Arman dulhan k - 7 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 7

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

अरमान दुल्हन के - 7

अरमान दुल्हन के भाग 7

"ए ढ़ेरली तैं कद आग्गी? किसकै गलै (साथ) आई थी?"
बड़े भाई सुरेश ने घर में प्रवेश करते ही कविता की चुटिया खींचते हुए पूछा।सुरेश कविता को प्यार से नित नये नाम से बुलाता था। दोनों बहन भाई जितना लड़ते थे उतना ही दोनों में प्यार भी प्रगाढ़ था। वह अपनी बहन पर जान छिड़कता था। बहन भी अपने भाई से हर बात शेयर कर लेती थी। वह नाइट ड्यूटी से लौटा था और कविता के बूआ के घर से लौटने से पहले ड्यूटी पर चला गया था।
चुटिया खींचते ही कविता दर्द से कराह उठी।और उसे मारने को दौड़ी।
"ए मां इसनै टिकाले ( समझाना) नै, देखिये मेरी चोटी खिंचै सै यो कमीण।"
"तन्नै शर्म ना आती रै छोरे, बाप बणग्या पर तेरा बचपना ना गया। इसकी आसंग ( तबीयत ठीक न होना) कोनी ,मत ना छेड़ै इसनै"-मां गुस्से मे चिल्लाई।
"ओओ.... के होग्या मेरी लाडो बेबे कै?" बहन के सिर को सहलाते हुए सुरेश ने पूछा ।
"किम्मे नै भाई थोड़ा सा बुखार आग्या था।"

"ईब्ब ठीक सै मेरी लाडो?"

"हां ठीक सूं ।भाई तेरै तैं बात करणी थी।"

"हां बोल बेबे ?"

"भाई पापा को बोलो ना अभी रिश्ता ना करें।ईबे मैं और पढ़णा चाहूं सूं।"
"देख बेबे जान मांग ले जान हाजिर सै तेरी खातर, पर पापा तैं बात ना बाबा ना!"
"चल फेर एक और काम कर देगा?"

"के? कोय आसान सा काम बताईये।"

"देख भाई पापा नै जो एक बै डिसाईड कर लिया सो कर लिया । ईब्ब तै मन्नै लागै सै राम भी उतरके आज्या तो बी न्हीं मानैगा। तु एक काम कर सकै सै।आपणी बूआ का पड़ोसी सै नै वो सत्ते भाई! उसके मामा का छोरा श्रम विभाग मै क्लर्क लागरया सै। पापा नै कह के ओड़ै रिश्ता तय करवा सकै सै।"

"आय हाय के चक्कर सै सिंडो?" सुरेश ने चुटकी ली।

"बात कुछ ना सै भाई ,आप बी नै? दोनों हाथों से मुहं छिपाकर अंदर भाग गई।

सुरेश एक फैक्ट्री में काम करता था। एक सप्ताह उसकी नाइट ड्यूटी रहती थी और एक सप्ताह मोर्निंग ड्यूटी। कविता के पापा सुखीराम खेती बाड़ी संभालते थे।मां और छोटा भाई रमेश उनकी सहायता करते थे। फुर्सत में सुरेश भी काम में हाथ बंटा देता था। सुरेश दो दिन पापा से नहीं मिल पाया था।
शाम को सुरेश डयूटी पर चला गया। सुखीराम आज कहीं बाहर बेटी के लिए रिश्ता देखने गया हुआ था।रात होने पर ही लौटा था।
रामदे ने खाना डालकर दिया और पास बैठ गई।
"के रहया (क्या हुआ)? किम्मे(कुछ) बणी बात?" उसने थाली में दोबारा सब्जी डालते हुए पूछा।
"हां बात तो बणज्यागी दिखै ! मेरा वो यार न्ही सै प्रेमप्रकाश ! उसकै दो छोरे सैं नै तो उसतैं करी सै बात।
पर वो न्यु कहसै दोनू छोरयां का कट्ठा (इक्ट्ठा )ए करूंगा।तेरै बी दो छोरी सै अर मेरै बी दो छोरे सैं।"

"पागल सै के तैं? आपणी सावी तो सारी ए दस साल की सै। अर उसका छोटणा छोरा तो बडणे तैं दो ए साल छोटा सै ।"
"हां मैं बी उसनै कह आया मैं छोटी का रिश्ता ईबे न्हीं(अभी नहीं)करदा।"

कविता भी छुप -छुपकर सब सुन रही थी और चिंतित भी थी ।अगर प्रेम अंकल ने हामी भर दी तो क्या होगा? आज भी नींद आंखों से कोसों दूर थी। आंख लगी भी तो बूरे बूरे सपने आने लगे ।वह रात भर ढंग से सो ही नहीं पाई। सुबह सरोज अपने 10 महीने के बच्चे को कविता के बिस्तर मे़ सुलाकर घर के काम करने लगी ।छोटा टकलू सा अंश बूआ की आंखों में छोटी छोटी ऊंगलियों से आंख खुलवाने लगा।
कविता की नींद खुल गई।वह अंश को पेट पर लिटाकर उसे प्यार करने लगी।
"ओय मेला टकलू लाजा बेटा।"और उसकी नाक को छू देती ।बच्चा खिलखिलाकर हंस पड़ता। समय बहुत अच्छा बीत रहा था ।परिवार में खुशियां ही खुशियां थी।

दूसरी तरफ सरजू के हालत भी अच्छे न थे। दो दिन से न ड्युटी पर गया और न बिस्तर से उठा।आखिर मां ने पूछ ही लिया।
"हां रे तेरी छुट्टी सै के ?"
"ना मां किम्मे आसंग (तबियत) सी कोनी।"

"के होग्या आसंग नै तेरै? कदे छोरियां कै जाण की कहदयो, तेरै ताप (बुखार)चढया ए रह सै।" मां ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा।

"मां तैं बी चाळे न्हीं करै है ? ईबे दस दिन पहल्यां जाके आया सूं।रोज -रोज के ओड़ै जाणा आच्छया लागै सै ।" सरजू गुस्से में फट पड़ा।
सरजू की तीनों बहनों के ससुराल नजदीकी गांवों में ही थे तो वह लगभग पंद्रह दिनों बाद अपनी बहनों के घर हो ही आता था। बहने भी जल्दी जल्दी मां के पास आती रहती थीं क्योंकि पापा के गुजर जाने के बाद मां अकेली हो गई थी।
सरजू अगले ही दिन ड्यूटी पर चला गया।उसका वहाँ भी काम में मन नहीं लग रहा था । वह उदास बैठा था। उसकी अपने अधिकारी के साथ अच्छी बनती थी । वह इतना ख्यालों में खोया हुआ था कि सर कब आये उसे पता ही नहीं चला।
"नमस्ते बेटे"-सर ने चुटकी ली।
वह हड़बड़ाकर उठा और सर का अभिवादन किया।
"क्या बात बेटे कुछ परेशानी है? कुछ दिक्कत है तो आप मुझे बता सकते हो?"

"जी सर "- सरजू गर्दन झुकाये झुकाये धीरे से बोला।

सरजू को डर था कि कविता का रिश्ता और कहीं तय हो गया तो वह सोचकर ही घबरा उठा।सरजू आधे दिन की छुट्टी लेकर अपनी बूआ के घर फिर से जा पहुंचा।

क्या सरजू भाई भाभी को अपने मन की बात कह पायेगा? प्रेमप्रकाश ने अकेली कविता के रिश्ते के लिए हां कर दी तो? जानने के लिए पढिये अगला भाग।

क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा