आधा आदमी
अध्याय-32
यह सुनते ही उसकी बीबी ने अपने ज़िस्म का सारा कपड़ा उतार के फेक दिया और हसियां लेकर ड्राइवर पर लपकी।
सेलफोन के बजते ही ज्ञानदीप के पढ़ने का तारतम्य टूट गया। उसने काँल रिसीव करते पूछा, ‘‘और सुनाओं शेखर, क्या हाल-चाल हैं?‘‘
दूसरी तरफ से सेलफोन पर शेखर की आवाज आई, ‘‘हाल सब वैसे हैं। परसौ लखनऊ इन्टरव्यू था?‘‘
‘‘काहे का इन्टरव्यू था?‘‘
‘‘प्राइवेट में सेल्स मैनेजर की पोस्ट थी। इन्टरव्यू में मैंने क्वालीफाई किया और सर्विस मिल गई बडे़ बाप की औलाद को.’’
‘‘अरे यार, बड़े बाप की औलादें हैं। पैंसों के बल पर डिग्रिया खरीदते हैं। और एक बात बताये तुम्हें शेखर, सरकार आज खुद नहीं चाहती हैं कि बच्चे शिक्षित हो। खुद सोचो? जब सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में यह अध्यादेश जारी कर दिया हैं कि कोई बच्चा फेल नहीं किया जाएगा। अब तुम्ही बताओं उन बच्चों का भविष्य क्या होगा? अब उनसे आगे चलकर हम क्या उंमीद कर सकते हैं............?‘‘
‘‘सही कह रहे हो यार, यह तो सीधा-साधा बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा हैं.‘‘
‘‘सबसे बड़ी दुख की बात तो यह हैं ज्ञानदीप, कि माँ-बाप जानते हैं कि उनका बच्चा बौद्धिक स्तर पर कमजोर हैं। मगर फिर भी चुप्पी साधे हैं.‘‘
‘‘जितनी सरकार दोषी हैं उससे कही कम दोषी उन बच्चों के माँ-बाप भी हैं.‘‘
बात करते-करते फोन कट हो गया। ज्ञानदीप ने कई बार ट्राई किया। मगर नेटवर्क की प्राब्लम से फोन नहीं मिला।
ज्ञानदीप दिमाग़ पर ज्यादा ज़ोर न देकर, एक बार फिर से दीपिकामाई की डायरी पढ़ने लगा-
यह तो कहो ऐन वक्त पर ड्राइवर के भाई ने आकर बचा लिया। वरना उसने तो मार ही डाला था। उसके सगे-संबंधी आए और ड्राइवर की बीबी को समझा-बुझाकर अंदर ले गए। मगर वह फिर भी नहीं मानी तो ड्राइवर के भाई ने बेहोशी की सुई लगा दी।
मैं खुशी-खुशी शादी निपटाकर अपने घर चली आई थी।
दूसरे दिन ड्राइवर भी आ गये थे। जब मैं जजमानी से लौटी तो अम्मा ने बताया कि ड्राइवर की बीबी आई थी और तुम्हें उल्टा-सीधा कहकर ड्राइवर को लेकर चली गई।
एक महीना बीता। मगर ड्राइवर का कहीं अता-पता नहीं था। मैं उसकी याद में बीमार पड़ गई थी। कई डॉक्टरों को दिखाया मगर किसी को भी मेरा मर्ज पकड़ में नहीं आया। सिर से लेकर पैर तक सड़ गई थी। ऐसा लग रहा था कि अब मैं नहीं बचूँगी। तीन महीने तक इलाज चलता रहा। जब कोई फायदा नहीं हुआ तो मैंने एक मौलाना को बुलाकर फाल खुलवाया, तो पता-चला सारा किया कराया उस ड्राइवर की बीबी का हैं। जिस दिन तुम्हारे यहाँ आई थी उसी दिन किसी कोने में तावीज़ को दबा गई थी। और तुम्हारे नाम का पुतला बनवा कर दरिया किनारे पुराने कब्र में गड़वा दिया हैं, कि किसी तरह से ड्राइवर का तुम्हारा साथ छुट जाए।
2-12-1996
जब इसराइल को पता चला कि मेरी तबियत खराब हैं तो वह भागता हुआ सीधे मेरे पास आया। मुझे इस हालत में देखकर वह फफक-फफक कर रो पड़ा।
उसे रोता देख मैं भी अपने आप को रोक न सकी, ‘‘जब भी हमरे उप्पर कोई दुख पड़ा हय तुम फरिश्ता बन कर आ गैं हव.‘‘
उसने दिन-रात मेरी सेवा की। समय-समय पर दवा मलना, घर का काम-काज़ और चेलों को टोली-बधाई भेजना यह सब इसराइल का रोज़ का काम था। क्योंकि मैं न ही काम करने के लायक थी और न ही टोली-बधाई में जाने के।
12-1-1997
कितना अज़ीब हैं लोगो का
अंदाज़ें-ए-मोहब्बत
रोज़ एक नया ज़ख़्म
देकर कहता हैं
अपना ख़्याल रखना
एक दिन मेरी मुलाकात ड्राइवर से बस स्टैण्ड पर हो गई। मैंने उसकी एक भी करनी बाकी नहीं रखी, ‘‘तुमने तो वह काम किया हैं कि शायद कोई दूसरा करता तो हम उसकी मूड़ काट लेती। मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया। अपनी घर-गृहस्थी मिटाकर तुम्हारे बच्चों का घर बसाया। कोई माने या न माने हमारी नेकी अल्ला मानेगा। अल्ला निगहेबान तो बंदा पहलवान.’
