नदी का एक बहुत पुराना प्रेमी है गगन, दोनों एक दूसरे को सदियों से देखते चले आ रहे थे. दोनों ने कई हज़ार साल एक दूसरे को देखा, देखते देखते दोनों में प्यार हो गया. नदी ने कहा हम ज़रूर मिलेंगे आकाश ने कहा हाँ हम ज़रूर मिलेंगे.
आकाश ने कहा नदी से मैं सागर को जानता हुँ तुम अपने सफ़र से वहां चली आओ हम वहां मिल सकते हैं.
नदी ने अपना सफ़र, आकाश से मिलने का सफ़र, शुरू किया, चलने लगी उसको देखते हुए चलने लगी. सालों बाद सागर पहुंची, बहुत खुश थी बेचारी, उसकी आँखें बहने लगीं, सागर ने पूछा क्या हुआ रो क्यों रही हो? नदी ने आकाश की तरफ इशारा कर के कहा वो देखो मेरा प्रेमी, बहुत लम्बा सफ़र था, अब हम मिल सकेंगे, यह कहते हुए हंसती जा रही थी और उसकी आँखों से आंसुओं की कतार भी बहती जा रही थी. सागर ठहाका लगा के खुब जोर जोर हँसने लगा.
हँसता जा रहा था और बोलता जा रहा था "आसमान से मिलने आयी हो" आसमान से मिलोगी और हंस दे, नदी की हंसी एक दुखी लाचार हंसी से होते हुए एक उलझन भरी मुस्कराहट में बदल गयी. उसने कहा इस मुलाक़ात में अब देर ही क्या है?
सागर ने कहा जाओ मिल लो वो रहा आसमान. नदी आपनी परेशान मुस्कान के साथ आसमान से मिलने चलदी. चलते चलते उसको ये यकीन हो ही रहा था कि आसमान अब उसे मिलने ही वाला है, सागर की एक बहुत बड़ी लहर उसे सामने से आते हुए दिखाई दी, नदी ने पीछे मुड़ के बड़ी दुखी असहाय आँखों से सागर की ओर देखा, वह जान गयी की आसमान से उसका मिलन कभी भी न हो पायेगा. उधर सागर अपनी शक्ति प्रदर्शन से बाज न आ रहा था बार बार नदी पर अपना प्रभाव डाल रहा था. नदी को खुद को सागर से भी बचाना था उसके पास भी रहना था. नदी अपनी प्रतिष्ठा आसमान के लिए बचाना चाहती थी, अपने गगन के लिए अपना नारित्व संभालना चाहती थी, जिससे उसके प्रेम में कोइ दाग़ ना लग जाये, नभ से उसका इस जन्म में तो मिलन न हो पाया तो क्या हुआ उसने ठानी की वो बिन ब्याही, अम्बर की प्रेमिका बन कर रहेगी और बार बार जन्म लेती रहेगी और अपने आकाश से मिलने का कभी ना ख़त्म होने वाला सफ़र तय करती रहेगी. और आज यहाँ, धन्य है वो नारी जो अपने प्रेम की निर्मलता और नारित्व के लिए सति होती है और खुद के आंसुओं में बहती है. ये उसकी इच्छा नहीं बल्कि उससे कहीं उच्च है ये उसका प्रेम है. नदी ने रो रो कर अपने अथाह प्रेम के परिणामतः खुद को अपने ही आंसुओं में बदल लिया. इसीलिए सागर नमकीन है.
भगवान भी प्रेमी हैं प्रेम के इस उत्कृष्ट उदाहरण को उन्होंने व्यर्थ ना जाने दिया, उन्ही नमकीन आंसुओं में, प्रेम अश्रुओं में, नदी के आंसुओं में अपना घर बनाया.कहते हैं भगवान विष्णु जो सृष्टि के रचइता हैं सागर में ही विद्यमान हैं, वहीं निवास करते हैं.
हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव