एपीसोड ---२6
समिधा के बैंक का सही समय बताने पर अभय घर से जल्दी जाने की कोशिश नहीं करते। शाम को चाय पीकर कम्प्यूटर की किसी वहशी वैबसाइट पर आँखें गड़ाये बैठे रहते हैं जिससे उसे चिढ़ है।
एक रात एक पत्रिका उठाकर उसके पृष्ठ पलटते हुए वे उत्तेजित हो जाते हैं, “देखो इसमें भी लिखा है जितने लोगों से ‘सैक्स रिलेशन्स’ बनाओ उतनी ही हेल्थ अच्छी रहती है।”
उसकी चीख निकल जाती है, “अभय! तुम्हें ये बातें कौन सिखा रहा है?”
“वही.....।”
“वही कौन?”
वे बात टालकर चेहरे पर चिकनापन लाकर अपनी अजीब सी चढ़ी हुई आँखों से अपनत्व से कहते हैं, “आज मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ।”
“क्या?” वह सशंकित भी सोफ़े पर पीछे खिसक जाती है। वे आगे खिसक कर उसका हाथ पकड़ लेते हैं, “देखो मेरे जीवन में तुम्हारे सिवाय न कोई औरत रही है, न है और न होगी।”
“अभय इतना क्यों बहक रहे हैं?”
“वॉट?” उनकी भावुक मुद्रा देखकर उसे भी भावुक होना चाहिये लेकिन वह चिंतातुर हुई जा रही है।
“तुम अपना शक अपने दिमाग़ से निकाल दो। हम प्यार से नया जीवन शुरु करेंगे।”
समिधा ने उनके मुँह से ऐसे डायलॉग कभी नहीं सुने, “तुम वो शराबी लग रहे हो जो रोज़ शराब पीकर, घर आकर ऊटपटाँग हरकतें करके बीवी की डाँट खाता है। एक दिन सोचता है....।”
“क्या सोचता है?” अभय मासूम से लग रहे हैं।
“वह एक दिन सोचता है कि घर जाकर एक किताब पढ़ूँगा तो वह समझेगी मैं शराब पीकर नहीं आया। वह घर जाकर एक मोटी किताब खोलकर ज़ोर-ज़ोर से कुछ पढ़ने लगता है। उसकी बीवी चिल्लाती है आज तुम फिर
शराब पीकर आ गये ? ``
``अगर मैं शराब पीकर आया होता तो क्या मैं किताब पढ़ रहा होता ?``
``तुम किताब नहीं पढ़ रहे . ये सूटकेस खोलकर क्या बड़बड़ा रहे हो ?”
अभय हँसतते नहीं है, “मैं मज़ाक नहीं कर रहा । उस दिन पता नहीं मुझे क्या हो गया था जो मैं तुम्हें मार बैठा। आज सॉरी बोल रहा हूँ लेकिन तुम्हें मुझसे वायदा करना होगा।”
“क्या?”
“तुम अब अपना शक समाप्त कर दोगी।”
“बस कर दिया अब तो आप खुश हैं?”
प्यार की नकली बातें करने वाले अभय दूसरे दिन शाम को फिर कम्प्यूटर पर बैठ गये हैं। वह कभी भी इस स्क्रीन के जानवरनुमा जीवों से तादात्म्य नहीं बिठा पाती। ड्रिंक करना अभय की आदत में नहीं है लेकिन वह रात में अपने लिए थोड़ा ड्रिंक बनाते हैं। नाइट लैम्प की रोशनी में वह उसकी कमर में हाथ डालते हैं। आँखें उसे देखते हुए भी नहीं देख रही। शाम से जो कुछ हो रहा है, वह किसी के निदेश की कठपुतली मात्रबने हुये हैं । वह फुसफुसाते हैं, “आज वेलन्टाइन डे है, लेट्स सेलिब्रेट।”
वह तड़पकर उनका हाथ झटक देती है व उठकर बैठ जाती है, “मुझे मत छूना।”
“क्यों?”
“तुम अपने आप में नहीं हो, न मेरे पास हो।”
“यू हैव नॉट राइट टु स्पॉइल माई मूड?”
