Kuchh Gaon Gaon Kuchh Shahar Shahar - 10 in Hindi Moral Stories by Neena Paul books and stories PDF | कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 10

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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 10

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

10

आज बहुत दिन के पश्चात माँ बेटी मार्केट का चक्कर लगाने निकलीं कि अचानक शैली की नजर एक कारडिगन पर पड़ी...

"जेनेट रुको... ऐसा ही कारडिगन हमने लिटलवुड्स में देखा था ना। देखो जरा उसके और इसके दाम में कितना अंतर है।"

"पर मॉम वो कारडिगन ब्रिटिश मेक है... और लिटलवुड्स यहाँ की एक जानी मानी कंपनी भी है।"

"उससे क्या फर्क पड़ता है बेटा... चीज बिल्कुल वैसी और दाम आधे... अब पहले जैसा समय नहीं रहा। जेब में पैसे हों तो इनसान नखरे भी कर लेता है। भई मैं तो ले रही हूँ। जेनेट यह कमीज देखो कितनी अच्छी है जेसन के लिए।"

"मॉम आप तो जानती हैं जेसन को। वह मोहर पहले देखता है चीज बाद में पहनता है।"

"अब बच्चों को भी अनकी आदतें बदलनी होंगी। उनका डैड घर में बेरोजगार बैठा है। जेब में दमड़ी नहीं और बने साहूकार..."

वही लोग जो पहले ब्रिटेन की मोहर देख कर ही सामान खरीदते थे अब उनके सामने भी मरता क्या न करता वाली कहावत सिद्ध होने लगी। विदेशी सस्ते माल के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ने लगा। ये सामान अधिकतर भारत, चीन, श्रीलंका आदि देशों से आ रहा था। ब्रिटेन के बने माल की कीमत घटने लगी और बाहर से आए माल की माँग बढ़ने लगी। यह विदेशों से आया सामान सस्ता ही नहीं बल्कि हर प्रकार से ब्रिटेन में बनी चीजों के सामने भी खरा उतर रहा था।

चीजों के दाम के मामले में मुकाबले की कोई बात नहीं थी। एशिया से ही नहीं इटली से अच्छे और सस्ते चमड़े के जूते भी लोग बहुत पसंद कर रहे थे। इटली से आने वाले जूतों से लेस्टर की मशहूर चमड़े के जूतों की कंपनी "हश पप्पी" को भारी धक्का लगा। जब लोगों ने इतने महँगे जूते खरीदने बंद कर दिए तो हश पप्पी को अपना जन्म स्थान लेस्टर छोड़ना पड़ गया।

लेस्टर की मार्केट यहाँ की सबसे प्रसिद्ध और ब्रिटेन की सबसे पहली मार्केट है। इसकी प्रसिद्धि इस बात से भी साबित होती है कि ब्रिटेन की रानी जब भी लेस्टर आती हैं मार्केट का चक्कर जरूर लगाती हैं। लेस्टर और उसके आस-पास के गाँवों की जमीन बहुत अच्छी होने के कारण यहाँ खेती-बाड़ी भी काफी होती है। यहाँ पर उगाई गए ताजा फल, फूल, सब्जियाँ तो मार्केट में बिकने के लिए आती ही हैं साथ में दूसरे देशों से भी आए हुए विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियाँ यहाँ पर मिलती हैं।

लेस्टर एक बहुजातीय और धर्मों का शहर है। यहाँ यदि एशिया से आए लोग मिलते हैं तो अफ्रीका और योरोप से आए चेहरे भी दिखाई देते हैं। यही कारण है कि यहाँ पर संसार के हर कोने से आया हुआ सामान मिलता है। दूसरे शहरों में खुली मार्केट सप्ताह में दो या तीन दिन लगती है परंतु लेस्टर में यह मार्केट सातों दिन खुली मिलती है।

