Safed Gulab in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | सफ़ेद गुलाब

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सफ़ेद गुलाब


कहानी -- सफ़ेद गुलाब

मैं उन दिनों पटना में रहता था . मेरे घर की छत से मास्टर साहब की छत भी जुडी थी , बीच में बस चार फ़ीट की रेलिंग थी . मास्टर साहब मुझे स्कूल में गणित पढ़ाते थे . उनकी एकलौती बेटी प्रभा भी उसी स्कूल में पढ़ती थी पर मुझसे दो क्लास सीनियर थी . मैथ्स में उसकी पकड़ काफी अच्छी थी , कारण उसके पिता का मैथ्स का टीचर होना हो सकता था . मास्टर साहब ब्राह्मण थे और हम यादव .


प्रभा बहुत सुन्दर तो नहीं पर औसत से काफी बेहतर थी .गेहुंआ रंग तीखे नाक नक़्श और देखने में आकर्षक व्यक्तित्व वाली लड़की थी, बहुत शांत , सरल और मृदुल स्वाभाव की थी .मुझे बहुत अच्छी लगती थी .स्कूल के दिनों में मैं कभी कभी मास्टर साहब के यहाँ मैथ्स पढ़ने जाता था तो मास्टर साहब बोलते " जा , प्रभा दीदी से पूछ ले ." मुझे तो लगता कि बिना मांगे बहुत कुछ मिल गया हो .पर मैंने प्रभा को न कभी " दी " कहा और न ही उसे उस नज़र से देखा था .प्रभा मुझे बहुत ही सरलता से मैथ्स के जटिल प्रश्नों का हल बता देती .बस जाते समय मंद मुस्कान से दरवाजे तक छोड़ती और कहती " अंशु, आगे भी प्रोब्लेम्स हों तो आकर पिताजी या मुझसे पूछ लेना ." और जाते जाते मैं प्रभा की मुस्कान से उसकी गालों पर पड़े डिंपल्स देखते रहता था .


मैं रविवार को मास्टर साहब के घर मैथ्स प्रोब्लेम्स ले कर जाता और अक्सर प्रभा ही मुझे पढ़ाती थी .मैं अपने लॉन से एक सफ़ेद गुलाब का फूल ले कर जाता और प्रभा के सामने टेबल पर रख देता था , सीधे उसकी हाथों में देने की हिम्मत न होती थी . पर जब हम दोनों छत पर होते तो देखता वह सफ़ेद गुलाब प्रभा की बालों में होता था जिसे देख कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था . इसके बाद जब भीप्रभा के घर जाता मैं सफ़ेद गुलाब ले कर जाता और वह भी उसे बालों में लगाना नहीं भूलती थी .एक दिन जब मैं पढ़ने उसके घर गया तो वह पूछ बैठी " अंशु ,तुम्हारे लॉन में तो लाल गुलाब भी हैं , पर तुम सिर्फ सफ़ेद गुलाब ही क्यों लाते हो ? "


मैंने पूछा " क्यों , सफ़ेद अच्छे नहीं लगते ?"


वह बोली " नहीं ,नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है. "


मैं बोल उठा " सफ़ेद गुलाब जब आपकी बालों में होता है तो आप और भी सुन्दर दिखतीं हैं . " और प्रभा सिर्फ हौले से मुस्कुरा कर रह गयी .


मैं अभी तक प्रभा को चाह कर भी ' तुम ' कहने का साहस जुटा नहीं सका था . प्रभा तो अब कॉलेज में पढ़ती थी . फिर भी कभी कभी मैं उस से पढ़ने सफ़ेद गुलाब ले कर पहुँच जाता .दो साल बाद मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ने लगा था . अब भी एक दो महीने में एक बार उसके घर कुछ पूछने के बहाने वही सफ़ेद गुलाब ले कर जाया करता था .


एक दिन मेरी माँ पूछ बैठी " अब तुम दोनों काफी बड़े हो चुके हो , तुम्हें प्रभा के पास गुलाब ले कर नहीं जाना चाहिए ."


" माँ , मुझे वह अच्छी लगती है . " मैं बोला .


माँ " कहीं कुछ प्यार व्यार का चक्कर तो नहीं ."


मैंने कहा " प्रभा मुझे बहुत अच्छी लगती है , और मैं उसे चाहने लगा हूँ ,बस इतना ही जानता हूँ . "


" और वह ? "


" मैं नहीं जानता वह मेरे बारे में क्या सोचती है ."


