Aisa bhu hua in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | ऐसा भी हुआ

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ऐसा भी हुआ

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कुछ माह पूर्व मुझे अपने आवश्यक कार्य से दुबई जाना था। उस दिन रविवार था और मुझे सोमवार की सुबह रवाना होना था। मैं शाम के समय मुम्बई में एक रेस्तरां में काफी पीने गया था। रेस्तरां से वापिस आकर मैंने पाकिट में हाथ डाला तो भौंचक्का रह गया कि मेरा पर्स मेरे पाकिट से गायब था। उस पर्स में मेरा अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड और तीन लाख रूपयों के अमरीकी डालर रखे हुए थे। मैंने विचार किया कि मैंने अंतिम बार उसका प्रयोग कब किया था। मुझे याद आया कि रेस्तरां में काफी का बिल चुकाने के लिये मैंने उसे निकाला था। उसके बाद तो मैं सीधा यहां चला आ रहा हूँ। इसका मतलब यह हुआ कि पर्स यहां और रेस्तरां के बीच कहीं खोया है। मैंने कार के भीतर और अपने दूसरे जेबों में उसे तलाश कर लिया। हर संभव जगह पर तलाश की पर पर्स नहीं मिला।

मैं बहुत निराश था। रूपयों से अधिक चिन्ता मुझे मेरे अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड की थी। अवकाश दिवस होने के कारण उसे बन्द तो कराया जा सकता था किन्तु नया कार्ड तत्काल प्राप्त नहीं हो सकता था। मैंने मायूस होकर अपने ड्रायवर से कहा कि जाओ और उस रेस्तरां में पता करने की कोशिश करो जहां मैंने शाम को काफी पी थी।

मुझे तनिक भी आशा नहीं थी कि मुझे वह पर्स मिल पाएगा। मैं इसी चिन्ता में डूबा हुआ था कि आगे क्या करना चाहिए। उसी समय मेरे ड्राइवर ने मोबाइल पर मुझे सूचना दी कि पर्स प्राप्त हो गया है और उसमें रूपये और क्रेडिट कार्ड सुरक्षित है।

कहां प्राप्त हुआ?

साहब आपने जहां काफी पी थी आप वहीं उसे भूल आये थै। एक वेटर को वह मिला था। उसने उसे संभाल कर रखा था और आपकी प्रतीक्षा कर रहा था।

मैं इस बात को लेकर आश्चर्य में था कि इतना सब कुछ पाकर भी उस वेटर का ईमान नहीं डोला था। मैंने ड्राइवर से कहा कि उसे मेरी ओर से पांच हजार रूपये ईनाम के बतौर दे दो।

थोड़ी देर बाद ड्राइवर का फोन आया। उसने बतलाया कि साहब वह वेटर आपका दिया हुआ इनाम लेने को तैयार नहीं है। मेरे बहुत अनुरोध करने पर उसने आपका मान रखने के लिये केवल सौ रूपये स्वीकार किये। मैंने ड्राइवर से उसका नाम और पता लिख लेने के लिये कहा।

मैं दुबई चला गया लेकिन उस वेटर की याद मेरे मन में बनी रही। वापिस घर आने पर मैंने अपने मुख्य प्रबंधक से इसकी चर्चा की। उसने मुझे सुझाव दिया कि ऐसे ईमानदार व्यक्ति मुश्किल से मिलते हैं। ऐसे लोग अगर हमारे साथ हमारे कारखाने में हों तो इससे कारखाने का माहौल भी बदलता है और अच्छे ईमानदीरी भरे वातावरण का निर्माण होता है।

मुझे उसकी बात पसंद आयी। मैंने उसको उस वेटर का नाम पता और नम्बर दिया और कहा कि तुम उससे बात कर लो और अगर वह इसे मान जाता है तो उसे यहां बुला लो।

मेरी स्वीकृति लेकर उसने उसे बुलवाया और हमारे कारखाने में एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति प्रदान की। वह ईमानदारी पूर्वक कार्य करते हुए अपनी मेहनत और लगन से तरक्की पाते हुए आज एक वरिष्ठ पद पर कार्यरत है। उसके लिये यह नियुक्ति तो महत्वपूर्ण थी ही हमारे लिये भी यह नियुक्ति कम महत्वपूर्ण नहीं थी क्योंकि हमें भी एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ आदमी मिल गया था।