Urvashi - 20 in Hindi Moral Stories by Jyotsana Kapil books and stories PDF | उर्वशी - 20

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उर्वशी - 20

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

20

" हद है बचपने की। उधर शौर्य दिन रात पछता रहा है, खुद को सज़ा दे रहा है। इधर आप अपनी जिद पर अड़ी हैं। न जाने किस किस को सज़ा दे रही हैं। शौर्य को, हमें, खुद को, अपने परिवार को, और शायद अपने आने वाले बच्चे को भी। " वह आवेश में बोलते रहे और वह सुनती रही। अंत मे उन्होंने एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को बुला ही लिया। डॉक्टर ने उसका चेकअप किया, कुछ आवश्यक प्रश्न किये। फिर उन्हें बुलाकर बताया कि थोड़ी पेचीदगियां हैं। बी पी बढ़ा हुआ है। वह समय से दवा ले, पूरी डाइट ले और आराम करेगी तो सब ठीक हो जाएगा। डॉक्टर के जाने के बाद उन्होंने उसे घूरा

" आप जानती हैं कि क्या हालत है आपकी ? उसपर आप दिन रात काम कर रही हैं। किसलिए उर्वशी ? आपके एक्टिंग के पागलपन के लिए, या पैसे के लिए ? "

" मुझे अपने बच्चे को वो सब उपलब्ध करवाना है जो उसके लिए आवश्यक है। "

" आपके लिए, इस बच्चे के लिए, किस चीज़ की कमी है ? एक बड़े एम्पायर की मालकिन हैं आप, अच्छी खासी प्रोपर्टी की बराबर की हिस्सेदार हैं। "

" हमें जो चाहिए वो मै खुद हासिल करूँगी, अपने दम पर। मुझे न किसी की हमदर्दी चाहिए और न ख़ैरात। " वह बुरा मान गई थी।

" देखिये हमें गुस्सा मत दिलाइये। अगर हम चाहें तो आपको यहीं से अगवा करके ले जाएं और कोई चूँ भी नहीं कर पाएगा। " उन्होंने भी आवेश में कहा।

" आप यह चाहते हैं कि मैं खुश रहूँ या नहीं ?"

" क्या यह पूछने की ज़रूरत है ?"

" तो आप मुझे फ़ोर्स नहीं करेंगे। और न ही घर मे यह बात किसी से कहेंगे। आपको मेरी सौगन्ध ।"

वह नाराज़गी से उसे देखते रहे, एक शब्द भी न कहा, फिर उसे वापस उसके घर भेज दिया।

* * * * *

सप्ताह भर बाद शिखर का फोन आया कि शौर्य उसके पास आ रहा है। यह सुनते ही वह बिगड़ गई

" अपने मेरी सौगंध का भी मान नहीं रखा न, सब बता दिया शौर्य को ?'

" हमने उन्हें कुछ नहीं बताया, वह अपनी मर्जी से आ रहे हैं। यह सच है कि वह बहुत पछता रहे हैं। बस आपके पास आने की हिम्मत अब जुटा पाये हैं। " कहते हुए उन्होंने शौर्य के विषय मे उसे सब बता दिया, कि किस तरह ग्रेसी उस पर भावात्मक दबाव बना रही थी। वह कितना परेशान था, उसके चले जाने के बाद से कितना पश्चाताप कर रहा है। सुनकर उसका कुछ क्रोध शांत हो गया। उसने उमंग को फोन करके शौर्य के आने की सूचना दी।

शौर्य पहुँचा तो उस दिन का उसका काम समाप्त हो गया था। वह घर जाने के लिए ऑटो देख ही रही थी कि स्लेटी रंग की लैंड रोवर उसके पास रुकी। उसमें से उतरकर शौर्य उसके पास आया और उसे गाड़ी में बैठने को बोला, वह पल भर सोचती रही। उसके पुनः कहने पर वह गाड़ी में बैठ गई।

" आप कैसी हैं उर्वशी ?"

