The Author Shikha Kaushik Follow Current Read बेटी का हक By Shikha Kaushik Hindi Motivational Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Robo Uncle - 2. Unexpected Event 2. Unexpected Event Nancy was waiting just for he... Love at First Slight - 29 Rahul's Hotel Room, SingaporeRahul walked into his lavis... The Village Girl and Marriage - 3 The child of Diya was not normal. When her elder brother and... Trembling Shadows - 6 Trembling Shadows A romantic, psychological thriller Kotra S... Secret Affair - 16 As winter melted into spring, Inayat and Ansh found themselv... 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हॉल हो रही है ...पता नहीं पूजा कैसी होगी वहां ? मैंने कहा था उससे -बेटा पहुँचते ही फोन कर देना पर ....साँझ ढलने आ गयी और उसका फोन अब तक नहीं आया .मैं भी फोन नहीं मिला सकती .पूजा के ससुराल का मामला है क्या पता शुभम को पसंद न आये ? हे भगवान ! मेरी बच्ची के रक्षा करना .''मंजू के भगवान के आगे हाथ जोड़ते ही आस्तिक भड़क उठा -'' अब ये सब रहने दो .मैं चाहता था कि पूजा किसी अच्छी नौकरी में लग जाये तभी ब्याह करूंगा पर तुम्हारी जिद के कारण पूजा की बी.एस.सी पूरी होते ही उसके लिए लड़के देखने शुरू कर दिए और अब भी तुम्हारी ही जिद पर शुभम जैसे दामाद के साथ भेजा है उसे ....पर एक बात याद रखना यदि इस बार शुभम ने पूजा पर हाथ उठाया तो अपनी बेटी को हमेशा के लिए यही ले आऊंगा ...भाड़ में जाये तुम्हारा समाज और तुम्हारी बिरादरी .'' अपनी इकलौती बिटिया की चिंता में फुंकारता हुआ आस्तिक मंजू को लगभग घूरता हुआ उस कमरे से दुसरे कमरे की ओर बढ़ लिया . मंजू बेमन से रसोईघर में चली गयी .मन में विचारों की आँधियाँ चलने लगी मंजू के . उसके मन में आया - क्या गलती मेरी ही है ? जब मैं ब्याह कर आई थी तब सासू माँ के ताने मैंने भी सहे थे .इनसे जुबान लड़ाने पर थप्पड़ मैंने भी खाया था .ससुर जी ने पिता जी से बहुत ज्यादा दहेज़ की आस पाली थी पर मेरे पिता जी तो कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक बने थे .उनका ऊँचा रुतबा था पर नकद पैसा , जमीन-जायदाद ...ये सब कहाँ था पिता जी पर ! मैं भी मायके गयी थी यहाँ से गुस्से में पर तब माँ ने ही समझाया था कि बिटिया घर-गृहस्थी में ये सब चलता रहता है .रोज़ नाक कटती है और रोज़ जुड़ती है फिर पूजा के मामले में एकदम दहेज़-हत्या तक की सोचकर क्या शुभम से उसका तलाक करवा दूँ . ना मेरे संस्कार नहीं हैं ऐसे .'' मंजू के ये सोचते -सोचते ही उसका मोबाइल बज उठा .पूजा का ही फोन था .पूजा की आवाज़ घबराई हुई सी आ रही थी पूजा ने बताया कि ससुराल पहुँचते ही शुभम ने बैडरूम में ले जाकर उसकी बेल्टों से पिटाई की और बोला -'' अपने घर में बड़ी लम्बी जुबां निकलती है तेरी .चार लाख लाने को कहा था लाने को..एक कौड़ी भी नहीं लाई ...और हाँ क्या कह रही अपने बाप से ..मैंने थप्पड़ मारा था तेरे .....ले अब बेल्टें खा ..बोल करेगी शिकायत हमारी ..फूंक के डाल दूंगा तुझे ..इकलौती संतान है तू ..उनकी सारी संपत्ति -पैसा मेरा है ..समझी ...'' और सास व् ससुर चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे . किसी तरह बैडरूम से भागकर वो पाखाने में घुस गयी और उसका किवाड़ अंदर से बंद कर लिया .मोबाइल उसने ब्लाउज में छिपा रखा था जिससे वो फोन कर पाई . मंजू पूजा की बातें सुनकर बस इतना ही दिलासा उसे दे पाई -'' तू डर मत पूजा ..मैं और तेरे पापा आ रहे हैं .'' ये कहकर मंजू रसोईघर से धड़धड़ाते हुए निकली और आस्तिक को पुकारते हुए बोली -'' अजी सुनते हो जी .....गाड़ी निकालो ..अब एक मिनट की भी देर ठीक नहीं ....वे मार डालेंगें मेरी बच्ची को .'' मंजू की घबराई हुई आवाज़ सुनकर आस्तिक हड़बडाता हुआ मंजू के पास वहीँ आया और सारी बात जानकर उसका खून खौल उठा .उसने तुरंत कार की चाबी उठाई और मंजू से बोला -'' मैं कार निकलता हूँ गैरेज से तुम घर बंद करो .'' मंजू ने झटाझट सब बंद किया और आस्तिक के मेन गेट से कार बाहर निकालते ही उस पर भी ताला ठोंक दिया .मंजू के कार में बैठते ही आस्तिक ने कार स्टार्ट की और दोनों अपनी बच्ची के सलामती की दुआ मनाते हुए पास के ही शहर में उसकी ससुराल के लिए रवाना हो लिये .एक घंटे का सफर तय कर मंजू व् आस्तिक जब पूजा की ससुराल पहुंचे तब रात के आठ बजने आ गए थे और बेटी के ससुराल के घर के बाहर काफी भीड़ जमा थी .उस भीड़ को देखकर बेटी के अशुभ का विचार कर मंजू और आस्तिक का दिल बैठ गया.वे भीड़ को चीरते हुए घर की भीतर पहुंचे .इकठ्ठा भीड़ में से कोई चिल्लाया -'' अरे किवाड़ तोड़ दो पाखाने का .....बेचारी पागल बहू वहीं बंद है !'' आस्तिक ने देखा शुभम और उसके पिता जी पाखाने का किवाड़ पीट रहे हैं और पूजा की सास वहीं जमीन पर नीचे बैठ कर सिर पकड़कर तमाशा कर रही है .आस्तिक ने आगे बढ़कर शुभम को धक्का देकर हटाया और चीखते हुए बोला -'' हरामजादो ...पागल मेरी बेटी नहीं तुम हो ..पूजा ..पूजा बेटा बाहर आ जा ..मैं आ गया हूँ बेटा ....अब तेरे खरोंच तक नहीं लगने दूंगा. अब तेरी माँ की भी बात नहीं सुनूंगा ...तू बाहर आ जा पूजा !'' आस्तिक के ये कहते ही पाखाने के किवाड़ खुले और बेल्टों से लहूलुहान देह के साथ बेसुध पूजा उससे आकर लिपट गयी .मुंह से बस इतना निकला -'' पापा मुझे यहाँ से ले चलो !'' ये कहते-कहते ही बेहोश होकर पूजा आस्तिक की बाँहों में झूल गयी . मंजू ने आगे बढ़कर उसे संभाला तभी भीड़ से निकल कर एक सज्जन आये और बोले -'' मैं डॉक्टर हूँ ..पास ही मेरी क्लीनिक है आप बिटिया को वहीं ले चलिए !'' आस्तिक ने वहां उपस्थित भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा -'' भाइयो ..माताओं ..मैं अपनी बिटिया को जरा इलाज के लिये लेकर जा रहा हूँ ..आप ध्यान रखें ये अपराधी कहीं भाग न पाएं !'' उस भीड़ में से एक युवक ने आगे बढ़ कर कहा -'' आप चिंता न करें ..हमने पुलिस को फोन कर दिया है वे आते ही होंगें .हमें तो पहले ही शक था था कि ये पूजा बहन को प्रताड़ित करते हैं पर आस-पड़ोस के लिहाज़ के कारण हम बोलते नहीं थे .आज ये बच नहीं पायेंगें .'' उस युवक के ये कहते ही कितने ही युवक शुभम ,उसके पिता को पकड़ कर सड़क पर ले आये और जूतो-चप्पलों से उनकी मरम्मत करने लगे .तभी पुलिस का साइरन सुनाई दिया और पुलिस की जीप रुकते ही भीड़ तितर-बितर होनी शुरू हो गयी .कुछ युवकों ने पुलिस को सारा मामला समझाया तो पुलिस शुभम और उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर थाने ले गयी . उधर आस्तिक व् मंजू पूजा को लेकर क्लीनिक पहुंचे .पूजा का सारा शरीर बेल्ट से पिटाई के कारण नीला पड़ा हुआ था .डॉक्टर साहब के इंजेक्शन लगाने के थोड़ी देर बाद पूजा को होश आया .पूजा के होश में आते ही मंजू उसके आगे हाथ जोड़ते हुए बोली -'' बिटिया मुझे माफ़ कर दे ..मैंने ही तेरे पापा से जिद कर तुझे वापस ससुराल भेजने की विनती की थी ...मैंने ही कहा था तेरे पापा से कि पूजा को ससुराल भेज दो वरना बिरादरी में बेइज्जती होगी .मैं समझ नहीं पाई कि ससुरालिये पैसे के लालच में मेरी बेटी को जान से मारने पर ही उतारू हो जायेंगें .ब्याह के पांच महीनों में ही इन्होनें अपना राक्षसी रूप दिखा दिया . जिस बच्ची पर मैंने माँ होकर भी हाथ नहीं उठाया उसे इतनी बुरी तरह मारा ....पर चिंता न कर लाडो ....तेरे पापा की ही चलेगी अब .तू अपने पैरो पर खड़ी होगी ..आज से ही मैं अपने दकियानूसी विचारों को स्वाहा करे देती हूँ ..और अगर बिरादरी का कोई कुछ कहेगा तब मैं पूछूंगी उससे कि यदि मेरी बेटी को ससुरालिये जलाकर मार देते ..फांसी पर चढ़ा देते तब तुम दो शब्द सहानुभूति के जता कर चले जाते पर उससे मेरी लाडो वापस आ जाती क्या ? औरत का धर्म निभाना है ,सहना है पर हर बात की एक सीमा होती है ,जब कोई दूसरा उस सीमा को पार करने के लिए विवश कर दे तब हमारे संस्कार भी हमें विद्रोह की आज्ञा देते हैं .'' मंजू की ये बातें सुन बैड पर लेटी हुई पूजा ने आस्तिक की ओर देखा तो आस्तिक पूजा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोला -'' तेरी माँ की सोच बदल गयी बस ये समझ सारी दुनिया बदल गयी .बेटी का विवाह कर देने से बेटी के माता-पिता का कर्तव्य पूर्ण नहीं हो जाता. यदि ससुराल में वो परेशान की जाती है तब उसका हक़ है कि वो मायके में आकर रहे ..उसी गरिमा के साथ जैसे विवाह के पूर्व रहती थी ....अब तू मजबूत बनकर जीवन में आने वाली सारी चुनौतियों से कह दे कि -मैं तैयार हूँ तुमसे लड़ने के लिए क्योंकि मेरे माँ-पापा मेरे साथ हैं .'' आस्तिक के ये कहते ही पूजा की आँखें भर आई और मंजू ने झुककर उसका माथा चूम लिया .डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन' Download Our App