रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड
अध्याय 3
खंड 8
हम्जा अपनी आप बीती नरसिम्हा को सुना ही रहा था, तभी महल में भगदड़ सी मच गई। नरसिम्हा और हम्जा ने कक्ष से बाहर निकल कर देखा तो कोई भयानक सूरत का व्यक्ति अब्दुला की हत्या करके भाग रहा था। हम्जा ने जब ये दृश्य देखा तब तक वो व्यक्ति लगभग भाग निकला था हम्जा उस व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए गोर से देखता है। और वो कहाँ से जाने वाला है। उसका अनुमान लगाता है। फिर एक अलग ही रास्ते पर हम्जा भागने लगा शुरू में तो किसी की समझ में नहीं आ रहा था हम्जा कर क्या रहा है। लेकिन जब हम्जा उससे पहले उस अज्ञात हत्यारे की आने वाली जगह पर पहुँच कर उसको पकड़ लेता है। तो वहाँ मौजूद प्रत्येक सदस्य के लिये ये बड़ा ही अद्भुत और अविश्वसनीय नज़ारा बन गया। हम्जा उस व्यक्ति को पकड़ कर देखता है। उसकी आँखों की पलकें कटी हुई है। और उसके चेहरे पर कई छोटे छोटे घाव के निशान है। जो अब भर चुके थे।
ये वही सैनिक था जिस से जानकारी निकालने के बाद अब्दुला ने उसकी पलकें काट कर जंगल में बांध कर छोड़ दिया था और वो किसी प्रकार बच निकला हम्जा अब्दुल्ला की पूरी कहाँनी जानता था इसलिये उसने भी पहचान लिया ये कौन है। और हम्जा अपने दोनों हाथों से ही उस की खोपड़ी को पिचका देता है। जैसे कोई फल को पिचका कर तोड़ देता है।
हम्जा की ये ताकत मानव शक्ति से अधिक थी। जिसे देख कर विश्वास करना कठिन था पर अपनी आँखों से देख कर हर एक को समझ आ गया की जो हम्जा जंगल में घुसा था बाहर निकला हुआ हम्जा उससे कई गुना अधिक बलवान है।
सौभाग्य से उस के वार से अब्दुला मरा नहीं उसकी साँसे अभी भी चल रही थी। जिस पर तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हुए राज वैध को बुलवाया गया और उसके द्वारा अब्दुला की चिकित्सा होने लगी।
इसके बाद हम्जा स्नान करने गया। और वापिस आकर हम्जा और नरसिम्हा की एक बार फिर बैठक होती है।
हम्जा अपनी बात शुरू करने की जगह किसी बात की सोच में पड़ गया। जिस पर नरसिम्हा बोला " भाई आप किस विषय मे इतने अधिक चिंतित हो जो बस उसी के बारे में सोच रहे हो।
हम्जा " बिना भीतरी सहायता के वो हत्यारा महल में प्रवेश नहीं पा सकता था। जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
नरसिम्हा " मुझे हमारे लोगों पर पूरा विश्वास है भाई, उसका महल में घुसना केवल एक संयोग और थोड़ी असावधानी का परिणाम था जिसके लिए मैंने महल की सुरक्षा भी बड़ा दी है। आप निश्चिंत रहे।
हम्जा " ईश्वर करें तुम्हारा अनुमान सही हो। मगर हमें सावधान रहना होगा।
नरसिम्हा " आप व्यर्थ में चिंता कर रहे है। अब यहाँ हमारा कोई शत्रु जीवित नहीं बचा।
अपने छोटे भाई की बात सुन कर हम्जा एक लम्बी सांस खिंच कर अपनी कहाँनी फिर से सुनाने लगा।
