Yaarbaaz - 7 in Hindi Moral Stories by Vikram Singh books and stories PDF | यारबाज़ - 7

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यारबाज़ - 7

यारबाज़

विक्रम सिंह

(7)

ऐसे ही वक़्त जब पूरी कॉलोनी में डर फैला हुआ था तो श्याम बेहिचक उस दिन क्रिकेट मैदान में अपना बल्ला चला रहा था। ग्राउंड खचाखच चारों तरफ लोगों से भरा हुआ था । उसी वक्त श्यामलाल छक्के पर छक्का मार रहा था बॉल तीव्र गति से हवा को चीरती हुई बाउंड्री के बाहर बार-बार जाकर गिर रही थी। लोगों की नजर जितनी श्याम के बल्ले पर रह रही थी उतनी ही ज्यादा हवा में जाते हुए तीव्र गति से बॉल रह रही थी।। श्याम का छक्का देखकर कॉमेंटेटर भी लगातार बता रहा था "लगातार तीसरा छक्का मार के श्याम ने साबित कर दिया है कि उसके सामने वाला चाहे जैसा भी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता वह दिन दूर नहीं जब श्याम अपने इलाका ही नहीं पूरे जिले पूरे राज्य का नाम रोशन करेगा भारत टीम में खेलेगा। उस दिन ही ऐसी घोषणा हो गई थी कि वाकई एक दिन श्यामलाल भारत के टीम में खेलेगा और पूरी दुनिया टी. वी पर उसका मैच देखेगी।

चूंकि कॉलोनी में उस दिन एक डर फैला हुआ था और यह डर श्यामलाल के पिता मिथिलेश्वर में भी फैला हुआ था और उस दिन वो रात को गुस्से में आग बबूला होकर कह रहे थे और मां अर्थात चाची अनीता देवी पर भी बरस रहे थे।

उसी दिन श्यामलाल को मैन ऑफ द मैच मिला था और कॉलोनी में लोगबाग उसे हिप हुर्रे हिप हुर्रे जीतेगा भाई जीतेगा श्यामलाल का टीम जीतेगा कर नारों के साथ उसे कॉलोनी में लेकर आ रही थी अर्थात कॉलोनी के अंदर उसका स्वागत हो रहा था और हर बार श्यामलाल जब भी मैन ऑफ द मैच जीतता था उसका इसी तरह कॉलोनी के अंदर ढोल थाली और सीटियो से स्वागत हुआ करता था।

मिथिलेश्वर यादव घर में गुस्से से चिल्ला रहे थे। "कितनी बार समझाया है कि साला यह क्रिकेट का चक्कर छोड़ दे मगर यह लड़का मानेगा नहीं।"

उस दिन श्यामलाल मैन ऑफ द मैच लेकर धीरे से घर में प्रवेश प्रवेश किया था और दरवाजे के पीछे अपना बैट रखकर मैन ऑफ द मैच को टेबल पर रख कर सीधे पलंग पर जाकर पढ़ने बैठ गया था , वह जानता था कि पापा बहुत नाराज होंगे और सही में पापा ने जैसे जान लिया था कि वह अंदर आ गया है और उसके अंदर प्रवेश करते ही वह लगे थे बोलने "तुमको यह क्रिकेट नहीं देगी खाने को तू जो इ

बैटवा लेकर घूमता है ना यही बैट तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर देगी।" इसी तरह श्याम के पिताजी मिथिलेश्वर उसका स्वागत किया करते थे। और यह कोई पहली बार नहीं था ऐसे कईं अवॉर्ड्स श्यामलाल जीत कर ले आया था और हर बार की तरह इस बार भी उसके मां ने अवॉर्ड को उठाकर उसी स्लैब पर रख दिया था जहां पर श्यामलाल के पहले से कई मैन ऑफ द मैच का अवार्ड रखे हुए थे। मिथिलेश्वर अपनी बात को बोलते जा रहे थे ,"देख रहे हो तुम्हारा भाई नंदलाल तीन साल से गणित में फेल हो रहा है। उसी वक्त श्याम लाल ने नंदलाल की तरफ देख कर मुस्कुरा दिया था। नंदलाल को इस बात की बहुत चिड़ हुई थी खेल यह रहा है और व्यंग बाण मेरे ऊपर छोडा जा रहा है और वह मुंह फुला लेता है।

