Purn-Viram se pahle - 15 in Hindi Moral Stories by Pragati Gupta books and stories PDF | पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 15

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 15

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

15.

एक लंबे अरसे बाद दोनो फिर से रिटायर होने के बाद मिले थे|....वो भी उम्र के उस पड़ाव पर.....जहां हर आता दिन कभी भी ज़िंदगी में पूर्ण-विराम के लगने की ओर इशारा कर रहा था ..और दूसरी ओर ज़िंदगी शेष समय को जितना भी संग-साथ मिले उसमें बहुत जीए-सा महसूस करना चाहती थी| दोनों ने जो धैर्य एक दूसरे से बिछड़ने के बाद सारी उम्र रखा था| शायद उसी के उपहारस्वरूप दोनों एक दूसरे के पड़ोसी बने थे| अब इसकी भी मर्यादा रखना दोनों की ही ज़िम्मेदारी थी| आज एक बार फिर अतीत ने दोनो को पूरी रात का जागरण करवा दिया था।

अगले दिन जब शिखा अपने छोटे से बगीचे में पानी लगा रही थी| तभी प्रखर बाहर आया और बाउंडरी पर आकर शिखा से बोला..…

"रात सो पाई तुम शिखा। इतने सालों बाद तुम्हारा मिलना..अब ईश्वर कौन-सी परीक्षा चाहता है इस उम्र में। तुमसे मिलने के बाद बार-बार अतीत में पहुँच जाता हूँ| आज तुमसे एक बात और साझा करना चाहता हूँ| तुम्हारा नंबर मैं कभी डिलीट नहीं कर पाया| वो हमेशा से मेरे फोन में था| तुम्हारी किसी भी चीज़ को मैं अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह डिलीट नहीं करना चाहता था| तुम्हारी वो कविता जिसे मैं दिल के पास वाली पॉकेट में सहेज कर लाया था....आज भी मेरे पास है....जिसने मुझे महसूस करवाया हम कभी दूर जाकर भी दूर नहीं होंगे|”

"ओह! कैसे हो तुम प्रखर| पर तुम मेरे से ज़्यादा मजबूत निकले| मैंने तो तुम्हारा नंबर इसलिए डिलीट किया था क्यों कि.....शायद मैं अपने दिल को बहुत दिनों तक तुमसे बात न करने के लिए रोक नहीं पाती|.....खैर नही सो पाई प्रखर.....सारी रात मैं। समीर पूछ भी रहे थे क्यों नही सो पा रही। उनसे यही बोला शायद रात के समय चाय पी ली है तो नींद गायब हो गई है। अभी तो मेरा दिमाग भी काम नहीं कर रहा| बस तुम ही तुम घूम रहे हो| पर मैं नहीं चाहती कोई हमारे रिश्तों को गलत समझे|"…

"सच कहा तुमने शिखा..मैं तो अकेले रहता हूँ ..तुम्हारे तो पति हैं| बस एक काम करोगी सवेरे जब पानी लगाने आओगी तब मुझे अपना चेहरा जरूर दिखा देना। ईश्वर ने यह संजोग शायद इसलिए बनाया हो कि मरने से पहले तुमको देखता-देखता मरूं।"

"तुम सच में आज भी पागल हो प्रखर...हां ध्यान रखूंगी| अब तुमको भी मैं हमेशा महसूस करना चाहती हूँ|”

इसके बाद रोज ही एक दूसरे का चेहरा देखकर गुड मॉर्निंग कहने का क्रम बन गया। प्रखर और शिखा के दिन की शुरुआत इसी के साथ होती थी| सवेरे एक दूसरे को मिलने-देखने की खुशी दोनों को बहुत आत्मीय से आगोश में बांध देती|

समीर जब शिखा के चेहरे पर अनायास आई मुस्कुराहट की वजह पूछता तो शिखा उसको कई बार कुछ भी बोलकर टाल जाती थी.. पर कभी सच भी बोल देती थी कि प्रखर की किस बात पर हंसी है| समीर भी कई बार उसकी बातों पर मुसकुराता था और शिखा के पूछने पर बता देता था| पर तीनों किस बात पर क्यों हंस रहे हैं यह वजह सब की बहुत अपनी थी| कुल मिला कर तीनों के ज़िंदगी रिटायर होने के बाद भी बहुत रफ्तार से चल रही थी|