" उस रात हमारा मिलन केवल दो जिस्मों का मिलन नहीं था बल्कि दो आत्माओं का मिलन था जिसमें दो आत्माओं को पवित्रता प्राप्त होती है। उस रात जब हम सो रहे थे तो राजकुमारी अम्बाला एक भयानक स्वप्न देख कर जोर से चीखती हुई उठ बैठी। उनकी चीख ने मेरी नींद भी भंग कर दी। उस स्वप्न को देख कर राजकुमारी अम्बाला जोर जोर से हांफ रही थी। मेरे शांत करने पर उन्होंने मुझे अपनी निशानी के रूप में वो खंजर दिया जिस से उन्होंने मेरे ऊपर वार किया था और उस खंजर को वो खुद से अलग नहीं करती थी। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि कोई उन्हें स्वप्न में मुझसे दूर ले जा रहा था। ये बोलते समय वो इतनी डर गई थी कि भावुक होकर रोने लगी और मुझसे वचन लिया कि अब से मैं उनको कभी भी नहीं छोडूंगा। उनको शांत करने के लिए मैंने भी वचन दिया और उनको सुला दिया।
सोने से पहले उन्होंने ये भी बताया कि उनकी माता उनके पिता द्वारा किए अत्याचारों के सदैव विरुद्ध रहती थी और अपने पति से बार-बार कहती " एक सच्चा राजा प्रजा जनों में अपना भय पैदा नहीं करता बल्कि अपने प्रति प्रेम आदर और सम्मान पैदा करता है। तभी वो प्रजा प्रिय सच्चा राजा बनता है।
इतना सुन नरसिम्हा बीच में बोल पड़ा " इसलिए आप को मेरे द्वारा कही इस बात ने इतना प्रभावित किया कि आप सब कुछ बताने लगे।
हम्जा " हाँ,
अब हम्जा आगे बोला
" उसके बाद मेरी आँख सीधा अगली सुबह खुली, वो सुबह मेरे जीवन की सबसे भयानक सुबह थी। मैंने अपने पास से राजकुमारी अम्बाला को गायब पाया, जिसके कारण मेरा मन विचलित हो उठा मैंने जल्दी से आस पास राजकुमारी अम्बाला को ढूंढना शुरू किया। मैं पागलों की भाँति इधर से उधर दौड़कर राजकुमारी अम्बाला को ढूंढता रहा। लेकिन वो न मिली। मैं भीतर से तड़प रहा था। जैसे बिना पानी की मछली, मुझे इतना तो विश्वास था कि अम्बाला मुझे खुद से छोड़ कर नहीं जा सकती, और न ही ये काम किसी जंगली मांसाहारी पशु का है। क्योंकि वहाँ पर किसी भी पशु के कोई चिन्ह नहीं थे। इसलिये ये तो स्पष्ट था उनका किसी ने अपहरण किया है। इसलिए उन्हें खोज कर निकाल लेने का निर्णय ले कर में वहाँ से आगे निकल पड़ा।
मैं समझता था उस जंगल में केवल अलौकिक शक्तियों, दानवों और कुछ वन जीव जंतुओं का वास है। मगर मेरी ये सोच उस समय गलत सिद्ध हुई जब अम्बाला की खोज में चलते-चलते मैं एक आदिवासियों के कबीले तक जा पहुंचा।
वो कबीला बड़ी अजीब भाषा बोलता था जो हमें नहीं आती। एक बार मुझे लगा हो सकता है। किसी कारण वश या धोखे से ये लोग अम्बाला को ले आये हो। तो मैं उनके कबीले में चुपके से घुसपैठ कर अम्बाला की खोज करने लगा। मगर दुर्भाग्य से अम्बाला मुझे वहाँ पर भी न मिली मैं बेहद निराश हो कर वहाँ से लौट ही रहा था कि तभी एक कबिलेवासी कि नज़र मुझ पर पड़ गई। और उसने शोर मचा दिया। जिसको सुन मेरे चारों और बंदरों की तरह वृक्षों पर उछल कूद करते हुए सैकड़ों आदिवासी जमा हो गए मेरे भागने का कोई मार्ग नहीं बचा। मैं चाहता तो उनमें से कइयों की हत्या या घायल कर वहाँ से भाग सकता था पर मेरे मन ने इस विचार को त्यागना ही सही समझा और मैंने खुद आत्मा समर्पण इस इरादे से कर दिया शायद वो मुझसे बात कर मेरी समस्या समझ जाए पर उन्होंने मेरे समर्पण के बाद देखते ही देखते बड़ी तेजी से मुझे एक लकड़ी के तख्ते से बांध दिया। और एक दूसरे को पकड़ाते हुए ले जाने लगे। जैसे कई चींटियों का झुंड अपने भोजन को एक दूसरे की सहायता से आगे धकेलता जाता है।
