ant bhala to sab bhala in Hindi Classic Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | अंत भला तो सब भला

Featured Books
Categories
Share

अंत भला तो सब भला

राधिका के मोबाइल की घण्टी बजती है, देखा तो कोई नया नम्बर था।पुनः बजने पर फोन उठा लिया, हैलो करने पर उधर से चहकती हुई आवाज आई,राधिका कैसी हो तुम।आवाज पहचानते ही खुशी से राधिका बोल उठी,"अरे आरती, कैसी है तू?"
"मैं बहुत अच्छी हूं।कल ही मायके आई हूं,आ जा मिलने, ढेरों बातें करनी हैं।",आरती ने कहा।
"कल आती हूं, क्योंकि अभी तो बच्चे स्कूल से आने वाले हैं,"राधिका बोली।उत्सुक तो वह भी काफी थी आरती से मिलने के लिए, जो विवाह के एक माह पश्चात मायके आई थी।उसके आवाज की खनक बता रही थी कि वह खुश थी अपने नवजीवन में।
अभी बच्चों के आने में दो घण्टा बाकी था, पति शाम को 9 बजे आते थे, अतः राधिका यादों की गलियों में विचरने लगी।
आरती से उसकी प्रथम मुलाकात तब हुई थी जब बीएससी प्रथम वर्ष में कॉलेज में एडमिशन लिया था।कुछ दिनों में चार लड़कियों का हमारा ग्रुप बन गया था।मेरा घर कॉलेज से काफ़ी दूर शहर के दूसरे छोर पर था।आरती का घर मात्र दस मिनट के पैदल रास्ते पर था,अतः जब भी दो-तीन क्लास खाली रहते तो हम चारों उसके घर चले जाते।आरती दो भाइयों से बड़ी प्रथम सन्तान थी।वे सभी बचपन से उस किराए के मकान में रह रहे थे।मकान मालिक के भी दो बेटे एवं एक बेटी थी।दोनों बेटे दो-दो साल बड़े थे, बेटी हम लोगों की हमउम्र थी।दोनों परिवारों में काफी अच्छे सम्बंध थे।धीरे धीरे आरती एवं मेरी मित्रता अत्यधिक घनी हो गई।आने जाने से हम दोनों की माओं में भी अच्छा परिचय हो गया।
जब मित्रता प्रगाढ़ होती है तो आपस में घर बाहर की सारी बातें, दिलों के राज भी आपस में बांटने लग जाते हैं,फिर प्रेम-प्यार की बातें तो सखियों में बांटे बगैर पूरी होती ही कहां हैं,वैसे भी इश्क़-मुश्क(खुशबू)छिपाए नहीं छिपते।
आरती एवं मकान मालिक का छोटा बेटा आलोक तरुणावस्था में प्रवेश करते करते एक दूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे।एक साथ खेलते-खाते प्यार गहरा होता गया,हालांकि घर वालों को बिल्कुल भनक नहीं लगी क्योंकि परिवार वालों को अपने बच्चों पर अंधा विश्वास होता है ज्यादातर कि हमारे बच्चे कुछ भी गलत नहीं करेंगे।
हम बीएससी के दूसरे वर्ष में थे जब आलोक के बड़े भाई का विवाह संपन्न हुआ।वे ब्राह्मण थे, उनके यहां विवाह जल्दी करने की प्रथा थी।भाभी भी हमारी हमउम्र थीं, अतः हमारी खूब अच्छी पटरी खाने लगी थी।जब भी हम मिलते, खाते-पीते, खूब गप्पें मारते।
तीन साल बीतने को आए,समय का पता ही नहीं चला।मैं एमएससी करना चाहती थी, किन्तु पारिवारिक परिस्थितियां इसकी इजाजत नहीं दे रही थीं।मैं हाईस्कूल से ही घर पर ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल रही थी,अतः मैंने घर के पास ही एक छोटे से स्कूल में टीचिंग प्रारंभ कर दिया और आरती ने एमएससी में प्रवेश ले लिया।हम एक दो माह में किसी के घर जाकर आपस मे मिल लेते थे।फिर शुभचिंतकों की सलाह पर मैंने बीएड में प्रवेश ले लिया, जिसके पुरा होते ही मुझे शहर के एक अच्छे बड़े स्कूल में अध्यापिका की जॉब मिल गई।
इधर आरती भी उसी स्कूल में अध्यापिका हो गई जिसमें आलोक पढ़ा रहा था सिर्फ इसलिए कि वे साथ साथ आ जा सकें।इसी बीच आरती के पिता जी ने पास में अपना मकान बना लिया, और वे अपने घर में शिफ्ट हो गए।
देखते देखते तीन वर्ष और व्यतीत हो गए।इसी बीच दुर्भाग्य ने दस्तक दिया,परिणामतः आलोक के भाईसाहब एक दुर्घटना में काल कवलित हो गए एक चार वर्ष के बेटे को छोड़कर।
इधर हमारे घरों में भी हमारे विवाह के लिए प्रयास किए जाने लगे।मैंने आरती को समझाया कि बीएड कर ले जिससे अच्छे स्कूल में टीचिंग कर सके।उसने अपने घर में कह दिया कि जब तक उसे सरकारी नौकरी नहीं मिल जाती तब तक वह विवाह नहीं करेगी।आलोक पहले ही बीएड कर चुका था।आरती का भी बीएड में नम्बर आ गया।सौभाग्य से मेरा विवाह शहर में ही हो गया जिससे हमारी मित्रता यथावत बनी रही।
