Bana rahe yeh Ahsas - 2 in Hindi Moral Stories by Sushma Munindra books and stories PDF | बना रहे यह अहसास - 2

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बना रहे यह अहसास - 2

बना रहे यह अहसास

सुषमा मुनीन्द्र

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अस्पताल से अम्मा घर आ गईं।

जिस शोचनीय दशा में गई थीं घर वापसी चमत्कार की तरह है। अनगढ़ लेकिन बहुत बड़ा, पुरानी बुनावट का लेकिन बहुत खुला, हवेली जैसा यह पुश्तैनी घर माताराम की क्रूरता, पप्पा के निरादर, सनातन और पंचानन की बेवकूफियों के कारण सदा अजनबी लगता रहा है। सनातन कभी बता रहा था एक बिल्डर बाजार मूल्य पर यह घर खरीद कर बहु मंजिला भवन बनाने का प्रस्ताव दे रहा है। अम्मा ने तब प्रतिक्रिया नहीं दी थी। घर वापसी पर सल्तनत जैसा भाव जागृत हुआ। इच्छा हुई घर के विशाल आँगन, चारों तरफ बने कमरों, कमरों के आगे उतरी परछी को घूम-घूम कर नये भाव से देखें। देह में ताकत नहीं है। अवंती और सरस सहारा देकर उन्हें उनके कमरे में ले आईं। अम्मा को परिचित बिछावन में बहुत आराम मिला। शिथिल स्नायु कुछ स्फूर्त होते जान पड़े। अपना कमरा शानदार लगा। टी0वी0 खरीद लिया है, रिमोट के बटन दबा कर सर्फिंग करना सीख गई हैं। थोड़ा विलास से रहने लगी थीं कि वाल्व खराब ..............। प्रभु तुम्हारी कपट चाल ...................।

शनिवार शाम पंचानन आ गया।

पंचानन, सनातन, अवंती, सरस एक साथ अम्मा के कमरे में उपस्थित हुये। अम्मा जानती हैं उनके कमरे में पुत्र बिना मकसद नहीं आते। पंचानन से कहना चाहती हैं ............. हम सोचते थे हमारी बीमारी की खबर सुन कर आओगे पर आज आये।

कह नहीं सकीं। न आने का कारण पंचानन कई बार बता चुका है - अम्मा, तुम बैंक का झबार नहीं जानतीं इसलिये नहीं समझोगी मैं क्यों नहीं आया। अम्मा ने एक-एक कर चारों को देखा। अवंती सहज दिख रही है।

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यह अम्मा को वक्त पर अन्न-जल देती है। घर की व्यवस्था भी बनाये रखती है। सनातन और पंचानन के खिंचे चेहरे बताते हैं काफी मशवरा कर चुके हैं। अम्मा बोलीं -

‘‘दिनों बाद तुम लोग हमारे कमरे में एक साथ आये हो। बीमार के पास कोई बैठा रहे तो तसल्ली मिलती है।’’

पंचानन को तसल्ली की फिक्र नहीं है ‘‘अम्मा, तुम बीमार नहीं हो। डाँक्टर यूँ ही डराते हैं।’’

- हमारी जगह सरस होती तो पंचानन आज ही तुम उसे लेकर दिल्ली सटक जाते कि डाँक्टर ने कहा है तो देर नहीं करना चाहिये।

‘‘वाल (वाल्व) क्या होता है ? हम तो हाट (हार्ट) के बारे में जानते हैं।’’

सरस ने प्राणी शास्त्र का प्रदर्शन किया ‘‘वाल्व, हार्ट का एक भाग होता है।’’

‘‘अच्छा तो वाल से साँस लेते हैं ? तभी हमको साँस की दिक्कत हो गई।’’

अम्मा की हद दर्जे की अनभिज्ञता पर सनातन की इच्छा हुई कमरे से भाग जाये पर पंचानन की उपस्थिति में कुछ ठोस बातें हो जानी चाहिये वरना अब का गया यह अगले शनिवार आयेगा अथवा लफड़े से बचाने के लिये पखवाड़े भर न आयेगा। बोला -

‘‘अम्मा साँस वाल्व से नहीं फेफड़ों से लेते हैं।’’

‘‘तब फेफड़े का आपरेशन हो।’’

प्ंाचानन ने वक्त बर्बाद न कर सीधे पूँछा ‘‘अम्मा सर्जरी करानी है या नहीं ?’’

