Ichchha - 14 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | इच्छा - 14

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इच्छा - 14

मनुष्य जीवन मे सीखने की प्रक्रिया माँ के गर्भ त्याग के समय रोने के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है , और जीवन पर्यन्त चलती रहती है | किन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश मे कागजो पर काबलियत का दर्ज होना अवसर की अनिवार्यता बन जाती है | ऐसे मे कोई यहाँ की कमजोर शिक्षा को अवसर मे परिवर्तित करे तो वास्तव मे वह धन्यभागी ही हो जाता है | इच्छा जिस इन्श्योरेन्स कम्पनी मे काम कर रही थी, यह एक ऐसी ही कम्पनी थी ,जहाँ समान्य औरतो को अवसर की उपलब्धता उनके अन्दर के जुनून को विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही थी ,हालाँकि शर्त भी यही थी | जिसने इस जाब को ही अपना मान सर्वस्व समर्पित कर सतत प्रयत्नशील रहा उसने यहाँ अपनी जड़े जमा ली | किन्तु इन्श्योरेन्स जगत के प्रतिस्पर्धात्मक युग मे बहुत कम लोग ही यहाँ टिक पाते | ऐसा नही की कम्पनी को जीवित रखने व विकास मे इन्ही कुछ लोगो का योगदान रहा है ,बल्कि उसमे उन महिलाओं का भी योगदान हैं जो बेशक कम समय के लिए , अंतत: अपनी जड़े न जमा सकी और पलायन कर गईं | इच्छा की काम के प्रति पारदर्शिता ने उसे जाब के प्रति जुनून से परे कर दिया | बिना देयता स्थिति पर अधिपत्य उसके मनोबल को निरन्तर गिराने लगा | अतः एक वर्ष बाद ही उसने इस जाब से भी रिजा़इन देना ही बेहतर समझा | आखिरकार इच्छा बच्चों को जीवन की सच्चाई और अपने जॉब की अनिवार्यता को समझाने मे सफल हो जाती है ,
वहीं, माता - पिता की सहमति भी बहुत मनाने के बाद आखीर प्राप्त कर लेती है | एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ वह परिवर्तन के एक नये पथ पर पुनः चल पड़ती हैं | इच्छा जिस शहर मे जॉब के लिए जा रही थी , वहीं उसकी बहुत पुरानी दोस्त भी रहती थी | सौभाग्य से इसी बीच इन्टरनेट के माध्यम से सोशल साइड पर उसकी दुबारा मुलाकात हुई थी | नये शहर मे उसका पहला पड़ाव वही पर था | अपने मोबाइल पर सहेली द्वारा दिये पते का सही अनुमान लगा , वह उसके घर के लिए एक आटो रिक्शा कर लेती है | स्टेशन से उतरकर लगभग तीन सौ मीटर की दूरी पर ही उसका अपार्टमेंट था , जिसके सेकेण्ड फ्लोर पर वह अपनी फैमिली के साथ रहती थी , जहाँ उसका इंतजार पहले से ही हो रहा था | डोरबेल बजाते ही तुरन्त गेट खुलता है जैसे वह गेट पर ही खड़ी हो उसी का इंतजार कर रही थी | ओय इच्छु ! कहते हुए प्रतीक्षा उसके गले लग जाती है | तभी आवज सुन उसकी सास भी बाहर आ जाती हैं | प्रतीक्षा अपनी सास से इच्छा का परिचय करवाती है | मम्मी ये इच्छा है ! यहाँ जॉब के लिए आई है !! | इच्छा, आन्टी नमस्ते! बिना कुछ बोले हल्की मुस्कुराहट के साथ प्रतिक्रिया देते हुये , वह दूसरे कमरे मे चली गई | दोनो सहेलियो का बातो का दौर शुरू हो गया, बचपन की गलयों से कुछ हँसी ठहाको के गुब्बारे लाकर वे एक दूसरे पर उछालने लगी | तभी प्रतीक्षा को