30 शेड्स ऑफ बेला
(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)
Episode 4: Ravi S Shankar रवि एस शंकर
मन बसंत में आया पतझड़
बेला की आंखें अचानक खुल गईं।
आशीष के साथ पूरा दिन बनारस दर्शन करने के बाद वह इतनी थक गई थी कि रात को आठ बजे होटल के कमरे में पहुंचते ही बिना कुछ खाए-पिए वह बिस्तर पर गिरते ही सो गई। उसे वैसे खास भूख भी नहीं लगी थी, क्योंकि छोटू ने उसे पूरा दिन कभी किसी खोमचे पर तो कभी किसी ढाबे पर खूब खिलाया-पिलाया था। आशीष ने तो कहा भी था कि बनारस की अलियों-गलियों में घूमने के लिए खाते-पीते रहना भी शहर को देखने का एक हिस्सा है।
आंख खुलने के बाद दो पल वह असमंजस में रही, पिछले दिनों ना जाने कितने शहरों में रही है कि समझ नहीं आया कि वह कहां है। अहसास हुआ, वह बनारस के एक होटल में है। बनारस की वो खास खुशबू, शहर की अलियां-गलियां, खान-पान, हल्ला-गुल्ला एकदम से उसकी जहन में आ गया।
दरवाजे पर फिर से किसी ने हल्की सी दस्तक दी। बेला तुरंत उठ बैठी। इसी वजह से उसकी आंख खुली है। कौन है जो रात के इस वक्त उससे मिलने आया है?
उठ कर कमरे की बत्तियां जलाने के बाद अपने आपको समेट कर वह दरवाजे के पास आई, ‘कौन है?’ उसने सावधानी बरतते हुए बहुत धीमी आवाज में पूछा। उसने आसपास देखा, क्या समय हो रहा है (इस समय उसे अपने मोबाइल की कमी शिद्दत से महसूस हुई जो अलार्म क्लॉक, वॉच और ना जाने किन-किन चीजों के लिए इस्तेमाल होता था), बिस्तर के सिराहने रखा टेबल क्लॉक समय बता रहा था कि रात के लगभग तीन बज रहे हैं। इस वक्त उसे परेशान करने कौन आया है, वह चकरा गई।
‘मैडम, मैं रिसेप्शन से हूं। आपके कमरे का टेलीफोन काम नहीं कर रहा। आपसे मिलने कोई आया है।’
‘इस समय? कौन है?’
‘पोलिस है मैडम। उनको आपका खोया सामान मिल गया है।’
बेला ने राहत की सांस ली, ‘मुझे पांच मिनट दीजिए। मैं रिसेप्शन पर आ रही हूं।’
‘ओके मैडम।’
मुंह धो कर तैयार होने में उसे पंद्रह मिनट लग गए। जब वह रिसेप्शन पर पहुंची, तो वहां सोफे पर पुलिस का यूनिफॉर्म पहने एक आदमी बैठा था। बेला को देखते ही वह खड़ा हो गया, ‘मैडम जी, मैं इंद्रपाल यादव, जैतपुरा पोलिस स्टेशन से। क्या आप मेरे साथ आ सकती हैं?’
‘जी जरूर। मेरा पर्स और सामान कहां हैं?’
‘वो तो एसएचओ साहब बताएंगे मैडम जी।’
होटल के बाहर एक ऑटो खड़ी थी। बेला थोड़ा चौंकी, ऑटो? पोलिस की गाड़ी नहीं है क्या?
‘मैडम जी, रास्ते में हमें एक लेडीज को साथ लेना है। आपको दिक्कत तो नहीं है ना?’ ऑटो में बैठते ही साथ इंद्रपाल ने पूछा।
‘ठीक है। पर ज्यादा समय तो नहीं लगेगा ना।’
बनारस की सड़कें इस वक्त एकदम खामोश थीं। थोड़ी देर में ऑटो एक जर्जर से मकान के सामने रुकी।
‘मैडम जी, आप भी अंदर आएंगी क्या? घर में सिर्फ जनानी लोग हैं। आपसे बात करके उनको अच्छा लगेगा।’
बेला एक क्षण को ठिठकी। अनजान नगर में अनजान से घर में जाना क्या सही रहेगा? पर बेला ने कुछ सोच कर यह ख्याल दिल से निकाल दिया। जरा सी देर की ही तो बात है, फिर… इंद्रपाल ने दरवाजे को हलका सा धक्का दिया और दरवाजा अपने आप खुल गया। यानी दरवाजा बंद नहीं था? बेला चौंक गई, तो क्या उनको पता था कि हम लोग आने वाले हैं?
‘मैडम जी, प्लीज, अंदर आइए,’ इंद्रपाल ने दरवाजा खोलते हुए कहा। अंदर कमरे में लालटेन की हलकी सी रोशनी थी। बिस्तर पर तीन औरतें बैठी थीं। एक थोड़ी सी उम्रदराज, जैसे बीच में बैठी औरत की मां हो। उस औरत की गोद में सिर रख कर तीसरी औरत सुबक रही थी।
‘पद्मा, देखो तो तुमसे मिलने कौन आया है?’ पोलिसवाले ने धीरे से उस रोती हुई औरत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। बेला के कदम रुक गए। क्या वह यहां एक रोती हुई औरत को दिलासा देने आई है? जैसे ही रोती हुई औरत ने अपना सिर उठाया, बेला को जैसे जबरदस्त शॉक लगा। यह तो वही युवती है, उसकी हमशक्ल, जिसे उसने कल रात शम्शान घाट में देखा था। उसे देख पद्मा भी चौंक गई और बिस्तर से उठ खड़ी हुई।
अचानक वह बेला के गले लग गई और बुदबुदाते हुए कहने लगी, ‘आप मेरी मदद करने आई हैं ना? गॉड ब्लेस यू।’ बेला कुछ समझ नहीं पा रही थी। क्या यह सच में मेरे साथ हो रहा है या मैं सपना देख रही हूं? अपने आपको उसने समझाया—यह एक सपना है। आंख खुलेगी, तो तुम दिल्ली में अपने घर, अपने कमरे में अपने बिस्तर पर होओगी।
यादव ने एक तरह से जबरदस्ती पद्मा को बेला से अलग किया, ‘जाओ, अपना चेहरा धो कर आओ। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है।’ इसके बाद उम्रदराज औरत की तरफ घूम कर उसने कहा, ‘माई, हमारे मेहमान के लिए चाय तो बनाओ।’
इससे पहले की बेला कुछ कहती, इंद्रपाल ने कहा, ‘आप बैठिए। ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।’
‘आप मुझे यहां क्यों ले कर आए हैं? आपने कहा था कि हम पोलिस स्टेशन जा रहे हैं। कौन हैं ये औरतें? आप कौन हो?’ बेला गुस्से से लगभग चिल्ला पड़ी। सब आपस में मिले हुए हैं, ये औरतें और ये आदमी, जो अपने आपको पोलिसवाला कहता है।
‘मैडम, प्लीज, बैठ जाइए।’ यादव की आवाज शांत थी, पद्मा कमरे से जा चुकी थीं, दूसरी औरत ने बेला का हाथ पकड़ कर उसे अपने आप बिठाते हुए कहा, ‘आप चिंता ना करें दीदी, ये आपको सब समझा देंगे। सब ठीक हो जाएगा।’
‘मैडम जी, मेरा नाम इंद्रपाल यादव है। मैं जैतपुरा पोलिस स्टेशन में हेड कांस्टेबल हूं। आपके बगल में जो बैठी हैं, वो हमारी बहन हैं शांति, यहीं कॉलेज में पढ़ती हैं। पद्मा हमारी बेटी जैसी हैं, इनकी सहेली। हमारी माता जी हैं वो बड़ी वाली औरत, जो आपके लिए चाय बनाने गई हैं।’
‘मुझे यहां क्यों लाए हो? आपने मुझसे झूठ कहा। मैं जा रही हूं यहां से…’ शांति ने बेला का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘दीदी, आप यहां आ गए हो, तो पूरी कहानी सुन कर जाओ। आपको कुछ नहीं होगा। इंद्र भैया आपको वापस होटल छोड़ आएंगे।’