मिथिलेश्वर को इस बात की बहुत चिंता थी कि बड़ा बेटा तो पढ़ने में कमजोर है ही छोटा थोड़ा ठीक है कहीं यह भी खेलकूद के चक्कर में गोबर गणेश ना हो जाए। वह अक्सर एक ही बात बोल दिया करते थे "हमारी तो किसी तरह नौकरी हो गई थी पर अब वह जमाना नहीं रहा रे जब नौकरी बुला बुला कर देते थे।"

मिथिलेश्वर को आज भी याद है वह दिन जब वह गांव से शहर पश्चिम बंगाल रानीगंज को आ गए थे और यहां आकर एक गिलास फैक्ट्री में नौकरी में लग गए थे। उन्हीं दिनों कोयला खदान में खुली बहाली निकली और लोगों को बुला बुलाकर लोडर की नौकरी में बहाल किया जा रहा था। मगर कितने लोग नौकरी मिलने के बाद भी लोडर की नौकरी करके यह कह वापस चले गए थे कि इससे तो अच्छा है हमारी खेती । मगर मिथिलेश्वर ने यह तभी भाप लिया था कि भले ही यह लोडर की नौकरी है पर है तो साली सरकारी नौकरी। वह जान गए थे कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब यह लोडर की नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा। और सोचा वो कितना सच भी निकला कि आज उसी लोडर की नौकरी को करने के लिए बीएससी एमएससी और एमए के लड़के भी आ जाते हैं। मगर सच कहा जाए तो अब तो किसी भी डिग्री वाले को भी लोडर की नौकरी तक भी नहीं मिल रही है। मिथिलेश्वर की किस्मत अच्छी थी और दसवीं तक पढ़े लिखे होने के कारण उन्हीं दिनों उन्हें लोडर से उन्हें कांटा बाबू बना दिया गया था। फिर तो पांचों उगली घी में दोनों तरफ से कमाई भरपूर शुरू हो गई थी। पर वह यह जानते थे कि अब वह जमाना नहीं रह गया है कितनी आसानी से जो मुझे प्राप्त हो गया था मेरे बेटों को भी हो जाएगा।

सही मायने में वह अपने बड़े लड़के नंदलाल को दसवीं तक डंडे और सोर्स की जोर से लेकर तो गए पर इसे आगे उसे बढ़ा नहीं पा रहे थे क्योंकि इसके आगे उनका डंडा और सोर्स काम नहीं कर रहा था। यह बोर्ड का इम्तिहान था। नंदलाल की बुद्धि ऐसी थी जो भी पढ़ता था वह अगले दिन तो दूर तुरंत ही भूल जाता था।

.....

बहुत पुरानी बात है । तब नंदलाल पांचवी क्लास में था। कॉलोनी में ही एक मास्टर राजन जी बी ए करके बेकार बैठा था और ट्यूशन करके अपनी रोजी-रोटी चला रहा था। यूं तो राजन जी ट्यूशन से अच्छा खासा कमा रहे थे फिर भी कॉलोनी के लोग उसे बेकारी समझते थे क्योंकि वह कहीं नौकरी जो नहीं कर रहा था। कॉलोनी के ज्यादातर युवा लड़के लड़कियां और बच्चे उसी के पास ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे वह दिन भर में करीब चार बेच ट्यूशन के चलाता था जिसको जैसा समय होता था उस विद्यार्थियों को वैसा समय देकर उस बेच को बांध रखा था। नंदलाल को वहां पांचवी में ट्यूशन लगाया था। मास्टर जी नंदलाल को एक दिन घटाव विधि समझा रहे थे मगर नंदलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था मास्टर जी को गुस्सा आ रहा था

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जब वह पांच से एक केरी करता था वह भूल जाता था कि पांच की जगह अब चार बचे हैं और वह पांच से दो घटा कर तीन लिख देता था उसे बार बार समझाने पर भी नहीं समझ पा रहा था चार से दो घटना है।