आभास हुआ कि इच्छा अभी -अभी सफर से आई है, थकी होगी यह सोच वह इच्छा से बोली, इच्छु जा नहाकर आ ! मै तेरे लिए गरमागरम गोभी के पराठें लाती हूँ! तुझे बहुत पसन्द है न! | इच्छा बोली पुरू तुझे मेरी पसन्द अभी तक याद है ? प्रतीक्षा हाँ पर, तू कौन ?? तेरा चेहरा थोड़ा जाना पहचाना सा लग रहा है! | इच्छा माथे पर बल देती हुई, दो बच्चों की अम्मा बनने के बाद भी तेरा बचपना नही गया | प्रतीक्षा, अरी मेरी प्यारी! बचपन की तेरी मेरी यारी ! तू सामने है तो बचपन मे ही जाऊँगी न?? दोनो एक दूसरे को पकड़ ठहाके लगा इस प्रकार हँसती है , कि दूसरे कमरे मे बैठी प्रतीक्षा की सास के कानो तक गूँज पहुँच जाती है और वह बोल पड़ती हैं अरे! भई सहेली को चाय पानी तो करवाओं ठहाके तो लगते ही रहेंगे | दूसरे दिन इच्छा का समान्य सा इन्टरव्युव परिचयात्मक रूप मे सफलतापूर्वक हुआ | इस कंपनी मे आकर इच्छा को एक अच्छी बात यह पता चला कि यदि कोई बाहर से जॉब करने आया है तो, उसे यह कम्पनी रहने के लिए एक फ्लैट भी ऑफर करती है , जिसका किराया ,
उसी एम्पोय की सैलरी से प्रतिमाह काट लिया जाता था |एक सप्ताह किस प्रकार गुजरा इच्छा को पता ही न चला | सुबह आफिस जाने से पहले और आने के बाद पूरा घर हँसी ठहाको से भर जाता, कभी घर की कभी स्कूल की और कभी कालेज के किस्से प्रतीक्षा, इच्छा से साझा करती | दोनो ही अपने साथ के दिनो के अनछुये पहलू को खोलने लगती |
तुझे याद है इच्छा ?? हमारे साथ एक मीनू पढ़ती थी ! | नही पुरू ! मुझे याद नही ! अरी भुलक्कड़ एक बार मेरी तेरी लड़ाई उसी की वजह से हुई थी | तूने मुझसे एक हफ्ते तक बात नहीं की थी ! | हाँ ! तो क्या हुआ उसे ?? इच्छा बोली | प्रतीक्षा, हाँ तो बाद मे ! पहले यह बता तुझे याद है या नहीं ?? इच्छा अरे हाँ न!! | प्रतीक्षा किचन मे रोटियाँ बेलते हुए, नही ! तू झूठ बोल रही है ! तुझे कुछ याद नही! | इच्छा जो प्रतीक्षा के समीप ही स्टैंड से चिपक कर खड़ी हुई थी, हाँ! तू सच कह रही है , पुरू, मुझे कुछ याद नही | मीनू ,जो अपने चलने की वजह से पूरे क्लास मे मशहूर थी | मेरे मुँह से टेढ़ी शब्द क्या निकला ?? फिर तो वो जो रोई है कि, पूरी क्लास ने उसे चिढ़ाना बन्द कर दिया | और तूने मुझसे बात करनी बन्द कर दी थी | इच्छा, हाँ याद आया ! | वह पढ़ने मे बहुत तेज थी! क्लास मे भी अव्वल आती थी ,और देखने मे भी बहुत खूबसूरत लेकिन उसकी बेढब चाल ने उसके इन गुणों को ढक लिया था | बेचारी ! करती भी क्या ! उसका एक पैर जो आगे से मुड़ा था | प्रतीक्षा ,आगे कि कहानी तो तुझे नही पता होगी ?? इच्छा आश्चर्य से प्रतीक्षा की ओर देखती हुई , नही!! | प्रतीक्षा इच्छा की आँखों मे झाँकते हुए, तुझे याद है "अविरल" ! इच्छा हाँ तूने बताया था ! तेरे कालेज मे पड़ता था ,और तू उसे पसन्द करती थी | प्रतीक्षा डाइनिंग टेबल पर बैठती हुई एक लम्बी साँस के साथ हम्म!!! पर वह उस टेढ़ी को पसन्द करता था | इच्छा कौतूहलवश फिर क्या हुआ? प्रतीक्षा फिर एक लम्बी साँस भरते हुए, हम्म!! होना क्या था? नसीब का खेल ! मेरे नसीब मे अविरल न था और उनके नसीब