कौवा:
कल १५ जुलाई १७ को, एक कौवे से अचानक भेंट हो गयी। बचपन में माता-पिता कहते थे ,आज कौवा काँव-काँव कर रहा है कोई अतिथि(पौंड़) आने वाला है।और जब भी कौवा काँव-काँव करता तो हम उम्मीद करते थे कि मेहमान आने वाला है। कितने मेहमान आये यह तो याद नहीं।आये या नहीं यह भी पता नहीं।लेकिन उस दिन हम रास्ते पर बार-बार देखते थे कि कोई अतिथि आ रहा या नहीं। पर कौवे के साथ यह परंपरा जुड़ी हुई है। लेकिन आज जो कौवे से सामना हुआ वह घर के सामने पेड़ पर बैठा था। जब में पेड़ के नीचे से गुजर रहा था तो कौवे ने गोता लगाया और मेरे सिर को पंजों से छूता निकल गया।मैं दो कदम आगे बढ़ा था कि वह फिर मेरे सिर को पंजों से छूता निकला और डाली पर बैठ गया। मैंने पत्थर उठाया और उसकी ओर फेंका और आगे बढ़ा। इतने में वह फिर मेरे सिर को छूता निकल गया। समझ में कुछ नहीं आ रहा था। बचपन में शगुनी कौवा देखा था। उस समय हमारे गांव में दो ही काले कौवे होते थे। त्यौहारों में गाय और कौवे के लिए पकवान अलग से निकाल कर रख दिये जाते थे।
उत्तरायणी के त्यौहार के दिन कौवे का विशेष महत्व होता था।
* गाँव में छोटे बच्चों को खेल-खेल में उछाल कर बोला जाता था-
लै कौव्वा लीज, सैंति पायि बै दीज( कौवा लेकर जा,और पाल-पोष कर दे जाना)। उत्तरैणी त्योहार को कुमाऊँ में घुघुतिया त्योहार भी बोलते हैं।त्योहार के दिन घुघुत नाम के पकवान बनाये जाते हैं,साथ में कुछ बड़े(उड़द के दाल के) भी। त्योहार के दूसरे दिन सुबह बच्चे घुघुत थाली में रखकर, कौवे को संबोधित करते हैं-काले,काले,काले, और साथ में अपनी इच्छा उसे बताते हैं-
"लै कौवा घुघुत, मैंगैं दिजा सुनक मुकुट,
या लै कौव्वा बड़, मैंगैं दिजा सुनक घोड़।" अर्थात कौवा घुघुत और बड़ा ले ले और मुझे सोने का मुकुट और घोड़ा दे दे।
इस त्योहार के संदर्भ में कुमाऊँँ में अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार चन्द वंश के एक राजा को बहुत समय तक संतान नहीं हुयी। एकबार उन्होंने बाघनाथ जी की पूजा की और उसके बाद उन्हें पुत्र हुआ। लेकिन इसीबीच उनके मंत्री ने राज्य प्राप्त करने के लिए षडयंत्र किया और राजा के पुत्र का अपहरण कर मारना चाहा। तब कौवों ने मंत्री और उसके साथियों को देख लिया और उनको नोचकर बच्चे को उनसे छुड़ा लिया। पुत्र जिसे उसकी माँ प्यार से घुघुति कहती थी,उसके गले की माला को कौवा लेकर राजमहल पहुँँचा। राजा समझ गया और वह अपनी सेना लेकर कौवे के पीछे-पीछे गया और उसे पेड़ के नीचे बच्चा मिल गया। मंत्री और उसके साथियों को उनके अपराध के लिए मृत्यु दण्ड दिया गया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, ऐसा माना जाता है। बागेश्वर में इसी दिन मेला लगता हैऔर स्नान किया जाता है, जिसका महत्व प्रयागराज के स्नान के बराबर माना जाता है। यहाँ बाघनाथ जी का मन्दिर है। मान्यता है कि शिवजी, बाघ(बाग) रूप में यहाँ प्रकट हुए थे। बागेश्वर का नाम इसी पर पड़ा है।*
यह कौवा मुझे अपशकुनी लग रहा था, भूरी गर्दन वाला। उसे भगा कर घर आया। इंटरनेट खोला और ज्योतिष देखने लगा। उसमें अच्छी, बुरी और विचित्र बातें लिखी थीं।एक जगह लिखा था- "पत्नी के सिर में कौवा बैठ गया था तो उसके मरने की झूठी खबर उसके मायके भेजी गयी(अपशकुन टालने के लिए) । मायके वालों ने तुरंत पुलिस में दहेज प्रताड़ना- रिपोर्ट लिखा दी और पुलिस वहाँ पहुँँच गयी।" एक जगह लिखा था कौवे का सीधे यमराज और चित्रगुप्त से सम्बन्ध होता है। फिर सोचा विकास क्रम में कौवा, बिल्ली आदि तो मनुष्य से पीछे हैं,तो हम शगुन- अपशगुन इनसे क्यों जोड़ देते हैं? वे भी ईश्वर द्वारा बनाये गये जीव हैं।
आगे-
"ये ईश्वर के आँसू हैं,
जो सूखते नहीं,
ये सदा बहते रहते हैं
गांधारी जब कृष्ण के सामने रोती है तब भी,
द्रौपदी जब कृष्ण को याद करती है तब भी,
महाभारत जब जीता जाता है तब भी,
महाभारत जब हारा जाता है तब भी,
शिशु से मनुष्य बनने तक
प्यार का प्रभात होने तक
प्राणों के प्रयाण करने तक
ये ईश्वर के आँसू हैं,
जो सूखते नहीं।"
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*महेश रौतेला
* पलायन