faisla in Hindi Short Stories by अनुभूति अनिता पाठक books and stories PDF | फैसला

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फैसला

आज छः महीने की कैद के बाद सिया आख़िरकार घर आ गयी। अपनी बेटी को गले लगाकर खूब रोई, खूब प्यार किया और रो - रोकर अपने अंदर का सारा गुब़ार निकाल लिया।
सास - ससूर ने भी अपनी खुशी प्रकट की और पति ने भी कोशिश पूरी की लेकिन सिया उनके इस नीरस स्वागत को भली - भाँति समझ रही थी पर उस समय कुछ नहीं बोलना ही उचित समझा।

सिया आज आज़ाद होकर घर आयी। आज से छः महीने पहले एक व्यक्ति ने उसे अगवाह कर लिया था। शुरू - शुरू में तो पति और परिवार जनों ने बहुत मशक्क्त की, पूलिस पर ज़ोर डाला कि सिया को कैसे भी ढुंढकर वापस लाया जाए।

आगे की तहकीकात में ये बात सामने आयी कि वो व्यक्ति सिया के काॅलेज के ज़माने का प्रेमी है जो एकतरफ़ा प्यार का शिकार था।

ये सब जानने के बाद बिना सही जानकारी के सिया के पति रमन और परिवार वाले भी एक अंजाने शक़ को मन में पालकर मन ही मन सिया की कुशलता से दूर होने लगे।

वो तो पूलिस वालों के वजह से सिया आज सकुशल वापस आ गयी थी।

रात को जैसे ही रमन कमरे के अंदर आया तो सिया भागकर उसके गले लगकर रोने लगी। अपना सारा दर्द उसके आँसूओं में बह रहा था।
लेकिन सिया को रमन की पकड़ में वो अहसास , वो कशिश नहीं लग रही थी जो उसे उसके प्यार व विश्वास का अहसास दिलाए।

सिया समझ गयी कि है तो आख़िर मर्द ही।
सिया ने बड़ी सहजता से रमन को समझाया और विश्वास दिलाने की कोशिश करते हुए कहा कि

" रमन! मैं उसे जानती भी नहीं थी ठीक से। वो मुझसे काॅलेज के दिनों से ही प्यार करता था। वो अपने आप में एक साईको था लेकिन रमन उसने मुझे छूआ तक नही।
वो सिर्फ़ अपने प्यार को साबित करना चाहता था। उसने बद्सलूकी नहीं की मेरे। वो मुझे पाना चाहता था लेकिन मेरी स्वीकृति के साथ।
रमन आपको विश्वास है ना मुझपर ??? "

सिया ने बड़ी आशा लिये रमन को देखा। रमन ने सिया को आँखों से विश्वास जताया।

सिया सबकुछ भूलाकर जीने की कोशिश कर रही थी लेकिन घर वालों का ठंठा उत्साह, और आस - पड़ोस के प्रश्न और उनके व्यंग्य भरे शब्द। ये सब तो सिया जैसे - तैसे बर्दाश्त कर भी रही थी लेकिन जो बर्दाश्त नहीं हो रहा था वो था रमन का प्यार का दिखावा करना लेकिन रमन का व्यवहार उसके मन का हाल बयां कर देता था।

तभी एक दिन रमन ने घरवालों के ही सामने सिया से एक बात कही

"सिया! तुम पर पूरा विश्वास है मुझे लेकिन अगर त... तुम...तुम एक मेडिकल जाँच करवा लो तो हम...हम आस - पड़ोस वालों का मुँह बंद कर सकेंगे।"

सास - ससूर ने भी अपनी सहमति जतायी।

सिया हतप्रभ हो गयी। क्या कह रहे हैं रमन।
"अगर एक आप मुझे सच्चा मान लें तो किसी और की हिम्मत ही नहीं होगी रमन मुझपर ऊँगली उठाने की। लेकिन रमन आप ये टेस्ट ख़ुद की संतुष्टि के लिये चाहते हैं, सिर्फ़ ख़ुद की"।
चीखकर कहा सिया ने।