मास्टर जी जब समझा समझा कर थक गए तो उन्हें अपनी छड़ी याद आई और छड़ी के साथ नंदलाल को रूम के बाहर ले गए और बीच रोड पर उसके चूतड़ पर दे दना दन दे दना दन पूरी छड़ी बरसा दी।

उस दिन नंदलाल दर्द से कराहने लगा चाची अर्थात अनीता देवी बाटी में सरसों का तेल लेकर अपने पैरों में उसे उल्टा लिटा कर चूतड़ पर सरसों का तेल लगाने लगी। तेल लगाते हुए पूछा ,"क्या बेटा तुम्हें घटाना एकदम भी नहीं आता है।"

नंदलाल ने जवाब दिया था," मां मुझे जीवन में सिर्फ जोड़ना आता है घटाना कुछ नहीं।" यह सुन चाची की आंखों में आंसू आ गए थे।

उसी दिन मिथिलेश्वर चाचा गुस्से में अपने आंगन में खड़े होकर मास्टर जी को गरिया रहे थे "सलवा बच्चन लोगों को पढ़ावे ला कि रिंग मास्टर बना है दो कौड़ी के मास्टर उ का पढ़ाई बच्चा के जब प्यार से ना समझा पाई तो।"

उस दिन के बाद से उसे ट्यूशन से हटा लिया गया था। मिथिलेश्वर चाचा ने नंदलाल को दसवीं तक मास्टरों को पैसे खिला खिला कर ले आए थे पर दसवीं में वैसा नहीं कर पा रहे थे क्योंकि यह बोर्ड का एग्जाम था। और उनका बस नहीं चल पा रहा था। मगर ऐसा नहीं था कि वह इसके लिए प्रयास नहीं कर रहे थे वह दोनों तरह से प्रयास करें थे वह नंदलाल को मेहनत भी करवा रहे थे और दूसरी तरफ को मास्टरों से कोई सोर्स की बात कर रहे थे कि कहीं कहीं से पता चल जाए कि गणित का पेपर कौन चेक कर रहा है उसे पैसे देकर नंदलाल को गणित से पास करा दिया जाए। पर स्कूल के सरकारी मास्टर मिथिलेश्वर चाचा को यह समझा देते हैं जब तक हमसे हो सकता था हमने किया अब हमारी बस की बात नहीं और आप भूल जाइए कि कुछ ऐसा हो सकता है। अब बस यही हो सकता है कि नंदा मेहनत करें। मिथिलेश्वर चाचा तब से नंदा से मेहनत करवाने लगे थे। मगर मेहनत के बाद भी नंदा को सफलता नहीं मिल रही थी तो मिथिलेश्वर चाचा ने यह मान लिया था कि साला या तो नंदा की किस्मत खराब है या मेरी ही किस्मत फूटी है। मिथिलेश्वर चाचा ने ज्योतिषों का सहारा लिया। यूं तो ज्योतिषियों ने जो जो काम किया चाचा ने वो वो किया। मगर एक जोशी ने नंदा की कुंडली देखकर यह कहा इसके पास लक्ष्मी तो आएगी पर सरस्वती बहुत दूर है। उस दिन मिथिलेश्वर जाता है इस बात से खुश हुआ है कि आंखें जिंदगी जीने के लिए तो लक्ष्मी की ज्यादा जरूरत है रही बात सरस्वती की तो कितने ऐसे लोग इस दुनिया में हैं जो पढ़े लिखे तो काम है पर व्यवसाय की दुनिया में खूब नाम कमाया है। उस दिन के बाद से विदेशवा चाचा ने सब कुछ राम भरोसे छोड़ दिया।

