Aadha Aadmi - 33 in Hindi Moral Stories by Rajesh Malik books and stories PDF | आधा आदमी - 33

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आधा आदमी - 33

आधा आदमी

अध्‍याय-33

‘‘जो काम तुमने भइया के साथ किया हैं, उसे अल्लाह भी कभी माफ़ नहीं करेगा। और रही बात मेरी तो मैं भइया को कभी हिजड़ा बनने न देता। मैं खुद उन्हे कमा के खिलाता। मगर तुमने तो अपने स्वार्थ के लिए भइया की जिंदगी ब्रबाद कर दी.’’ इसराइल की बातें ज्ञानदीप के हदय को स्पर्श कर गई।

उसके मन में आया कि उठे और ताली बजाकर कहे, ‘जहाँ तुम जैसे हमदर्द होगों वहाँ फिर कोई दूसरा दीपक से दीपिकामाई नहीं बन सकेगी.‘

बहस इस कदर दोनों में बढ़ गई कि नौबत मारपीट तक आ गई।

इसराइल गुस्से में आँख लाल-पीली करके चला गया।

ज्ञानदीप चुपचाप बैठा रहा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ से अपनी बात शुरू करें। क्योंकि माहौल पूरी तरह गम्भीर हो गया। कुछ देर तक खामोशी छायी रही।

मगर ज्ञानदीप के पूछते ही खामोशी भंग हुई, ‘‘जब आप आप्ररेशन के बाद अपनी अम्मा से मिलने गई तो कहीं भी आपने अपनी डायरी में अपनी बेटी का जिक्र नहीं किया.‘‘

‘‘बेटा! मैं नहीं चाहती थी कि मेरी काली परछाई भी मेरी बेटी पर पड़े। इसलिए मैंने अपने दिल पर पत्थर रखकर उससे मिलना-जुलना कम कर दिया। ऐसा नहीं था कि मैं उससे प्यार नहीं करती थी। अब तुमसे क्या बताऊँ बेटा, मैंने एक-एक पल उसके बगैर कैसे काटे यह तो मैं जानती हूँ या मेरा ख़ुदा जानता हैं.‘‘ कहती-कहती दीपिकामाई भावुक हो गई। और बोली, हिजड़ा बनने की इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी यह मैंने कभी सोचा नहीं था.‘‘

‘‘माई मैं माफी चाहूँगा, मेरे पूछने का मतलब आप को रूलाना नहीं था.’’

‘‘इसमें माफी की क्या बात हैं बेटा, वर्षो पुराना यह ग़म मुझे दिन-रात खाये जा रहा था। आज तुम्हें बता कर ऐसा लग रहा हैं जैसे मेरे ऊपर से कोई बहुत बड़ा बोझ हट गया हो.‘‘

‘‘माई! क्या आप लोगों में भी संप्रदाय होते है?‘‘

‘‘हाँ! होते हैं। जानते हो मूल रूप से हम लोगों का देवता एक हैं, पर हम लोग उस देवता से अपना रिश्ता अलग-अलग ढ़ंग से जोड़े हुए हैं.‘‘

‘‘वह कैसे?‘‘

‘‘हम लोग ‘बुचरामाता‘ को पूजते हैं। और बुचरा माता चार बहनें थी। उनमें बुचरा सबसे बड़ी थी और वह हिजड़ा बन गई। शेष तीन बहनों को भी उन्होंने अपने व्यार के कारण हिजड़ा बना दिया। इन चारों की संताने नहीं थी। मगर इन लोगों ने पुरूषों को गोद लेकर अपनी संतानें घोषित कर दी। इसी आधार पर हिजड़ों की चार शाखाएँ बन गई.‘‘

