वर्तमान समाज में नारी की सम्मानजनक स्थिति
वर्तमान भारतीय समाज में स्त्रियों के प्रति सम्मान भाव का अध्ययन-विश्लेषण करते हैं , तो पता चलता है कि यहाँ प्राचीन काल से ही नारी को शक्ति स्वरूपा माना गया है । दुर्गा देवी, चंडी देवी , काली देवी , गार्गी , अनुसूया आदि नाम उक्त कथन को पुष्ट करते हैं । शास्त्रों में इसका सम्यक वर्णन भी मिलता है और प्रमाण भी । 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमंते तत्र देवता' कहकर भी नारी की सम्मानजनक स्थिति की ओर संकेत किया गया है ।
किंतु , दूसरी ओर हमारे शास्त्र जन्मतः लिंग के आधार पर पुरुष को स्त्री से श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं । स्त्री को उसके शारीरिक-मानसिक विकास के प्रत्येक उत्तरोत्तर चरण में पिता , पति और पुत्र की रक्षणीया घोषित करके पैतृक सत्ता का समर्थन करते हैं और स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को नकारते हैं । स्त्री को रक्षणीया घोषित करके यह उसकी स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं । इसी आधार पर बालिकाओं को उनकी नैसर्गिक प्रतिभा-क्षमता के विकास के लिए समुचित अवसर देने में भेदभाव भी होता रहा है । पितृसत्तात्मक समाज में जब हम नारी के प्रति पुरुष के व्यवहारिक पक्ष पर दृष्टिपात करते हैं, तो शैक्षिक-आर्थिक-सामाजिक- -धार्मिक-राजनीतिक आदि सभी क्षेत्रों में स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत शोचनीय ही पाते हैं । शास्त्रीय धारणाओं का आश्रय लेकर पितृसत्तात्मक समाज में पले हुए पुरुषों की मानसिकता इस सीमा तक विकृत हो गयी है कि किसी भी क्षेत्र में स्त्री को स्वयं से श्रेष्ठ पाकर भी वह उसकी सत्ता स्वीकार करने में संकोच करता है । यह विडंबना का विषय है कि घर और बाहर दोनों जगह महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णायक भूमिका में स्त्री सदैव दूसरे नंबर पर ही रहती है । यद्यपि आधुनिक शिक्षा प्रणाली से पुरुषों की यह मानसिक विकृति पर्याप्त सीमा तक दूर हुई है तथापि आज भी स्त्रियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित पुरुषों की समाज में कमी नहीं है ।
पुरुषों के व्यवहार में स्त्रियों के प्रति सम्मान विषय पर चर्चा करें , तो आज 'सम्मान' शब्द का अर्थ निर्धारण लिंग भेद से ऊपर उठकर एक विस्तृत फलक की अपेक्षा रखता है । आज यह शब्द अवधारणात्मक हो गया है और नयी परिभाषा की माँग करता है । सामान्यतया 'सम्मान' शब्द किसी एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के प्रति उसके व्यवहार पक्ष को उद्घाटित करता है , भावात्मक पक्ष को नहीं । प्रकारांतर से विचार किया जाए , तो यह शब्द शक्तिसंपन्नता का आभास कराता है । जो शक्तिशाली है , चाहे-अनचाहे हर व्यक्ति उस सशक्त व्यक्ति - चाहे वह स्त्री हो या पुरुष का सम्मान करने के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तत्पर और सामाजिक रुप से विवश अनुभव करता है । इसके विपरीत होने पर परिणाम प्रतिकूल होते हैं । शक्तिविहीन व्यक्ति के प्रति कोई भी सामान्य व्यक्ति अपने हृदय में दया का भाव रख सकता है , सम्मान का नहीं ! मानवता के स्तर से नीचे गिरकर यही व्यक्ति कई बार किसी अशक्त के प्रति अपमान या अत्याचार का व्यवहार भी करता है । प्रायः किसी शक्तिशाली के प्रति अपमान या अत्याचार का व्यवहार करने पर भयंकर परिणाम की संभावना उसकी चेतना के किसी कोने में सदैव सुरक्षित रहती है । कई अवसरों पर इसका अपवाद भी देखा जाता है । जब हम किसी मानसिक-सामाजिक दबाव के बिना भी अक्सर किसी वयोवृद्ध के समक्ष खुद-ब-खुद नतमस्तक हो जाते हैं , किंतु , तब इस व्यवहार को सम्मान न कहकर श्रद्धा ही कहा जाए, तो अधिक समीचीन होगा ।
अब हम बात करते हैं कि क्या पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में स्त्रियों के प्रति पुरुषों का दृष्टिकोण परिवर्तित हुआ है ? या कहें कि पुरुषों की विकृत मानसिकता में पुष्पित-पल्लवित नारी-जाति के विरुद्ध पूर्वाग्रह तथा रूढ़ धारणाएँ कंप्यूटर-इंटरनेट के इस युग में ध्वस्त हुए हैं अथवा नहीं ? इस प्रश्न के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि वर्तमान शिक्षा और संवैधानिक परिस्थितियों में उनकी मानसिक जकड़न बहुत कुछ टूटी है और स्त्रियों के प्रति पुरुषों कट्टरता कम हुई है ; स्त्रियों का सम्मान बढ़ा है । लेकिन , यह उत्तर उसी सीमा तक अपना अर्थ ग्रहण करने की सामर्थ्य रखता है , जहाँ रूढ़ियो को तोड़कर आगे तार्किक दृष्टिकोण का परिवेश निर्मित हो चुका है । यह उत्तर उन्हीं पुरुषों पर लागू होता है , जो प्रगतिशील परिवेश में पले-बढ़े हैं या आधुनिक शिक्षा ग्रहण करके उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं ।
आधुनिक शिक्षा का ही परिणाम कह सकते हैं कि आज सम्मान की अवधारणा का संबंध लिंग-आधारित न रहकर शक्ति पर आश्रित है । आज जबकि हर क्षेत्र में - शिक्षा-जगत हो या खेल-जगत मातृशक्ति अपनी प्रतिभा-सामर्थ्य की विजय-पताका फहरा रही है ; विदेश मंत्रालय हो या रक्षा मंत्रालय मातृशक्ति अपने नेतृत्व और कर्तृत्व से सारी दुनिया को स्वयं के शक्तिस्वरूपा होने का परिचय दे रही है , तब कोई कारण नहीं रह जाता कि पुरुष इस शक्तिस्वरूपा स्त्री-जाति का सम्मान ना करें ! किन्तु , दूसरी ओर यह भी एक कटु सत्य कि अनेकानेक कारणों से आज भी जहाँ कहीं भी , जो भी स्त्री शारीरिक-बौद्धिक-आर्थिक शक्ति अर्जित करके स्वयं को शक्तिस्वरूपा सिद्ध करने में विफल है, वहाँ वह घर से बाहर तक इस सम्मान से वंचित ही दिखाई देती है , क्योंकि आज सम्मान के व्यवहार का निर्धारण लिंग के आधार पर कम , किसी भी प्रकार की शक्ति और सामर्थ्य से नियंत्रित होता है ।