"हाँ! हाँ! तो उसमें गलत ही क्या है सिया। इतनी सही हो तो करवा लो ना टेस्ट। सबको शांति मिल जाएगी।" रमन ने लगभग गुस्से में कहा।

सिया अचेत सी हो गयी। वो अब समझ पा रही थी कि क्यों रमन उसे अपने पास नहीं आने दे रहा था।

फिर एक दिन वो मेडिकल जाँच के लिये तैयार हो गयी।

जाँच में डाॅक्टर ने स्पष्टीकरण दिया था कि सिया के शरीर के साथ ना तो कोई छेड़- छाड़ हुई है ना ही कुछ महीनों से उसका कोई शारीरिक संबंध बना है।

ये सुनकर रमन ने सिया को ज़ोर से गले लगा लिया लेकिन इस बार सिया की पकड़ ढीली थी।

अब घर में बाकी सब ठीक थे पर सिया किसी और अंतरद्वंद से जूझ रही थी।

एक दिन वो बाहर गयी और कुछ दिनों में रमन के पास कोर्ट का एक नोटीस आया जिसमें लिखा था कि सिया रमन से तलाक चाहती है।

पूरा घर सन्न रह गया। रमन और पूरे परिवार ने खूब शोर मचाया लेकिन सिया बिल्कूल शांत रही।

और एक दिन फैमिली कोर्ट में दोनों जज के सामने थे।
आज सिया ने बोला

" जज साहब! मुझे कोई ज़बरदस्ती अगवाह कर लेता है तो क्या वो मेरी गलती थी?? अगर वो मेरा बलात्कार भी करता तो भी क्या वो मेरी गलती होती???
उस व्यक्ति ने मुझे छूआ तक नहीं लेकिन मेरे पति को मुझसे ज़्यादा डाॅक्टर पर भरोसा था।

लेकिन मुझे जो भरोसा अपने पति पर था वो अब टूट गया। और जब भरोसा ही नहीं तो रिश्ता कैसा??

क्यों हर बार औरतों को ही अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है जज साहब। अगर मेरे तकलीफ में मेरा पति मेरी स्थिति को देखे बिना अपना फ़ैसला सुनाता है तो वो भी इस समाज का एक सदस्य है जो मुझसे कुछ भी, कैसे भी साबित करने को कहता है।
वो मेरा पति नहीं है, जो मुझपर विश्वास करता है। किसी और की गलती के लिये भी मुझे दोषी मानता है।"

सिया ने रमन को देखकर कहा

" रमन मैंने वो टेस्ट सिर्फ इसलिये करवाया ताकि मैं पूरे सम्मान के साथ आपसे अलग होने का फैसला ले सकूँ।"

"जज साहब मुझे रमन से अपने लिये कुछ नहीं चाहिये। हमारी बेटी हम दोनों की ज़िम्मेदारी है। पर उसकी उम्र के हिसाब से उसे उसकी माँ कि ज्यादा ज़रूरत है। बड़े होने पर वो अपना फैसला ले सकती है जो मुझे मंज़ूर होगा।"

"जज साहब! रमन अपनी बेटी से जब चाहें मिल सकते हैं और अपनी बेटी की पढ़ाई का खर्चा वो उठाएँ बस। मैं अपनी किसी भी ज़रूरत के लिये रमन से कुछ नहीं चाहती।"

पूरा कोर्ट रूम हतप्रभ था। रमन भी और जज भी।

रमन ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। शायद आज उसे वास्तव में सिया की सच्चाई और उसके अस्तित्व पर विश्वास हो गया था।

आपसी सहमति से तलाक़ के पेपर साईन हुए।

सिया कोर्ट रूम से बाहर निकली। आज उसके चेहरे पर उसके सच और सम्मान का अलौकिक तेज विराजमान था।

आज सिया ने साबित किया था कि अग्नि परीक्षा यदि औरतों के लिये है तो उस अग्नि परीक्षा के बाद का फ़ैसला भी औरत का ही होना चाहिये। आज वो सही मायने में आज़ाद हुई थी।

अनिता पाठक
27-06-2020
( स्वरचित व मौलिक अधिकार सुरक्षित)