मे वो टेढ़ी न थी | अविरल एक रिच फैमिली से सुन्दर होनहार इकलौता लड़का था | हालाँकि उसके माता पिता को मीनू की गरीबी से कोई ऐतराज न था | किन्तु वह अपने इकलौते बेटे की शादी किसी विकलांग से नही करना चाहते थे , सो उन्होने साफ - साफ मना कर दिया | अविरल ने भी आजीवन अविवाहित रहने की कसम खा ली थी | मीनू की शादी एक ऐसे लड़के से हुई , जिसकी पत्नी के देहान्त के बाद दो बच्चे पहले से ही थे | धीमी रफ़्तार से चल रही ट्रेन मे चढ़ने की कोशिश करते समय पैर फिसल जाने से अविरल के दोनो पैर कट गये | एक बार मुझे मीनू मिली थी उसके पति का भी देहान्त हो चुका है | दोनो बच्चो की जिम्मेदारी अब मीनू पर ही थी | अविरल के माता पिता ने मीनू की खोज बीन कर अविरल को उससे विवाह के लिए राजी करना चाहा, पर अविरल ने मना कर दिया | प्रतीक्षा की बात सुनती हुई इच्छा अचानक कही खो सी जाती है | प्रतीक्षा भाँपते हुई बोली, कहाँ खो गई?? इच्छा आँखो मे नमी लिए कहीं नहीं!! | प्रतीक्षा बोली तू मुझसे कितना भी झूठ बोल ले! तेरी आँखे मन का भेद दे देतीं है | सच बता तू क्या सोच रही थी?? इच्छा कुछ नही यार! बस यही की ....
"ये दुनिया दुःख का सागर है ,
जीवन सबका एक गागर है,
सुख केवल काली बादली सी,
कही बरसे, तरसे, कोई दूर कहीं |"

प्रतीक्षा , कविराज!! फिर शुरू हो गई तू ! मुझे तेरी कविताएँ समझ न आती ! तभी अचानक चेहरे के भाव बदलते हुए, लेकिन तेरा दुःख समझ मे आता है | यह कह प्रतीक्षा इच्छा को गले से लगा लेती है | इच्छा को प्रतीक्षा के घर रहते हुए कई दिन बीत गये थे , कि एक दिन आफिस से आने के बाद इच्छा ने प्रतीक्षा से कहा, पुरू !! आज मैने कम्पनी मे फ्लैट के लिए एप्लाई किया है | दो चार दिन मे मुझे मिल भी जायेगा! | प्रतीक्षा, फ्लैट के लिए एप्लाई किया? क्यों?? मै तुझे काटती हूँ क्या?? किससे पूँछकर तूने ऐसा किया? इच्छा , मुझे माफ कर पुरू!! , लेकिन यह तेरा ससुराल है , यहाँ ज्यादा दिन रहना उचित नही | प्रतीक्षा, ये तुझे किसने कहा ? और अकेली तू कैसे रहेगी ?
अकेली नही! अपनी एक कॉलीग के साथ रूम शेयर की बात की है मैने | मेरी और उसकी ज्वाईनिंग एक साथ ही हुई थी | प्रतीक्षा उदास होकर, तो मुझे छोड़कर चली जायेगी तू? इच्छा, नही पुरू! तुझे छोड़कर कहाँ जा रही हूँ , हमारा फ्लैट ऑफिस के पास ही है ,और यहाँ से पन्द्रह मिनट की दूरी पर | जब भी तू बुलायेगी मै हाजिर हो जाया करूँगी | इच्छा मुस्कुराती हुई, पर ! अभी से तू क्यों उदास हो रही है??अम्मा! चार दिन तो जी लेने दे मुझे | प्रतीक्षा मुस्कुराती हुई तुझे एक खुशख़बरी देनी थी | इच्छा अच्छा जी !अभी उलाहना, आँसू , शिकायत मे देर न लगी, हुम्म!! खुशी को दबाकर रखा है ?? प्रतीक्षा नाराजगी का अभिनय करती हुई, जा फिर मै नही बताती! | इच्छा प्रतीक्षा की आँखों मे झाँकते हुये | ओय होय! अजी अब बता भी दो मैडम ?? प्रतीक्षा शरमाती हुई, बिन्नी के पापा का ट्रासंफर इसी शहर मे हो रहा है | इच्छा, तभी मै सोचूँ ! इतनी साफ सफाई किसलिए? भौहें चढ़ाती हुई, हुम्म!! पतिदेव के स्वागत की तैयारी | क्रमश:.