सातों दिन तो यहाँ के पब और रेस्तराँ भी खुले मिलते हैं। एशियंस ने यहाँ के रेस्तराँ को एक नई डिश दी है "चिकन करी"। वैसे देखा जाए तो एशियंस के खाने में करी कोई नाम नहीं है। हाँ कढ़ी उन के रसोइघरों में जरूर बनती है जो दही और बेसन से बनाई जाती है। करी शब्द का आविष्कार ब्रिटेन में ही हुआ है जिसे मुर्गे और एशियन मसालों से बनाया जाता है। तभी से करी पाउडर भी आया। करी पाउडर भी सारे सूखे मसालों का मिश्रण है। चिकन करी चावल और नान ब्रिटेन का विशेष और सबसे अधिक मशहूर खाना है। चिकन करी अब केवल रेस्तराँ या पब तक ही सीमित नहीं रह गई। यह इतनी प्रसिद्ध हो गई है कि गोरों के रसोईघरों की भी शोभा बनने लगी है।

दूसरे देशों से अब आसानी से फल और सब्जियाँ आने के कारण ब्रिटेन में खाने पीने की प्रत्येक प्रकार की सुख सुविधाएँ उपलब्ध होने लगीं।

एक वह समय भी था जब कोई इक्का-दुक्का भारतीय ही ब्रिटेन में पढ़ने के लिए आता था। उसे यहाँ बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। सबसे प्रमुख रंग का भेद-भाव, फिर भाषा का, संस्कृति का, रहन सहन का, खाने पीने का आदि। विशेषकर शाकाहारी लोगों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। खाने में दाल जैसी चीज भी उपलब्ध नहीं थी। 70 के दशक के पश्चात सब कुछ बदल गया। अब भारतीयों से अधिक ब्रिटेन निवासी एशियन खाने को पसंद करते हैं। पहले लहसुन की महक मात्र से वह दूर भागते थे अब लहसुन की विशेषताएँ जानने के पश्चात घर-घर में उसी लहसुन का प्रयोग मिलने लगा है। घरों में प्रतिदिन प्रयोग होने वाला सामान सुपरमार्केट में ही नहीं खुले बाजारों में भी भरपूर और सस्ता मिलता है।

एक ओर खुले बाजारों का व्यापार बढ़ रहा था तो दूसरी और सुपर मार्केट में बढ़ोती होने के कारण छोटी दुकानों को भारी नुकसान हो रहा था। धीरे-धीरे छोटी दुकानें ही नहीं बड़ी कंपनियाँ भी बंद होने लगीं।

एक पूँजीपति कभी घाटे का सौदा नहीं करता। उन्हें केवल अपनी तिजोरियों से मतलब होता है। जब ब्रिटेन में कंपनियाँ घाटा दिखाने लगीं तो उन्होंने थर्ड वर्ड देशों का रुख किया जहाँ मजदूरी कम देकर अधिक से अधिक काम निकाला जा सकता था। बड़े उद्योगपतियों ने भारत चीन आदि देशों में अपने कारखाने खोल लिए। इसके परिणाम स्वरूप जहाँ ब्रिटेन में बेरोजगारी और बढ़ गई वहीं भारत और चीन आदि देशों में लोगों को काम मिलने लगा। अब उन्हीं कंपनियों का माल कम दामों में तैयार होकर वापिस ब्रिटेन और योरोप जैसे देशों में मुनाफे पर बेचने में उन्हें कोई झिझक महसूस न हुई।

***

झिझक की तो बात ही छोड़ो... किसी चीज की नकल करने में भारत और चीन का जवाब नहीं। वहाँ ऐसे-ऐसे कारीगर बैठे हैं जो मात्र एक नजर किसी चीज को देख कर फौरन वैसी नहीं तो मिलती-जुलती बना कर सामने रख देंगे। इसका जीता-जागता उदाहरण नोटिंघम के काखाने में तैयार की गई नोटिंघम लेस है। लेस्टर से 20-25 मील की दूरी पर मिडलैंड्स का एक और प्रसिद्ध शहर नोटिंघम है जो अपनी दो चीजों से विशेषकर पहचाना जाता रहा है। यहाँ के कारखानों में बनी सुप्रसिद्ध "नोटिंघम लेस" और "रोबिन हुड का शेरवुड कॉसल"।

