Chhuta hua kuchh - 10 in Hindi Love Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | छूटा हुआ कुछ - 10

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छूटा हुआ कुछ - 10

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

10.

रात हो चली थी। शुरू में गगन सर उन्हें हर रात गुडनाइट का संदेश भेजते थे। उमा जी उनकी गुडनाइट का जवाब गुडनाइट से ही देकर सोने जातीं। उनके पतिदेव अर्जेंट काम निपटाने के लिए रात में भी काफी देर तक काम में लगे रहते। लेकिन, कभी-कभी उनके पास उस तरह का काम नहीं होता था तो वे जल्दी ही सोने के लिए कमरे में आ जाते। ऐसे समय गुडनाइट संदेशों का आदान-प्रदान मुश्किल हो जाता। एकबार तो पतिदेव ने पूछ भी लिया था – “इतनी रात गए मोबाइल फोन लिये बैठी हैं, उमा जी। क्या बात है?”

उमा जी ने जवाब दिया – “कुछ नहीं, वैसे ही व्हाट्सएप पर आए संदेश पढ़कर मन बहला लेती हूं।“

“दिनभर तो तुम्हारा मोबाइल फोन तुम्हारे हाथ में रहता है, रात में तो इसे बंद कर दिया करो।“

“लो रख दिया, बस” – उमा जी ने तुरंत ही फोन बंद कर दिया था।

दूसरे दिन उन्होंने गगन सर को लिखा – “प्लीज़, गुडनाइट मैसेज़ भेजना बंद कर दें।“

“क्यों क्या हुआ? कोई खास बात?”

उमा जी ने उन्हें सबकुछ बता दिया और एक बार फिर कहा कि वे गुडनाइट मैसेज न भेजें, अगर भेजेंगे तो वे उसका जवाब नहीं दे पाएंगी।

गगन सर ने लिखा – “वो तो ठीक है उमा जी, पर जब तक आपका गुडनाइट संदेश नहीं मिल जाता, मुझे ठीक से नींद नहीं आती। करवटों के साथ-साथ विचार इधर-उधर भटकते रहते हैं फिर।“

“विचारों का क्या है, वे तो आते-जाते रहते हैं। मस्तिष्क हैं तो विचार आएंगे ही। फिर आपके तो विचार भी उच्च कोटि के होते हैं, आने दें उन्हें।“

“आजकल मेरे विचार आपके आसपास ही भटकते हैं, उमा जी। अभी मैं यही सोच रहा हूं कि आपके शुभरात्री संदेश के बिना नींद तो आएगी नहीं, बस आपके बारे में सोचता पड़ा रहूंगा।“

“देखिए, दिन में तो जैसा चल रहा है, वैसा चलता ही रहेगा। गुडमार्निंग संदेश ही पूरे दिन को खुशनुमा बना देते हैं।“

“हूं, आपने कोई ऑप्शन भी तो नहीं छोड़ा है। चलिए, सुबह-सुबह आपकी शुभकामनाएं तो मिल ही जाया करेंगी तो पूरा दिन तो खुशनुमा बीत ही जाएगा ।“

“मैं भी तो यही कह रही थी। इन संदेशों का असर रात तक होता रहे और आपको अच्छी नींद आए, ऊपर वाले से प्रार्थना करूंगी।“

“देखते हैं, आपकी प्रार्थनाओं में कितना असर है।“

“देखते रहिए, मैंने खुशियों से बात कर ली है, उन्होंने वादा किया है कि वे सुबह से रात तक आपके साथ रहेंगी।“

“क्या बात है उमा जी, आपकी बात तो खुशियां भी मानती हैं। किसमें हिम्मत है जो आपकी बात टाल दे। मैं भी आपकी बात कहां टाल पाता हूं, चलिए अब आगे से बिना आपकी गुडनाइट के ही रात की करवटों को खुशी की सलवटें समझते रहेंगे।“

“बातों में तो आपको कोई हरा नहीं सकता। वैसे मैंने कहीं पढ़ा है – सुखी जीवन का सूत्र है - कभी किसी को हराने की कोशिश मत करो।“

“उमा जी मेरा उद्देश्य आपको हराना नहीं है, बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाना है, बस।“

