Yaarbaaz - 4 in Hindi Moral Stories by Vikram Singh books and stories PDF | यारबाज़ - 4

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यारबाज़ - 4

यारबाज़

विक्रम सिंह

(4)

श्याम बोलते जा रहा था," चाचा सब सोचते हैं। पापा ने जो जमीन खरीदी है उन सब में उनका भी हिस्सा बनता है, क्योंकि उन सब ने इतने दिन जमीन की देखभाल की है मगर वह यह नहीं सोचते हैं कि उल्टा उन लोगों को पापा का एहसान मानना चाहिए जो अपने खेत में खेती करने दिया और उसके बदले कभी कुछ नहीं मांगा। बात इतनी आगे बढ़ गई कि पापा ने एक अलग घर बना लिया। उसमें भी प्लास्टर का काम बाकी है। देख रहे हो। वैसे तो गांव में दादाजी के घर पर पापा का भी हिस्सा था मगर पापा ने नौकरी होने के बाद उस घर में हिस्सा नहीं लिया था।"

तभी बाहर से किसी की आवाज आई,"श्याम दौरी करने के लिए मां बुला रही है।"

"आ रहा हूं।"

"क्या है ,ट्रैक्टर,मजदूर आ गए दौरी करवाने के लिए। मुझे वहां जाना पड़ेगा तुम मेरे साथ चलोगे।"

" हां,चलता हूं ना मैं यहां अकेला क्या करूंगा? फिर मैं तो घूमने ही आया हूं।"

हम जहां पहुंचे वहां आसपास हवा में चारों तरफ भूसी उड़ रही थी। मशीन में तीन-चार मजदूर दौरी कर रहे थे। गेहूं के बंडल उठा-उठाकर मशीन में डाल रहे थे। उस जगह गेहूं के बोझे रखे थे। वहां मैं जैसे ही पहुंचा मेरे सिर के बाल और आंखों भौंहे में भूसे की गर्द जम गई। श्याम और मैं वहीं बैठ गए पर सही मायने में मुझे वहां बैठना एकदम भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन क्या करता? मित्र के साथ बैठना ही पड़ा। काफी देर तक हम वहां इसी तरह बैठे रहें और दौरी होती रही। करीब 2 घंटे बाद श्याम ने कहा कि चलो अब नहाने चलते हैं। मुझे तो लगा कि घर में बाथरूम में नहाना होगा पर श्याम मुझे ट्यूबबेल के पास लेकर गया। जहां एक सीमेंट के बने बड़े से टब में पानी लबालब भरा था और जिसमें ट्यूबवेल का पानी लगातार गिर रहा था । टब के दीवार में काई जमी हुई थी।श्यामलाल कपड़े उतारकर अंडरवियर में ट्यूबवेल के टब में कूद गया। मैं भी कपड़े उतार ट्यूबेल में कूद गया। कुछ ही देर में राकेश भी आ गया। वह भी कपड़े उतार अपने अंडरवियर में टब में कूद गया। उसके बाद नहाना क्या था। खूब मटरगश्ती की थी । बस डूब -डूब जाना और एक दूसरे पर पानी उछालने में बड़ा ही आनंद आ रहा था। गर्मी से इतनी राहत मिल रही थी कि मत पूछिए। मैं ऐसा आनंद पहली बार ले रहा था। करीब आधे घंटे तक हम पानी में खेलते रहे।

फिर हम दोनों घर भोजन करने के लिए आ गए। श्याम की मां अनीता देवी (जिसे मैं चाची कहकर पुकारता था) ने भोजन बना रखा था। मैंने उनके चरण छुए । मुझे देख कर वह बहुत खुश हुई कि इतनी दूर से मेरे बेटे का दोस्त आया है। चाची ने हम दोनों के लिए खाना परोस दिया।

खाना खाकर हम दोनों सो गए।

शाम को पांच बजे जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि बगल में श्याम नहीं है। मैंने अंगड़ाई ली। मेरा मन चाय पीने को हो रहा था। मैं उठकर घर से बाहर निकल गया। बाहर की कुंडी लगाया और दौरी मशीन की तरफ चला गया मैं दूर से देखता हूं श्याम मशीन के पास बैठकर दौरी करा रहा था। मेरा वहां जाने की जरा भी हिम्मत नहीं हुई। मैं वहां से हटकर इधर-उधर गांव देखने के लिए टहलने लगा।

......