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जब घर पर सारे कोई सो गए थे तभी मिथिलेश्वर चाचा स्लैब के पास गए। दीवाल पर ही मिट्टी का बना अलमीरा था। जिसमें पांच फुट के चार खाने बने हुए थे। सबसे ऊपर वाले स्लैब में कुछ अटैची वगैरा और जरूरी वस्तु रखी हुई थी। उसके दूसरे वाले स्लैब में कुछ बड़े बर्तन रखे गए थे। जैसे कड़ाई, प्रात,इत्यादि। तीसरे वाले स्लैब में श्याम लाल के द्वारा जीते हुए मेडल, प्राइज शील्ड रखे हुए थे। सबसे नीचे वाले खाने में राम लक्ष्मण और सीता मैया की फोटो रखी हुई थी साथ ही बजरंगबली की फोटो रखी हुई थी। लक्ष्मी माता की फोटो, दुर्गा माता की फोटो, काली माता की फोटो, और भगवान शंकर की फोटो के साथ साथ विश्वकर्मा भगवान इत्यादि की भी फोटो रखी हुई थी। दरअसल वह किसी भी भगवान को नाराज नहीं करना चाहते थे। प्रति दिन वह सुबह स्नान करने के बाद एक घंटा पूजा करते थे। बस पूजा के वक़्त वह हनुमान चालीसा ही पढ़ते थे। वैसे उन्होंने पूजा स्थान में भगवत गीता, तुलसीदास द्वारा रचित राम चरित्र मानस की किताब भी रखी हुई थी। कॉलोनी में कभी -कभार रामायण पाठ हुआ करता था तब वह रामचरितमानस किताब ले जाकर पाठ किया करते थे वहां कॉलोनी में हर हिंदू परिवार में यह किताब रखी हुई थी । कॉलोनी के बुजुर्ग जवान टेंट लगाकर स्पीकर में बड़े धूमधाम से रामचरितमानस पाठ किया करते थे। उस वक़्त पूरी कॉलोनी में राम रामचरितमानस की आवाज गूंजती रहती थी। सही मायने में मिथिलेश्वर चाचा शंकर भगवान के बहुत बड़े भक्त थे वह अपने गले में हमेशा रुद्राक्ष की माला पहन कर रखते थे। घर के बाहर मात्र बीस कदम दूरी एक पर पीपल का पेड़ था जहां कई शिवलिंग रखे हुए थे और एक बड़ी सी शंकर जी की तस्वीर भी लगी हुई थी । घर पर पूजा होने के बाद वहां भी अगरबत्ती देने जाते । वहां कॉलोनी के और भी कई लोग आते थे। उस स्थान में दिए का तेल बिखरा हुआ रहता था। वहां आस-पास की जमीन खूब चिपचिपा गई थी।। खैर शयामलाल के द्वारा आज जीते गए अवॉर्ड को देखने लगे थे और मुस्कुरा रहे थे। हाथ जोड़ कर ईश्वर का अभिनंदन भी कर रहे थे। अक्सर ही ऐसा ही करते थे डांट डपट के बाद, सारे सबके सो जाने के बाद वह एक बार श्याम के जीते हुए अवॉर्ड को देखने जरूर जाया करते थे। सही मायने में तो वह सारे जीते हुए अवॉर्ड को देखकर खुश हो रहे थे।। क्योंकि वह मानते थे पढ़ाई के साथ-साथ खेल कूद बहुत जरूरी है स्वास्थ्य के लिए। वह भी मानते थे कि हर एक इंसान में एक हॉबी होनी चाहिए। गिटार, तबला हारमोनियम, सिंगिग,क्रिकेट फुटबॉल कुछ भी ,एक हॉबी इंसान में होनी चाहिए। इससे इंसान का मन मस्तिष्क अच्छा रहता है और वह हमेशा ऊर्जावान रहता है। वह कभी बुरा नहीं सोचता, बुरा नहीं करता, बुरे ख्यालात की तरफ नहीं जाता। उन्हें भी जवानी के दिनों में कबड्डी खेलने का शौक था। गांव के लड़कों के साथ खूब कबड्डी खेलते। यही कबड्डी और खेतों में काम करने के कारण लोडर जैसी नौकरी से वो डरे नहीं और कोयले की भरी टोकरियों को सिर में उठा-उठाकर लोडर की नौकरी भी खूब मन से की। उन्हें याद है कि लोडर की नौकरी में जितनी बार कोयले की टोकरी खधान से उठा कर लाएंगे उस हिसाब से ही पैसे बनते थे। यूं तो तनख्वा बंधी हुई थी । मगर ओवरटाइम उसी को मिलता था जो ड्यूटी टाइम में सही ट्रिप करता था उसे ही ओवर टाइम मिलता था । दरअसल मैनेजमेंट ने यह डिसाइड कर रखा था कि जो ड्यूटी टाइम अर्थात आठ घंटे में तीस टोकरियां कोयले खदान से ऊपर लाएगा। उसे ओवर टाइम मिलेगा। और आखिर भगवान ने उन्हें सफलता भी दी। उन दिनों तनख्वाह बहुत कम थी बिना ओवरटाइम किए गुजारा मुश्किल था इस वजह से लोग बाग उतनी ट्रिप तो पूरी करते थे जिससे उन्हें दो घंटे का ओवर टाइम जरूर मिल जाए। इस वजह से कोई भी काम चोरी नहीं करता था। ओवर टाइम के लालच में।

......