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.‘‘

‘‘पहले पूरी बात तो सुनो.‘‘

‘‘जी.‘‘

‘‘बुचरामाता का सप्रंदाय, उनकी बहन नीलिका का सप्रंदाय, तीसरी बहन मनसा का सप्रंदाय, चैथी बहन हंसा का सप्रंदाय। बुचरामाता की शाखा में पैदाइशी हिजड़े आती हैं। नीलिका शाखा में वह आती हैं जो किसी शारीरिक खराबी के कारण हिजड़ा बन जाती हैं.‘‘ कहकर दीपिकामाई ने पान की गिलौरी मुँह में रखी और अपनी बात बताने लगी, ‘‘हिजड़ों के चार वर्गों में भी जातिगत भेदभाव होते है। बुचरा हिजड़ो की गिनती शूद्र के सामान होती हैं। जब भी हम लोग कोई पर्व मनाते हैं तो यह ध्यान रखते हैं कि कौन बुचरा हैं, कौन नीलिका हैं, कौन मनसा, कौन हंसा हैं। इसी आधार पर उन्हें कार्यक्रमों में भाग लेने दिया जाता है। नीलिका हिजड़े का काम केवल गाना, गाना और ढपली बजाना हैं। मनसा का काम हिजड़ा बनाने वाले व्यक्ति के लिए सामान इकट्ठा करना हैं। हंसा का काम तब सफाई करना हैं जब बुचरा किसी को हिजड़ा बना रही होती हैं। इसी प्रकार जब कोई हिजड़ा मर जाती हैं। तो उसकी कब्र खोदने के लिए कोई भी बुचरा या नीलिका या मनसा नहीं आएगी। कब्र खोदने का काम हंसा शाखा के हिजड़े करती हैं। हिजड़े के शव को केवल हंसा शाखा के हिजड़े ही हाथ लगाती हैं। जब कब्र में लाश डाल दी जाती हैं तो उस पर मिटटी की पहली मुठ्ठी बुचरा डालती हैं। जब लाश पूरी तरह से दफ़न कर दी जाती हैं.‘‘ दीपिकामाई ने पीकदान उठा कर पीक की और अपनी बात आगे बढ़ाते हुई बोली, ‘‘हंसा संप्रदाय के हिजड़े ही उसे जूते, चप्पल से पीटती हैं। इसके बाद सब मिलकर मर जाने वाले को गालियां देती हैं और उसकी कब्र पर थूकती हैं........।‘‘

इसी बीच शोभा खाना ले आयी थी। पहले तो ज्ञानदीप ने न-नुकूर किया फिर उसे दीपिकामाई की जिद् के आगे खाना ही पडा़। खाने के बाद दीपिकामाई सिगरेट का कश लेकर अधलेटी-सी पंलग पर लेट गई। ज्ञानदीप कुर्सी पर बैठा था।

दीपिकामाई ने पूछा, ‘‘ऐसा हैं भैंया कोई डॉक्टर से पूछो जैसे हमारे पेशाब नहीं उतरती हैं। ऐसे बहुत साल पहले जब हुई थी तो इसराइल ने डाॅक्टर को दिखाया था।

उसने आप्ररेशन करने को कहा था पर हम भाग आई थी.‘‘

‘‘पेशाब न उतरने पर आप्ररेशन.......मैं कुछ समझा नहीं‘‘ ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘जब मैंने अपनी जवानी में लिंग कटवाया था। तभी डॉक्टर ने कहा था कि दो-तीन महीनों में आना सलाई से साफ कर देंगे, मगर मैं नहीं गई। धीरे-धीरे हार्मोन्स निकलना बंद हो गई.‘‘

‘‘इसका मतलब अगर हार्मोन्स नहीं निकलेगा तो पेशाब नहीं होगी.‘‘

‘‘नहीं.‘‘

‘‘माई, यह बताइए जब आपने आप्ररेशन करवाया था तो क्या लिंग को जड़ से काट दिया था?‘‘

‘‘गोली-वोली सब काट-पीट के अलग कर दीहिन राहे, फिर वही जगह टाँका लगाई दीन राहे.‘‘ इस बार ड्राइवर ने बताया।