पूरे गांव का खाने पीने का मुख्य साधन खेती ही था। कुछ लोग ही सरकारी नौकरियों में थे जैसे प्राइमरी स्कूल का टीचर,पोस्टमैन, सरकारी चपरासी, हवलदार,फौजी आदि। कुछ शहर में दूध बेच कर अपना काम चलाते थे। गांव से दूर स्वदेशी कॉटन मिल भी था,जिसमें गांव के कई लोग ठेकेदारी में और कुछ लोग परमानेंट नौकरी करने जाते थे। जब मैं गांव में टहल रहा था मुझे खट पट..खट पट ...कुछ मशीन चलने की कई घरों से आवाज अा रही थी। मैं जानने के लिए कि आखिर यह क्या आवाज अा रही है? कई घरों में ताका झकी कर रहा था। उस वक़्त गांव के कुछ बूढ़ी औरतें ,कुछ जवान लड़कियां और कुछ लोग मुझे घूर- घूर कर देख रहे थे कि कोई नया लड़का दिख रहा है। गांव में कच्चे- पक्के दोनों तरह के घर थे। पक्के घरो में भी मैंने ज्यादातर देखा उनके दीवारों पर भी प्लास्टर नहीं हुआ था। कुछ देर तक मैं इसी तरह घूमता रहा था । आखिर कर मैंने यह समझने में कामयाब रहा कि कपड़ा बुनने वाली मशीन लूम चल रही है। साड़ी बुनने का काम कर रही हैं।मऊ में ज्यादा तर लोगो का कारोबार यही था। गांव के ज्यादा तर हिन्दू ,मुस्लिम परिवारों ने घर के अंदर ही एक दो लूम की मशीन लगा रखा था। बड़े मुस्लिम सेठ साड़ी बुनने का काम किया करते थे। फिर सप्ताह भर बाद साड़ी की गठरी सेठ को दे आते थे। यह काम हिन्दू मुस्लिम दोनो मिलकर करते थे। पहले पहल तो मुस्लिम ही इस कारोबार को करते थे। मगर बाद में कई हिन्दू भी लूम के करीगर बन गए। देखते ही देखते एक बड़ा वर्ग लूम का मशीन घर में लगा कारीगर बन गए। और मुस्लिम सेठ उन सब को साड़ी बुनने का काम देने लगे। फिर मैं घूमते घूमते शायद राकेश के घर की तरफ ही चला गया था। मुझे वहां राकेश गाय को सानी -पानी देते दिख गया। राकेश ने मुझे देखते ही कहा,"आओ राजेश आओ।"

और फिर मैं उसके पास चला गया। वहां आस पास मक्खियां भिनभिना रही थी। उस जगह मच्छर भी बहुत ज्यादा थे। राकेश ने मुझे देखते ही एक खाट बिछा दी। पर मच्छर कहा बैठने देती,मच्छर शरीर के किसी भी कोने से खून चूसने के लिए अपनी सुई चुबाने के लिए घूम रही थी।जानवर लगातार अपने कान पूछ को जैसे मच्छर मक्खी को भगाने के लिए हिला रही थी। मैं अपने हाथ पैर हिलाता रहा। राकेश अपने काम में लगा रहा। कुछ देर में ही दूध की दुह कर बाल्टी ले मुझे अपने घर के अंदर ले गया। राकेश का घर भी साधारण था मात्र दो कमरे थे दो कमरों के बाहर बड़ा सा बरामदा था।। जिसके ऊपर छत नहीं थी। बरामदे के एक कोने में हैंडपंप था। एक कोने में खपरैल का छोटा सा कमरा था। चौका बर्तन का काम होता था। राकेश ने बरामदे में भी एक खाट मेरे लिए बिछा दी थी। थोड़ी देर में उसकी मां भी आ गई। मां के आते ही राकेश ने कहा,"माई चाय बना दिया हो।राजेश हवे।"

