Maharajao ki videshi dulhaniyo ki vyatha kathaye in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | महाराजाओं की विदेशी दुलहिनों की व्यथा कथायें

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महाराजाओं की विदेशी दुलहिनों की व्यथा कथायें

महाराजाओं की विदेशी दुलहिनों की व्यथा कथायें

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

[ ब्रिटिशकाल में राजा महाराजा अक्सर विदेशी महिलाओं से शादी कर लेते थे। ये महिलायें उनकी शान शौकत पर मर मिटती थीं लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर उनकी बाद की ज़िंदगी क्या थी ?]

--------------बरसों पहले से सुन रक्खा था कि दिल्ली की कुतुबमीनार पर पहले पर्यटकों को ऊपर चढ़ने देते थे लेकिन कोई फिरंगन ने उस पर से कूदकर अपनी जान दे दी जबसे ऊपर चढ़ने पर प्रतिबन्ध लग गया है।

---------------------दस वर्ष पहले तमिलनाडु के कोडाइकैनाल के कार्तिकेय के कुरिंजी अंडवार मंदिर का पुजारी बता रहा था कि यहाँ के राजा ने एक ऑस्ट्रेलियन लड़की से शादी की थी व वहां से लाकर बैंगनी रंग के फूल का पौधा यहाँ रोपा था। आज पूरी इसकी वैली व पहाड़ पर ये पौधा उगा हुआ है। हर बारह वर्ष बाद जब इस पर फूल खिलते हैं तो पर्यटकों की भीड़ इन्हें देखने उमड़ पड़ती है लेकिन उन राजा रानी ने अपने प्यार की निशानी इस पौधे को इस अपने राजघराने के मंदिर में भी रोपा था। उनके प्यार की निशानी के कारण ये फूल सिर्फ़ इस मंदिर के पौधे में हर समय खिला रहता है। अविश्वसनीय सी लगती इस बात को जानकार हम मन्त्र मुग्ध से उस फूल को व मंदिर में लगी राजा रानी की तस्वीर को निहारते रह गए थे।

------------------तब मैं कहाँ सोच पाई थी कि इन दोनों घटनाओ के स्त्री पात्रो से मेरी मुलाक़ात होगी चंडीगढ़ में अपनी जिठानी डॉ .आभा जी की तीन वर्ष पूर्व प्यार से दी गई इस पुस्तक `विकेड वीमन ऑफ़ राज `[हार्पर कॉलिन्स व इण्डिया टुडे ग्रुप के सहयोग से सन २००३ में प्रकाशित ]में। तब मैंने इसे पढ़ भी लिया था व आहत भी हुई थी लेकिन कुछ कारणों से इस पुस्तक पर लिखना टलता गया।

तथ्यों के अनुसार सबसे पहले सन १५१० में समुद्री लुटेरों ने एक अंग्रेज़ औरत को मुस्लिम हरम के लिए बेचा था। जैसे जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी का वर्चस्व बढ़ता गया अंग्रेज़ व्यापारी निंम्न वर्ग की औरतो से काम चला रहे थे.बाद में अंग्रेज़ स्त्रियां भी भारत आने लगी.ये रोमेंटिक हों या सीधी साधी इनके मन में कही पूर्व के राजाओं के लिए एक साध थी कि यदि कोई राजा या राजकुमार इन पर फ़िदा हो गया तो हीरे मोती की बौछार में इन्हें भिगो देगा। उन दिनों राजकुमार अक्सर विदेशो में पढ़ते थे या राजा महाराजा विदेशों में दौरे पर रहते थे। विदेशो में ही उन दिनों थिएटर्स थे। जहां पर किसी गोरी औरत को नृत्य करते या अभिनय करते देख इनका दिल मचल उठता था।साथ में रानी भी हो तो क्या ?सामन्तशाही में उसकी औकात ही क्या थी ? उधर अंग्रेजों की पार्टीज़, बॉल डांस, थिएटर्स, पिकनिक्स में इन सजी धजी गाउन पहने गोरी मेमसाबों को देखकर राजाओ का मन भी मचल मचल उठता था। तो अलग अलग संस्कृतियों के दो तरफ़ा आकर्षण ने किस को ठगा व कौन बर्बाद हुआ ये जानना दिलचस्प है ।

जो युवतियां शादी करने के बाद पति कुछ समय बाद इंग्लैंड बैरंग लौटती तो उनका उन्हें `रिटर्नड एम्पटी `कहकर मज़ाक उड़ाया जाता था। एक सेविका की अचम्भे भरी कहानी है कि वह एक घर में नौकरानी बनकर आई व शिप पर काम करने गई तो उस पर एक आई सी एस अफसर फ़िदा हो गया और उसकी तो तकदीर आसमान छूने लगी। ढेर सी कराहती विदेशी महिलाओं की आत्माओं का करुन क्रंदन व एक दो नौकरानी जैसे अपवाद का इसी बात का लेखा जोखा है ये किताब `विकेड वीमन ऑफ़ द राज `.

इस पुस्तक की लेखिका कॉरली यंगर, एक ऑस्ट्रेलियन युवती जो उन्नीसवीं सदी के अंत में भारत व सिडनी के संम्बन्धों पर सिडनी विश्वविद्ध्यालय के लिए शोध करने भारत आई थी। यहां के लोग, उन दिनों की सामन्तशाही चमक दमक, यहाँ की अनूठी संस्कृति से इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने यहाँ बीस वर्ष गुज़ारे। काश !वे शोध के बाद वापिस ऑस्ट्रेलिया लौट गई होती तो कम से कम उन्हें भारतीय संस्कृति [तथाकथित महान भारतीय संस्कृति] के वो मंज़र तो ना देखने को मिलते जो इन्होंने बीस वर्ष भारत में रहकर देखे।सामन्तशाही युग में राजा, महाराजाओं का क्या लुभाता था विदेशी युवतियों को ----हज़ारों लोगों पर हुकूमत ? अकूत खजाना ? या हीरे, पन्ने, नौ रतन जड़े भारी भरकम आभूषण ? या महाराजा के सामने कोर्निश करते, आधे झुकते लोग या महाराजा का भव्य पगड़ी की हीरे पन्नो की लड़ियों के बीच बेहद आत्मविश्वास भरा दमकता, भीड़ से अलग चेहरा या उनकी और आकर्षित होती, उन्हें बेधती नज़रें ? उनके आकर्षण में बंध उनसे विवाह कर समझती थी कि दुनियाँ उनके पैरो तले है लेकिन ------। खुद कॉरोली भी तो इसी चमक दमक भरी सामन्तशाही संस्कृति की चकाचौंध की शिकार होकर भारत में रह गई थी।

इन्ही में से थीं ऑस्ट्रेलिया की एक एलिस थॉम्पसन जो मेलबोर्न के एक थिएटर में गायिका व नर्तकी थी। जो महाराजा ऑफ़ टिकरी से विवाह कर टिकरी की महारानी बनीं। एक और मेलबोर्न के बैरिस्टर की बेटी सन १८९४ में जन्मी युवती मौली फिंक पुडुकोटट्टी के महाराजा की दुल्हिन बनी। इन दोनों के विवादास्पद जीवन को देखकर ही शायद कौरोली को प्रेरणा मिली होगी की वह उन विदेशी दुल्हनों के जीवन का अध्ययन करे जो देशी राजाओ से शादी करती हैं। ग़नीमत की बात ये थी कि मौली के पति ने मार्तण्ड भैरव तोंडाइन ने उनका आजीवन साथ दिया वरना कुछ अपवादों को छोड़कर विदेशी युवती अपने जीवन के उत्तरार्ध में एक दुःख में डूबी अवसाद की दास्ताँ बन गई। इस ग्लैमर के आसमान से धरातल पर महारानी की शान-ओ-शौकत को धड़ाम होता जानकार आश्चर्य होता है न.