“मेरे अपने मूड का क्या है? शाम से ये वहशीपन के कारनामे क्या हैं?” वह गुस्से में तकिया उठाकर दूसरे कमरे में चली जाती है। अभय हिस्टीरिया के मरीज़ की तरह चीख रहे हैं, “तुम्हें दिखाना होगा, सच ही तुम साइकिक हो रही हो।”
समिधा की अपनी बेबसी पर आँखें भर आती हैं। वह उस औरत का कुछ कर नहीं पा रही जिसका ज़हर खुले आम उसके बैडरुम तक पहुँच गया है।
“मैं सब समझता हूँ, मैं क्या पागल हूँ।” अभय की आँखें फैलती चली जा रही है, “साली। मुझे चैन से जीने नहीं देगी। अब मैं तुम्हें तलाक दे दूँगा।”
वह विस्मित रह गई, “क्या कहा तुमने?”
“साली ! चुड़ैल।”
“तुमने आज तक मुझे तो क्या बच्चों तक को गाली नहीं दी। तुम्हें ये क्या हो गया है?” वह रो पड़ी।
तीसरेदिन ही वह शाम को उन्हें घेर बैठी, “सोमेश का फ़ोन आया था तुम ऑफ़िस में नहीं थे।”
“मैं बाहर के ऑफ़िस में हूँगा।”
“मैंने वहाँ भी फ़ोन किया था।”
“विकेश से पूछ लो, मैं उसके पास ही बैठा था। अगर तुम और कुछ सोच रही हो तो ठीक है। मैं मानता हूँ हमारे ‘रिलेशन्स’ हैं लेकिन तुम प्रूफ़ कैसे करोगी?”
“अभय ! तुम इतने गिरे हुए व्यक्ति तो नहीं हो। ये चैलेंज तुम नहीं कोई और दे रहा है। मैं उसकी अक्ल ठीक कर दूँगी।”
“अकेली औरत कर ही क्या सकती है?”
अभय ने कम्प्यूटर पर उसे चिढ़ाने वाले गाने की सी डी लगा दी है,`चल मेरे साथ कोई रात गुज़ार ।`एक गाना सुनकर उसका सर्वांग काँप गया है, `बने तेरा सेहरा लड़ियों वाला `उसे अपने लिए नहीं अभय की दिमाग़ी हालत के लिए चिन्ता है। ‘तलाक’ शब्द के साथ विवाह के शुभ प्रसंग के गीत भी भेंट किये जा रहे हैं।
कप्म्यूटर पर उनींदे से बैठे अभय ने ये गाना अक्सर सुनना शुरू कर दिया है, “मन तरसे, मन तरसे अपने बालम को....कितने दिन बीते तुम क्यों न आये रे।”
भरी आवाज़ में गाती बिरही गायिका की तड़पती रुदन भरी आवाज़। अपने पास आने के लिए पुकारती आवाज़। किस पुरुष का दिल विचलित नहीं होगा?
वह गाना तो दिन में एक बार बजना ही है, “संसार से भागे फ़िरते हो...... ये भोग भी एक तपस्या है।”
समिधा सी डी रैक में एक नई सी डी ‘प्यासी कोयल’ देखकर चौंक जाती है। ये कैसे घृणित भोग के लिए आवाहन करती भूखी, प्यासी औरत है या दरिंदा है?
चार पाँच दिन बाद वह दोपहर को शॉपिंग करके घर लौटी है। अभय एक बजे खाना खा रहे हैं।
वह बोल उठी, “आज तो आपको बड़ी देर हो गई।”
“तुम्हारा दिमाग़ तो एक ही बात सोचता है।”
“अभय ! मैंने तो ज़रा सा पूछा है।”
“विकेश से पूछ लो। मैं उसके पास बैठा था।”
“तुम क्यों अपनी सफ़ाई दे रहे हो?”
इतवार को रोली आती है। सुबह ग्यारह बजे नाश्ता करते हुए उसकी आँखें टी.वी. हैं। वह ब्रेड रोल पर सॉस डालते हुए पूछती हैं, “आप दोनों के दो कपल फ़ोटो ज ड्राइंग रुम में थे, वे कहाँ गये?”
अभय का चेहरा स्याह हो जाता है। वह कहती है, “अपने पापा से पूछो। वे तो काफी समय से गायब हैं। तुमने पहले ध्यान नहीं दिया, मैंने बताया नहीं।”
“पापा! वह फ़ोटोज कहाँ हैं?”