‘‘ख़ुदा के लिए ज़लील न करो मुझे अपनी गलतियों का अहसास हैं। लेकिन क्या करूँ मैं अपने घर से मजबूर हूँ.......मैं कल भी आपको चाहता था और आज भी......।’’
‘‘यह कैसी चाहत चिड़िया की जान जाये और खाने वाला स्वाद न पाये। मगर कोई बात नहीं गलती तुम्हारी नहीं! गलती मेरी हैं। क्योंकि मैं अपने दिल से मजबूर हूँ.‘‘
ड्राइवर किसी न किसी बहाने मुझसे पैसा ऐंठता रहा। उसकी इस हरकत से मैं तंग आ गई थी। मैं दिन-रात बाबा लोगों से कहती रही कि अगर ड्राइवर ने मेरे साथ कुछ भी गलत किया होगा तो उसे बख्सना मत।
अभी एक महीना भी नहीं गुज़रा होगा कि ड्राइवर आये और जोर-जोर से खाँसने लगे। खाँसते-खाँसते उनके मुँह से खून की उल्लटियाँ होने लगी। यह सब देखकर मैं डर गई। मैं और इसराइल ने ड्राइवर को अस्पताल पहुँचाया। डॉक्टर ने एक-एक करके कई इंजेक्शन लगाये। मगर खून की उल्टी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी। मैं घबरा गई थी। ड्राइवर बार-बार यही कहे जा रहे थे, अब मेरे बचने की कोई उंमीद नहीं हैं। हो सके तो मेरे घरवालों को संदेशा कहला दो।
मैंने उनके घरवालों को संदेशा भेजवा दिया था। शाम तक ड्राइवर की बीबी और बेटी-दामाद आ गए थे। उन्हे देखते ही ड्राइवर रोने लगे। मैं दरवाजें की ओट में खड़ी देखती रही।
ड्राइवर के बीबी-बच्चे मेहमान की तरह अस्पताल में आते और चले जाते। उन सबकी सारी देखभाल मैं करती। दिन-रात मैंने उनकी सेवा में एक कर दिया था।
एक दिन तो इन लोगों ने हद ही कर दी। ड्राइवर के साड़ू-शाली, बेटी-दामाद, भाई-भौजाई और इनकी बीबी आ गई। अस्पताल के बेड पर ये लोग ऐसे बैठे गए जैसे किसी होटल में बैठे हो। और चाय-समोसा-मीठे का आर्डर देने लगे।
आख़िरकार मुझे कहना ही पड़ा, ‘‘मरीज देखने आये हो या मेहमानवाज़ी करने.‘‘
‘‘अरे तो क्या हुआ मंगवा लोगी तो क्या हो जाएगा, तुम्हारे छोटे बहनोई हैं.‘‘ ड्राइवर की भाभी ने कहा।
मैंने बड़े-बड़े बेशर्म देखे थे मगर इनके जैसे बेशर्म लोग आज तक नहीं देखे थे।
ज्ञानदीप पढ़ते-पढते रूक गया। क्योंकि दीपिकामाई के डायरी के पन्ने खत्म हो गए थे। वह इस इंतज़ार में था कि कब सुबह हो और वह दीपिकामाई से मिलने जाए। यही कशमकश में वह कब सो गया उसे पता ही न चला।
कौव्वा के आगे झौव्वा न औंधाव
‘‘गुरू! यही वह मेहरा हैं जो इतने दिनों से अपनी जजमानी में माँग रही थी.‘‘ रोशनी उस मेहरे को पकड़ कर लायी।
दीपिकामाई बैठी ड्राइवर की उँगलियों में मलहम लगा रही थी। उन्होंने उस मेहरे को ऊपर से नीचे तक देखा।
तब तक इसराइल ने उठाकर दो लाठी मारी। वह चिल्लाने लगी।
‘‘एक मिनट रूकों इससे हम खुद निपटती हैं.’’ कहकर दीपिकामाई उस मेहरे की तरफ़ मुख़ातिब हुई, ‘‘आई री भड़वे, तुम काहे हमरा इलाका माँगती हय?‘‘
‘‘अब गुरू, नाय माँगूगी.‘‘ जूली मेहरा गिड़गिड़यी।
‘‘आय रे मेहरे, जादा जजमानी माँगने का शौक हय तो किसी अच्छे हिजड़े के इहाँ चेला हो जाव अउर जजमानी माँगव.‘‘
‘‘गुरू! हम्म तुमरे साथ रहेगी। हमका माफ कर देव.‘‘
दीपिकामाई ने उसे खाना खिलाया। खाना खाने के बाद जूली मेहरा ने दारू पीने की डिंमाड की।