पुडुकोटटी के राजा मार्तण्ड को उनके दादा ने गोद लेकर उन्हें राजगददी पर बिठाया था। ये खुद शाह तरीके से रहते थे व प्रजा का भी ध्यान रखते थे। इनके एक अमेरिकन व एक अँग्रेज़ युवती से रोमांस को देखकर ब्रिटिश सत्ता इन्हें आगाह कर चुकी थी। ऑस्ट्रेलिया के एक होटल में मौली से इनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। कुछ महीनों की मुलाक़ात में इन्हें समझ में आ गया कि इन्होंने अपनी `ड्रीम गर्ल `पा ली है व उससे शादी कर ली। उस समय के ऑस्ट्रेलियन व भारतीय समाज ने इन्हें अपनाने के लिए मुंह चढ़ाया था बल्कि वहां के एक अखबार ने तो मौली के भारतीय परिधान का यहाँ तक मज़ाक उड़ाया था ;

``मौली के गोरे मुंह पर चमकती आँखें व अनार के रंग के रंगे होठों को देखकर ऐसा लगा रहा था कि उन्होंने बैग जैसी पर्दे से ढकी पोषक पहनी हुई है। ``

वे लोग पुडुकोटटी में सिर्फ़ पांच महीने रहे। ऊपर से दिखाने के लिए सबने उनका स्वागत किया था लेकिन जब मौली को गर्भ ठहरा और उसकी उल्टियां बंद नहीं हो रही थी तो मार्तण्ड उन्हें ऊटी ले गए। जब वहां उनके परीक्षण हुए तो पता लगा किसी ने महल में उन्हें गर्भपात के लिए ज़हर [नाम में जानबूझकर नहीं लिख रही ]दिया गया है। इस हादसे के कारण मार्तण्ड ने मद्रास सरकार से ऊटी में घर खरीदने की अनुमाति माँगी लेकिन वह तैयार नहीं हुई। युद्ध के कारण योरोप में जाने के रास्ते बंद थे इसलिए ये लोग वापिस ऑस्ट्रेलिया चले गए। जहाँ उनका एक बेटा हुआ जिसे ईसाई की तरह नहीं पाला गया क्योंकि मार्तण्ड सोचते थे कि वह भारत जाकर राज्य सम्भालेगा लेकिन ब्रिटिश सरकार मौली को महारानी का दर्ज़ा देने के लिए तैयार नहीं थी।बाकी के उनके दिन लन्दन, केन्स व पेरिस में निकले।किसी बीमारी से राजा की मृत्यु सिर्फ़ ५३ वर्ष की आयु में हो गई। प्रथा के अनुसार उनका शरीर उनके राज्य भारत में जाना था लेकिन मद्रास के गवर्नर ने बर्बरता से अनुमति नहीं दी, यही सज़ा थी एक विदेशी से शादी करने की। मौली ने लंदन में ही हिन्दू रीत रिवाज़ से इनका क्रियाकर्म कर दिया व एक वर्ष तक सफ़ेद परिधान में रही। कहते हैं आगा खान तक ने ने मौली के सौन्दर्य से आकर्षित होकर उसका हाथ माँगा था। मौली का बेटा जो भारत का एक राजा था युवावस्था में एक एक्सीडेंट की चपेट में आ गया व उसमे कुछ शारीरिक कमी आ गई इसलिए वह सफल जीवन नहीं जी पाया। उसकी पियक्कड़ बीवी ने तमाम अय्याशियां करने के बाद अच्छे खासी रकम लेकर तलाक ले लिया था। २० नवम्बर १९६७ में मौली ने केन्स में, जहां वह अपने प्रियतम के साथ वर्षों रही, केंसर के कारण प्राण त्याग दिए। उसके पुत्र ने अपनी माँ की अस्थियों का वहीं विसर्जन किया जहां १७ वर्ष पूर्व पिता की की थीं।

एक ऑस्ट्रेलियन ऑफिसर की बेटी एलसी थॉम्पसन को पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद एक थिएटर में अभिनेत्री बनना पड़ा। उसके एक गायक व नर्तक से करीबी रिश्ते थे लेकिन साऊथ अफ़्रीका के केपटाउन में उसने एक अमेरिकन से शादी कर ली थी, जो इन्हें भारत के कलकत्ता ले आया था। जहाँ पर ऑस्ट्रेलियन्स अधिकतर घोड़ों के व्यवसाय से जुड़े थे। इस शहर में क़ूचबिहार के महाराज राज राजेन्द्र नारायण उर्फ़ राजे का भी आलीशान बंगला था। ये मेयो कॉलेज के पढ़े हुए थे। बाद में ये इंग्लैंड पढ़ने गए या कहना चाहिए ये पहले भारत के राजकुमार थे जिन्होंने इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी में सर्वप्रथम शिक्षा पाई थी।

जब एलसी व पहली बार राजे मिले तो वह तब भी शराब बहुत पीते थे लेकिन फिर भी एलसी उनके निकट आती चली गई व वह अपने पति पर धोखाधड़ी का इलज़ाम लगाकर तलाक लेने आस्ट्रेलिया गई .उधर राजघराना एक अभिनेत्री से विवाह की अनुमति नहीं दे रहा था। राजे लगभग मृत्यु के करीब थे . राजे जानते थे कि एलसी हंगामा कर देगी यदि उसे पता लगेगा कि राजे का राजपरिवार शादी के लिए तैयार नहीं है। जब उन्होंने अपने कज़न मित्र राजी कूचबिहार को एलसी को लेने कोलम्बो भेजा क्योंकि वहां होते हुए एलसी लौट रही थी। राजी संकोच में बता नहीं पाए कि उसका मंगेतर मृत्यु शैया पर है।

