जननम
अध्याय 16
वह उसके सामने आराम से बैठी हुई थी। बड़े सहज रूप से मुस्कुरा रही थी। कितनी अच्छी तरह से मुस्कुराती है ! कितनी सुंदर! कितनी सौम्य । इस सौम्यता पर सिर्फ मेरा अधिकार है ऐसा सोचकर कितनी बार मैं बहुत खुश हुआ करता था। मुझे इस बात का कितना गर्व था। अभी कानून के अनुसार वह मेरी पत्नी है। इस को साबित करना पड़ेगा इसके पास मेरे साथ आने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है यह बात इसे महसूस करानी पड़ेगी।
"आनंद के साथ आप पढ़े हुए हो क्या ?"
"ऊंम ? हां !"
"फिर, आप भी डॉक्टर हो !"
"नहीं साइंटिस्ट !"
"अहमदाबाद में क्या करते हो ?"
इसके सिर को फोड दे ऐसा उसे गुस्सा आया।
"अहमदाबाद में अभी मैं नहीं हूं। अब मैं अमेरिका में हूं। इंडिया में कुछ काम से आया हूं।
"ओ....ओ !"
"मेरे बारे में ही पूछ रही हो ? अपने बारे में कुछ नहीं बताया ! आप कौन हैं मुझे पता नहीं चला ? आनंद की आप क्या लगती हैं ?"
वह हल्के से मुस्कुराई। उसकी हंसी में एक संकोच और हिचकिचाहट भी दिखाई दी। उसकी निगाहें घबराहट में नीचे देखने लगीं। उसको भी उसकी इस हालत को देख दया आ रही थी।
"इसका मैं ठीक से जवाब नहीं दे सकती। मेरी एक विचित्र कहानी है। मैं बोलूं तो कोई विश्वास नहीं कर सकता..."
वह बिना बोले सिर्फ उसे ही बैठा देखता रहा।
उसकी निगाहें जाने क्या देख रही थी। "मैं कौन हूं यह मुझे ही नहीं पता। मेरा नाम क्या है, मुझे नहीं पता | कहां से आई हूं, मुझे नहीं पता |"
वह उसे आश्चर्य से देखने लगा ।
"बीता हुआ कल यही लेबल है मेरा ।"
"कैसे ? मुझे समझ में नहीं आया!"
"एक बस दुर्घटना में सिर्फ मैं ही बच गई ऐसा बोलते हैं। सिर पर लगी चोट के कारण मुझे एमिनीशिया हो गया ऐसा डॉक्टर बोलते हैं। मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। नया जन्म लिया जैसे लग रहा है। सब कुछ नया लग रहा है- दोबारा एक जन्म मिला जैसे...."
उसके शरीर में एक सिहरन हुई |
बोलते समय उसके शब्द लड़खड़ाए।
"आपको ढूंढते हुए कोई नहीं आया क्या ?"
"अभी तक तो नहीं आया !"
अभी आ गया। मैं पूरे का पूरा तुम्हारी आंखों के सामने बैठा हूं। दिखाई नहीं दिया ?उसने सोचा।
"आपकी कहानी बड़ी ही दयनीय है ।" वह धीरे से बोला "आपके मन को कितनी तकलीफ हो रही है मुझे समझ में आ रहा है।
वह जल्दी से उसे देख कर मुस्कुराई। "पहले बहुत तकलीफ थी । समुद्र के बीच में फंसे जैसे, जंगल के बीच में फंस गए जैसे मैं बहुत तड़पी। परंतु अब ऐसा नहीं है...."
उसने तुरंत गर्दन उठाकर उसे देखा।
वह कहीं देखती हुई अपने आप में मुस्कुराते हुए बोली "मुझे ढूंढने कोई ना आए ऐसा मुझे लगने लगा है। वह स्तंभित होकर उसे देखने लगा।
"क्यों जिस जगह मैं पहले थी उसे याद दिलाने कोई नहीं आए ऐसा लगता है। अभी मैं बहुत खुशी से रह रही हूं। यह गांव यहां के लोग बहुत पसंद हैं। ऐसे जैसे यहीं पर पैदा हुई बड़ी हुई जैसे अपने जड़ों को यहीं फैला लूं। अब कोई आकर पुरानी बातों को खोदकर, जिससे मेरा संबंध नहीं है मुझे कैसा लगेगा | वह, मुझे सदमा भी दे सकता है .........
