azadi locked in house in Hindi Women Focused by Singh Srishti books and stories PDF | घर में क़ैद आज़ादी

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घर में क़ैद आज़ादी

आज स्वतंत्रता दिवस है ! आज़ादी का दिन,तो बेशक सब बाहर आज़ादी का जशन मना रहे हैं, हर जगह आज आज़ादी के ही चर्चे हो रहे हैं, भले ही घरों में अपने पक्षी या जानवरों को कैद किए हो पर लोग आज न जाने क्यों आज़ादी मुबारक आज़ादी मुबारक का शोर मचा रहें।बाहर गली में देश भक्ति से भरे गीत कहीं बज रहे थे जिसकी धीमी आवाज़ मेरे कमरे में भी आ रही थी जो मुझे स्पष्ट तो नहीं पर मतलब भर सुनाई दे रहे थे,पर मैं मजबूर थी क्या करती? जा भी नहीं सकती हूं ,कहीं भी ! इतना सब मन ही मन अफ़सोस कर ही रही थी कि सारे मुहल्ले के लोग और कुछ लड़कियां गली में आज़ादी के नारे लगाते हुए और देशभक्ति भरे माहौल को ज़िंदा करते हुए रैली ले कर जा रही थी मैं भी पूरे देशभक्ति के जोश में बाहर की तरफ़ दौड़ चली तभी अचानक पीछे से एक आवाज़ अाई " आज़ादी कहां चली तुम" मैं उसी पल वहीं रुक गई मेरे कदम मानो तेज रफ्तार में आ रही ट्रेन की चैन खीचने जैसे वहीं रुक गए।

आज़ादी कोई महज शब्द नहीं ,मै ही हूं। आज़ादी शुक्ला ! हलांकी पहले आज़ादी मिश्रा थी पर अब शुक्ला है। जो ठीक आज से एक साल पहले आज के ही दिन पूरे गांव में सबसे आगे ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हुए नारे लगा देश के बलिदान को अपना प्रेम समर्पित कर रही थी । देशभक्ति और खुले विचारों से हुई मेरी परवरिश का असर साफ दिखता था और शायद तब मैं अपने नाम की तरह ही इस दुनिया में आज़ाद थी ।


"कहीं नहीं ! वो मैं किचेन में दूध रखकर भूल गई थी न उसके लिए ही जा रही थी।" मैं हिचेक भरे स्वर में बोलकर अपने सिर पर पल्लू संभालते हुए वापस किचेन की तरफ़ चली गई।


अब तो सिर्फ़ नाम ही है मेरा आज़ादी ! अब अपनी बात अपने आप से भी कहने से डर लगता है कि कहीं कोई सुन न ले, बाहर की दुनिया तो 15 दिन या एक महीने में ही देख पाती हूं बाकी हर वक्त इन चार दीवारों में ही ख़ुद कैद देखती हूं। अब मैं आज़ाद बिल्कुल भी नहीं हूं क्योंकि मैं तो 3 महीने पहले ही न जाने किस जुर्म के तहत उम्र भर की कैदी बन गई हूं। हां कैदी कहना गलत तो नहीं होगा क्योंकि अब जिम्मेदारियों और रस्मो रिवाज की जंजीरों में जो बंध गई हूं। 3 महीने पहले ही मेरा विवाह रुद्र शुक्ला से हुआ है और मै बनारस की आज़ाद बेटी प्रयागराज की कैदी बन गई। वैसे तो मुझे इस कैद से कोई ख़ास परेशानी नहीं है पर अब पहले जैसे आज़ाद भी नहीं हूं। अब अपने से पहले अपनों को ख़्याल रखना पड़ता है, विचार अब आज़ादी के नहीं जिम्मेदारियों के आते हैं, अब एक परिवार की खुशी और उसकी जिम्मेदारी निभाने में ही सच्ची देशभक्ति नजर आती है और मैं इस तरह की देशभक्ति में भी बेहद ख़ुश हूं पर पहले की जिंदगी को याद कर आज रस्मों में ख़ुद को कैद समझती हूं।।