श्रीलंका में राजी ने वायदा किया की वह एलसी को भारत दर्शन करवाएंगे। ये दोनों कश्मीर में राजा रणबीर सिंह की बोट में ठहरे। इनमे निकटता बढ़नी ही थी, राजी सोच रहे थे की राजकुमार राजे की मृत्यु के बाद उनके मामा उन्हें गददी पर बिठाएंगे लेकिन उनकी माँ को महारानी बना दिया गया.राजी से विवाह के बाद एलसी सोने के तार से कड़ी हुई ब्रोकेड व बनारसी साड़ियां पहनती थी .हीरे व पन्नो के जवाहरात से सज्जित रहती थी।जब वह ऑस्ट्रेलिया में एक पार्टी में गई तो वहां के समाचार पत्रो में हंगामा मच गया क्योंकि वह ७५, ००० पाउंड के हीरे पहने हुए थी। राजी उसे अपनी रोल्स रॉयस घूमने के लिए देते थे लेकिन वह सुल्तानगंज पैलेस में महल में नहीं रह सकती थी क्योंकि वहां राजी की पत्नी रहती थी। इसका प्रिय घर था बलवा, जंगल में बना एक आलीशान मकान व कलकत्ता। राजी औरतो का शौक़ीन था. एक गोरी औरत के बॉसिज़्म में नहीं रह पा रहा था. उधर उस पर अपने सचिव जे.जी. का प्रभाव था जो उसके कान भरता रहता था कि एलसी ने सिर्फ़ पैसे के लिए राजी से शादी की है। कुंठित एलसी की नज़दीकिया एक घोडो के निर्यातक से बढती जा रहे थीं। राजी ने इससे तलाक लेने की बहुत कोशिश की लेकिन कोर्ट के फैसले के कारण एक मोटी रकम प्रति माह उसे देने पर मजबूर हो गये थे लेकिन बाद कुछ महीनों ये राशि भी उन्होंने भेजना बंद कर दिया। ऑस्ट्रेलिया में एलसी के रिश्तेदार उसे अपनाने को तैयार नहीं थे। कुछ समय तक उसका कहीं पता नहीं चला। ऑस्ट्रेलिया के अखबार में अपनी रईसी व् शानदार पार्टियों के लिए सुर्ख़ियों में रहने वाली ये नृत्यांगना अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है। उसे मानसिक रोगी अस्पताल से दूसरे ऐसे ही अस्पातल में पहुंचाया जा रहा था। बिचारी को ये भी नहीं पता लगा कि सन १९५८ में गया में राजी की मृत्यु हो गई है व उसके एक महीने बाद उनका पिछलग्गू सचिव जी.जे. भी मर गया है.

सन १८३८ में जन्म लेने वाले लाहौर के महाराजा दिलीप सिंह रणजीत सिंह जी के चौथे पुत्र थे। ११ वर्ष की आयु में उन्हें लन्दन पढ़ने भेज दिया था। वो आरम्भ से एक गोरी युवती से विवाह करना चाहते थे। क्वीन विक्टोरिया उन्हें अपनी मुंह बोली बेटी से ब्याहना चाहती थी लेकिन वो इन्हें पसंद नहीं थी। जब वे सन १८६४ में अपनी माँ के मरने के बाद अपने राज्य लौटे तो एक स्कूल के समारोह में उन्हें जर्मन मूल की बॉम्बा मुलर बेहद पसंद आ गई। पहली मुलाक़ात में इन्होंने विवाह का प्रस्ताव रख दिया व् एक अंगूठी क़ान के बुँदे उपहार में दे दिए। बॉम्बा ने एक रुमाळ इन्हें शर्माते हुए दे दिया। फिर शुरू हो गई बॉम्बे की संगीत व अंग्रेज़ी की पढ़ाई। इस विवाह के पक्ष में राज परिवार था और ना बॉम्बा के पिता इसलिए इन दोनो ने मेनचेस्टर जाकर शादी कर ली व ठाठ से लन्दन व स्कॉटलैंड में हनीमून मनाया। बाद के वर्षों में ये सात बच्चों की माँ बन गई, पहला बच्चा तो पैदा होते ही मर गया लेकिन वह अपने पति के दूसरी औरतों के पीछे भागने से दुखी रहती थी

सन १८८४ में दिलीप सिंह ने बॉम्बा को बच्चों सहित छोड़ दिया व लन्दन में अडा गडगल्स के साथ रहने लगा। बॉम्बा को कभी पति के तरफ से पैसा मिलता या कभी नहीं। वह नशे में डूबी रहती। उसके सभी बच्चे जंगली होते जा रहे थे। जब एडन से दिलीप का दिल भर गया तो वह बॉम्बा व बच्चों को भारत ले आया। अब ये लोग भारत में रहने लायक नहीं रह गए थे इसलिए बॉम्बा लन्दन लौट आई व डॉयबिटीज़, डिप्रेशन व् किडनी के फेल होने केकारण मर गई। दिलीप पेरिस में एडन के साथ फिर रहने लगा लेकिन समझ गया था की वह पैसे के लिए भूखी है। उसने अपने आप को शराब में डुबो दिया था।ए डन रात में बदनाम अड्डो पर क्लब्स में पैसा उड़ाने जाती थी। दिलीप को जब लकवा मारा तो वह वाकई उसे छोड़ कर चल दी। लोग यहां तक कहते थे कि वह इंग्लिश जासूस है। सन १८९३ में दिलीप चल बसे पेरिस में ही।

पटियाला के राजा राजेन्द्र सिंह [नेट पर उपलब्ध उनके बेटे, भूपेंद्र सिंह द्वारा]ने हिमाचल प्रदेश में चैल में पहाड़ कटवा कर विश्व का सबसे ऊँचा क्रिकेट का पिच बनवाया था। उनके तीन अस्तबल थे जहाँ घोड़ों की देख रेख के लिए आइरिश मूल का ब्रायन्स सुपरिटेंडेंट था। वो अपनी पत्नी व तीन नों के साथ पटियाला आया था। रंगीन मिजाज़ राजेन्द्र सिंह ने पहले उसकी पत्नी को चोरी छिपे शीशे में उतारा। वे वैसे भी निम्न वर्ग के योरोपियन्स के साथ के शौक़ीन थे। धीरे धीरे वे उसकी दोनों नों से अय्याशी करने में सफल हो गए। एक बहिन गर्भवती भी हो गई लेकिन अपने आप तुरंत ही गर्भपात भी हो गया। अब राजेन्द्र सिंह की नज़र फ़्लोरी पर पडी। वह भी गर्भवती हो गई लेकिन ब्रायन्स नशे में अपना आपा खो बैठा और राजा को धमकी दी कि ब्रिटिश सरकार से शिकायत करेगा। राजा दवाब में आ गया। इसका मुँह बंद रखने के लिए उन्होंने फ़्लोरी से गुपचुप शादी कर ली क्योंकि राज परिवार तो साथ देने से रहा। उधर फ़्लोरी की बेहद बदनामी हुई कि उसने अपनी ही नों का शोषण करने वाले से विवाह कर लिया। उसको सिख धर्म अपनाना पड़ा.बाद में वह सिखों के पारंपरिक पोशाक व् भारी भरकम गहने पहनने लगी। उसका नया नाम हो गया था हरनाम कौर। राजा ने उसे अलग महल में रख दिया था लेकिन सामाजिक उत्सवों मे उसे बुलाया ही नहीं जाता था। यदि वह जाती तो ब्रिटिश भी उसका तिरस्कार करते थे, वह एक कोने में बैठी रहती थी।

वह महल में बंद अकेलेपन का शिकार हो रही थी क्योंकि राजा तो औरत, शराब व घोड़ों में व्यस्त रहते थे. वह गर्भवती हुई तो इन्ही दवाब से पांच महीने के बच्चे को जन्म दिया। इसका स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए दूध पिलाने के लिए एक दाई माँ को बुलवाया जाता था। यह बच्चा जल्दी ही मर गया। तब तक फ़्लोरी समझ गई थी की राजा की पटरानी के आदेश पर इस बच्चे की ह्त्या की गई। वह दाई रोज़ अपनी निपल्स पर अफ़ीम लगाकर दूध पिलाती थी .फ़्लोरी इस बात को कैसे साबित करती ?सस्ते दलालों व खुशामदी लोगों से घिरे राजा को वह बचा नहीं पा रही थी इसलिए बच्चे के दो वर्ष बाद वह भी मर गई।