खैर, आरती का बीएड भी दो वर्ष में पूर्ण हो गया।आरती ने आलोक से कहना प्रारंभ किया कि वह अपने घर में हमारी शादी की बात करे,लेकिन आलोक घर वालों से अंतरजातीय विवाह के लिए कहने की हिम्मत नहीं जुटा स्का।मैं ये कभी नहीं समझ सकी कि वाकई उसमें हिम्मत नहीं थी कि वह आरती को बेवकूफ बना रहा था।इसी बीच पता चला कि घर वालों के दबाव में आकर आलोक ने अपनी भाभी से विवाह कर लिया,आरती के दुःख की सीमा न रही।किन्तु वह आलोक के प्यार में इस कदर अंधी हो गई थी कि उसे आलोक पर रंच मात्र भी अविश्वास नहीं था।उसने आरती को विश्वास दिला दिया था कि उसके एवं भाभी के मध्य पति-पत्नी का सम्बंध बिल्कुल नहीं है और न कभी होगा।वो तो भइया के बेटे के भविष्य को खराब होने से बचाने के लिए मैंने मजबूरी में विवाह किया है, प्यार तो मैं सिर्फ तुमसे करता हूँ एवं सदैव करता रहूंगा।परिणामस्वरूप आरती एवं आलोक का प्रेम प्रसंग पूर्ववत चलता रहा।
जब आरती के ऊपर उसके घर वालों का दबाव विवाह के लिए पड़ने लगा तो उसने खुलकर अपने प्यार को स्वीकार कर लिया एवं ऐलान कर दिया कि वह आलोक की दूसरी पत्नी बनकर रहने को तैयार है, परन्तु अन्यत्र विवाह नहीं करेगी।मैंने तथा उसके घर वालों ने कितना समझाया,किन्तु वह अपनी जिद पर अड़ी रही।थकहार कर आरती की मां ने अपने भाई एवं बेटे को अलोक के माता-पिता के पास विवाह प्रस्ताव लेकर भेजा जिसे उन्होंने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि आलोक के विवाह से पूर्व यदि आप आते तो एक बार विचार करते भी, परन्तु अब तो असम्भव है और आलोक में परिवार के विरोध का साहस तो पहले ही नहीं था।
फिर आरती के छोटे भाई का विवाह कर दिया गया।भाई के विवाह के पश्चात अब आरती के पिता जी की तबीयत खराब रहने लगी थी।थोड़ा थोड़ा मोह तो अब आलोक से उसका भंग होने लगा था, मैं भी लगातार समझाती रहती थी कि बाद भी सिर्फ पछतावे के कुछ भी हासिल नहीं होगा, जिंदगी कोरी भावुकता से नहीं चलती।इस तरह के रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता।खैर, जैसे तैसे आरती ने विवाह के लिए हामी भरी।पिता, भाई ने वर देखना प्रारंभ किया, परन्तु तभी दुर्भाग्यवश आरती के पिता जी चल बसे।
समय अपनी गति से प्रवाहमान रहता है।उसकी मां को आरती के भविष्य की अत्यधिक चिंता थी अब वह 38 की हो चली थी।खैर, एक वर्ष के प्रयास से एक जगह बात बन गई।वैसे भी यदि समय से विवाह न हो तो ज्यादा चुनाव की गुंजाइश रह भी नहीं जाती।सब कुछ ठीक ठाक था।आरती अभी भी थोड़े उहापोह में थी,आलोक का प्रलाप अभी भी जारी था, किन्तु आरती की अब समझ में आ चुका था कि और बेवकूफी से सिर्फ नुकसान ही है।आरती के भाई एवं आलोक के माता पिता ने आलोक को अच्छी तरह से समझा दिया था कि आरती के विवाह में कोई व्यवधान उत्पन्न करने की त्रुटि न करे।
खैर, आरती का विवाह सकुशल सम्पन्न हो गया।मैं भी सपरिवार शामिल हुई थी।सबने राहत की सांस ली।आरती के पति समझदार एवं सुलझे हुए प्रतीत हो रहे थे, वो दिल्ली में कार्यरत थे, मां स्वर्गवासी हो चुकी थीं, पिता गांव में रहते थे, एक विवाहिता बड़ी बहन थी,छोटा सा परिवार था, अच्छे जॉब एवं जिम्मेदारियों के कारण विवाह में विलंब हो गया था।
घण्टी बजी ,बच्चे स्कूल से आ गए।शाम को पति के आने पर राधिका ने पति को बता दिया कि वह कल आरती से मिलने जाएगी।
आज राधिका आरती से मिलने गई, बातें करते करते तीन चार घण्टे कब बीत गए पता ही नहीं चला।आरती अत्यंत प्रसन्न थी अपने नवजीवन में जो उसके चेहरे की चमक एवं होठों की हंसी में साफ दिख रही थी।इस बीच उसने एक बार भी आलोक की बात नहीं की।उसके सुखद जीवन की प्रार्थना ईश्वर से करते हुए राधिका प्रसन्न मन से घर वापस आ गई।
************