माँ कुछ गंभीर हो बोली " तुम जानते हो न कि तुम उससे छोटे हो और वह उच्च जाति की है . कोई चक्कर नहीं चलाना . "


" मैं यह सब नहीं मानता " बोल कर चुप हो गया था . माँ भी इसके बाद कुछ नहीं बोली .


कॉलेज में भी हम अक्सर कैंटीन में मिला करते और साथ ही चाय पिया करते थे . मैं अपनी साइकिल से कॉलेज जाता और वह रिक्शे से आती जाती थी . अक्सर उसके रिक्शे के आस पास ही मेरी साइकिल होती .ऐसा मैं जान बूझ कर करता था ताकि पटना की सड़कों पर किसी मनचले की गलत हरकत का शिकार उसे ना होने दूँ .अक्सर वह इस बात से अनभिज्ञ रहती थी क्योंकि मेरी साइकिल पीछे होती थी . पर एक दिन कॉलेज से लौटते समय किसी रंगीन मिजाज के लड़के ने प्रभा पर कुछ भद्दी फब्तियां कसी तो मैं उस से उलझ पड़ा था और कुछ शोर शराबा हुआ तो उसने रिक्शे का पर्दा हटा कर मुड़ कर मुझे देखा और अपना रिक्शा रुकवा कर मुझसे पूछा " क्या हुआ , अंशु ? क्यों झगड़ रहे हो ? " मैं भी उसके पास आ कर बोला " यह बदतमीज आप पर ताने मार रहा था . "


प्रभा ने कहा " ऐसे लड़कों का काम ही यही है , उन्हें अपना काम करने दो .हम क्यों अपना वक़्त इन पर जाया करें , चुप चाप अपने घर जाओ . और तुम मेरे बॉडीगार्ड कब से बन गए ? "


" जब से मैं इस कॉलेज में आया ." बोल कर मैं भी पहली बार जरा मसखरी कर बैठा था . और फिर दोनों मुस्कुराते हुए अपने अपने घर चल पड़े थे .


एक बार जब मैं उसके घर गया तो वह घर पर नहीं थी .मास्टर साहब ने कहा " वह बिजली का बिल जमा करने गयी है , बस पांच मिनट में आ जाएगी . तुम तब तक ड्राइंग रूम में बैठो , और गुलाब बड़ा सुन्दर है यह .प्रभा के लिए लाये हो न ?"

इतना बोल कर वह तो अंदर चले गए पर मैं झेंप गया था .पर अंदर से उनकी और पण्डिताइन की खुसुर पुसुर सुनाई पड़ी थी .मास्टर साहब बोल रहे थे " अंशु लड़का तो अच्छा है , पर अपनी प्रभा के लिए यह ठीक रहेगा क्या ? "


पण्डिताइन बोली " सठिया गए हैं क्या ? वह प्रभा से छोटा है और यादव है . "


इसी बीच प्रभा आ गयी . उस से एक किताब ले कर मैं घर लौट गया . काल अपनी गति से चल रहा था . प्रभा ने अपनी एम. एस .सी.(मैथ्स ) की पढ़ाई पूरी कर ली थी . मास्टर साहब ने उसकी शादी भी अपनी ही जाति एक लड़के से कर दी .वह सरकारी नौकरी करता था . मैं भी उसकी शादी में गया था. मेरा दिल तो टूट चुका था पर फिर भी इस बार सफ़ेद गुलाबों का एक गुच्छा ले गया . फूल लेते समय मुझे लगा कि प्रभा की आँखें भी नम थीं .

खैर , समय तेज रफ़्तार से चल पड़ा था . मैंने भी एम .एस . सी . मैथ्स से पूरा कर लिया था . इसी बीच मैं प्रदेश की सिविल सर्विसेज के लिए चुन लिया गया और बतौर बी .डी .ओ . दूसरे शहर में नौकरी करने लगा .प्रभा भी अपने पति के साथ दूसरे शहर में चली गयी . लगभग दो साल बाद प्रभा अपने पीहर आई थी . मैं भी उस समय अपने घर आया था .मैं उस से मिलने गया , उस समय वह ड्राइंग रूम में अकेली बैठी टीवी देख रही थी .