“तेरे पापा पता नहीं कौन से पूजा पाठ में बैठकर लाल तिलक लगाये धुएँ से लाल आँखें लिए आते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि किसी पिशाचिनी ने उस फ़ोटो को तंत्र मंत्र के साथ आग में डालकर भस्म कर दिया है। जिससे मैं भस्म हो जाऊँ लेकिन उसे पता नहीं है कि किससे पाला पड़ा है।”
अभय बिगड़ उठते हैं, “हाँ, एक राक्षसी से पाला पड़ा है।”
“नो, नो राक्षसी का मुझ जैसी ‘सेन्टली लेडी’ का पाला पड़ा है।”
“अब वह कपल फ़ोटोज़ कभी ड्राइंग रुम में नहीं लगेंगे।”
“आइ डोन्ट केअर, आइ एम पिटी ऑन यू। एक सड़कछाप औरत ने तुम्हारा दिमाग़ फ़्यूज कर दिया है।”
“तुम सड़कछाप हो। रोली की शादी के बाद मैं तुमसे तलाक ले लूँगा।”
“अभी तलाक ले लो। वह यदि कुँवारी होती, तलाकशुदा होती तो बात समझ में आती एक विवाहित औरत ने तुम्हारे दिमाग़ में ‘तलाक’ फ़िट कर दिया है और तुम्हें समझ ही नहीं आ रहा कि वह कितनी बदमाश है?”
“बदमाश तो तुम हो।”
“तुमसे बहस करना बेकार है।” वह अच्छी तरह समझ गई है उसके घर कुछ न कुछ ऐसा किया जा रहा है जिससे वे दोनों लड़ते रहें।
दूसरे दिन अभय उससे पूछते है,“आज पंद्रह मार्च है।”
“हाँ।”
“अरे ! मैं भूल गया आज दाँडेकर के यहाँ गृहप्रवेश है। जल्दी तैयार हो जाओ। वहाँ डिनर भी है।”
परसों की रात का गुस्सा अब निकल पड़ता है, “क्यों तैयार हो जाऊँ? घर में ऊटपटांग हरकतें करते हो, फ़ोटो ज़ हटा देते हो और चाहते हो मैं तुम्हारी बगल में खड़ी तुम्हारी पत्नी बनी पार्टी में मुस्कान बिखेरती रहूँ?”
“तुम किसी को नहीं पूछती इसलिए कोई तुम्हारे यहाँ नहीं आता।”
“मैं? मैं किसी को नहीं पूछती। विकेश बेहूदा आदमी है लेकिन उसके घर भी मैं तुम्हारी दोस्ती के कारण खाना लेकर गई थी।”
“तो तुम चल रही हो या नहीं?”
“आज तो मैं सच में नहीं जाऊँगी।”
“लोग सही कहते है तुम पिटने लायक हो।”
“कौन लोग कहते हैं?”
“तुम्हें तो इतना पीटना चाहिए। तुम्हारी रोज़ पिटाई करनी चाहिए।”
“अभय ! अब ज़रा हाथ लगाकर देखो।”
वे फटी फटी आँखों से यंत्रचालित हाथ उठाकर बढ़ने लगे। ऊँचे स्वर में चीखते हुए,“तुम पिटने ही लायक ही हो। अब मैं तुम्हें रोज़ पीटा करुँगा।”
“यदि तुमने अभी मेरे हाथ भी लगाया तो विकास रंजन जी को फ़ोन करके बुलाती हूँ।”
इस नाम से वह एक क्षण सहम जाते हैं फिर भी अकड़ते हैं, “किसकी बात कर रही हो?”
“चीफ विजिलेंस ऑफ़िसर की बात कर रही हूँ।”
“तो फ़ोन कर दो क्या मैं डरने वाला हूँ?”
“अब मैं तुम्हें बता रही हूँ इस बदमाश औरत की रिपोर्ट उन्हें कर चुकी हूँ। इतना खुला खेल रही है।”
रंजन जी का भय सारी कॉलोनी पर छाया हुआ है। अभय की हैवानियत काफ़ूर हो गई है, “जब कुछ बात नहीं है तो वो क्या कर लेंगे?”