"हां एके देखने रहिल। हम भी सोचत रहिली कौन नयका लड़का घुमत बा।"

"श्यामलाल के मित्र अवे।"

"अच्छा अच्छा"

मैंने नमस्ते किया। उन्होंने भी हाथ जोड़ नमस्ते किया। वह चाय बनाने चली गई। मैं चाय के लिए मना भी नहीं कर पाया क्योंकि मुझे तो पहले ही चाय की तलब हो रही थी।

राकेश ने पूछा,"राजेश भाई मन लग रहा है तुम्हारा।"

सच पूछा जाए तो मेरा मन नहीं लग रहा था। लेकिन फिर भी कहा,"लग ही रहा है"

"दरअसल अभी कटाई दौरी का समय है।अभी तो पूरा गांव ही व्यस्त है। कुछ दिनों में सब नॉर्मल हो जाएगा। फिर श्यामलाल तुम्हे समय दे पाएगा"

"हां",मैंने औपचारिक तौर पर कह दिया।

मैंने पूछा,"घर पर और कौन कौन रहते है।"

"बस मैं मां और बाबूजी। बाबू जी कंपनी गए है।

"पापा नौकरी करते है।"

"हां बाबू जी स्वदेशी कॉटन मिल में मजदूरी करते है।"

"खेती नहीं करते"

"खेती से कहां कुछ होता है। फिर खेती करने के लिए भी तो थोड़े बहुत पैसे की जरूरत पड़ती है। मैं भी सुबह दूध बेचने का काम करता हूं।"

तब तक मां चाय बना कर ले आयी। चाय पीने के दौरान हम दोनों के बीच बहुत सारी बाते होती रही।

श्याम दोस्ती कैसे हुई?

कितने भाई बहन हो?

श्याम के भाई नंदलाल का क्या हाल है?

औपचारिक सवाल जवाब के बाद मैंने राकेश से कुछ गंभीर सवाल दागने शुरू कर दिए।

"आगे कॉलेज खत्म करने के बाद क्या करने का प्लान है।"

"आप भविष्य की बात कर रहे हैं?"

"हां वही।"

"भविष्य कुछ नहीं होता है जो होता है वह सब वर्तमान होता है। कुछ लोग सब काम भविष्य को सोचकर करते हैं। मैं भविष्य के लिए नहीं वर्तमान कि यह सब कुछ करता हूं। कुछ लोग खूब पढ़ते हैं यह सोच कर कि भविष्य में अच्छी नौकरी मिल जाएंगी। मगर भविष्य में नौकरी मिल ही जाएगी ऐसा संभव नहीं है। भविष्य में कुछ पाना है तो बस वर्तमान अपना सही रखो वर्तमान जितना अच्छा रखते जाओगे भविष्य अपने आप से स्वर्ता जाएगा। अगर हम 100 साल जीने की सोच रहे हैं तो हमें वर्तमान में तंदुरुस्त रहना होगा। तुम बताओ तुम क्या सोच रहे हो भविष्य के बारे।"

"बीए के बाद एम.ए के बाद या तो बी.एड करूंगा या फिर कहीं नौकरी करूंगा।"

"तथास्तु"

फिर हम दोनों जोर -जोर से हंसने लगे।

इस तरह और भी कई सारी बातें होती रहीं। हां, हम दोनों अपनी ही बातों से बोर होने लगे। फिर मै उसे अलविदा कह कर दोबारा आकर पलंग पर लेट गया और ऊपर दीवार की तरफ देखने लगा और मुझे आज मेरी प्रेमिका याद आने लगी। हां मेरी प्रेमिका बबनी जिसके बिना मेरा दिल नहीं लगता था और श्याम के बिना भी मेरा मन नहीं लगता था।

......

