__१__हक भी अदा किया है....
जिस्म से मानो जान को जुदा किया है।
इक बाप ने अपनी बेटी को विदा किया है।।
सब मांगते हैं यहां हक अपना-अपना मगर।
आज इक मां ने अपना हक भी अदा किया है।।
ये दीवानों अपने महबूब को महबूब ही रहने दो।
कभी उसका न हुआ जिस जिसने उसे खुदा किया हैं।।
हर इक ग़ज़ल में मैंने उसकी सूरत सजाई है।
हर इक लफ्ज़ में मैंने उसका सजदा किया है।।
खंजर की तरह चुभती है मेरे सीने में यादें उसकी।
मगर मैंने फिर भी "सत्येंद्र" उसे याद सदा किया है।।
कैसे दीवाने हैं इस दौर के कांटों के ज़ख्म नहीं झेले जाते।
इक हमने ताउम्र शबनम के जख्मों पर हवा किया है।।
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___२___लहू के आंसू....
ये लहू के आंसू कहां से निकले होंगे।
ये तो टूटे दिल की जां से निकले होंगे।।
ये दिल को लहू लुहान करने वाले तीर।
यकीनन किसी अपने की जुबां से निकले होंगे।।
कुछ परिंदे जो यू उछल रहे हैं हवा में।
शायद पहली दफा अपने आशियां से निकले होंगे।।
बहुत दिनों के बाद चैन से सोए है वो बच्चे।
शायद आज कुछ फरिश्ते वहां से निकले होंगे।।
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___३___उम्र की कहानी.....
बड़ा खूबसूरत हिस्सा था वो उम्र की कहानी का।
खेल गुड्डे-गुडियों का कागज की नाव-पानी का।।
जो जी में आया कर डाला सही क्या ग़लत क्या।
ना फिक्र थी दुनिया की न डर था बद-गुमानी का।।
बचपन में बहुत डराता था जो समंदर लहरों से हमें।
जवानी में गुरूर तोड़ा कई दफा उसकी रवानी का।।
ठान ली जो हमने फिर लाकर ही छोड़ा क़दमों पे।
इस आसमां को बड़ा भ्रम था अम्र-ए-आसमानी का।।
क्या शराब क्या शबाब क्या हसरत क्या मोहब्बत।
बड़े ही फक्र से काटा था हमने दौर जवानी का।।
लगती तो है आग आज भी मगर जलता नहीं दिल।
गुजर गई जवानी शुरू हो गया किस्सा सर - गिरानी का।।
ना आरजू, ना जुस्तजू रही रह गई बस ख्वाब की बाते।
"सत्येंद्र" बड़ा कड़वा जहर है पीरी इस जिंदगानी का।।
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__४___कुछ टूटने की आवाज आती हैं....
रोकता हूं फिर भी कहां वाज़ आती हैं।
इन हवाओं में उसकी आवाज आती हैं।।
कोई देखे तो संभालती हैं दुपट्टा अपना।
सुना है तवायफों को भी शर्म-ओ-लाज आती हैं।।
सूख गए किताबों में रखे वो तेरे दिए हुए गुलाब।
जिनमें खुशबू आज भी निकहत-ए-नाज़ आती हैं।।
बात और ही थी इश्क होने से पहले "सत्येंद्र"।
आसमां से ऊंची याद अब वो फ़राज़ आती हैं।।
बड़ी सादगी है उस बेवफ़ा के लहज़े में।
जिससे भी मिलती हैं बड़ी सादगी-ए-नाज़ आती हैं।।
रोज रोज दिल में कुछ हलचल सी होती हैं।
रोज रोज दिल से कुछ टूटने की आवाज आती हैं।।
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__५__छोड़कर तेरी गलियां....
छोड़ कर तेरी गालियां और कहां जाता हूं मै।
इसलिए तेरे शहर में पागल कहा जाता हूं मैं।।
मेरी घर की तन्हाइयां मेरी राह तकती है।
सर्द रातों में भी अब घर कहां जाता हूं मैं।।
लोग कातिल की तरह घूर कर देखते हैं मुझे।
अब तेरे इस शहर में जहां जहां जाता हूं मै।।
लोग मरकर भी दोज़ख् में नहीं जाना चाहते।
और तेरे लिए खुशी से हर रोज वहां जाता हूं मैं।।
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__६___उजड़ा मंजर....
उजड़ा हुआ है मंजर बेदर्द आलम है।
हर इक धड़कन में निहायत गम हैं।।
जिंदा हूं अभी तो मैं मरा नहीं,मगर।
फिर उसको किसके मरने का मातम हैं।।
चली आती है बे साख्ता कभी ख्वाबों में वो।
मचल उठता काम -ए-दिल आज भी बरहम है।।
भूल गया जीते जी वो बेवफा मुझे, मगर।
मेरे मरने के बाद भी चेहरा उसका मेरे सम हैं।।
चीरा था जिस खंजर ने कभी सीना मेरा।
फिर से आजमा रहा हूं देखूं कितना वाकी दम हैं।।
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__७__ज़िन्दगी मुट्ठी भर नहीं है...
बेकरारी इतनी है कि मुझे सबर नहीं है।
मैं उसका ही हूं मगर उसे खबर नहीं है।।
पटकता रहा सर उसकी चौखट पर मगर।
कुबूल हो दुआ वो खुदा का दर नहीं है।।
बह रहे है दिल में दर्द के समंदर कितने।
यू बे-सबब ही तो ये चश्म-ए-तर नहीं है।।
कहने को तो और भी कई है हुस्न वाले।
मगर आलम-फरेब मेरी ये नजर नहीं है।।
आसमां से ऊपर जा पहुंची ख्वाहिशे मेरी।
मगर ये ज़िन्दगी "सत्येंद्र" मुट्ठी भर नहीं है।।
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___८__कोई तो इशारा यार कर...
मुझसे मिलाकर नज़रे आंखे चार कर।
मोहब्बत का कोई तो इशारा यार कर।।
अभी ढल जाएगी ये गम की शाम भी।
तू बस कल की सुबह का इंतजार कर।।
मिलकर के तू खामोश क्यों हो जाती हैं।
मुहब्बत की बाते नहीं तो तकरार कर।।
ये तारों की महफ़िल ये मौसम में खुनकी।
मै तो बेकरार हूं तू खुद को बेकरार कर।।
जो गुजर गए दिन अब उन्हें क्या गिनना।
जो आने वाले है दिन तू उन्हें सुमार कर।।
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👉मुझे बीमार होने दो तुम फिर दवा हो जाना।
पहले करीब तो आओ मेरे फिर जुदा हो जाना।।
कौन ना-खुदा रोकता हैं तुम्हे खुदा होने से मगर।
पहले इंसान बन जाओ तुम फिर खुदा हो जाना।।
🙏🙏🙏
✍️ by_सत्येंद्र कुमार प्रजापति
मेरी डायरी से कुछ आपके लिए प्रस्तुत हैं, अच्छा लगे तो comments करके जरूर बताएं।।
धन्यवाद 🙏
(Note_ कुछ उर्दू शब्दों के अर्थ अगर आपको समझ न आए तो आप comment में या direct msg करके भी पूछ सकते हैं)