अम्मा के जीवन के अंतिम लेकिन सम्पन्न बरस।

जीने की जिद हो रही है। लेकिन दृढ़ होकर कब बोल पाईं ? अस्पताल में सनातन की आड़ ली घर में चिकित्सक की।

‘‘डाँक्टर बोले हैं। करानी है।’’

सर्जरी जैसा खर्चीला फैसला ले रही अम्मा विचित्र लग रही हैं।

अम्मा को फैसला लेते किसी ने नहीं देखा। छोटा-बड़ा प्रत्येक फैसला पप्पा लेते थे। अब सनातन और पंचानन लेते हैं। पंचानन वित्त का मुद्दा स्पष्ट करना चाहता है। सनातन की वकालत चलती है या नहीं चलती है लेकिन मेरी प्रतिस्पर्धा में डूपलेक्स बुक कराया है तो कुछ चलती होगी। या अवंती भाभी यह जो सत्यनिष्ठ मुख बनाये रहती हैं अम्मा का खाता खाली कर किश्त भरती होंगी। सनातन तो अपनी असफल वकालत की कीर्ति सुना किनारे हो जायेगा। वित्त भार मेरे और सरस के बैंक खाते में पड़ सकता है। बोला -

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‘‘अम्मा, इलाज में तीन-चार लाख लगेगा। देखना पड़ेगा बैंक में कितना पैसा है।’’

अम्मा समझ गईं - उनके बैंक में।

‘‘हमारे इलाज, तुम लोगों के आने-जाने, ठहरने में जो लगे, बता देना।’’

‘‘पैसे की ही बात नहीं है अम्मा। इस उम्र में रिस्क रहता है।’’ सरस इस तरह कूट वचन कहती है कि उसकी मंशा का अनुमान नहीं हो पाता।

अम्मा कहना चाहती हैं - हमारे पास पैसा है लेकिन देह में ताकत और व्यवहार में स्मार्टनेस नहीं है वरना हम अपने दम पर दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हो जाते। अम्मा ने तखलिया का संकेत किया।

‘‘हमें नींद आ रही है।’’

सनातन, पंचानन, सरस चले गये। अवंती, अम्मा के बिस्तर पर मसहरी लगाने लगी।

अवंती।

अवंती और अम्मा की असहायता कुछ अर्थों में समान है।

सनातन, अवंती से विवाह नहीं करना चाहता था। वकालत कर नहीं पा रहे हो लेकिन पत्नी फिल्मी चाहिये कह कर पप्पा ने सप्तपदी सम्पन्न करा दी थी। विरोध स्वरूप सनातन, अवंती से उतना ही प्रयोजन रखता है जो जरूरी है। अवंती नहीं जानती सनातन औसत रूप में प्रति माह कितना कमा लेता है। जब भी पॅंूछा, सनातन ने हुरपेट दिया -

‘‘उड़ा नहीं रहा हूँ। ये जो दो बिल्टी (बेटियाँ) हैं इनके लिये जोड़ रहा हूँ।’’

रात दस बजे वाले अॅंधेरे में आँगन पार कर गुसल की ओर जाती अम्मा ने सनातन के कमरे में हो रही ऐसी ही किसी विकट चर्चा को सुन लिया था। सनातन के तेज स्वर से अंदाज लगा ले रही थी जवाब में मंद स्वर में अवंती क्या कह रही होगी। कैसे जोड़े आ बसे हैं घर में। प्रेम विवाह वाली सरस, पंचानन के मूड़ में बैठती है। बेचारे के केश तेजी से गिरे जा रहे हैं। इधर यह हृदयहीन सनातन इस नरम दिल अवंती के साथ वारदात करता रहता है। उतना उपेक्षित नहीं करता जिस तरह पप्पा उन्हें करते थे पर करता है। सुबह अवंती की लाल आॅंखें वारदात की पुष्टि कर रही थीं। अम्मा, अवंती की हमदर्द बन गईं -