जींद के महाराजा रणबीर सिंह ने ऑलिव मोनोलेसकस ने शादी की थी, जो ऐंग्लो रोमेनियन थी। उसके बेटे की भी ऐसे ही मृत्यु हुई जैसे की फ़्लोरी के। बाद में उसने एक बेटी को जन्म दिया तब तक रणबीर सिंह से उसके सबन्ध खराब हो चुके थे क्योंकि दो दो सिख रानियों के होते हुए भी उन्होंने एक मुस्लिम रखैल रख ली थी। ओलिव महाराज से तलाक व हर्जाना लेकर लन्दन में के सुन्दर घर में अपने अंतिम दिन गुज़ारती रही।

स्पेन की अनिता देलगडो हो या चेक माँ की यूरोपियन मूल की बेटी युगीन ग्रोसूपोवा हो इनकी कहानी भी वही तयशुदा कहानी है। मज़े की बात ये है की कपूरथला के महाराजा जगजीत सिंह ने एक से सन १९०८ में विवाह किया दूसरी को पांच वर्ष तक कपूरथला में रखैल रखकर सन १९४२ में विवाह किया। महाराजा का जन्म हुआ था सन १८७२।

अनिता अपनी बहिन के साथ मेड्रिड के थिएटर में डांस करती थीं। सन १९०६ में जगजीत सिंह जब स्पेन के किंग की शादी में सम्मिलित होने गए तो इनका डांस देखकर इतने मुग्ध हो गए की उन्होंने इनसे मिलने का प्रस्ताव रक्खा व सन्देश भिजवाया कि वे एक मोटी रकम भी देंगे। अनिता ने दो बार भेजे सन्देश ठुकरा दिए। जब महाराजा ने शादी करने का प्रस्ताव भिजवाया तो वह `न `ना कर सकी।महाराजा ने एक हज़ार पाउंड्स इस परिवार को दिए थे। तब वह ये नहीं समझ पाई कि ये शादी एक महाराज के किसी औरत पर दिल आ जाने का जूनून है जिसे वह हासिल करके ही छोड़ता है। अनिता की गलती भी नहीं थी। वह एक साधारण परिवार की बेटी थी व महाराजा सारे विश्व में सबसे अमीर आदमी या`एमेरल्ड किंग `माने जाते थे। इनके १२ महल थे, जिनमे इनकी देशी, यूरोपियन रानियां व रखैलें रहती थी। इनका पहला विवाह १४ वर्ष की उम्र में हो चुका था। अनिता को राज परंपरा के अनुसार व् अंग्रेज़ी में शिक्षित करवाकर इन्होंने विवाह किया था व एक महल उसे भी सौगात में दिया था। जब ये ५५ के थे तो केन्स में एक फैशन शो में जर्मेन पेलिग्रोनो को देखकर उसे अपनी मिस्ट्रेस बना लिया। अपने रंगीन मिजाज़ के कारण एक मोरक्कन लड़की के लिए इन्होंने एक मस्जिद बनवाई थी। राज परिवार में अनिता का कोई सम्मान नहीं था। सब उसे `महाराजा की स्पेनिश पत्नी `भर समझते थे। यहाँ तक की एक पार्टी में अँगरेज़ गवर्नर पत्नी ने उस मिलने केलिए इनकार कर दिया। वह थोड़ी खुश तब हुई जब उसे एक बेटा, अजीत सिंह हो गया।

उन दिनों अंग्रेज़ शिमला में अपनी गर्मियां बिताते थे। राजे महाराजे मसूरी में। यहाँ जगजीत सिंह ने अपने सचिव जर्मनी दास को भी अपने साथ रहने बुलाया था। दास के अनुसार यहीँ पर अनिता महाराज के फ्रेंच मिस्ट्रेस से मिली थी। अनिता के कुछ वर्ष ही इस स्वर्गिक आनन्द में गुज़रे। दूसरी बार गर्भवती होते ही बीमार रहने लगी इसलिए गर्भपात के बाद उसे स्वास्थ्य लाभ के लिए मसूरी रहना पड़ा। उधर महाराज ने एक और मिस्ट्रेस रख ली। जब महाराजा को पता वह मुंह अँधेरे एक जॉकी के साथ घुड़सवारी सीखती है तो वह आगबबूला हो गए और उन्होंने अलग रहने का फैसला कर लिया। अनीता अपने बेटे अजीत के साथ मेड्रिड में ऐशोआराम से रहने लगी। कहते ये भी हैं किसी महारानी के बेटे से मंजीत सिंह से अनिता केसम्बन्ध हो गए थे। वे दोनों भागकर पेरिस चले गए लेकिन लोकलाज के भय से महाराजा ने बेटे से संधि कर ली।

युगीन भी कम खूबसूरत नहीं थी। जब वो प्राग के एक थिएटर में अभिनय कर रही थी, तब उन पर महाराजा मर मिटे थे।उनकी माँ निना व दादी पोरा के साथ उन्हें कपूरथला ले आये थे। मज़े की बात थी हर रानी व रखैल की तरह वह भी आने ऊपर हीरे मोती गहनों की बौछार व ज़री के कपड़ों की लक दक में डूब गई थी। बड़े आराम से महाराजा की मिस्ट्रेस के रूप में पांच वर्ष तक रही। अपनी माँ व दादी के दवाब में सन १९४२ में वह महाराजा को शादी के लिए तैयार कर पाई थी। सिख रीति से शादी के बाद उसका नाम `तारा `हो गया था। उसे `रानी व्`महारानी `तो कहा जाने लगा लेकिन वह `हर हाइनेस `का दर्ज़ा कभी प्राप्त नहीं कर पाई।ब्रिटिश उसे अपने किसी समारोह में शामिल नहीं होने देते थे। महाराजा की रंगीनिया चल ही रही थी। मसूरी के युगीन के महल में पहले उसकी दादी, फिर माँ संदेहास्पद परिस्थितियों में मर गई। उसे विशवास था की उन्हें ज़हर दिया गया है लेकिन किसी ज़नाने की किसी महारानी के आदेश पर या खुद जगजीत सिंह के आदेश पर ?---------वह तय नहीं कर पा रही थी। उसके मन में अपनी ह्त्या का डर बैठ गया था क्योंकि वह मोटा हर्ज़ाना लेकर उनसे तलाक लेना चाहती थी। महाराजा तब अपने बेटे की विदेशी प्रेमिका स्टेला को मोटी राशि देकर उससे अपने बेटे का पीछा छुड़ा पाए थे। खुद एक भारतीय कम उम्र की लड़की के प्रेम मे डूबे हुए थे.युगीन ने भी उन्ही की सेना के अफसर मेजर वाई . पी. सिंह से इश्क चालू कर दिया। वह भारत से भाग जाना चाहती थी लेकिन ब्रिटिश उसे अनुमति नहीं दे रहे थे। एक दिन ताव में आकर तारा ने अपने प्रेमी के साथ टेक्सी पकड़ी व देल्ही की कुतुबमीनार पर चढ़ गई और उसने पांचवी मंज़िल से छलाँग लगा दी लेकिन तीसरी मंज़िल की रेलिंग पर अटककर मर गई। कुछ लोग कहते हैं कि उसके अपने प्रेमी ने भी उसे बांहो में लिए साथ में आत्महत्या की थी। महाराजा को दुःख तो होना ही था। युगीन उर्फ़ तारा देल्ही के किसी चर्च में दफ़ना दी गई।

