Arman dulhan k - 6 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 6

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अरमान दुल्हन के - 6

अरमान दुल्हन के भाग-6

दूसरी तरफ कविता की हालात भी अच्छी नहीं थी। वह भी ठीक से खाना नहीं खा पायी थी और नींद भी आंखों से कोसों दूर थी।बिस्तर पर भी चैन नहीं पड़ रहा था।उठकर इधर उधर टहलने लगी। बार बार सरजू की बारे में ही ख्याल आ रहे थे। उसके बोले शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे।
" मेरे गैल ब्याह करले तेरे सारे सुपने पूरे कर दयूंगा ।"
बार बार वही शब्द कानों से टकरा रहे थे।

उसने सहेलियों से सुना था कि जब हमें किसी से प्यार हो जाता है तो न नींद आती है और न भूख लगती है और बार बार उसी के ख्याल आता है।

"आज नींद क्यातैं न्हीं आरी( नींद क्यों नहीं आ रही)।कदे(कहीं) मन्नै भी..सरजू तैं.............? नहीं नहीं मैं कति बावळी सूं। किम्मे बी(कुछ भी) सोचण लागज्याऊं सूं।"

तभी कविता की मां की आंख खुल जाती है। बेटी को टहलते देखती हैं तो पूछती हैं।
"कविता ए.....के होया(क्या हुआ) बेटी?"

"बेरा नै मां नींदे ना आरी, बेचैनी सी होरी सै।"

कविता अपनी मां के पास आकर बैठ जाती है।मां उसका हाथ से माथा छू कर देखती है।माथा बहुत गर्म था।
"आं ए तेरै तो ताप ( बुखार) चढरया सै खूब जोर तैं। के टैम होरया सै?"
"मां साढे ग्यारह होरे सैं "
"ए देखूं सूं तेरी भाभी धोरै (पास)कोय गोळी(टेबलेट) पड़ी सै तो!"
रामदे बहू सरोज के कमरे का दरवाजा खटखटाती है । "सरोज ए बेटी सोग्गी के(सो गई क्या)?"
"आई मां।"
सरोज हड़बड़ाहट में उठकर आती है।
रामदे बहू से टेबलेट लेकर बेटी को देती है। कविता टेबलेट लेकर सोने का प्रयास करती है मगर नींद अब भी नहीं आ रही थी।सोचते सोचते बता नहीं कब आंख लगी।सुबह जब मां ने बुखार चैक करने के लिए सिर पर हाथ रखकर देखा तब जाग खुली।
"ठीक सै ए बेटी ईब?"
"हां मां"
किंतु बेचैनी तो अब भी थी।वह बिस्तर त्याग कर चूल्हे के पास खाना बना रही भाभी के पास जाकर बैठ जाती है और उनकी मदद करने लगती है। उसकी घर के कामों में कभी रूची ही नहीं थी।इसलिए घर के काम बहुत कम करवाती थी वो भी कहने के बाद। उसको तो बस किताबों से लगाव था।सलेब्स की किताबों में छिपा कर कहानियों की पुस्तकें पढ़ती रहती थी। स्कूल की लाईब्रेरी हो या फिर बाहर दुकान से किताबें मिल ही जाती थी। उसके पास हमेशा कोई न कोई कहानी की किताब रहती ही थी।

"अरै ......यो आज सूरज कित्त तैं(कहाँ से) लिकड़या (निकला) ! कविता अर चूल्हे धोरै?
कविता ने कोई जवाब न दिया।
कविता से कोई जवाब न पाकर भाभी ने फिर से प्रश्न किया।

"तबियत ठीक सै ईब? रात के बात होग्गी थी? मां दवाई लेकै गई थी।?"

"बस थोड़ा बुखार आग्या था भाभी।
भाभी एक बात पूछूं?"

"के बुझै थी बूझ? "

"न्यु कहया करै (ऐसे कहते हैं) अक फलाणे कै(किसी के भी) इश्क का बुखार चढरया था। जिसनै प्यार होज्या उसकै यो सांच्यांए (सच में) इश्क का बुखार चढ जाया करै के?

"हैंय....तेरै चढग्या था के रात इश्क का बुखार? कोण सै वो......? भाभी ने खीखी करते हुए कविता की टांग खींची।

"जा नै (चुप कर) भाभी ,तैं बी मजे ले सै। मन्नै तो कहीं पै पढया था ज्यातैं बुझूं थी।"

दरअसल कविता भाभी को कुछ भी बताना नहीं चाहती थी क्योंकि उसे भाभी पर भरोसा ही नहीं था। भाभी कविता की शिकायत मां से कई बार कर चूकी थी कि वह कहानियों की किताबें पढ़ती रहती है। मां से बहुत बार डांट भी खा चूकी थी। उसे पूरा यकीन था कि भाभी को कुछ भी बताना मतलब आफत मोल लेना है.....


क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा