Yaado ka safar - 4 in Hindi Love Stories by VANDANA VANI SINGH books and stories PDF | यादों का सफ़र - 4

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यादों का सफ़र - 4

नवाज़
मेरी इस कहानी में हो सकता है कि मेरा किरदार थोड़ा चालकों वाला हो लेकिन मै ने सच में इस प्यार में कभी कोई चालाकी नहीं की मैं ने साफ दिल से प्यार किया है
मैं हमेशा देविका को देवी समझ कर उसकी पुजा की लेकिन जो मेरे बस में नहीं था उसके लिए मै क्या करता मै देविका के बिना नहीं रह सकता इस जीवन भर उसे भूल नहीं सकता प्यार करना कोई गुनाह नहीं होता है,
अगर मेरा ब्याह हो चुका है तो क्या मेरा प्यार करने का अधिकार किसी और का हो गया मेरे पास दिल नहीं है उनमें कोई एहसास भी नहीं है।
अगर फिर भी मुझे गलत समझा जाए तो मै ये इलज़ाम अपने सर लेने के लिए तयार हो।
देविका मेरे लिए जीने का कारण हो गई थी मै उसे खुद से ज्यादा चाहता था और उम्र भर चाहूं एसे विचार मेरे जहन में थे लेकिन होनी का क्या पता होता है कि क्या घटने वाला है। बस इतना किरदार ही मै नवाज़ का जान पाई क्यो की वो अपने बारे में किसी को कुछ बताना नहीं चाहता।
जब मैं जानू के साथ कहीं भी जाऊ तो इतना बेफिक्र होकर राहू मुझे थोड़ा भी डर ना लगे।

मैं इस कहानी को लिखते समय किरदार में डूब जाती हू।
जब मुझे होश आया मै रोने लगी, ये क्या पहली बार मैंने जोर देकर पूछा की मुझे बताया जाए कि आपकी जिंदगी मेरे सिवा कोन है!? सच पता चलने पर मेरी दुनिया उजड़ गई मै टूट गई सच ये था कि शादी हो गई है और बच्चे भी हैं।
ऑफिस से घर आ गए। मुझे लगा मेरे साथ धोखा हुआ है लेकिन मै ने अपनी तरफ से इक बार ये पूछा जब हमरी कभी कभी बात होती थी शादी इतनी देर क्यों कर दी? जवाब में बस इतना था कि हा कोई समझ नहीं आया
हमारी उम्र में भी काफी फर्क था, आपको ये पड़ कर एसा लग रहा होगा कि देविका कितनी पागल है, दुनिया उसे कोई और नहीं मिला था।
मैं ने सपने में भी ये सोचा होता की प्यार होगा कोई रिश्ता होगा तो मै जरूर कुछ पूछ लेती। लेकिन मुझे क्या पता था कि ये होगा।
मुझे इस प्यार में जितना दर्द मिला उस से कहीं ज्यादा सुकून भी, वो ट्रेन का सफ़र कैसे भुला जा सकता जब हम जानू के साथ दिल्ली गए थे, मुझे जैसे पता चला मुझे दिल्ली जाना है मै ने जान को मेसेज टिकेट का भेजा उसी ट्रेन और सीट के पास उसने अपनी भी टिकेट करा ली और हम साथ में दिल्ली गए, जब तक स्टेशन नहीं पहुंचे बहुत डर था सीने मै एसा लग रहा था कि कुछ गलत तो नहीं है कहीं हम क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था इक खुशी भी महसूस हो रही थी बड़ी हिम्मत बांधे हुए हम गए ट्रेन चलने के बाद हम सीट पर साथ आए।
नवाज़ भी डरे हुए थे, हम पास में आकर जब एक दूसरे का हाथ पकड़ा मानो सारे ख्वाब पूरे हो गए हो
पूरी रात हम दोनों सोए नहीं थंड का समय था हमे बहुत ज्यादा लग भी रही थी हमारा टिकेट स्लीपर में था उसमे हवा भी आ रही उस वक़्त एसा मन हो रहा जानू मुझे खुद में रख ले तो अच्छा हो जानू अपने गोद में सिर लिए खुद रात भर बैठा रहा, उस रात को मै जितनी बार दोहराएं कम होगा हम दिल्ली पहुंच कर अपने चाचा जी के यहां रुको जानू होटल पर दो दिन की काम था और घूमना भी था, जब हम परिवार के साथ बाहर जाए जगह बता दे जानू वहा पहुंच जाए और हम दोनों वापसी का टिकट सेकंड ए सी में कराई और पूरी रात बैठ कर गुज़र जाती लेकिन कुछ एसा हुआ हम दोनों से अब वो दूरी सहन नहीं हो रही पुरा बदन तपा जा रहा था और हम एक पल के लिए एक दूसरे में समा जाना चाहते थे , इस कारण से अलग होना पडा मै उपर सीट पर जाकर सो गई मेरा सामान परस फोन जानू ने सम्भाल कर रखा।
मेरी जिंदगी से इतना ज्यादा जानू रूबरू थे कुछ छिपा नहीं था मेरे पास कोई राज़ नहीं था उसके सामने मै एक सादी किताब थी जो खुद लिख रहा था।
मुझे आज तक ये पता नहीं चला कि जानू को इतना प्यार क्यो किया।
आगे की कहानी अगले भाग में।