यहाँ की सूती और रेशम के धागों से बनी लेस और उसकी महीन कारीगरी देखते ही बनती थी। छोटे रूमाल से लेकर खिड़कियों के पर्दे तक इस लेस से बनते थे जिसे खरीदना आम आदमी के बस की बात नहीं थी। पूरे योरोप में इसकी कारीगरी की धाक थी। यहाँ काम करने वालों को वेतन भी बहुत अच्छा मिलता था। माइनर्स की हड़ताल के पश्चात नोटिंघम लेस के कारखाने पर भी इसका प्रभाव पड़ा।

जब काम नहीं होगा तो पैसे नहीं, जब पैसे नहीं होंगे तो लोग महँगी वस्तुएँ भी नहीं खरीद पाएँगे।

एशिया के लोगों ने इस मौके का भरपूर लाभ उठाया। चीन के पास ऐसे कारीगर हैं जिन्होंने इस लेस की नकल कर के वैसी ही महीन लेस की वस्तुएँ बनानी प्रारंभ कर दीं। यह वस्तुएँ देखने में खूबसूरत और दाम में बहुत कम थी। अब ऐसी लेस की वस्तुएँ घर-घर की शोभा बनने लगीं। नोटिंघम का लेस कारखाना चीन का मुकाबला न कर पाया क्योंकि यहाँ के अंग्रेज मजदूर कम वेतन पर काम करने को तैयार न हुए। परिणाम यह निकला कि नुकसान पर चलते कारखाने में सदा के लिए ताला लग गया।

ताला नहीं लगा तो नोटिंघम के प्रसिद्ध आकर्षण शेरवुड फॉरेस्ट व रोबिनहुड कॉसल में, जो आज भी प्रयटकों को आकर्षित करता है। विशेषकर बच्चों को। बच्चे वैसे ही कपड़े पहन कर स्वयं को किसी रोबिनहुड से कम नहीं समझते।

"अपने बेटे के साथ नोटिंघम कॉसल में घूमते हुए एनी ने पूछा... निकोलस बेटा आपने रोबिनहुड के कपड़े तो पहन लिए हैं क्या आप रोबिनहुड के विषय में जानते हैं कि वह कौन था और क्या करता था...।"

"जी मम्मा आज कल हम रोबिनहुड के विषय में ही पढ़ रहे हैं। हमारी टीचर ने रोबिनहुड की एक बहुत पुरानी कहानी संक्षेप में बताई है। टीचर ने कहा है कि पहले रोबिनहुड कॉसल देख कर आओ। वह कुछ प्रश्न पूछेंगी फिर विस्तार से कहानी सुनाएँगी।"

"अच्छा... रोबिनहुड के विषय में तो बहुत सी कहानियाँ प्रचलित हैं। आपकी टीचर ने आपको कौन सी कहानी सुनाई है।"

"वही जिसमें रोबिनहुड और उसके साथी शेरिफ को चकमा देकर शेरवुड जंगल की गुफाओं में जाकर छुप जाते हैं। मम्मा आपको आती होगी यह कहानी सुनाइव ना..."

"हूँ यह रोबिनहुड की सबसे प्रसिद्ध कहानी है। मुझे आती तो है किंतु आपको यह कहानी टीचर से ही सुननी चाहिए और बच्चों के साथ मिल कर।"

"नहीं मम्मा सुनाइए ना..." निकोलस ने मचलते हुए कहा तो माँ को कहानी सुनानी ही पड़ी...