स्टेला को एक लन्दन के थिएटर में महाराजा जगजीत सिंह के बेटे परमजीत सिंह ने अपनी पत्नी बृंदा के साथ डांस करते देखा उस फ़िदा होकर एक फूलों की बास्केट भी भिजवा दी थी। उसे वे कपूरथला अपनी मिस्ट्रेस बनाकर ले आये। महाराजा जगजीत सिंह ने उसे महल में रहने की अनुमति नहीं दी तो उसे एक कॉटेज में रख दिया। स्टेला को वहां हर नौकर जासूस लगता था व हरेक नौकरानी दुश्मन। अपने बाग़ में काम करने वाले बहत्तर मालियो को वह बहत्तर दुश्मन कहती थी। अक्सर वह अपना समय मसूरी, शिमला व् डेल्ही में बिताती थी लेकिन ब्रोकेड व् बनारसी सादिया व भारी भरकम गहने वह ज़रूर पहनती थी। ब्रिटिश प्रेस हमेशा उसे `टिक्का रानी `या सबसे खूबसूरत राजकुमारी `कहती थी। ब्रिंदा से कोई संतान उत्पन्न ना होने से महाराजा ने परमजीत की शादी एक राजपूत लड़की से करवा दी। एक रात बमुश्किल उसके साथ बिताकर परमजीत स्टेला के पास भाग आया। १५ वर्ष बाद सं १९३७ में स्टैला और परमजीत ने शादी कर ली। सन १९५५ में जब वह बीमार पड़ा तो स्टेला ने उसके बहुत देख भाल की लेकिन उसके मरते ही बृंदा ने उसे महल से बाहर करवा दिया.

कपूरथला के लोग भी स्टेला को नापसंद करते थे लेकिन वह कानूनी पत्नी थी इसलिए कुछ जायदाद लेने में सफल हो गई। वह कभी इंग्लैंड जाती रहती थी। शिमला में किसी होटल के पच्चीस वर्षीय श्री सेठी से उसकी दोस्ती हो गई, जब वह साठ वर्ष की थी। ज़ाहिर है सेठी उससे रूपये खींचता रहता था. स्टेला ने अपने दुःख को दारू में डुबो दिया था। लोग यहाँ तक कहने लगे थे कि वह शराब की बोतल के लिए कुछ भी सकती है. जनवरी १९८४ में स्टेला नशे की हालत में गिरकर कुछ दिनों तक बेहोश रही .बाद में पुलिस ने दरवाज़ा तोड़कर उसे बाहर निकाल कर देल्ही के एक अस्पताल में दाख़िल किया। २३ फरवरी को उसके मरने के बाद देल्ही के पृथ्वी राज रोड के कब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया। कभी हीरे मोतियों के गहनों से लदी रहने वाली कपूरथला की खूबसूरत व कलाकार रानी को दफ़नाने के लिए सिर्फ़ वहां थे सेठी व ब्रिटिश हाई कमीशन का एक ऑफिसर। लन्दन की वह शोख नृत्यांगना भारत की ज़मीन में लावारिस आज भी सो रही है

नवाब रामपुर, जो शिया मुस्लिम थे, के भाई नासिर अली खान एक लंबे व् सांवले रंग के पठान थे। वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी में अपने सहपाठियो का दिल जीत चुके थे। एक समृद्ध ब्रिटिश के बेटी इथेल हाडकिन्स से उनकी सगाई इसलिए टूट गई कि उसके पिता ने अपनी जायदाद में से बेटी को बेदखल करने का फैसला ले लिया था। इस सगाई के टूटने के दो वर्ष बाद उन्होंने लन्दन के एक थिएटर में डॉली पार्नेल को म्यूज़िकल कॉमेडी `मैं डार्लिंग ` में पहली बार अभिनय करते देखा था। बाद में उससे रामपुर परिवार के लाख विरोध के बावजूद विवाह किया लेकिन डॉली के सपने जल्दी ही चकनाचूर हो गए क्योंकि नवाब के मरते ही उनके बेटे ने इस लोगों को आर्थिक सहायता देनी बंद कर दी। इन दोनों ने अपनी बेटी के साथ फ़्रांस में गरीबी में ज़िंदगी गुज़ारी थी।

स्कॉटलेंड की डॉली की तरह मॉरोग मौरी भी खुशनसीब थी जिन्हें अपने प्रियतम का साथ आजीवन मिला। इनकी आत्मकथा सन १९१६ में प्रकाशित हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद मौरी ने निर्णय लिया की वह समाजसेवा करेंगी। कोह के किले के सैयद अब्दुल्ला खान से वह किसी विश्विद्द्यालय मे मिली थी। खान का पठान परिवार इनके विवाह के बिलकुल विरुद्ध था तब मॉरोग ने मुस्लिम धर्म अपना लिया। एक वर्ष बाद उनके एक बेटी का जन्म हुआ तब खान के पिता ने चीन, तुर्किस्तान बलूचिस्तान व अफगानिस्तान से घिरी ८०० मील की कॉरीडोर दे दी थी।

वहां रहने वाले पठानों की पत्नियों ने उनकी शादी का जश्न फिर से मनाया, मॉरोग को दूध व गुलाब की पत्तियाँ मिले पानी से निहलाया व बालों में मेंहदी लगाकर, चन्दन का तेल लगाया। बड़ी उम्र की स्त्रियों ने उसके हाथों व पैरों पर मालिश की। उसके सारे शरीर पर एक पत्थर मलकर उसे फिर पानी में मिले दूध जैसे पदार्थ व् गुलाबजल से निहलाकर राजसी वस्त्र पहनाकर सोने केधागे से कड़े स्लीपर्स पहनाये गए। इसके बाद हुई संगीत से भरी ज़ोर की दावत।एक बार इनके किले पर आक्रमण हुआ तो मॉरोग ने एक सफ़ेद गाउन पहना व घोड़े पर चढ़कर आक्रमणकारियो के दिल में किसी दैवीशक्ति का डर बिठाकर उसे विफल बना दिया। सैयद उसे अपनी `बुलबुल `कहते थे। अपने रोमांचक यात्रा में वह पास की साँपों की घाटी में जा निकली तो उसे एक भयानक वृद्ध ने अपने टूटे फूटे किले में साँपों के साथ कैद कर लिया व कहा जब तक वह उससे शादी नहीं करेगी तब तक वह उसे छोड़ेगा नहीं। मॉरोग की किस्मत व हिम्मत साथ थी। वह कपडे की रस्सी बनाकर खिड़की के रास्ते भाग निकली थी। वह आजीवन अपने पति के साथ राजा महाराजओं की शाही मेहमाननवाज़ी का सुख भोगती रही।