वह चुपचाप कपड़े बदल कर घर से पार्टी के लिए निकल जाते हैं। वह गहरी साँस लेती है, कुछ दिन शांति से निकल जायेंगे।
दूसके दिन आदतन अभय ग्राउंड में घूमने रुक गये हैं। वह लौट रही है, उदास अनमनी। ये लम्बे पेड़ों से घिरी बरसों की जानी-पहचानी सड़क सोडियम लाइट में कैसी रहस्यमय लगने लगी है। मन किसी अनजाने भय से घिरा मृगशावक की तरह सहमा रहता है। बुझा-सा रहता है। जीवन का ये कैसा मंजर है, घर में धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया है।
कविता की लेन पास आती जा रही है वह उसे क्रॉस करे उससे पहले उस लेन में से एक स्कूटर आँधी की तेज़ी से उसके पास से फर्राटे भरता, शोर मचाता ज़ूम करता निकल जाता है जैसे वह उसके ही लौटने का इंतजार कर रहा था। पल भर में देखी झलक से वह पहचान जाती है कि आगे स्कूटर पर लम्बे बबलू जी बैठे हैं, पीछे बैठी है ‘मस्टर्ड रंग’ के स्वेटर में सिर पर कपड़ा लपेटे एक छोटी आकृति ज़रूर वह कविता है। मार्च के महीने में ये स्वेटर? तो क्या रंजन जी के भय से बीमार पड़ गई है? बहुत अच्छा हुआ। वह खुशी से तेज़ कदमो से घर आकर काम करती गुनगुनाती है। काश ! उसे हार्ट अटैक या कोई गम्भीर बीमारी हुई हो।
अभय का चेहरा भी रंजन जी के नाम से तनावपूर्ण है। समिधा ये देखकर भी परेशान है। एक भय है, उनके हृदयरोग के लिए। वह दूसरे दिन अस्पताल जाकर वहाँ के वॉर्ड्स में देख डालती है। कविता का कहीं पता नहीं है। न ही उसने इमरजेंसी वॉर्ड में अपने को दिखाया।
वह घर पर सोफ़े पर अधलेटी सोच रही है तो कविता बीमार नहीं है। फिर हल्के अँधेरे में रहस्यमय ढंग से धड़धड़ाता स्कूटर कहाँ गया होगा? कविता गर्मी में भी स्वेटर पहन कर सिर पर कपड़ा लपेटकर छिपकर कहाँ गई होगी? कहाँ..... कहाँ...... वह उछलकर सीधी बैठ जाती है..... बबलूजी कविता को लेकर ग्राउंड में घूम रहे अभय के पास गये होंगे? बबलू अभय के सामने तो आये नहीं होंगे। कविता उन्हें कुछ न कुछ भड़काती रही होगी। क्या पता समिधा की पुलिस में रिपोर्ट करने के लिए उन्हें उकसा रही हो। तो क्या बुआजी कह रही थीं वह सच है? बबलू जी का अपनी बीवी को पूरा-पूरा साथ है उन्हें इज़ी मनी का चस्का लग गया है? कविता का ये खुला खेल उसकी अकेली हिम्मत नहीं है? समिधा की साँस तेज़-तेज़ चल रही है, उसका दम घुटा जा रहा है। तभी अभय कल ग्राउंड पर से लौटकर कम्प्यूटर के सामने नहीं बैठे थे। बेडरूम में जाकर पलंग पर हाथ पैर फैलाये शवासन करने लगे थे।
हे भगवान ! ये औरत अभय को तनाव दे देकर मार न डाले।
अभय का मन स्थिर नहीं है। विभाग में रिपोर्ट होने का भय, इज्जत जाने का भय सब हावी है। उसका अपना कलेजा डर से, दहशत से घिरा हुआ है। वह गहरे अवसाद में है, ऐसे अवसाद में जब कलेजे को बेहद ज़ोर का धक्का लगता है. नीचे की ज़मीन हिल जाती है। हाथ पैर अलग ढीले हो रहे हैं। आगे क्या होगा ?
इज़ी मनी कमाने वाले लोग उसके पड़ौस में ? और उसके पति उनकी चपेट में ?जो कॉलौनी उसकी नज़र में आदर्श थी उसमें ऐसा ?
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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