वह भ्रमित हो गया कुछ योजना भी नहीं सूझी, कोई शब्द भी नहीं आए वह बैठा रहा। उसका मन ही मौन हो गया ऐसा उसे भ्रम हुआ। उसकी बात सुनकर उसे लगा मेरा और उसका कोई संबंध नहीं है। यह उमा नहीं है- इसको मैं नहीं जानता- ऐसा एक विचार उठा उसकी निगाहें झुकी और मन खत्म हो गया जैसे लगा।
उसने जल्दी से अपने को संभाल लिया। उसके पेंट के जेब में उसकी और इसकी माला पहने हुए फोटो थी। उसकी याद बार-बार आ रही थी। उसको निकालकर दिखाने में एक क्षण भी नहीं लगेगा उमा। तुम बेहोशी से आंखें खोलो। तुम मेरी पत्नी हो बोलने में मुझे एक क्षण भी नहीं लगेगा। इससे अच्छी जगह में मैं तुम्हें लेकर जाऊंगा, मनुष्य के प्रयत्न से जितना हो सकता है उतना मैं खुश रखूंगा मुझे बोलने में अधिक देर नहीं लगेगी.... उसे जोर-जोर से हिला के ऐसे डायलॉग मत बोल कहने में.....
"ओह, आने वाले को क्या लोगे पूछे बगैर ही मैं बैठी हूं। क्या खाएंगे, बताइए....?"
"कुछ नहीं चाहिए। मैं आते समय कॉफी पी के आया हूं।"
"ऐसा है तो आनंद को आ जाने दीजिए, हम सब मिलकर खाना खाएंगे।"
वह उठकर बाहर की तरफ झांक कर देखने लगी। "आज अभी तक उनका पता नहीं।"
"आनंद ही आपको ट्रीटमेंट दे रहे हैं क्या ?"
"हां।"
चेहरे में एक लालिमा-आंखों में एक प्यार-ऐसा उसने उसे कभी भी देखा हो उसे याद नहीं इस भावना को हजम करने में बड़ी तकलीफ हो रही थी।
"वे नहीं होते तो मेरा क्या होता सोचकर देखने पर भी डर लगता है।"
वह उसे ही देखता हुआ एक सदमे से मौन रहा।
बाहर कुछ आवाज आई। तुरंत उसका चेहरा प्रकाश से चमकने लगा उसने उस पर ध्यान दिया।
"आनंद आ गए क्या !"
वह एक छोटी लड़की जैसे कूदती हुई बाहर गई।
जल्दी से उसने गर्दन उठा कर देखा। एक जोड़ी आंखें ध्यान से चिंता, डर और अनुमान करने वाली निगाहें उसे देख रही थीं। सामने खड़े हुए के पास ही उमा- नहीं, लावण्या।
असंभावित वातावरण उसको जोर-जोर से हंसना चाहिए जैसे लगा। वह धीरे से मुस्कुराते हुए उठा।
"हेलो !" वह बोला।
"हेलो !" आनंद बोला जैसे उसमें जीवन नहीं हो।
"लावण्या, कॉफी या कुछ लेकर आओ !"
"अभी !"
आनंद प्रयत्न पूर्वक रघुपति के सामने बैठ गया। एक-एक अक्षर को उठा रहा हो जैसे धीमे स्वर में पूछा।
"यही है क्या ?"
उसकी निगाहें बहुत ही दयनीय थी।
"नहीं ।"
आनंद ने आश्चर्य से उसे देखा।
एकदम से उसके अंदर शांति आई जो उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था। कुर्सी को कस कर पकड़े हुए हाथ ढीले पड़ गए।
रघुपति उठा।
"मेरी पत्नी लौट कर ना आ सके इतनी दूर पहुंच गई लगता है।"
"ओ आई एम सॉरी !"
