Sulajhti Gaanthe in Hindi Short Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | सुलझती गाँठे

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सुलझती गाँठे

डॉक्टर मोहित एक मशहूर मनोरोग चिकित्सक थे जो रिटायरमेंट के बाद अपने गृहनगर कुन्नूर में अपनी सेवायें दे रहे थे।

रोज की तरह आज भी जैसे ही उन्होंने क्लीनिक में प्रवेश किया, कुछ लोग पहले से ही बाहर बैठे हुए थे। उन्होंने मरीज को अंदर आने के लिए कहा।

३५ वर्षीया आभा ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए बताया - "कल रात से बहुत चक्कर आ रहे हैं और बहुत घबराहट भी हो रही है। मैं अपने कुछ मित्रों के साथ मुंबई से यहाँ घूमने आयी हूँ और कल रात से तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही।"

"क्या पहले भी कभी आपको ऐसे घबराहट और चक्कर आ चुके हैं या ये सब पहली बार महसूस हो रहा है?" आभा की बातें सुनकर डॉ मोहित ने पूछा।

आभा ने बिना कुछ कहे अपने मोबाइल में सेव्ड रिपोर्ट्स और कुछ प्रिस्क्रिप्शन डॉ मोहित के सामने रख दिए।

प्रिस्क्रिप्शन में कुछ ट्रैंक्विलाइज़र, एंटी डिप्रेसेंट्स और स्लीपिंग पिल्स लिखी हुई थी।

"ये दवाइयां कबसे ले रही हैं आप ?" डॉ साब ने मोबाइल स्क्रीन पर स्वाइप करते हुए पूछा।

"जी यही कोई पिछले १० सालों से मेरा इलाज़ मुंबई में चल रहा है।"

कुछ और रिपोर्ट्स देखकर पता चला की पिछले कई वर्षों में इन दवाइयों बदल बदल कर, घटा बढ़ाकर दिया गया है और साथ ही में उनमें से एक प्रिस्क्रिप्शन शिकागो के किसी मनोविशेषज्ञ का भी था। उसमें लिखी हुई दवाइयां काफी स्ट्रांग थी।

"क्या आप अपने इलाज के लिए शिकागो भी गयी थी ?"

"मेरी छोटी बहन विभा अपने पति संदीप और बच्चों के साथ वहां पर सेटल्ड है। उनसे मिलने के लिए मैं शिकागो गयी थी पर वहां भी मेरी तबियत बहुत ख़राब हो गयी थी।"

डॉ साब अब तक समझ चुके थे कि यह मामला मनोदैहिक अर्थात साइकोसोमैटिक बीमारी का लगता है। उनका इलाज का तरीक अन्य डॉक्टर्स से थोड़ा अलग था। वे जानते थे की ब्रेन एक ऑर्गन है और मन उसको चलाने वाली शक्ति है। दवाईयां ब्रेन के लिए दी जा रही हैं जबकि बीमारी तो मन में है अतः कुछ दवाईयां लिखकर उन्होंने आभा को अगले दिन आने को कहा।

दूसरे दिन आभा को तबियत कुछ बेहतर लग रही थी। वह तय किये हुए समय पर क्लीनिक पहुँच गयी। डॉ मोहित ने चाय मंगाई और इधर उधर की बातें करने लगे। आभा भी अब थोड़ी कम्फ़र्टेबल फील कर रही थी इसलिए खुलकर बातें करने लगी। डॉ साब ने बातों बातों में पूछा, "आपकी बहन शिकागो में है और आपका परिवार कहाँ पर है ?"

"जी मैंने शादी नहीं की।"

डॉ साब की अनुभवी नज़रों ने परख लिया था और अब वे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी आज़माना चाहते थे अतः उन्होंने प्रश्न किया, "अरे ऐसा क्यों? इसकी कोई ख़ास वज़ह?"

आभा के सब्र का बाँध अब टूटने लगा था। डॉ साब के मित्रवत व्यव्हार के कारण उसने अपनी भावनाएं उनके साथ साझा करने का निर्णय लिया।

"संदीप और मैं यूनिवर्सिटी ऑफ़ मुंबई में साथ में पढ़ते थे। हम दोनों अच्छे दोस्त थे। घर पर भी आना जाना था। मेरी पसंद और मित्रता धीरे धीरे प्यार में बदलने लगी लेकिन यह प्यार एकतरफा साबित हुआ। विभा और संदीप एक दूसरे को चाहने लगे और संदीप अमेरिका जाने से पहले शादी करना चाहते थे। कुछ महीनों बाद वे शादी करके अमेरिका चले गए। यह सदमा में सेहन नहीं कर पायी। दोनों के प्रति ईर्ष्या की भावना बढ़ने लगी लेकिन यह ऐसा रिश्ता था कि जिससे छूट पाना भी संभव नहीं था। अवसाद और अनिद्रा का इलाज तब से ही चल रहा है। शिकागो में उनकी खुशहाल ज़िन्दगी देखकर मन हीनभावना से भर उठता है।" यह बताते हुए आभा खुद को रोक नहीं पायी और रोने लगी।

डॉ मोहित ने कहा "आज आप जी भर कर रो लीजिये और जो कुछ भी इतने सालों में आपने दबाकर रखा है सब कह डालिये।"

आभा ये सारी बातें साझा करके हल्का महसूस कर रही थी।

डॉ साब ने कहा, "देखिए आभा, इस बात के दूसरे पहलू पर भी विचार करिये। अगर आप विभा को अपने मन की बात बताती तब वह भी आपकी तरह त्याग करती लेकिन क्या तब संदीप खुश रह पाते? त्याग करना ख़ुशी देता है किन्तु आपने अपनी बहन की ख़ुशी के लिए त्याग के साथ ईर्ष्या की गाँठ भी बाँध ली। अपनी बीमारी के लिए आप स्वयं जिम्मेदार है इसलिए अब इसे ठीक भी आपको ही करना होगा।"

डॉ मोहित की इस थेरेपी से आभा को धीरे धीरे यह बात समझ में आ रही थी लेकिन अभी भी उसके मन में प्रश्न था, "डॉ साब आप सही कह रहे हैं। पर मैं इससे कैसे छुटकारा पाऊँ? ये दवाईयां कुछ देर के लिए राहत देती हैं किन्तु फिर से वही विचार दिमाग में बार बार घूमने लगते हैं।"

डॉ साब ने समझते हुए कहा, "देखो आभा! आपके भीतर ही इसका हीलर है। आपने स्वयं को अब तक बहुत कष्ट दिया है इसलिए अब आपको खुद ही खुद को माफ़ करना होगा। आपको प्रबल आंतरिक इच्छा शक्ति की जरूरत है जो सिर्फ मैडिटेशन से ही प्राप्त हो सकती है।"

"लेकिन डॉ साब मैं तो ३-४ दिन बाद वापस मुंबई जा रही हूँ।" आभा ने कहा।

डॉ मोहित ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, "आप मुझसे फ़ोन पर भी कॉउंसलिंग कर सकती हैं। मैं ऑनलाइन sessions भी करता हूँ।"

डॉ साब को धन्यवाद देकर आभा वापस हॉटेल लौटी। अब उसे डॉ साब की सारी बातें अच्छी तरह समझ आ गयी थी कि -

"तन का इलाज मेडिकेशन है और मन का मैडिटेशन। और इसी से मानसकि शांति की राहें खुलती हैं।"