मैं उस समय अपनी आत्मसमर्पण वाली बात पर बहुत पछताया।
थोड़ी देर में वो मुझे इसी प्रकार सरकाते-सरकाते पास की एक पहाड़ी की चोटी पर ले गए। वैसे तो वो चोटी इतनी अधिक उची नहीं थी। पर वहाँ से सर के बल गिरने वाले कि मृत्यु निश्चिंत थी।
मैं उनसे बार बार बोल कर ये समझाने की कोशिश करता मैं वसुंधरा का राजा हूँ। पर उनको मानो इन सब से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। और फिर वो लोग चोटी पर पहुंच कर अपने सीने पर बंदरो की तरह हाथ मार कर जोर जोर से चिल्लाने लगे। उन्हें देख कर लगता जैसे कोई अनुष्ठान की क्रिया हो।
थोड़ी देर में उनके कबीले का कोई वृद्ध व्यक्ति एक झोंपड़ी से बहार निकला और धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगा।
कबीले के अन्य सदस्य झुक कर उसका आदर सत्कार कर रहे थे जिससे साफ था कि वो कबीले का सरदार है। मैं एक बार और चीखा इस उमीद से की शायद वो भाषा जनता हो पर मैं कुछ बोल पाता उससे पहले एक आदिवासी ने मेरा मुंह कपड़े से बंद कर दिया। अब वो वृद्ध मेरे पास आया और कुछ मन्त्र पड़ने लगा। फिर हमारी भाषा में जोर से चिल्ला कर बोला। है ईश्वर इस जन्म के इस पापी की आत्मा को स्वीकार कर अगले जन्म में स्वच्छ करके भेजना।
मुझे अपने जीवन के अंत का विश्वास हो गया था। कि तभी उस वृद्ध की नज़र मेरे ऊपर पड़ी और मुझे देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसने अपने लोगों से अपनी भाषा में क्रोधित हो कर कुछ बोला और फौरन मुझे नीचे उतरवाया मैं इन सब से बड़ा हैरान था, और ये सब क्या हो रहा है ये समझने की कोशिश कर रहा था। तभी जैसे ही में मुक्त हुआ वो वृद्ध बड़े ही प्रसन्नता के भाव दिखाता हुआ बोला " ओ मेरे प्रिय मित्र हम्जा ये तुम हो।
और मुझसे इतनी प्रसन्नता से गले मिला जैसे कोई वर्षों पश्चात अपने प्रियजनों से मिलता है।
उस समय तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। और मैंने उसी समय पूछ डाला क्या हम पहले कभी मिले है।
उसने बोला " नहीं…. पर मैं आपसे बचपन में मिला था।
मेरी समझ में कुछ नहीं आया और मेरे मन के भावों को देख कर वृद्ध समझ गया मैं दुविधा में हूं। इस पर वो बोला " आप ज़्यादा चिंतित ना हो आज रात चांद की पहली तारिक़ है। उस समय आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे तब तक आप हमारे अतिथि बनकर कुछ भोजन कर ले।
मैंने उस वृद्ध की बातों को मान लिया।
भोजन करते समय मैंने उनसे पूछा " आज जो मेरे साथ अनर्थ होते-होते बचा था वो सब क्या था।
वृद्ध बोला " जब भी हम कबीले में किसी को चोरी करते पाते है। तो अपने देवता को उसकी बली चढ़ाते है। ताकि अपने अगले जन्म में वो एक शुद्ध आत्मा के साथ जन्म ले।
इस को सुन मैं मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करने लगा कि उसने मुझे आज एक नया जीवन दान दिया है।
