’’

इस पर मदारी के बंदर ने एक छलांग लगाकर दीवार पर बैठते हुए कहा, ‘‘ दोस्त, अब सुबह नहीं, अपनी तरह किसी उतावले, बेवजह की दिलचस्पी दिखाने वाले बंदर का इंतजार करो. तुम्हारी तरह मैं भी कभी इसी जादू की तलाश में यहां आ पहुंचा था. और मदारी के उस समय के बंदर ने अपनी मीठी-मीठी बातों में फुसलाकर अपनी जंजीर मुझे पहना दी थी. मैं इस मदारी का छठा बंदर था. तुम सातवें हुए. अब आठवें का इंतजार करो और हमेशा याद रखना-जिस बात का अपने से कोई मतलब न हो, उसके पचड़े में कभी नहीं पड़ना चाहिए.