इंदौर के तुको जी राव होलकर शिवाजी राव होलकर के बेटे तुको जी राव होलकर इनसे अच्छे प्रशासक साबित हो रहे थे. एक बार तुको जी राव की मुलाक़ात बम्बई मे एक मुस्लिम नाचने वाली मुमताज़ बेगम से हुई। इनका नृत्य देखकर वे इन पर आसक्त हो गए और उनकी माँ वज़ीर बेगम के साथ इन्हें इंदौर ले आये व इनका नाम कामा बाई साहेबा रख दिया गया। अपने बेटी की स्थिति महल में मज़बूत करने के इरादे से वज़ीर बेगम तुकोजी राव पर शादी का दवाब डालने लगी लेकिन ये संभव ही नहीं था। दो वर्ष बाद जब कामा बाई के एक लड़की पैदा हुई, दाई माँ अनुसार वह मरी हुई पैदा हुई थी। वज़ीर बेगम समझ गई की यहां ना वे न उसके बेटी सुरक्षित है। इसलिए वे वापिस बम्बई आगई व उन्होंने अमीर व्यवसायी अब्दुल कादिर से शादी कर ली । एक बार बावला व मुमताज़ मालाबार हिल्स पर कर में घूम रहे थे तो चार पांच लोगों ने उनका एक्सीडेंट कर दिया व् बावला को गोली मार दी। पुलिस की छानबीन से पता लगा कि ये सब तुको आदमी थे। इस स्केंडल के चर्चे देश व विदेश में बहुत हुए। इन पांचो को फांसी लग गई व तुकोजी से सरकार ने महाराजा की पदवी छीन ली। मुमताज़ बेगम बावला से हुई अपनी बेटी को लेकर अपना भाग्य आजमाने हॉलीवुड चली गई।

भाग्य से नैंसी मिलर, जो अमेरिका में एक सोने की खदान के मालिक की बेटी थीं, की मुलाक़ात स्विट्ज़रलैण्ड के एक केसिनो में तुको जी से हुई। तुको जी को इनके परिवार वालो ने पहचान लिया था कि ये वही स्केंडल वाले महाराजा हैं लेकिन बेटी की मर्ज़ी जानकार वे चुप हो गए। ये लोग पेरिस व अमेरिका घूमते हुए इंदौर पहुंचे। इनकी दोनों रानियों के होश उड़ गए जब उन्हें पता लगा कि राजा इनसे शादी करने वाले है। सारा राजपरिवार इस शादी के विरुद्ध खड़ा हो गया। तब तुको जी ने इन्हें हिन्दू धर्म दिलवाया व श्री शंकराचार्य ने इनका नाम रक्खा शर्मिष्ठा देवी। सं १९२८ में होने वाली इस शादी हज़ारो लोग शामिल हुए। नेंसी खुश थी क्योंकि उसके पति की आय डेनमार्क, बलगारिया व नॉर्वे के राजाओ की सम्मिलित आय से भी अधिक थी।

नेंसी एक उदाहरण बनी कि भारत के राजाओ से सिर्फ़ निम्न वर्ग की विदेशी औरते ही विवाह करती हैं। किस्मत से उसने यहाँ सम्मान भी पाया। वह खुद को पिकनिक, पार्टीज़ व् मनोरंजन में व्यस्त रखती थी। महल से बाहर हमेशा परदे वाली कर में निकलती थी। बस तुको जी के पुत्र की नशे की लत राज्य के लिए समस्या थी। तुको जी के अंतिम दिनों में कूल्हे के हड्डी टूट गई थी। तब नेंसी ने उनकी बहुत देख रेख की। उन्हें प्यानो बजाकर सुनाती थी। बड़ी महारानी की बेटी की उन्होंने टीबी होने पर बहुत सेवा की। उस बीस साल की लड़की ने इनकी बांहो में दम तोड़ा। इनकी एक पोती एयर इंडिया क्रेश में मारी गई थी। तुको जी की मृत्यु के बाद सबने समझा कि वे वापिस अमेरिका लौट जाएंगी लेकिन उनका जवाब था, ``मैं क्यों अपने पति का घर छोड़कर जाउंगी ? ``अक्टूबर १९९२ में कॉरोली यंगर, इस पुस्तक की लेखिका खासतौर से शर्मिष्ठा देवी से मिलने इंदौर पहुँची थी क्योंकि अब तक वे अकेली विदेशी महारानी जीवित थीं। इस भली महिला से मिलकर वे प्रभावित भी बहुत हुई लेकिन दुर्भाग्य से पांच वर्ष बाद समाचार पत्र में ये समाचार पड़कर चकित रह गई, ``नेंसी मिलर उर्फ़ शर्मिष्ठा देवी को उनकी पुत्री शारदा राजे ने जायदाद के लालच में ज़हर देकर मार डाला।``

जेओरा के राजकुमार प्रिंस नासिर अली खान जब लन्दन के सिरेन्सिस्टर के कृषि विद्द्यालय में पड़ने गए तो इनकी मुलाक़ात एक दुकान मे काम करने वाली मोली एलसिप से हुई। वह उनपर इतने आसक्त थे व उसके साथ घूमे फिरे कि परीक्षा में फेल भी हो गए। इन लोगों ने चुपचाप सन १९३० में शादी कर ली. जब मोली गर्भवती हुई तो इन लोगों ने उसके माता पिता को शादी की बात बता दी। बेटी मार्गरेट के पैदा होते ही मीडिया मे हंगामा मच गया। नासिर ने प्रेस को भावुक होते हुए बताया था, ``मैं अपने जीवन का रथ दो चीज़ों से चलाना चाहता हूँ एक तो `प्रेम` व् दूसरा `धर्म `.``तब मोली कहाँ समझ पाई थी कि भारत के सामन्तों के `प्रेम `का अर्थ होता है, बहुत सी औरतो से खुले आम प्रेम। मोली भारत में बिना सिनेमा, थिएटर व् सामूहिक नृत्य के बिना रहने की कल्पना अभी नहीं कर सकती थी। नवाब साहब को ये शादी नामंज़ूर थी लेकिन जब नासिर ने हठ किया कि वह बिना मोली के लौटेगा नहीं तो उन्होंने जेओरा में उन दोनों को आने की इजाज़त दे दी। उन दिनों विदेशी रानियों को या उनके बच्चों को ज़हर देकर मारने की बात की इतनी आम थी कि वायसराय की पत्नी लेडी विलंगटन ने नवाब को आगाह कर दिया था, ``यदि मोली व उसकी बहिन को कुछ हुआ तोआपको मैं देख लूंगी। ``