‘‘अबे भौसड़ी के जनाने, लोग खाना खाने से पहले पीते हैं और तुम माँ के लौड़े खाना खाने के बाद पियोगी.‘‘ दीपिकामाई ने पान की गिलौरी मुँह में रखी।
‘‘हाँ गुरू, हम्म पियेगी.‘‘
जूली मेहरे के पीते ही तेवर बदल गये, ‘‘हम्म माँगूगी, तुम हमरा का कर लोगी......।‘‘
‘‘जाव इसराइल नव्वे को बुला के लाव.‘‘ दीपिकामाई का आदेश होते ही वह चला गया।
रोशनी और शोभा उसे लात-घूसें मारने लगी। जूली मेहरा ज़मीन पर औधे मुँह पड़ी कराहाने लगी, ‘‘ओ मोर भइया, अब न मारव.....ओ बप्पा हम्म का न मारव...ओ अम्मा हम्म अब न माँगिब........।‘‘
इसराइल फुल्लु नाई को ले आया। मेहरे को मार खाता देख, फुल्लु नाई तख़्त के नीचे छुप गया।
‘‘फुल्लु किधर हों?‘‘ दीपिकामाई के पुकारते ही तख़्त के नीचे से आवाज़ आई, ‘‘मैं यहाँ हूँ.‘‘
‘‘उहाँ का करत हव, बाहर आव अउर ई भड़वे के सिर के बाल से लेकर भौंह तक बनाई दों.‘‘
फुल्लु नाई मेहरे के बाल-भौंह बनाकर चला गया।
इसराइल ने मेहरे के सारे कपड़े उतार लिये। वह अपनी जान बचाकर भाग गया।
सभी ठहाका मार कर हँस पड़ी।
जब ज्ञानदीप, दीपिकामाई के घर पहुँचा तो वह कपड़ा फैला रही थी। उसने नमस्ते करके चरण-स्पर्श किया और कुर्सी पर बैठ गया।
‘‘कल रात ऐसी घटना घटी कि हम लोग मरे-मरे से बचे हैं.‘‘
‘‘काहे क्या हुआ?‘‘ ज्ञानदीप ने पूछा।
‘‘हम लोग रात में शराब पीकर सो गये। ई नवाब पटारा रजईयाँ में सिगरेट पीते-पीते सो गये.‘‘ दीपिकामाई ने ड्राइवर की तरफ इशारा किया और अपनी बात आगे बढ़ाती हुई बोली, ‘‘और जानते हो बेटा, जब रजईयाँ ज़लने लगी तो ई रजईयाँ उठाये के हमका उड़ाये दीन अउर ख़ुद भी उसे ओड़ लीन.......सब लोग ई सोचे की रजईयाँ इसराइल जलाईन हय, इत्ते तो ई चालाक बनत हय.‘‘
ड्राइवर खींसे निपोर कर रह गए। उनके चेहरे पर शर्मिन्दगी साफ-साफ झलक रही थी।
‘‘अउर सुनव बेटा, ई तो कहव ऐन बखत पे रोशनी ने आई के उठाये दिया। वरना इ बखत हम्म लोगों की ल्हासें जल रही होती.‘‘
ड्राइवर ने अपनी ज़ली हुई उँगलियाँ दिखाई।
‘‘जले हो तो अपनी करनी से ई तो कहव रात में पंखा नाय चल रहा था.....।‘‘ कहती हुई दीपिकामाई का निगाहें बाहरी दरवाजें पर गई। इसराइल को देखते ही वह आगबबूला हो गई, ‘‘इत्ती देर किके माँ के भौसड़े में घुसे राहौं?‘‘
‘‘दुकाने बंद राहे तब तक का करतिन.‘‘
‘‘कव्बा के आगे झव्वा न अवधाव, घरे में तो ऊ दुकान खोले हय.‘‘ दीपिकामाई ने ताली बजाई, ‘‘जो समझिन हिजड़ेन का थोड़ा उकी माँ का चोदी घोड़ा......।‘‘
‘‘हम जाहिल आदमी का जानी.‘‘
‘‘तुम जाहिल तो हो बेटा, पर कढ़े हो..........।‘‘
‘‘कढ़े के साथ-साथ चुप्पे भी हों.‘‘ ड्राइवर के इतना कहते ही इसराइल तैश में आ गया,
‘‘मै तो सिर्फ़ चुप्पा ही हूँ पर तुम और तुमारा परिवार तो लूट-लूट के ले जाते हैं। तुमारे तो आय दिन दुनियादार भइया का खून पिये राहत हैं.‘‘
‘‘तुम्हे का तुम तो राँड़-साँड़ सन्यासी हो, तुमारे तो न कोई आगे हैं न पीछे हैं। मेरे हैं तो आयेंगे ही, और एक बात अच्छी तरह से कान खोल कर सुन लो, मैंने ही भइया को हिजड़ा बनाया हैं और मज़ा सब मार रहे हैं.‘‘
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