फिर मैंने उस से पूछा कि कबीले के अन्य सदस्यों के मुकाबले आप हमारी भाषा कैसे जानते है। तो उसने बताया कि उस कबीले के मुखिया को उसके पिता द्वारा कई भाषाओं का ज्ञान दिया जाता है। जब तक अगला मुखिया सभी भाषाओं को नहीं सीखता वो मुखिया नहीं बनता।
जल्द ही रात हुई और वो वृद्ध मुझे एक अन्य पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो पहली पहाड़ी से 10 गुना अधिक उची थी और बोला " महाराज यदि आपको अपने जीवन की पहेलियों को सुलझाना है। तो इस पहाड़ी से आपको इसी समय कूदना होगा।
उसकी इस बात पर मैं चोंक गया और पहाड़ी से नीचे झांकने लगा तो कई मानव कंकाल मुझे नीचे पड़े दिखे।
मैं तुरंत पीछे हटा और बोला " क्या आप सठिया गए हो यहाँ से कूदने के बाद मैं कभी जीवित नहीं बचूंगा।
वृद्ध " विश्वास करें ऐसा कुछ नहीं होगा।
हम्जा " कैसे बोल सकते हो कुछ नहीं होगा। नीचे पड़ा वो मानव कंकालों का ढेर कैसा है।
वृद्ध " वो ढेर उन लोगों का है। जो अपने सवालों का जवाब चाहते थे।
हम्जा " यानी वो सब भी उसी कारण से मरे है जिस के लिए तुम चाहते हो मैं भी यहाँ से कूद जाऊँ।
वृद्ध " महाराज वो लोग अपनी मर्जी से यहाँ से कूदे थे। और वो चुने हुए नही थे उन्हें लगता था वो चुनें हुए है।
हम्जा " तो आपके हिसाब से मैं चुना हुआ हूँ।
वृद्ध " जी हाँ।
हम्जा " किसने कहा आपसे।
वृद्ध " आपने
हम्जा " मैंने...? मैंने कब कहा।
मेरी इस बात को सुन कर वृद्ध अपने हाथों में बंधा एक विशेष मोती मुझे दिखाने लगा। और जानते हो नरसिम्हा वो मोती कौन सा था ये वही मोती था जो हमारे यहाँ राज गद्दी पर बैठा व्यक्ति अपने अगले राज गद्दी के वारिस को देता आया है।
नरसिम्हा आश्चर्य से बोला " पर ये मोती तो पूरे संसार में केवल एक ही है। जो कि केवल हमारे वंश के उत्तराधिकारी के पास होता है।
हम्जा बोला " इसी प्रकार से मैं भी आश्चर्य मैं पड़ गया, और उसके मोती को एक हाथ में लेकर अपने मोती से मिलाने लगा तभी उस वृद्ध ने मुझे धक्का दे दिया।
यूँ अचानक गिरते समय मेरी पीठ धरती की ओर थी और मुंह आकाश की ओर जिसके कारण मैंने अपने जीवन का सबसे सुंदर और विचित्र दृश्य देखा,
मेरे गिरने की गति सामान्य से काफी धीमी थी और मैं आसमान में तेजी से होते परिवर्तन को देख पा रहा था जिसमें प्रति क्षण दिन और रात होती जाती सूर्य अपनी सामान्य दिशा के विपरीत जाता दिखता। आस पास के कुछ वर्ष पुराने वृक्षों को छोटा और फिर अंकुर में परिवर्तित होते देखा मेरे नीचे गिर कर मरे लोगों के कंकालों पर वापिस मांस चढ़ते और उनको गिरने की दिशा के विपरीत जा कर पहाड़ी की चोटी पर पहुँचते देखा। वो सारा दृश्य ऐसा था जैसे समय वापिस जा रहा हो।
और फिर मैं बड़े ही धीमी गति में धरती पर आ कर गिरा और मेरे गिरते ही सब कुछ सामान्य हो गया। पर अब वहाँ पर वो कंकाल नहीं थे जो मैंने देखे थे।
ना ही आस पास के वो वृक्ष थे जो कुछ दशक प्राचीन थे यहाँ तक कि वो वृद्ध भी अदृश्य हो गया था और इस समय दिन निकला हुआ था अब मेरे पास दो मोती हो गए थे।
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