‘मैडम, यह तो कल आपने देख ही लिया कि पद्मा और आपका चेहरा हूबहू मिलता है। पद्मा किस्मत की मारी है। अपने प्रेमी के साथ भाग कर यहां आई थी, शादी की। उसका प्रेमी फिरंगी था मैडम, गलत चक्करों में पड़ गया, समझ गईं ना आप… यहां बहुत आम है ये। नशे की लत लग गई थी उसको। कुछ गलत लोगों के चंगुल में आ गया था वो। बेचारी पद्मा भी। हमने उसका दाह-संस्कार तो कर दिया। पर वो लोग हैं ना, जिनके चक्कर में आ गया था बंदा, वो लोग इस बेचारी को यहां से निकलने नहीं दे रहे। समझ रही हैं ना, माफिया… मार डालेंगे बेचारी को।’
‘इन सबसे मेरा क्या लेना-देना?’ बेला की आवाज तेज थी, ‘मुझे उसके लिए अफसोस है। मेरी अपनी दिक्कतें कुछ कम नहीं हैं। मेरा सामान, डाक्यूमेंट सब गुम हो गया है और …’
‘मैडम जी, आप ही हैं जो पद्मा की मदद कर सकती हैं, उसे आप बना कर। हमें किसी भी तरह पद्मा को यहां से निकालना होगा। मुझे वो छोकरा मिल गया है, जिसने आपको बैग चुराया था। उसमें आपके सारे आईडी हैं, पैन, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस। पद्मा आपका आईडी ले कर और आपका कपड़ा पहन कर यहां से निकलेगी, तो उसे कोई खतरा नहीं होगा। बस हमें एक हफ्ते दीजिए। उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने दीजिए… वह आपके डाक्यूमेंट यहां कुरियर कर देगी। तब तक आप यहां रहिए, हमारी मेहमान बन कर।’
‘यह कैसे हो सकता है?’ बेला को झटका लगा। उसे कुछ वक्त लगा यह समझने में कि अपनी लापरवाही की वजह से वह इंद्रपाल के चंगुल में आ गई है, उसका अपहरण हो गया है। ‘आप उसे तो बचा रहे हैं। पर मेरा क्या होगा? अगर उन लोगों ने पद्मा समझ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’
‘आप काहे चिंता कर रही हैं, आप एक बार मुंह खोलेंगी तो सबको पता चल जाएगा कि आप पद्मा नहीं हैं। हम भी तो हैं ना आपकी रक्छा करने के लिए।’
बेला बुरी तरह घबरा गई। दिल की धड़कनें बढ़ गईं। ये क्या हो रहा है उसके साथ? कैसे यहां से बच कर वह दिल्ली जाएगी, क्या करे, क्या ना करे?
अचानक उसने उठते हुए कहा, ‘मुझे होटल जाना होगा, मेरा सामान है वहां।’
‘नहीं मैडम जी। आप अभी अपना कपड़ा उतार कर पद्मा के साथ अदला-बदली कर लीजिए। फिर आप जैसा बन कर वो होटल जाएंगी, बोलेंगी कि आपका खोया सामान मिल गया है और सुबह होटल खाली करके यहां से निकल जाएंगी। समझीं ना, जब पद्मा आपके कपड़ों में होंगी तो कोई उस पर शक नहीं करेगा और वह आराम से बनारस छोड़ सकेगी।’
बेला को लगा उसे चक्कर आ जाएगा। शांति ने उसे संभाला और प्यार से कहा, ‘दीदी, आप घबराती क्यों हैं? शांति से बैठिए ना। आराम से रहिए यहां। आपको कुछ नहीं होगा। बस एक हफ्ते की बात है। आपको तो खुश होना चाहिए कि आपकी वजह से एक बेचारी औरत की जान बच रही है।’
बेला का दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गया। उसी वक्त इंद्रपाल की माई एक बड़े से ट्रे में कुल्हड़ में चाय ले आईं। चाय से आती अदरक और काली मिर्च की खुशबू से गला सूखने सा लगा। बेला के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं—कैसे बच कर निकलेगी यहां से? उसका क्या होगा?