"तो सुनो... पुरानी कहानियाँ बताती हैं कि नोटिंघम शहर का सबसे प्रसिद्ध बेटा रोबिनहुड, उस समय के हीरो का निवास स्थान शेरवुड के जंगल थे। वैसे तो रोबिनहुड और उसके साथियों का अपना संगीत का बैंड था। यह लोग नए गाने लिखते भी थे और धुनों का आविष्कार भी किया करते थे। शेरवुड के जंगलों में बहुत ही सुंदर व आकर्षित दृश्य मिलते हैं। घना जंगल जिसमें फैले हुए "ओक" यानी "बलूत" के बड़े घने पेड़ मिलते हैं। इन पेड़ों पर उन्हीं की डालियों से बने छोटे-छोटे घर हैं जहाँ पर शायद रोबिनहुड और उसके साथी रहा करते थे। सैंकड़ों वर्ष पुरानी गुफाएँ हैं जो कहीं घने पौधों से ढकी हुई हैं तो कहीं चट्टानों से।"

"मम्मा मुझे भी वो शेरवुड के जंगल देखने हैं। वो गुफाएँ देखनी हैं। हम कब चलेंगे... क्या मैं अपने कुछ दोस्तों को भी साथ ले जा सकता हूँ।"

"देखो निकोलस आप की कक्षा के सारे बच्चे यदि मिल कर टीचर से कहेंगे तो वह शायद आपकी कक्षा को शेरवड के जंगल दिखाने ले जाए।"

"ठीक है मम्मा मैं कल ही स्कूल जाकर अपने दोस्तों से बात करूँगा। अच्छा मम्मा आप कहानी सुना रहीं थी ना...।"

"हाँ तो... रोबिनहुड के विषय में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जिनमे सबसे पुरानी व प्रसिद्ध कहानी है कि रोबिनहुड एक बागी था। वह अपने साथियों के साथ अमीरों को लूट कर सारा धन गरीबों व जरूरतमंदों में बाँट देता था। उसको और उसके साथियों को पकड़ना कोई आसान काम नहीं था क्यों कि उनका निवास स्थान शेरवुड के जंगल थे। वहाँ के निवासी उनका ठीकाना जानते हुए भी कभी जुबान नहीं खोलते थे। वह जंगल का ही नहीं उनका भी राजा था। रोबिनहुड व उसके साथी अमीरों को लूटते जरूर थे किंतु कभी कोई मार पीट नहीं करते थे। जब लोगों की शिकायत पर उस समय के नोटिंघम के शेरिफ के आदमी रोबिनहुड और उसके साथियों को पकड़ने आते तो वह जंगल में बनी गुफाओं में छुप जाते।"

"उनको कितना मजा आता होगा ना मम्मा। मैं भी बड़ा हो कर रोबिनहुड बनूँगा और अपने साथियों के साथ जंगल में छुपन-छुपाई का खेल खेलूँगा।"

"जंगल कोई खेलने का स्थान नहीं होता बेटा उसमें गुम भी हो सकते हैं। हाँ तो फिर एक दिन रोबिनहुड और उसके साथी शेरिफ और उसके आदमियों से बचते हुए गाँव की ओर निकल आए। गाँव वासियों ने उन्हें इशारे से घरों के अंदर छुपने को कहा और सब अपने कामों में ऐसे व्यस्त हो गए जैसे कुछ जानते ही न हों।

"ऐ... रोबिनहुड और उसके साथी भागते हुए इसी तरफ आए हैं क्या तुममें से किसी ने उन्हें देखा है..." शेरिफ की कड़कती आवाज आई।

"कौन रोबिनहुड... जॉन तुमने देखा है किसी रोबिनहुड को..."

"नहीं..." और जॉन अपने अगले साथी से पूछने लगा... उसका साथी और अगले आदमी से पूछने लगा...।

"खामोश... बेवकूफ समझ रखा है तुम लोगों ने हमें... शेरिफ गुस्से से बोला... मैं जानता हूँ कि तुम सब मिले हुए हो। चाहूँ तो अभी तुम्हारे घरों की तलाशी ले सकता हूँ।"

"उसके लिए आपको हमें तलाशी के कागजात दिखाने होंगें..." इतने में एक बच्चा रोते हुए अंदर से आया... "मम्मा भूख लगी है..." यह भी एक इशारा था कि रोबिनहुड और उसके साथी जंगल में भाग गए हैं।

"अरे भूख तो हमें भी लगी है। सब ने एकदम काम रोक दिया। शेरिफ हमारे पास जो थोड़ा रूखा-सूखा है आप भी आइए खा लीजिए..."