नवाब साहब की सल्तनत के विषय में एक अंग्रेज़ ने लिखा भी था कि वे अपने कुत्तो व फिशिंग के शौक में मगन रहते थे। इनके कुत्ते एयर कंडीशन में रहते थे जबकि आम जनता अधपेट सोती थी। नासिर सिपाहियों से कमसिन लड़कियों को उठवा लेता था बाप के हरम में भी घुस जाता था। उधर मोली नासिर की अय्याशीयो से घबरा कर अपने दोनों बेटो के साथ इंग्लैंड लौट जाना चाहती थे। नासिर को नवाब साहब ने अपनी स्टेट से निकाल दिया क्योंकि उसने अपने तलाकशुदा भाई उस्मान की पत्नी से निकाह कर लिया व तलाक भी तीन महीने में ले लिया। वह अपनी एक सौतेली माँ छोटा बी से निकाह कर सन १९४३ में अजमेर भाग गया। तब नवाब साहब ने मोली से उससे वायदा किया कि वे इंग्लैंड में उसके गुज़र बसर की राशि भेजते रहेंगे व उन्होंने ये वायदा भी निबाहा।

इन्दौर के महाराजा यशवंत राव होलकर ने तो दो विदेशी स्त्रियों से शादी की थी -एक मार्गरेट लौलेर व यूफ़ेमिया क्रेन। यशवंत राव नशीली दवाओं व दारू केकारण बीमार हो सिर्फ़ ३८ किलो के रह गए थे जब उनकी देखभाल केलिए नर्स मार्गरेट नियुक्त की गई। वैसे भी उन दिनों इंदौर के आस पास अफीम की खेती होती थी। इसलिए अफीम पाना कोई बड़ी बात नहीं थी। सं १९३७ में यशवंत राव की पत्नी २४ वर्ष की आयु में ही मर गई व इधर मार्गरेट ने अपने पति से तलाक ले लिया। दोनों ने मेक्सिको जाकर शादी कर ली व इंदौर लौटकर घोषणा कर दी कि मार्गरेट इंदौर की नई महारानी हैं। तीन महीनों में वह महाराज के व्यवहार से ऊब गई क्योंकि वे उसमे अपनी माँ देखकर बच्चे जैसा व्यवहार करते थे। महाराज ने उसकी इच्छा अनुसार केलीफोर्निया में एक जेल जैसा महल बनवा दिया व अपनी बेटी उषा को उसके साथ रहने भेज दिया। वे बार बार उनसे मिलने जाते थे लेकिन जबसे उनकी दिलचस्पी यूफ़ेमिया क्रेन, जिसे दोस्त `फ़्रे `पुकारते थे, में बढ़ गई तबसे उनका जाना कम होता गया। अपनी बेटी को उन्होंने वापिस बुलावा लिया। राजा उसे `एक झूठी छिपकली `कहकर बदनाम करते रहे।वह उन्हें हद दर्ज़े का क्रूर कहकर बुलाती रह गई व इलज़ाम लगाती रही, ``उन्होंने उसका जीवन एक बोझ बना दिया है।` किसी तरह ये तलाक हो गया। बस तभी से मार्गरेट का कोई रिकॉर्ड ब्रिटिश के पास नहीं मिलता।

उधर फ़्रे ने अपने पति से तलाक लेकर महाराज से वाशिन्गटन में शादी कर ली। वे हनीमून के लिए अपनी जिस कार मे जा रहे थे उसका एक्सीडेनट हो गया। सारी रात उन्हें पिचकी हुई कार में बितानी पडी। वहां की प्रेस ने उनका इस कार को `हनीमून कॉटेज `कहकर बहुत मज़ाक उड़ाया। फ़्रे को भारत में ना तो इंदौर में ना ब्रिटिश समाज में इनको आदर मिलता था। ये दूसरी विदेशी महिला भी इनकी नशीली आदतें नहीं सुधार पाई इसलिए सामंतशाही के ग्लेमर से मोहभंग होते ही अपने बेटे रिचर्ड को लेकर केलीफोर्निया चली गई। सन १९६० में इसने बाकायदा तलाक लिया। रिचर्ड को महाराज की विरासत तो नहीं मिलने थी। उसने सेली नाम की लड़की से विवाह किया व् बंबई में रहने लगा। बाद में उन्होंने महेश्वर नदी के तट पर एक बुनकर केंद्र खोलकर महिला सहकारी मंडल बनाकर महेश्वरी साड़ियों को एक नया आयाम दिया। उषा ने नवाब तेली खां से विवाह किया। फ़्रे फिर भारत नहीं लौटी।

ऑस्ट्रेलिया मूल की जॉन फॉल्कनर चांदी की चम्मच के साथ पैदा हुई थी जिसकी मुलाक़ात जर्मनी में पालनपुर के नवाब टेली मुहम्मद खान, जिनका जन्म सन १८९२ हुआ था, से हुई थी। नवाब साहब पत्नी अपने ख़राब स्वास्थ्य व पर्दा के कारण विदेशों में घूमने नहीं जा सकती थी इसलिए नवाब साहब ने मिस्त्र के बादशाह से उनके लिए दूसरी बीवी खोजने के लिए कहा था। इन दोनों ने अपने रोमैंस को गोपनीय रक्खा जब तक जॉन २१ वर्ष की नहीं हो गई। ये बात एक बम की तरह मेलबोर्न के समाज में विसफ़ोटक थी कि २१ वर्ष की जॉन अपने से तीस वर्ष बड़े विवाहित दो बच्चों के बाप नवाब से विवाह करना चाहती हैं, जो अक्सर बीमार भी रहते हैं । ये शादी पालनपुर में ज़ोहरा महल में सादे तरीके से हो गई। इनका नाम रख दिया बेगम जहाँआरा। इनके सामने वही समस्या थी कि ब्रिटिश सरकार जॉन व उसके बच्चों को कोई मान्यता नहीं देना चाहती थी। नवाब की पत्नी रुष्ट थीं ही। इसलिए पालनपुर किलो मीटर दूर माउंट अब रोड पर जॉन के लिए महल बनवा दिया था।जॉन नवाब के साथ खूब देश विदेश घूमती थीं राजे माहाराजे, यहाँ तक कि माउंट बेटन तक इनके मित्र .

जॉन की दखल राज काज में थी। ये दोनों जब केन्स में थे तो इन्हें सूचना मिली के ब्रिटिश सरकार ने आज़ादी के दो दिन पहले जॉन को पालनपुर की बेगम की तरह स्वीकार कर लिया है। ये लोग छ; महीने केन्स में व् छ; महीने काहिरा रहते थे। बीच बीच में पालनपुर आते रहते थे। सं १९५४ में नवाब की बेगम मर गई थी। सं १९५७ में नवाब साहब भी अल्ल्ला को प्यारे हो गए। उनके मरते ही उनका बेटा इकबाल के हाथों में सारा नियंत्रण आ गया। वह तीन वर्ष ही अपनी बेटी शमीम को लेकर भारत में रही व इकबाल के पैसे केलिए रहमोकरम से बहुत अपमानित होती रही। बाद में अपनी माँ की राय से ऑस्ट्रेलिया वापिस चली गई। शमीम इंग्लैंड पड़ने भेज दी गई। शमीम एक गंभीर लड़की थी जो डॉक्टर बनकर पालनपुर में सेवा करना चाहती थी लेकिन राजनीती के कारण ऐसा हो नहीं पाया। अंतिम सूचना है की उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था लेकिन वह फिर कहाँ गायब हो गई कुछ पता ही नहीं चला। इकबाल भी उसे जायदाद के पेपर्स पर साइन के लिए खोजता रह गया। उधर जॉन ने भी ऑस्ट्रेलिया की मौली फिंक की तरह बेमन विवाह किया। अजीब इत्तेफाक था। इन दोनों की खूबसूरती की व ग्लेमर की एक साथ वहां चर्चा की जाती थी। जॉन फिर भी चैन से जी नहीं पाई क्योंकि उनका महबूब अपनी बेगम की बगल में भारत में सो रहा था। उन्होंने शराब में अपने को डुबो दिया व वह अस्सी बरस की होकर अकेली मरी.