अगले दिन की सुबह पूजा पाठ करने के बाद गौशाला में मिथिलेश्वर चाचा , (मैं श्याम के पिताजी को चाचाजी कहकर पुकारता था) गाय को सानी पानी दे गाय दूहने लगे थे। प्रति दिन ही सुबह उनका यही काम था। अनीता देवी आंगन में झाड़ू लगा रही थी कुछ साइकिल में दूध लेकर आ जा रहे थे कुछ लोग चाय की दुकान में बैठकर चाय पी रहे थे। कॉलोनी में बस एक ही चाय की दुकान थी। चाय की दुकान ध्यान यादव के नाम के 16 साल के लड़के ने खोल रखी थी। दर्शन ध्यान को बचपन नहीं पोलियो मार गया था। और एक पैर से वह अपाहिज सा हो गया था। यूं तो शरीर का बहुत ही बलवान था मगर वह एक पैर से मार खा गया। अब जितना उसका शरीर भारी था उस हिसाब से उसके पैर कमजोर थे। लोग बाग उसे अपने शरीर को कम करने की हिदायत देते। और यही हिदायत डॉक्टर ने भी दे रखी थी। दरअसल शरीर भारी होने की वजह से उसे चलने में और भी दिक्कत हो रही थी। चलते वक्त एक हाथ को घुटने में रखता और दूसरे हाथ को बड़े तीजे तेजी से पीछे की तरफ उछाल था। इस वजह से चाय दुकान में बैठने वाले उसको मित्रगण हमेशा उसे बस डाइटिंग की सलाह देते रहते। दूसरी ईश्वर ने उससे प्यार तो ले ही लिया उसकी बुद्धि भी कम दे दी। फिर उसके पिता को एक दिन लगा मेरा बेटा आखिर करेगा क्या प्यार भी सही नहीं है बुद्धि भी सही नहीं है उसने सोचा मेरा बेटा चाय बेचेगा आखिर चाय बेचने में क्या शर्म। पानी की एक कोने में बेटे की छोटी सी चाय की दुकान खोल दी। क्योंकि उसे सुना था कि चाइना देश में हर कोई कुछ ना कुछ भेजता है और बेचने जानता है इसीलिए चाइना इतना ऊपर जा रहा है। और इस तरह कॉलोनी में ऐसे व्यक्ति जिनका परिवार गांव में था और अकेले घर में रहते थे वह हर दिन सुबह ध्यान की दुकान में चाय जरूर पीने जाते थे। एक तरफ से पूरी कॉलोनी ध्यान का सहयोग कर रही थी कि बेटे की का चाय की दुकान खूब फल-फूल जाए। कुछ बूढी मॉर्निंग वाक कर रहे थे । कुछ औरतें नारियल के झाड़ू से घर के आंगन बुहार रही थी झाड़ू की सर....सर.....की आवाज़ आ रही थी कुछ बूढ़े -बुढ़िया मुंह में पानी लेकर गरारे कर रहे थे इसकी आवाज भी कॉलोनी में गूंज रही थी। कुछ इसी तरह हर दिन की सुबह होती थी। मिथिलेश्वर चाचा ने गाय दूहकर अपने दोनों बेटों को बुला लिया। वो इसी तरह गाय दूहने के बाद अपने दोनों बेटों को गोशाला में बुला लिया करते थे । और वही गाय से दूह कर उन्हें गरमा गरम कच्चा दूध उन दोनों को पीने के लिए दे देते थे। गिलास दूध पी के दोनों डकार ले लेते थे। आज भी ठीक उसी तरह दोनों ने दूध पिया और जोर से डकार ली थी।