"हूँ... आज तो तुम और तुम्हारा रोबिनहुड बच गया अगली बार देखूँगा..."

"अगली बार तलाशी के कागजात लाना नहीं भूलना शेरिफ..." पीछे से आवाज आई।

शेरिफ और उसके साथी पैर पटकते हुए हमेशा की तरह वहाँ से खाली हाथ लौट गए।

रोबिनहुड व उसके साथी सदा हरे रंग की ही पोशाक पहनते थे। इस हरे रंग के कारण वे शेरिफ और उसके आदमियों से बचने के लिए जंगल के घने पेड़ों पर बैठ कर ऐसे लगते जैसे पेड़ का ही एक हिस्सा हों। बहीं से वह तीर कमान के साथ शेरिफ व उसके आदमियों की धुनाई करते थे। पेड़ों पर छुपने के लिए उनकी हरे रंग की पोशाक बहुत सहायक सिद्ध होती थी। यह पोशाक जो उन्हें पूरी तरह से ढके होती। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि सिर को माथे तक ढकने के लिए हुड यानी कि कमीज के साथ ही सिली हुई टोपी जो गर्दन से ले कर सिर को माथे के नीचे तक ढक दे।

"मम्मा मैं भी रोबिनहुड के जैसे कपड़े पहन कर उसके समान बहादुर बनूँगा।"

"बेटा कपड़े पहनने से ही कोई बड़ा आदमी नहीं बन जाता। उसके लिए खूब पढ़ना पड़ता है। चलो अब मैं आपको रोबिनहुड कॉसल दिखाती हूँ..."

रोबिनहुड के नाम से ही नोटिंघम शहर के बीचो बीच रोबिनहुड कॉसल है जिसमें रोबिनहुड का पूरा इतिहास छुपा है। उस समय के कपड़े, हथियार, बर्तन, तसवीरें, गहने आदि देखने को मिलते हैं। पर्यटकों को आकर्शित करने के लिए कॉसल के बाहर ही रोबिनहुड का तीर कमान पकड़े हुए बड़ा सा स्टेचू हैं जिसने हरे रंग के कपड़े पहने हुए हैं। इस रोबिनहुड के स्टेचु के साथ खड़े हो कर बच्चे ही नहीं बड़े भी तसवीर खिंचवा कर गर्व महसूस करते हैं।

"मम्मा रोबिनहुड के साथ मेरी फोटो भी खींचिए ना मैं अपनी टीचर और दोस्तों को दिखाऊँगा।"

निकोलस ने रोबिनहुड के साथ खूब तसवीरें खिंचवाईं। तीर कमान पकड़ कर वह स्वयं को किसी रोबिनहुड से कम नहीं समझ रहा था। बाहर तसवीरें लेने के पश्चात वो नोटिंघम कॉसल देखने गए।

कॉसल के दरवाजे के अंदर पाँव रखते ही आकाश को छूने के लिए सिर उठाए बड़े घने पेड़ चारों ओर अपनी बाँहें फैलाए सब आने वालों का स्वागत करते मिलते हैं। रंग-बिरंगे बगीचों में खिलते हुए फूल अपनी महक से लाखों तितलियों, भौंरों और पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करते हुए पर्यटकों का मन भी रिझाते हैं। यहाँ पर भी जंगल का माहौल बनाने का प्रयत्न किया गया है जिसका अनुभव करने के लिए दूर दूर से बच्चे आते हैं। कॉसल के अंदर ही दुकानें हैं। रोबिनहुड के समय की स्मारिकाएँ और बच्चों के लिए तीर कमान व और भी खेलने का सामान मिलता है। यादगार के लिए लोग एक दूसरे की तसवीरें उतारते दिखाई देते हैं।