करीब शाम के 7:00 बजे श्याम और श्याम की मां अर्थात चाची दोनों वापस आए। आते ही चाची खाना बनाने में लग गई। आगंन में एक छोटा सा चूल्हा था। उसी चूल्हे से एक धुएं के लिए गुंबद ऊपर को गया हुआ था। चूल्हे में लकड़ियां डालते हुए वह रोटियां सेकती जा रही थी और हमे परोसती जा रही थी। श्याम झटपट खाना खाकर सीधे जाकर बिस्तर पर लेट गया क्योंकि दिन भर वह इतना थक गया था कि उसे कुछ होश नहीं था। वो गहरी नींद में खर्राटे लेने लगा। पूरे गांव का यही हाल होता था। दिन भर काम करने के बाद कई लोग इतने थक जाते थे कि खाना खाकर सीधे बिस्तर पर ही होते थे । मुझे नींद नहीं आ रही थी। इसकी बड़ी वजह यह थी एक तो गर्मी ऊपर से बोनस में मच्छर भी आ गए थे और मेरे कानों के सामने भिनभिनाने लगे थे। मैं उन मच्छरों को मारने भगाने में लग गया था।

आधी रात बीत चुकी थी। मौसम कुछ ठंडा हो चुका था। मैं भी अपने ऊपर चादर तान सो गया। मगर अचानक से मेरी नींद टूट गई। चाची कमरे से आवाज लगा रही थी,"श्याम उठ ट्यूबवेल में सिंचाई करने नहीं जाओगे। फिर दिन में लाइट नहीं रहेगी।"

श्याम को एकदम होश नहीं था वह खराटे लेकर सो रहा था मेरी नींद खुल गई थी मगर मैं चुपचाप लेटा हुआ था। चाची फिर आवाज लगाती है "बेटा उठ जाओ"

जब चाची कई बार आवाज लगाकर थक गई तो वह स्वयं उठकर श्याम के पास गई । उसे हाथों से ही हिलाकर उठाने लगी । श्याम ऊं अं की आवाज करता रहा फिर हडबड़ा कर उठ गया। उठते ही बोला,"जा रहा हूं । जैसे उसे पहले ही पता था कि रात को सिंचाई करने जाना है। उसके बाद पलंग से उठ कर खड़ा हो गया था और एक चादर लपेट कर निकल गया था।

.....

घर से ट्यूबवेल करीब 1 किलोमीटर दूर था और खेत भी वहीं आस-पास थे। ट्यूबवेल चारों और खेतों के बीचो-बीच था। श्याम टॉर्च की लाइट हिलाते - डुलाते ट्यूबवेल तक पहुंच गया था। ट्यूबवेल के कमरे की कुंडी खोल सर्वप्रथम उसने लाइट जलाया । स्विच को फटाफट ऑन कर दिया। स्विच के ऑन करने के पश्चात ही ट्यूबवेल से पानी गिरने लगा। पानी गिरने की देर थी कि श्याम सामने एक पक्के फर्श पर सो गया और जोर-जोर से खर्राटे लेने लगा। श्याम को ना मच्छरों का डर था ,ना किसी की कीट पतंग का और ना ही सांप का। मैं भी अपने रूम में मदहोश सा सो गया था।

उसके बाद तो सीधे सुबह उठकर मैंने अंगड़ाई ली थी और जैसे ही मैं बाहर निकला, मैंने देखा है कि श्याम गाय को चारा डाल रहा था। मुझे देखते ही श्याम ने कहा-" नींद पूरी हो गई?"