मैंने पूछा " कैसी हैं आप ,और आपके पति ? "


उत्तर न देकर वह उलटे मुझसे ही सवाल कर बैठी " आज तुम साथ में सफ़ेद गुलाब नहीं लाये ?"


" कदाचित यह अधिकार मुझे अब नहीं रहा ? "


" इसका मतलब पहले तुम मुझ पर अपना कुछ अधिकार समझते थे . "


मैं चुप रहा . फिर प्रभा ने ही कहा " मैं तुम्हारा इशारा समझ रही हूँ . अगर तुम अपना अधिकार पहले जताते भी तो शायद यह संभव नहीं था ."


मैंने महसूस किया कि उसके चेहरे और आँखों में पहले जैसी प्रभा की झलक नहीं थी . फिर मैंने अपना सवाल दोहराया " आपलोग कैसे हैं ? "


" बस ठीक ही समझो . पर अब मुझे तुम कह सकते हो . अब तो सीनियर क्लास में नहीं हूँ , दोस्त समझो . "


इसी बीच उसकी माँ मिठाई और पानी ले कर आई और उन्होंने कहा " लो , मुंह मीठा कर लो . कुछ महीनों में तुम अंकल बनने वाले हो ."


प्रभा ने पूछा " यहाँ कब तक हो ? "


" मैं तो परसों सुबह चला जाऊँगा . और आप कब तक यहाँ हैं ? "


" फिर 'आप ' .मैंने कहा न अब मुझे तुम कहा करो . "


ठीक है बोल कर थोड़ी देर में मैं अपने घर लौट गया था . पर मेरे मन में शक ने जगह बना ली थी . मुझे लग रहा था कि शादी के बाद प्रभा खुश नहीं थी .अगले दिन मैं प्रभा से फिर मिलने गया तो साथ में सफ़ेद गुलाब ले गया . बाद में जब मैंने उसे छत पर देखा , उसने गुलाब को अपने बालों में लगा रखा था . मेरी तरफ देख कर गुलाब को छूते हुए बोली " बहुत सुन्दर है यह फूल ." और वही मंद मुस्कान मैंने उसके चेहरे पर देखा था .


आगे उसने पूछा " तुम्हारे सफ़ेद गुलाब का रहस्य क्या है ? "


" ठीक है ,कभी अकेले में मिला तो वह भी बता दूंगा ." मैंने कहा था


मुझे अगले दिन वापस अपनी नौकरी ज्वाइन करनी थी . चलते समय माँ ने कहा " तेरे पिता शादी की बात कर रहे हैं . "


मैं बोला " शादी तो करनी ही है , पर अभी कुछ दिन और रुको ."


इस बीच चार वर्ष बीत गए . बीच में कभी कभी प्रभा से मेरी फोन पर बात होती थी . एक दिन मैं ऑफिस के काम से प्रभा के शहर गया .मैंने उसे फोन कर कहा " क्या कुछ देर के लिए तुमसे अकेले में मिल सकता हूँ ? इसे अन्यथा नहीं लेना ."


प्रभा " हाँ , जरूर मिलना .पर अकेले में क्यों ? "


" ताकि अकेले में तुमसे अपने दिल की दो बातें कह सकूँ और फिर आगे सुकून से रह सकूं ."


" हाँ , क्यों नहीं .मैं ही आ जाती हूँ .पर तुम कहाँ ठहरे हो ? मैं अपने बच्चे को स्कूल छोड़ कर कल सुबह तुमसे मिलने आ जाऊंगी .ये भी दो तीन दिनों के लिए काम से बाहर गए हैं . साथ में मैं भी तो तुम्हारे सफ़ेद गुलाब का राज़ जान लूँ ."


अगली सुबह प्रभा मुझसे मिलने आयी . मैंने उससे पति और बच्चे का हाल पूछा तो उसकी आँखें डबडबा गयीं .फिर उसने अपने को संभालते हुए कहा " अंशु , मेरे पास मेरा पति , मेरा बच्चा , घर , रुपया पैसा सब है ,पर जिस चीज की मुझे जरुरत है , वह मेरे नसीब में नहीं है . मुझे लग रहा है कि जहाँ तक प्यार का सवाल है मैं आजीवन तरसती ही रहूंगी . सुना है वे किसी और से शादी करना चाहते थे पर माता पिता के दबाव में आ कर उन्हें मुझसे शादी करनी पड़ी . "


मैंने पूछा " ऐसा क्या है ? "


" ऐसा ही समझो .मेरे पति को सिर्फ मेरे शारीर भर की जरुरत है . मेरा मन क्या चाहता इससे इनको कोई मतलब नहीं .शादी के इतने दिनों बाद आज तक प्यार के दो बोल सुनने को मेरे कान तरस कर रह गए .तुम्हारे गुलाब को अपने बालों में लगा कर मेरे मन में जो ख़ुशी होती थी उसका हजारवां हिस्सा भी आजतक इनसे नहीं मिल पाया

है ."