“आप क्या सोचते हैं, आप मुझे हरा सकते हैं” – उमा जी ने चुहल की थी।

“बिलकुल नहीं, एक आप ही हैं जिसके सामने मैंने खुद को सरेंडर कर रखा है।“

“आपकी ऐसी ही बातें मुझे भीतर तक भिगो जाती हैं, आप कितने अच्छे हैं।

“आप भी कुछ कम अच्छी नहीं हैं, उमा जी।“

उस दिन के बाद से रात में संदेशों का आदान-प्रदान बंद हो गया। शुरू में तो उमा जी को इसका अभाव खटकता रहा, फिर धीरे-धीरे उसकी आदत हो गई।

आज उमा जी को जल्दी नींद आने लगी थी। पतिदेव हमेशा की तरह कोई अर्जेंट काम निपटाने में लगे थे। वे कमरे में आईं तो उन्हें मोबाइल पर संदेश चमकता दिखाई दिया। इस समय कौन संदेश भेजेगा, गगन सर ने तो उस दिन के बाद से गुडनाइट संदेश भेजने बंद कर दिए थे। उन्होंने मैसेज बॉक्स खोला तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि संदेश गगन सर का ही था। कुछ लिखा नहीं था उन्होंने, आडियो मैसेज था। उमा जी ने उत्सुकतावश सुना, कोई गज़ल गा रहा था – ‘काश ऐसा कोई मंजर होता, मेरे कांधे पे तेरा सर होता।‘ गज़ल अच्छी थी और अर्थपूर्ण भी, पर उमा जी को नींद आ रही थी, उन्होंने दो-तीन लाइनें सुनीं और उसे बंद कर दिया।

तभी गगन सर का संदेश आ गया – “सुनी गज़ल?”

“हां, बहुत अच्छी है, इतनी मीठी और सुकूनभरी कि सुनते-सुनते नींद आने लगी।“

“किसके कांधे पर सिर रखकर नींद में डूब गईं आप?’

“हमेशा चार कांधे तैयार रहते हैं।“

“अच्छा, किसके? दो तो मैं समझ सकता हूं, बाकी दो किसके?”

“जो दे दे।“

“आप सचमुच नींद में हैं उमा जी। कल सुबह इस पर बात करते हैं।“

“हां, ठीक है।“

उमा जी जब सुबह उठीं तो उन्हें गगन सर से रात में हुई बातचीत कुछ-कुछ याद आ रही थी। फ्रेश होने के बाद उन्होंने मोबाइल उठाया, गगन सर का कोई संदेश नहीं था। कहीं वे नाराज तो नहीं हो गए, रात में उनसे नींद में पता नहीं क्या कह दिया था। उमा जी ने कुछ सोचकर संदेश की जगह एक गुलाब उन्हें भेज दिया।

“आपका गुलाब – आपकी तरह लाजवाब, उमा जी” – थोड़ी देर में गगन सर का जवाब आया था।

“चलो, आप नाराज नहीं हैं, यह जानकर अच्छा लगा।“

“नाराज तो नहीं हूं, पर बुरा अवश्य लगा। आपने वह गज़ल ध्यान से सुनी नहीं। वह एक रोमांटिक ग़ज़ल थी, आप तो चार कांधों की बात करने लगीं। आपको क्या लगता है, इसका मतलब नहीं समझता मैं?”

“आप मेरी बात तो....।“

“देखिए उमा जी, अगर आप मुझे परेशान करना चाहती थीं, तो सुनो मैं परेशान हुआ, आप खुश हो सकती हैं।“

“सच बताऊं, नाराज मत होना। मैं नींद में थी, मैंने ग़ज़ल के बोल ध्यान से सुने ही नहीं थे। आज ध्यान से पूरी ग़ज़ल सुनी तो लगा मैंने बिना सुने कुछ भी लिख दिया था। मालूम था आपको अच्छा नहीं लगा होगा, इसीलिए तो सुबह-सुबह आपको गुलाब भेजा।“

“आपके और मेरे संबंध ऐसे नहीं हैं कि आप मुझे सच ना बता सकें। नहीं सुनी तो नहीं सुनी ग़ज़ल, कभी मन होता है, कभी नहीं। पर, बिना सोचे-समझे चार कांधों की बात क्यों? मरने की बात क्यों?”