तसवीरें तो नोटिंघम की ट्रॉम गाड़ियों की भी लोग खींचते हैं। यह ट्रॉम गाड़ियाँ भी नोटिंघम के आकर्षणों में से एक है। कैसे शहर के बीचो-बीच यह ट्रॉम चल रही होती हैं।

जब से नोटिंघम के आस पास की कोयले की खदानें बंद हुई हैं काफी मात्रा में काम की तलाश में नोटिंघम के लोग अपने पास के गाँवों व लेस्टर की ओर आने लगे। लेस्टर से नोटिंघम का फासला अधिक न होने के कारण आवागमन के लिए लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना भी नहीं करना पड़ता।

दिक्कतें तो छोटे दुकानदारों की बढ़ गईं यह सुन कर कि सरकार ने चौबीसों घंटे ही नहीं बल्कि रविवार को भी सारी सुपर मार्किट खोलने का कानून पास कर दिया है। इन सुपर मार्किट में केवल खाने पीने का ही नहीं बल्कि घर का हर छोटा बड़ा सामान बड़े अच्छे दामों पर बिकता है। कुछ सुपर मार्किट में तो सिले सिलाए हर प्रकार के प्रत्येक ऋतु के कपड़े और सस्ते जूते भी बिकते हैं। अच्छा साफ सुथरा रेस्तराँ जहाँ गर्मा-गर्म मनपसंद खाना खा सकते है। जब सब कुछ एक ही छत के नीचे मिल जाए तो कोई दूसरी दुकानों में क्यों जाएगा।

छोटी दुकानें इन बड़ी सुपर मार्किट का मुकाबला करने में अस्मर्थ दिखाई देने लगीं। धीरे धीरे यह कोने की दुकानें ही नहीं बल्कि और भी छोटे व्यापार बंद होने लगे। विरोध में लोगो ने अपनी आवाज भी उठाई और काफी तर्क भी सामने रखे परंतु किसी की एक न चली। सरकार की ओर से प्रत्येक तर्क का एक ही जवाब था कि इससे बहुत से लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी और वेलफेयर पर भी बोझ थोड़ा कम होगा।

चर्च के पादरियों ने भी सरकार के इस फैसले के विरुद्ध अपना सुझाव रखा कि एक रविवार का दिन ही तो है जब लोग परिवार के साथ चर्च में आते हैं। यदि रविवार को भी लोग काम पर जाएँगे तो चर्च भी बंद हो जाएँगे। बच्चों के धार्मिक शिक्षा से वंचित हो जाने से अच्छे बुरे का ज्ञान भी कम हो जाएगा। परंतु जब सरकार किसी बात को ठान लेती है तब असके सम्मुख प्रत्येक तर्क व्यर्थ साबित होता है। बस फिर क्या था बड़े मगर छोटी मछलियों को निगल गए। सब से अधिक कठिनाइयों का सामना पचास से ऊपर की आयु के लोगों को करना पड़ा। काम करने के लिए युवा जनसंख्या जो बढ़ रही थी।

कारखाने में पीस वर्क करके सरोज थक गई थी। घाटे पर जाती दुकान को देख कर वह चाह कर भी अपनी नौकरी ना छोड़ सकी।

ये चाहना न चाहना यदि आदमी के बस में हो तो वह इनसान कहलाना बंद कर देगा। सब कुछ अपने ही हाथ में होता तो लोग अच्छे जीवन की तलाश में दर-दर क्यों भटकते। माता पिता तो यही सोच कर संतुष्टि कर लेते हैं कि जो कष्ट उन्होंने सहे उस से बच्चे दूर हैं। तभी तो वह बिना कोई शिकायत किए आगे बढ़ते जाते हैं। बस यही पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आता है। शायद इसी को विधि का विधान कहते हैं।

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