‘‘फिर पेशाब कैसे होता हैं?‘‘

दीपिकामाई पान की गिलौरी मुँह में रखकर बताने लगी, ‘‘उसी जगह पर एक महीन-सा छेद हैं उससे पेशाब होती हैं.‘‘

‘‘हार्मोन्स न निकलने के कारण प्राब्लम होती होगी?‘‘

‘‘पर अब कहा बेटा, इन सब चीजों से हमें घिन सी हो गई हैं.‘‘

‘‘हज़ार चूहे खा के बिल्ली हज़ को चली.‘‘ ड्राइवर ने कमेंट की।

दीपिकामाई के तन-बदन में जैसे आग लग गई हो। जैसे आज-कल अमर सिंह की छीटा कशी पर मुलायम सिंह यादव को लगती हैं।

दीपिकामाई ने ताली बजाई, ‘‘हाँ तुम बड़े दूध के धोय हों, हमारा मुँह न खुलवाओं नहीं तो मुँह-गाँड़ छुपाते फिरोंगे.‘‘

ड्राइवर के चेहरे की फीकी मुस्कान ठीक लालू प्रसाद यादव की तरह थी। एक-दूसरे की छीटाकशी से ज्ञानदीप समझ गया था कि जवानी के दिनों में दोनों ने क्या-क्या गुल खिलाये होंगे।

ज्ञानदीप एक के बाद एक सवाल किये जा रहा था, ‘‘अच्छा माई, एक बात और बताइए आप्ररेशन कराने के बाद क्या ज़िस्म में हरकत होती हैं?‘‘

दीपिकामाई ने बताया, ‘‘जैसे लिंग खड़ा हो जाता हैं वैसे ही सारी नसें तन जाती हैं.’’

‘‘माई! क्या आपको किन्नर बनने पर कभी पछतावा हुआ?‘‘

इस सवाल से दीपिकामाई सोच में पड़ गई। जैसे गहन चिन्तन कर रही हो। काफी सोचने-विचारने के बाद वह सीरियस हो गई, ‘‘बाद में पछताने से क्या फायदा जो होना था वह तो हो ही चुका। शायद हमारे मुकदर में यही लिखा हो, भाग्य के आगे किसकी चली हैं.‘‘

‘‘माई! अगर आप किन्नर न बनती तो क्या किन्नर समाज आप को कुबूल करता.‘‘

दीपिकामाई अनसुना करती हुई पूछ पड़ी, ‘‘कोई डॉक्टर से पूछो दवा से ही ठीक हो जाए.‘‘

ज्ञानदीप समझ गया था कि दीपिकामाई इस वक्त ज़वाब नहीं देना चाहती। खैर, कोई बात नहीं में पूछ लूँगा। मन ही मन उसने अपने आप को समझाया।

‘‘क्या हुआ बेटा, कहाँ खो गये ?‘‘

‘‘कुछ नहीं बस यूँ ही....चलिए मैं आप को डॉक्टर को दिखा दे या कहिए तो होमियोपैथिक में पता करे.‘‘

‘‘होमियोपैथिक के डॉक्टर ने कहा था, जब मेरी दवा खाओंगे तो पेशाब खुलकर आयेगा। मगर सिगरेट, शराब, मसाला सब कुछ छोड़नी पड़ेगी.‘‘

‘‘और यह सब इनसे होगा नहीं.‘‘ ड्राइवर ने कहा।

दीपिकामाई लेटी-लेटी मुस्करा रही थी।

ज्ञानदीप ने बाबा रामदेव की तरह समझाया, ‘‘लापरवाही मत कीजिए ज़ान हंै तो ज़हान हैं। अगर यह सब छोड़ने से फायदा होता हैं तो छोड़ दीजिए.‘‘

‘‘अब जीते जी कहाँ छोड़ पायेगी बेटा, जहाँ इतनी ज़िंदगी कट गई। बची-कुची वह भी कट जायेगी.‘‘