बहावलपुर [अब पाकिस्तान में है ] के नवाबज़ादा मुहम्मद मुबारक अब्बासी ने वोनी मार्टिन, एक ऑस्ट्रेलियलन लड़की सी विवाह किया था। वह भी इनके राज्य में चिंतित रहती थी क्योंकि उसकी सास भी संदेहास्पद परिस्थितियों में मरी थी। उसके शोहर और औरतो में उलझते रहे व बीमारी से चल बसे तो किस्मत ने उसे पहले ऑस्ट्रेलिया व्बाद में पागलखाने की दीवारों में कैद कर दिया। लन्दन की अन्नाबेला पारकर ने उदयपुर के महाराज भागवत सिंह के साथ १८ वर्ष सुख से गुज़ारे, वे कविता लिखती थीं नृत्य सीखती थी। वे भारत की जानवरो को संरक्षण देने वाली रॉयल सोसायटी की निदेशक थी इसलिए महाराज के गुज़र जाने के बाद ना पागल हुई ना अवसाद में घिरी। जब ये पुस्तक प्रकाशित हुई थी तब तक वे अपने दूसरे पति के साथ इस सोसायटीज़ का काम लन्दन से ही कर रही थी।

हैदराबाद के निज़ाम मुकर्रम जाह का जन्म पेरिस में सन १९३३ में हुआ था। इन्होंने इतिहास केम्ब्रिज यूनीवर्सिटी में पढ़ाई की व टर्किश वाली लड़की से शादी कर ली थी। जब हैदराबाद के सातवें निज़ाम उस्मान अली खान मरे तो उन्होंने जाह को अपना वारिस घोषित कर दिया। जान के नाम अपार संपत्ति हो गई लेकिन विदेशो में ये पले थे इन्हें कैसे भारत का जीवन रास आता इसलिए ये ऑट्रेलिया वापिस आया। गए। एक गाँव में इन्होंने शीप फार्म खोल लिया। इनकी पत्नी को ना भारत का, न यहां का जीवन रास आ इसलिए वह इन्हें छोड़ गई। ये अकेले चार वर्ष तक रहे। फिर इनकी मुलाक़ात हैलन से हुई। सन १९७९ में इन्होंने शादी कर ली व हेलन का नाम आयशा रख लिया गया। तब वह आठ माह की गर्भवती थी। जाह उसे लेकर पहले खूब घूमे फिर वापिस आ गए। ये लोग बंजारा हिल्स के महल में रहने लगे। यहां के विशाल महलों में मुस्लिम बीवी का रोल हेलेन से नहीं निबाहा जा रहा था। परदे में उसका दम घुटता था। उसने निज़ाम पर आसट्रेलिया लौटने का दवाब डाला। वे वापिस भी आये। हेलेन की मेज़ यहाँ की पार्टियों में उसके चाहने वालो से भरी रहती थी और वह अपनी मंहगे भारतीय गहनों का रौब मारती थी। सन १९८७ में वह एक आई वी पॉज़िटिव घोषित कर दी गई। जाह बीवीयां व रखैल रखने का मोह अपने पूर्वजों की तरह छोड़ नहीं सका और इस तरह एक प्रेम कहानी का मार्मिक अंत हो गया।

इस पुस्तक की सबसे बड़े कमी है कि इसमें खूबससूरत व रोचक भाषा शैली का अभाव है जबकि राजमहलो व उनके बेहद महंगे गहनों जिनके रूबी, हीरे, माणिक की चर्चा से विदेशी समाचार पत्र रंगे रहते थे की सौंदर्यमय चर्चा की जा सकती थी। इसका कारण ये भी है की कौरोली कोई पेशेवर लेखिका नही थी लेकिन उन्होंने भारतीय सामन्तशाही की तस्वीर को आइना दिखाने का बहुत बड़ा काम किया है। हम भारतीय ही कहाँ जानते थे इन प्यारी सी गोरी दुल्हिनों का दर्दनाक अंत, अपवादों को छोड़कर। इन बीस विदेशी दुल्हिनों की दास्ताँ से उस समय के सारे भारत में विदेशी दुल्हिनों की स्थिति को समझा जा सकता है। अंग्रेजों के भारत में आने से दो संस्कृतियों के पुरुषों व स्त्रियों का मिलाप हो रहा था। इन राजाओ के अलावा और भी राजे रजवाड़ों के मालिकों ने, रईसों ने, मध्यमवर्ग के लोगों ने विदेशी औरतों से सम्बन्ध बनाये होंगे। वो चाहे उनकी मिस्ट्रेस रही हों या दूसरी या तीसरी बीवी। अक्सर वे ही ठगी गई होंगी क्योंकि भारतीय नर ऑक्टोपस की तरह इधर उधर मस्ती कर अपने परिवार में अपने पैर सिकोड़ कर भोला बन जाता है।

वैसे भी कोई देश हो, जाति हो, अमीर गरीब हो या गोरों की या कालों की नस्ल हो--- लाखों में पुडुकोट्टी के राजा मार्तण्ड व मौली फिंक जैसा बेहद गहरा दोतरफ़ा प्यार का रिश्ता बनता है जिस जादुई प्यार से किसी मंदिर में मौसमी फूल भी बारह मास खिलता रहे।

जयूडी तेनज़िंग ने इसकी प्रस्तावना लिखते हुए एक तथ्य उद्घाटित किया है कि शायद ही कोई और दूसरी महिला विदेशी दुल्हनो की दुर्दशा का इतना अच्छा वर्णन कर सकती थी। उन्हें शक है कि रूथ प्रावेल झाबवाला के उपन्यास `हीट एन्ड डस्ट `की नायिका एक नवाब साहब की मिस्ट्रेस और कोई नहीं कौरोली ही है जो तमाम अमीरी के बावज़ूद जीवन की त्रासदी झेलती रही। उनकी एक बात पढ़कर हंसी आ गई की कौरोली ने गुज़रे हुए ज़माने की झलक दिखा दी, जो अब चला गया है। अजी !सब तो नहीं पर बहुत सी औरतो के दिल में झांककर देखिये। आज भी बहुत सी औरतो में उलझे अपने पति [किसी भी वर्ग के हों ]की हरकतों से अवसाद में घिरी हैं या पैरालाइज होकर व्हील चेयर पर जकड गई हैं या आत्महत्या कर रही हैं या शराब में डूब गई हैं -----। तहे दिल से वही ज़िंदा हैं जो अन्नाबेला पारकर की तरह अपने व्यवसाय में लिप्त हैं।

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[ पुस्तक--`विकेड वूमन ऑफ़ राज `

लेखिका ---कौरोली यंगर, प्रकाशक---हार्पर कॉलिंस व इण्डिया टुडे ग्रुप के सहयोग से ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल—kneeli@rediffmail.com