पाती प्रेम की
मेरे प्रिय !
' मेरे ' …..,कितना अच्छा लग रहा है मुझे कि किसी को मैं अपना कह कर बुला सकती हूँ । किसी पर मेरा पूर्ण अधिकार ..जिससे मैं खुल कर हर बात कह सकती हूँ ऐसा कोई मुझे मिल गया …
तुम्हारी
सुनयना
ये पहली प्रेम की पाती लिखी थी सुनयना ने उसको जिसे वो खुलकर अपना कह सकती थी…...
सुनयना बहुत खुश थी ...उसकी सगाई हो गयी थी । घर परिवार के सभी लोग खुश थे । माँ पापा ने शादी तय की थी और उनकी पसंद सुनयना की पसंद बन गयी ।
सगाई वाले दिन हर्षित ने सुनयना को अंगूठी पहनाई ,गाना -बजाना दावत सब कुछ हुआ । चलते समय हर्षित ने सुनयना को बाय किया और धीरे से कहा
"मैं कल आपको फोन करूँगा "
सुनयना की पलके झुक गयीं थीं ।
दूसरे दिन रात दस बजे हर्षित ने सुनयना को फोन लगाया
"हेलो सुनयना ! मैं …"
" हाँ समझ गयी ….कैसे हैं आप " ? सुनयना ने औपचारिक बातों से शुरुआत की
कुछ देर बात करने के बाद सुनयना ने अपने मन की
बात कही
" फोन- वोन तो ठीक है पर मैं आपको चिट्ठी लिखना चाहती हूँ ,आप भी मुझे चिट्ठी लिखिए । ..कितनी ही फिल्में देखी जहाँ प्रेम की पाती कबूतर ले कर जाता था ,अब कबूतर तो नहीं…. पर पाती तो डाकिया ले कर जाता ही है ।….इससे पहले कभी किसी को प्रेम की पाती नहीं लिखी ...हिम्मत ही नहीं थी .." सुनयना हँस पड़ी।
" ओके सुनयना शादी की तारीख तक हम एक दूसरे को चिट्ठी लिखेंगे ….पर मैं आपकी आवाज़ भी सुनना चाहता हूँ इसलिए फोन भी करूँगा " ...हर्षित भी मुस्कुरा दिए
अब सुनयना और हर्षित के बीच चिट्ठियों का सिलसिला चल पड़ा जो धीरे -धीरे ,हौले - हौले प्रेम की पाती में तब्दील होने लगा ...हाँ दोनों के बीच प्रेम का अंकुर फूटने लगा था ।….दो महीनों में कितनी ही चिठ्ठियां दोनों ने एक दूसरे को लिखी । एक दूसरे का ख़्याल ,चिंता ,भविष्य की योजनाएं ,दोनों परिवारों के मध्य सामंजस्य का भाव ,मिलने की बेचैनी ...कितना कुछ प्रेम से सराबोर था सब …..
हर्षित और सुनयना की शादी धूम धाम से हुयी । ...शादी के बाद शुरू हो गया गृहस्थी का चक्र ,फिर बच्चे , बच्चों का स्कूल ,ऑफिस , ….इन्हीं सब मे दिन - रात बीतने लगे ।
यही जीवन है !.....हर्षित को इतनी भी फुरसत नहीं कि कुछ देर बात करें उससे जो पहले उसकी आवाज़ सुनने को लालायित रहते थे ...बस काम से काम ,...क्या है ये सब ! क्या अब प्रेम , स्नेह जैसा कुछ नहीं रहा ….सुनयना गहरे सोच में पड़ गयी ।
. दूसरे दिन सुबह जब हर्षित ऑफिस जा रहे थे तो सुनयना ने लंच के साथ एक लिफाफा भी दिया और कहा
" देखो ! ऑफिस जा कर ही खोलना "
हर्षित जल्दी में बाय कर के चले गए । ऑफिस पहुँच कर वहाँ के कामों में व्यस्त हो गए । लंच टाइम आया तो हर्षित को सुनयना के लिफाफे की बात भी याद आयी ।
"अरे !सुनयना ने कहा था ….पता नहीं क्या है इसमें "
हर्षित ने लिफाफा खोला तो अंदर एक अच्छे से फोल्ड किया हुआ एक कागज़ था । हर्षित ने जल्दी से खोल कर पढ़ना शुरू किया …
"मेरे प्रिय !
तुम मेरे हो ये अनुभूति ही अपने में अद्भुत है । ...कितने दिनों से हमने एक दूसरे को कोई चिट्ठी नहीं लिखी ...वो प्रेम की पाती ….आज मेरा मन किया तुम्हें लिख ही दूँ ।
…,आज मैं जो तुमसे कह रही हूँ वो तुम भूलना नहीं ,ये हमारे जीवन से जुड़ा है ,हमारे बच्चे भी इससे जुड़े हैं ….देखो तुम भूलना नहीं ….
आटा - 10 k g
चीनी - 5 Kg
अरहर दाल- 2 Kg
चावल -5Kg
चाय पत्ती 1 पैकेट
….देखो भूलना नहीं ...। तुम्हारा न भूलना ही तुम्हारी इस चिट्ठी का जवाब होगा ।
तुम्हारी
सुनयना
हर्षित की आँखे छलक आयीं थीं … इस प्रेम की पाती का जवाब वो नहीं भूल सकते थे । कभी नहीं…..
प्रेम तो अब भी था बस उसका स्वरूप बदल गया था ...।
लेखिका
डॉ जया आनंद
प्रवक्ता (मुम्बई विश्विद्यालय )
स्वतंत्र लेखन ,विविध भारती ,मुम्बई आकाश वाणी ,दिल्ली आकाश वाणी