"मैं निकलता हूं डॉक्टर आनंद। विश यू ऑल द बेस्ट।"
आनंद जल्दी से बोला "इतनी जल्दी क्या है ?" कॉफी पीकर जाइए, ठहरिए।"
"नहीं, मुझे जल्दी जाना है। कॉफी पीने के मन स्थिति में अभी नहीं हूं।"
"मेरे समझ में आ रहा है।"
तुम्हारे समझ में नहीं आएगा। समझने की जरूरत भी नहीं है। रघुपति अपने अंदर ही बोला ।
एक हल्के से मुस्कान के साथ, "आपको और लावण्या को मेरी शुभकामनाएं" कहकर आनंद के हाथ से हाथ मिला कर बिना मुड़कर देखे सीधा चलने लगा। उसका मन जैसे हल्का हो गया , कितने दिनों से उठाए हुए भार को उतार के रख दिया जैसा भ्रम उसे हुआ। 'समय आने पर मन अपने आप उतर जाएगा' उस दिन कमला की कहीं बात याद आई। वह बात कितनी सत्य है आज उसे लग रहा था । कैसे खुल गया उतर गया ? कैसे संभव हुआ ?
अचानक उस नाटक की याद आ गई ।
मयूर पंख !
करीब-करीब उसकी ही कहानी। कमला ने कैसे दीर्घ दृष्टि जैसे उस नाटक से उसका संबंध है बताया ! अभी उसने जो फैसला किया उसके बिना जाने अपनेआप हुआ फैसला है। उस नाटक के याद नहीं रहने पर भी सहज भाव से यह फैसला हुआ। और किसी तरह का फैसला लेना असभ्य नागरिक की बात होती उसे लगा। चार महीने से मैंने उमा को खो दिया ऐसी एक भावना के कारण अपने को बर्बाद कर रहा था। मेरी यहां आने की उत्सुकता एक गलत इच्छा थी। मेरे लिए उमा मर गई। अब वह लावण्या जैसे रह रही है यह उसका नया जन्म है। पुराने जीवन की छाया भी नहीं है ।पुनर्जन्म। उसके बीच में जाने का मेरा कोई अधिकार नहीं है......
अपेक्षाएं, चिंताएं, धोखा कुछ भी मन में न रहकर मन एकदम निर्मल हो गया। वह बड़े पीपल के पेड़ से आगे निकल कर गली से होता हुआ बस स्टैंड चला गया।
'त्याग जो कर सकते हैं वही प्रेम भी कर सकते हैं' कमला की बोली बात उसे याद आई। उसकी इस करनी के बारे में कमला क्या बोलेगी उसने सोच कर देखा। 'त्याग' शब्द का बहुत बड़ा अर्थ है उसने महसूस किया।
पेंट के पॉकेट में वह फोटो उसे अजीब सा लग रहा था। अच्छी बात है, मैंने उसे नहीं दिखाया ऐसा सोच उसे एक संतुष्टि अपने आप में हुई। इसको दिखाने के बाद जिसमें भावनाएं मर चुकी थी वह मेरी पत्नी है ऐसा अधिकार जमाता तो यह तो तमाशा ही होता।
विश्वास न करने वाली एक अजीब सी कहानी 'मयूर पंख' की जो समीक्षा उसने अपने शब्दों में की अब उसे सोच हंसी आ रही थी। असली जीवन में तो इससे भी ज्यादा अविश्वास करने लायक घटनाएं घटती हैं ऐसा सोचते हुए यात्रा के लिए वह बस पर चढ़ा ।
"जिस काम के लिए आए वह पूरा हो गया क्या ?" एक आवाज सुनाई दी।
उसने झांक कर देखा।
वही चोटी वाले महाशय थे।
"खत्म हो गया।" कह कर उसके अधरों पर एक मुस्कान तैर गई।
समाप्त