"हां हो गई।"

"बस दूध दूह लूं। फिर चलते हैं झाड़ा फिरने को।"

"मेरे चेहरे पर अजीब सा एक्सप्रेशन आ गया और मैंने उससे पूछा," क्यों टॉयलेट नहीं है?"

"कितनी सरकारें आई और गई। पूरा गांव सरकार के भरोसे बैठा है और जब तक सरकार के भरोसे बैठे हैं तब तक खेत में बैठेंगे।"

श्याम के दूध दूह लेने के बाद। हम दोनों खेत की तरफ निकल गए। चारों और कुछ महिलाएं पुरुष खेतों में काम कर रहे थे। पगडंडियों के सहारे हम सामने ही एक नहर के किनारे पहुंच गए।

झाड़ा फिरने के बाद पगडंडियों के सहारे लौटते वक्त मैंने पूछा,"रात में कहां चले गए थे?"

"यार खेतों में पानी भरने गया था। क्या है, पापा ने गांव से बहुत दूर-दूर खेत लिखवा रखे हैं। वहां के ट्यूबवेल में दिन में लाइट नहीं रहती इसलिए मुझे सिंचाई के लिए रात में जाना पड़ता है। सुविधाएं तो आ गई मगर उन सुविधाओं के प्रयोग के लिए बिजली अभी पूरी तरह नहीं आ पाई।"

इतना कहकर वह एक जगह नीम के पेड़ के पास रुक गया और नीम के पेड़ का डंठल तोड़ने लगा और डंठल का एक टुकड़ा मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने डंठल लेने से मना कर दिया और बोला,"नहीं यार! मैं ब्रश करूंगा । "क्या इसी तरह तुम्हारी जिंदगी भागदौड़ में ही रहती है?"

"क्या बताऊं? दिन दिन भर धूप में बैठकर निराई, गुड़ाई कटाई के लिए मजदूर ढूंढने।जब देखो यहां वहां भागते ही रहता हूं"

जैसे ही श्याम ने अपनी बात खत्म की हम पगडंडियों का रास्ता खत्म कर गांव की पक्की सड़क पर चढ़ गए। उसी वक्त करीब 5 लड़के हीरो होंडा मोटरसाइकिल पर सवार होकर श्याम के पास आकर रुके। एक बाइक में राकेश और राहुल नेता था। सब ने आंखों में चश्मे पहन रखे थे और गले में सफेद गमछी बांध रखी थी। वह सब जैसे ही श्याम के पास रुके ,श्याम ने मुझसे कहा,"राजेश मैं थोड़ी देर में आता हूं"

उसके बाद वो फटाफट कपड़े पहन कर तैयार हो गया। श्याम ने भी अपनी आंखों पर रंगीन चश्मा चढ़ा लिया और गले में गमछा बांध ली और एक बाइक पर आकर बैठ गया और बाइक स्टार्ट कर सब लोग आगे निकल गए।

......

कुछ लड़के खेतों के रास्ते से होते हुए घर को जा रहे थे। अचानक उन सबके सामने यह सब जाकर रुक गए पीछे बैठे लड़के ने फटाफट उनको पकड़ लिया एक लड़का जो जाति का राजपूत था,उसने कहा," भाई! यह सब क्या कर रहे हो"

तभी राकेश ने कहा,भैया के साले! हमारे यादव भाइयों को मारते हो फिर पूछते हो क्या हो रहा है?

और सब आपस में लड़ने लगे उनमें से कुछ लड़के ने भागने की कोशिश भी की। मगर इन सबका बदला तो किसी एक को ही पिटने से ही हो जाना था और एक लड़के को राकेश धमाधम पीटने लगा था और पीटते हुए कहा, "सालो! हम सब जात के यादव हैं। तुम्हारा दूध निकाल देंगे।"

तभी श्याम ने कहा ,"बस रहने दो नहीं तो मर जाएगा।"

उस लड़के को पीटने के बाद सब वहां से फटाफट भाग गए।

.....