" पर क्यों ? "


" खैर , छोड़ो मेरी बातें , तुम अपने दिल की बात बताने वाले थे . "


" हाँ , पर कैसे और कहाँ से शुरू करूँ , समझ में नहीं आ रहा है. पता नहीं कहना भी चाहिए कि नहीं .कहीं तुम बुरा न मानो ."


" तुम्हारी बात का कतई बुरा न मानूंगी , भरोसा करो ."


" प्रभा , मैं तुम्हें चाहता था यह बात मेरे और तुम्हारे दोनों के माता पिता से छिपी नहीं थी . हमारे बीच जाति और उम्र का इतना बड़ा फासला था कि उसे पार करने की हिम्मत किसी में नहीं थी , न तुम में न मुझ में न किसी के पेरेंट्स में ."


" मैं भी समझ रही थी ,पर इन्हीं कारणों से किसी में आगे बढ़ने का साहस न था . "


" अब तो चाह कर भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता. यह अधिकार अब मुझे नहीं है . "


" मैंने तो इसे अपना नसीब समझ समझौता कर लिया है .पर तुम सिर्फ सफ़ेद गुलाब ही क्यों लाते थे , अब तो बताओ ."


" ठीक है सुनो . अब क्या संकोच . मैं मन ही मन तुमसे प्यार तो करता ही था .सफ़ेद गुलाब निर्मलता , सरलता और पवित्रता का द्योतक है .इतना ही नहीं यह सच्चा और चिरस्थायी प्रेम और सफ़ेद रंग “ thinking of you ( आपको याद कर रहा था ) “ का भी प्रतीक है . और यही बातें मुझे तुम में नज़र आतीं थीं . "


“ तुम भी मुझे अच्छे लगते थे , पर ऐसा तब भी नहीं संभव था और अब भी नहीं संभव है . इसलिए अब ये सब बातें मन से निकाल दो और अपनी गृहस्थी बसाओ . मैं जैसी हूँ उसी में जीना है और यही उचित होगा . “


मुझे चुपचाप निरुत्तर देख कर वह बोली “अब मैं चलूंगी .मुन्ने को स्कूल से लेना है . "


“ ठीक है . “


“ बुरा न मानना , एक बात कहूं ? मानोगे . “


“ हाँ , कहो . “


“ अब आगे से मुझे सफ़ेद गुलाब न देना . “


मैंने हाँ न कह कर सिर्फ सर हिला कर हामी भरी थी . फिर अपने हाथों में मेरे हाथ लेते हुए उसने कहा “ एक वादा करो . “ जल्दी ही अपनी शादी करो और मुझे कार्ड भेजना न भूलना ."


मैंने उसे एक पल रुकने को कहा और अपने कैरी बैग से एक सफ़ेद गुलाब उसकी हाथ में थमा कर कहा “ इस आखिरी गुलाब को स्वीकार कर लो . “

.प्रभा को शायद पुरानी बातें याद आईं तो उसकी आँखें फिर डबडबा गयीं. फिर भी गुलाब को अपने बालों में लगाते हुए वह चलने को तैयार हुई .मैंने मुन्ने के लिए एक गिफ्ट पैकेट पकड़ाते हुए उससे पूछा " मुन्ने का नाम तो बताती जाओ "


" उसका नाम प्रभांशु है . " वह बोली


मैंने पूछा यह नाम तुम्हें कैसे सूझा तो वह बोली " प्रभा का अंश और अंशु की यादें मिल कर प्रभांशु हो गया . फिर कभी आना हुआ तो जरूर मिलना मगर अब अकेले में नहीं . मेरा मतलब अपनी बीबी के साथ आना . "


इतना कह कर प्रभा वही जानी पहचानी मुस्कान बिखेरती हुए चली गयी और देर तक मैं उसे जाते हुए तब तक देखता रहा जब तक वह ओझल न हुई .