“बोला ना, मैंने यूं ही लिख दिया था, नींद में थी मैं।“

“कहते हैं, कभी ऐसी-वैसी बात मुंह से नहीं निकालनी चाहिए। आप मरने की बात करोगी तो मुझे दु:ख नहीं होगा?”

“गलती हो गई बाबा। मैंने इस बात को इस तरह से लिया ही नहीं था। आगे से कभी नहीं करूंगी ऐसा, सॉरी।“

“मैंने कहा ना, मुझे सच बता दिया करो आप। आपका कोई भी सच मुझे बुरा नहीं लगेगा।“

“और झूठ?”

“बोलती रहो, पर दिल दु:खाने वाला नहीं।“

“कहा ना, मन से कुछ नहीं कहा था मैंने। नींद की हालत में क्या लिखा मुझे इसका जरा भी होश नहीं था। झूठ बोलने की इजाजत तो आपने दे ही दी है। अब जाने भी दो ना।“

“ठीक है, वो तो गुलाब भेज कर आपने मेरा मूड पहले ही ठीक कर दिया था। पर, मैं आपको समझाना चाहता था कि दिल को दु:खी करने वाला झूठ भी परेशान कर सकता है।“

उमा जी भीतर ही भीतर गदगद हो आईं। गगन सर से उन्होंने अपने लिए बेख्याली में यूं ही चार कांधों का जिक्र कर दिया था तो कितना परेशान हो गए बेचारे। उन्हें खुद पर ही गुस्सा आने लगा, नींद में बिना सोचे-समझे क्या लिख गईं वे। कितना परेशान कर दिया उन्हें। अब वे भूल कर भी उन्हें दु:ख देने वाली बात नहीं करेंगी। अगर गगन सर ने अपने मरने की बात मुंह से निकाली होती तो शायद उन्हें भी बुरा लगता और वे भी परेशान हो जातीं।

गगन सर उनका कितना ख्याल रखते हैं और उनकी कितनी इज्जत करते हैं। उन्हें याद आया एकबार उन्होंने कहीं पढ़ा था - ‘केवल सर झुकाने से भगवान नहीं मिलते, मन का झुकना जरूरी है।‘ उन्हें यह संदेश अच्छा लगा था तो उन्होंने उसे गगन सर को भेज दिया था। गगन सर ने उत्तर में लिखा – “भगवान तो सर्वशक्तिमान है और पूरी दुनिया को चलाता है। वह तो हम सबके आसपास ही है, बस उसे महसूस करने की जरूरत है। फिर भी, हर कोई उन्हें महसूस भी नहीं कर सकता। सोचता हूं, काश कभी भगवान सचमुच मिल जाएं तो उनसे पूछ लूं क्या सोचकर बनाई ये दुनिया ।“

उमा जी ने जवाब में लिखा – “आप तो इतने अच्छे इंसान हैं, भगवान तो हर पल आपके साथ ही रहते होंगे।“

“नहीं उमा जी, ऐसी बात नहीं हैं। बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को भी भगवान नहीं मिलते। हम कहां लगते हैं। हां, आप सिफारिश कर दो तो शायद कुछ हो जाए।“

“मैं, और भगवान से सिफारिश? मेरी सिफारिश क्यों मानने लगे भगवान?”

“क्यों नहीं, आप तो देवी हैं। भगवान ने भी देवी के सामने सिर झुकाया है।“

“अच्छा, लेकिन आपकी सिफारिश क्यों करू मैं?”

“इसलिए कि देवी के सामने नतमस्तक हूं। मेरा सिर और मन दोनों ही झुके हैं आपके सामने।“

उमा जी ने निहाल होते हुए कहा – “मेरे सामने सिर और मन झुकाने से क्या हासिल होगा। भगवान के सामने झुकाइये सिर भी और मन भी, फिर किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं पड़ेगी आपको।“ यह कहकर उमा जी ने चैट बंद कर दी। वह प्रसंग याद आते ही आज भी उमा जी के चेहरे पर एक मुस्कान खेल गई।