दोनो परिवारों के बीच मेल-जोल भी काफ़ी बढ़ गया। कभी प्रखर शिखा के यहां आ जाते....तो कभी यह दोनो प्रखर के यहां चले जाते। खूब बातें गप्पे होती। प्रखर हमेशा ध्यान रखते कभी रिश्तों की गरिमा खराब न हो। एक साल से ऊपर बहुत अच्छे से गुज़र चुका था। प्रखर अक्सर ही अपनी पत्नी प्रीति की बातें समीर और शिखा से शेयर करते।

इतने ऊंचे औहदे पर काम करने से प्रखर में बातचीत करने का गजब सलीका आ गया था| उसकी बातें किसी के भी मन को मोहने में सक्षम थी| शायद तभी समीर भी उससे इतनी बातें कर पाते थे|

समीर की फिजूल में बातें करने की आदत नहीं थी| न ही ऐसे लोगों की संगत उनको पसंद थी| गिनती के दोस्तों में उनका अच्छे से गुज़ारा होता था|

एक दिन प्रखर ने समीर को बताया.. कि उसका बेटा चाहता है कि अब वो भी उसके पास पहुंच जाये| चूँकि उन्होंने प्रीति के जाने के बाद कुछ समय उसकी यादों के साथ गुज़ारने को कहा था.. पर अब प्रीति को गए हुए भी काफ़ी समय हो चुका है तो प्रणय को लगता है कि उसे प्रणय के पास पहुँच जाना चाहिए|

प्रखर की बात सुनकर समीर का मन बहुत छोटा-सा हो गया| इतने सालों बाद उसको प्रखर जैसा मित्र मिला था| आज उसकी बातें सुनकर समीर ने प्रखर से पूछा..


"फिर क्या सोच रहे हो प्रखर। अब यह मत बोलना कि मुझे और शिखा को छोड़कर जा रहे हो|"

प्रखर ने मुसकुराते हुए कहा..

"बहुत अच्छा बेटा है समीर मेरा। पर वहां जाकर मेरा भी जी नही लगता। समझ नही आ रहा क्या करूँ। दोनो ख्याल साथ-साथ चलते है। कभी लगता है ओल्ड ऐज की ओर बढ़ रहा हूँ| किसी रोज दिक्कत हो गई तो सब बोलेंगे बेटे के पास जाना चाहिए था।.. पर नही....अब मन नही है.. अब तुम दोनों को भी छोड़कर कहीं नहीं जाने का मन करता|”

अपनी बात रखकर प्रखर ने शिखा की ओर देखा..शिखा ने उसके मन की बात भांपते हुए अपने चेहरे को घुमा लिया।

अगले दिन सवेरे जब दोनो गार्डन में पानी लगाते हुए मिले तो शिखा ने धीमे से बॉउन्ड्री पर आकर कहा..

“प्रखर! तुम सच में बेटे के कहने से चले तो नहीं जाओगे?..” प्रखर ने असहमति में सिर हिलाकर कहा..

"तुमको देखते हुए मरना चाहता हूं। कहीं नही जाऊंगा शिखा मैं...खोकर फिर से मिली हो.....अब जान-बूझ कर कहीं नही जाऊंगा। अभी स्वस्थ हूँ मुझे कोई दिक्कत भी नहीं| काका-काकी के होने से घर भी बहुत अच्छे से चलता है| वो दोनों भी मुझे छोड़ कर नहीं जाना चाहते|"

आज शिखा को कहीं भीतर से महसूस हुआ कि उसकी खोई हुई धड़कने वापस चलने लगी हैं। कोई है जो सिर्फ उसके लिए आज भी जीना चाहता है। कल रात जब प्रखर ने प्रणय की इच्छा बताई थी....तब से ही शिखा मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि कहीं प्रखर ने जाने की तैयारी न कर ली हो|

प्रखर की बात सुनकर शिखा ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई..और कहा

“अब मेरे से दूर मत जाना प्रखर| अब तुम्हारा दूर जाना मुझे उम्र से पहले ही न मार दे| तुमको आस-पास महसूस करके भी बहुत संतुष्टि मिल जाती है|”

तब प्रखर ने चुपके से शिखा से बोला..

“काश इस समय तुमको मैं गले लगा पाता|”..

सवेर-सवेरे एक दूसरे को महसूस कर दोनों जल्द ही वापस मिलने का वादा कर अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए|

क्रमश..