ड्राइवर ने समझाया, ‘‘ऐसा करो न अपने गुरू की तरह चाँदी की सलाई बनवा लो, जब पेशाब न आये तो छेद में डाल कर साफ कर लो.‘‘

‘‘माई! क्या सभी हिजड़े यही करती हैं.’’ ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘हाँ.‘‘ दीपिकामाई ने कहा।

इसी बीच तीन किन्नरें आयी और सलाम करके टोली की तैयारी करने लगी। दीपिकामाई ने उगलदान उठाकर पीक की और अपनी बात कहने लगी, ‘‘जहाँ-जहाँ बधाई अड़ी-गली ख्बत्तमीज़ जजमान, की हैं। उसी बधाई पर पिटना डाल के और हंगामा करके बधाई लेना.‘‘

‘‘ठीक हैं अम्मा, हम जा रही हैं.’’

लगभग आँधे घँटे बाद एक जजमान दौड़ता आया, ‘‘गुरू जी, आप के लड़के की शादी हुई हैं। आप जो कहों वह बधाई यहाँ आप को दे दूँ। मगर घर पर जितने बंदे आप की गई हैं वे सब बहुत हंगामा किये हुई हैं.‘‘

‘‘हमारे बंदे आप से क्या माँग रही हैं?’’

‘‘इक्यावन सौ रूपये.‘‘

‘‘आप क्या दे रहे हैं?‘‘

‘‘मैं एक सौ इक्यावन दे रहा हूँ.‘‘

‘‘आज कल जो बर्तन माँजती हैं, नर्क साफ़ करती हैं वे भी इतनी बधाई नहीं देती। आप तो राजा-महाराजा हैं। पहले बेटे की शादी किया हैं उसी में आप की टूटी पड़ गई। अगर लड़की की शादी किया होता तो जो भी आप देते वह हम ले लेते। खूब तिलक चढ़ा हैं और दान-दहेज से बहूँ आई हैं.‘‘

कहकर दीपिकामाई उठी और ज्ञानदीप को लेकर उस जजमान के घर आ गई। और चेलों की तरफ मुख़ातिब हुई, ”तीन हिजड़े होकर भी तुम लोग बधाई नहीं तोड़ सकी.”

‘‘क्या करती अम्मा, आप के जजमान ही ऐसे हैं.‘‘ शकीला ने हाथ हिलाकर कहा।

‘‘चलो निकालों बधाई.‘‘

‘‘गुरू जी, अभी मैं बहुत परेशानी में हूँ, इसे ले लो बाकी मैं बाद में दे दूँगा.‘‘

‘‘ऐसा हैं पंड़ित जी, हम कटा-पिटा दान नहीं लेती। मरे मोटा तो मिले लोटा, यह तो आप बाभन लोग करते हैं। और हम लोग बाभन कटइयां नहीं है। हम हिजड़े हैं बडन्ती का दान खाती हैं मरने का दान हिजड़े नहीं लेती हैं। यह सब बाभन लोग लेते हैं। अगर आप को देना हैं तो शुभ का ग्यारह सौ दीजिए, नहीं तो आप रख लीजिए हम दो दिन के बाद आयेंगे.”

‘‘अक्षत ले जाइये ग्यारह सौ हम आप के घर पहुँचा देंगे.”

‘‘नहीं जब आप बधाई देंगे तभी अक्षत लूँगी। इस अक्षत को बाँध के रख दीजिए हम लोग दो दिन बाद आयेंगे.‘‘

दीपिकामाई ज्ञानदीप को लेकर घर आ गयी। और अपनी बात बताने लगी, ‘‘ऐसे एक बार हम लोग मारवाड़ी की बारात में गयी थी। वह जजमान बहुत बत्तमीज़ था। उसने छुटते ही कहा, अगर बधाई नहीं देगें तो क्या कर लेगी?‘‘

वैसे ही मेरी चेला बोली, ‘‘मैंया! जब तक यह नंगा खुला नहीं करायेगा तब तक के यह बधाई नहीं देगा.‘‘

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