‘‘सनातन से उतना मतलब रखो जो जरूरी है। हम मूरख थे। पप्पा महत्त (महत्व) नहीं देते थे फिर भी हर काम में उनकी सहमति लेते रहे। बहुत बाद में समझ में आया हमको पप्पा का रहम नहीं चाहिये। पप्पा हमको पसंद न करें, हम खुद को पसंद करते हैं। यहय दिलासा हम तुमको देंगे।’’

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अम्मा ने बहस सुन ली ? अवंती को लगा इज्जत उतर गई है। यह भी लगा अममा के साथ गठबंधन कर ले तो इज्जत उतरने की लज्जा खत्म हो जायेगी। अपना दर्द बताने की सहूलियत मिल जायेगी। व्याख्याता का रुतबा बनाये रखने वाली सरस का रुतबा इस गठबंधन से कमजोर हो जायेगा।

मसहरी लगा कर अवंती आँगन में आई। सनातन, पंचानन, सरस शिखर वार्ता में दत्त थे।

सनातन ने पूँछा -

‘‘अम्मा कुछ बोलीं ?’’

‘‘सर्जरी करायेंगीं।’’

सरस के कूट वचन ‘‘जिसे सब लोग साॅंस उखड़ना कह रहे हैं वह अटैक रहा होगा। अम्मा इस उम्र में सर्जरी नहीं झेल पायेंगी।’’

अवंती ने दोहराया ‘‘अम्मा सर्जरी कराना चाहती हैं।’’

पंचानन क्षुद्रता पर उतरा ‘‘क्यों न करायें ? यामिनी दीदी ने बेतार के तार की तरह यशोधरा दीदी और यमुना दीदी को खबर पहॅंुचा दी है। तीनों ने अम्मा को सर्जरी कराने के लिये हुलहुला दिया है। नागचैरी जीजाजी और पयासी जीजाजी काँल कर मुझसे पूँछ चुके हैं अम्मा को दिल्ली कब ले जा रहे हो।’’

सनातन, सनसना रहा है ‘‘कह देते आप ही ले जाओ। लड़कियों का मायका और ससुराल एक शहर में नहीं होना चाहिये। अपनी ताकत बढ़ा लेती हैं, माँ की भी।’’

जबकि न अम्मा ताकतवर नजर आती हैं, न यामिनी।

अवंती ने दोहराया ‘‘अम्मा को दिल्ली ले जाना चाहिये।’’

अम्मा की फरमाबरदार बन रही है। सनातन ने तीरन्दाजी की -

‘‘अम्मा का इलाज हो न हो, तुम जरूर भ्रमण कर लो।’’

सरस ने अवंती को ऐसे देखा जैसे स्वार्थी को देख रही है ‘‘पंचानन बैंक से छुट्टी लेंगे कि मैं स्कूल से कि भैया कोर्ट से। दिल्ली में कितने दिन लगेंगे, अम्मा की सेवा कौन करेगा ?’’

अम्मा सचमुच हृदयहीनों के साथ रह रही हैं।

‘‘मैं करूँगी।’’

सरस क्या कहे ? - निठल्ली हो, सेवा कर वाह वाही लूटो।

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पंचानन निदान पर आया ‘‘अम्मा को दिल्ली ले जाकर पैसा बर्बाद कर आते हैं। डाँक्टर कह देंगे इस उम्र में सर्जरी नहीं हो सकती। अममा को तसल्ली हो जायेगी। जीजा साहबों का मुँह बंद हो जायेगा। भाभी, अम्मा के एकाउण्ट में कितना पैसा है ?’’

‘‘चार से अधिक है। मैनेज हो जायेगा।’’