" बहुत अच्छी, एकदम भली चंगी। " उसने रूखे स्वर में कहा। इसके बाद दोनों के मध्य खामोशी पसरी रही। गाड़ी दौड़ती रही और वह दोनो अपनी अपनी दुनिया में मग्न हो गए। ड्राइवर और गार्ड के सम्मुख कोई भी व्यक्तिगत बात करना सही न था। वह लोग घर पहुँचे तो उमंग आ चुका था। दुआ सलाम के बाद उमंग ने कॉफी बनाई और उर्वशी की मदद से कई तरह के नाश्ते लगा दिए। थोड़ी देर वह दोनो आपस मे बात करते रहे, उर्वशी चुपचाप कॉफी के घूँट भरती रही। कुछ देर बाद उमंग उठकर कहीं चला गया, ताकि वह दोनो अकेले में बात कर सकें। शौर्य उसे अपलक देखता रहा।

" हैरानी हो रही है न, कि कोई औकात न होने पर भी और आपके महल से दूर आकर भी,बहुत खुश हूँ ?" उसने कटाक्ष किया।

" हम बेहद शर्मिंदा हैं उर्वशी, प्लीज़ हमें माफ़ कर दीजिये। "

" नहीं कुँवर सा, यह सब कहना आपकी शान के ख़िलाफ़ है। मैं हूँ ही क्या, मात्र एक सजावटी गुड़िया । "

" जो बीत गया उसे भूल जाइए ऊर्वशी, हम एक नई शुरुआत करते हैं। "

" आप भूल सकते हैं कुँअर सा, पर मुझे आज भी आपके शब्द बेहद तकलीफ़ देते हैं। काश आप देख पाते कि मैं किस कदर लहूलुहान हूँ। "

" हम बार बार आपसे माफी माँगते हैं, जो चाहे सज़ा दे लीजिये, पर वापस चलिए, अपने घर।"

उसने कोई जवाब न दिया, उठकर अलमारी खोली और उसमें से कुछ निकाल कर शौर्य की हथेली पर रख दिया

" उस दिन जब चली थी तो खाली हाथ ही आयी थी। आपका दिया हुआ कुछ साथ नहीं लाई थी, पर बाद में याद आया कि इंगेजमेंट रिंग उतारना भूल गई थी। अपनी अमानत सम्हालिये। "

शौर्य अपनी हथेली में रखी इंगेजमेंट रिंग को देखता रहा। तभी वह उठकर वॉशरूम गई और वापस आकर फोल्डिंग पर बैठी तो वह बहुत गौर से उसे देखता रहा था। पहले से वह कुछ दुबली ही हो गई थी। रंग पीला पड़ गया था। चेहरा भी मुरझाया हुआ था। चाल ढाल में कुछ फ़र्क था। शौर्य ने एक नज़र उसके चेहरे पर डाली और फिर उदर पर।

" आप प्रेग्नेंट हैं ?"

" जी, कोई ऐतराज ?"

" सचमुच ? हमारा वारिस आने वाला है ! " उसने खुशी में भरकर उर्वशी के कंधे को पकड़ लिया। फिर झिझकते हुए उसके उदर को हाथ लगाया।

" इतनी बड़ी खुशखबरी आपने हमसे छुपाकर रखी ?"

" मुझे लगा ही नहीं कि अपने बच्चे के विषय मे आपको बताना चाहिए, यह मेरा व्यक्तिगत मामला था। "

" यह बात आपकी व्यक्तिगत नहीं है उर्वशी, यह हमारे खानदान का चिराग है। अब हम आपको लेकर ही जाएंगे।"

" मैं आपको हर्ट नहीं करना चाहती शौर्य, पर अब वापसी सम्भव नहीं। मैं आपसे इतनी दूर हो चुकी हूँ कि आप सोच भी नहीं सकते। "

" कोई बात नही, जब हम साथ रहने लगेंगे तो यह दूरी भी खत्म हो जाएगी। हम आपको हर खुशी देंगे उर्वशी, आपके जाने के बाद हमें अहसास हुआ कि हम आपको दिल की गहराई से चाहने लगे हैं। बहुत पश्चाताप किया, पर आपके पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। " उसने उसे मनाने को काफ़ी कोशिश की पर वह लौटने को तैयार न हुई। अंततः शौर्य को वापस जाना पड़ा।

उसके जाने के अगले दिन ही माँ सा का फोन आया और उन्होंने उसकी कुशल मंगल पूछी। उसे हर तरह की ऊँच नीच समझाती रहीं। वह खामोशी से सुनती रही। इसके बाद उन्होंने उसके माता पिता से बात की और उसे वापसी के लिए मनाने को कहा। अब उसकी मम्मी ने भी बात की, और उसे देर तक समझाती रहीं। अंत मे उन्होंने नाराज़ होकर फोन रख दिया। उसे उम्मीद थी कि अब शिखर भी उसपर दबाव बनाएंगे, पर उन्होंने उससे इस विषय मे कोई बात न की। वह समझ गई कि अपनी नाराज़गी दिखा रहे हैं। अगले दिन उन्होंने शोफर के साथ उसकी ऑडी भेज दी। साथ मे उसके लिए एक लिफ़ाफ़ा भी था। जिसमें शिखर का एक छोटा सा नोट था कि वह गाड़ी भेज रहे हैं, ताकि उसे कोई असुविधा न हो। साथ मे क्रेडिट कार्ड भी। उसे किसी तरह की परेशानी उठाने की ज़रूरत नहीं है। अपने स्वास्थ्य व डाइट का ध्यान रखे, और खुश रहे। यह सब पढ़कर वह बहुत परेशान हो गई। उसने तुरंत शिखर को फोन किया

" आप क्यों ये सब कर रहे हैं ?"

" ऐसा क्या कर दिया हमने ?"

" पहले ही कह चुकी थी कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। "

" आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि हमें आपकी बात माननी चाहिए ? आप राणा खानदान के वारिस को जन्म देने वाली हैं, यह कोई छोटी बात नहीं। हम वो सब कुछ करेंगे जो ज़रूरी होगा। "

" मतलब मेरी इच्छा की कोई वैल्यू नहीं ?" उसका स्वर ऊँचा हो गया था।

" आपकी हर रीजनेबल ख्वाहिश सर आँखों पर, पर बेकार की जिद नहीं चलेगी। "

उसने आवेश में आकर फोन काट दिया। उसे लगा कि वह बिल्कुल अकेली पड़ गई है। हर कोई बेमतलब की नाराजगी दिखा रहा है। कोई उसे समझने को तैयार ही नहीं। क्या उसे आत्मसम्मान रखने का कोई हक नहीं ? बस सबके इशारों पर नाचते रहो। स्त्री होना गुनाह है क्या ? जहाँ सब कहें विवाह कर लो, अपना आत्मसम्मान कुचलकर बस दायित्व निर्वहन करते रहो। पुरूष जब चाहे तब उसकी अंकशायिनी बन जाओ, जब दुत्कारे तो मौन रहो। फिर पुचकार ले तो फिर सब भूलकर उसकी सेवा में तत्पर हो जाओ। गोया वह हाड़ माँस की बनी इंसान नहीं कोई पुतली है। जिसका जैसे चाहे दिल करे नचाता रहे। कभी फ़र्ज़ के नाम पर तो कभी प्रेम के नाम पर। क्या उसकी हस्ती एक खिलौने से बढ़कर कुछ नहीं ? अगर थोड़ा अपनी इच्छा से करना चाहो तो आप बुरे हो, घमंडी हो, जिद्दी हो। यदि उसके नसीब में यही था तो ईश्वर ने उसे सोचने समझने की शक्ति क्यों दी ? उसे भावनाएं क्यों दीं ? बनाना था न हृदयविहीन। पर ईश्वर भी क्या और क्यों समझे ? शायद वह भी तो पुरूष ही है।

उसका तनाव बढ़ता जा रहा था। उसने बिल्कुल मौन धारण कर लिया। उमंग भी कुछ खफ़ा सा लग रहा था। पता नहीं यह सच था या नहीं पर उर्वशी को लगा कि वह अब उससे कम बात कर रहा है। बस एक नील ही था जो उसके साथ सामान्य व्यवहार कर रहा था। पर उर्वशी ने उससे बात करना भी छोड़ दिया था। उसे डर था कि कहीं नील भी उसके प्रति कोई भृम पाले न बैठा हो। उसे कुछ समय से लग रहा था कि वह उसके प्रति अतिरिक्त संवेदनशील हो रहा है। अब बस वह शूटिंग के लिए जाती और काम समाप्त होने पर वापस आ जाती। धारावाहिक में उसके द्वारा अभिनीत कड़ियों का प्रसारण शुरू हो गया था और उसका पात्र काफ़ी पसन्द भी किया जा रहा था। दो और धारावाहिकों के प्रस्ताव उसके पास आ गए थे। जवाब में उसने अपनी शारीरिक स्थिति बताकर कहा कि या तो वह लोग उसके बच्चे के जन्म हो जाने के उपरांत शूटिंग शुरू करें या किसी और को ले लें। जिसमें एक निर्देशक को जल्दी थी तो उन्होंने उसे हटाकर किसी और को कास्ट कर लिया, जबकि दूसरा इंतज़ार करने को तैयार हो गया।

क्रमशः