Shree maddgvatgeeta mahatmay sahit - 21 in Hindi Spiritual Stories by Durgesh Tiwari books and stories PDF | श्री मद्भगवतगीता माहात्म्य सहित - 21 (हनुमान चालीसा, हनुमानजी आरती और भजन)

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श्री मद्भगवतगीता माहात्म्य सहित - 21 (हनुमान चालीसा, हनुमानजी आरती और भजन)

जय श्रीकृष्ण भक्तजनों!
आज भगवान श्रीकृष्ण और श्रीगीताजी के अशीम अनुकम्पा से हनुमान चालीसा और आरती के साथ भजन को लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूँ।
आप सभी हनुमान चालीसा के अमृतमय शब्दो को पढ़कर सुनकर तथा आरती को गाकर और भजन को गाकर अपने चित्त को स्थिर करे और मन की शान्ति प्राप्त करे तथा अपने जीवन को कृतार्थ करे। हनुमान जी तथा भगवान श्रीकृष्ण जी अशीम अनुकम्पा आप सब पर बनी रहे है जैसे मुझपर बनी है।
जय श्रीकृष्ण!
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श्रीमद्भगवतगीता (हनुमान चालीसा आरती, और भजन)
~~~~~~~~~~~~~ॐ~~~~~~~~~~~~~
🙏 ~हनुमान चालीसा~🙏
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनुमुकुर सुधारि। बरनऊँ राघवर विमल जसु जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार।। बल बुद्धि विघा देहु मोहि हरहु क्लेश विकार।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहूँ लोक उजागर।। राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनी पुत्र वव सूत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी। कंचन वर्ण विराज सुवेशा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै। शंकर सुवन केसरी नंदन।तेज प्रताप महा जग वंदन।
विघावण गुनी अती चातुर। राम काज करीबै को आतुर। प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्रजी के काज संवारे।
ले सजीवन लखन जियाये। श्री रघुवीर हरषि उर लाये।। रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई।।
सहस बदन तुम्हारो यश गावै। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। सनकादिक ब्रम्हादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहिंसा।।
यम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिले राज पड़ दीन्हा।।
तूम्हारो मन्त्र विभीषण माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।। जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाधि गए अचरज नाहीं। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। हॉट न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक ते काँपै। बहुत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।। संकट ते हनुमान छुड़ावे। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जग प्रताप तुम्हारा। हे प्रसिद्ध जगत उजियारा।। साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ठ सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीं जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सिदा रो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-२ के दुःख विसरावै।। अन्त काल रघुवर पुर जाई जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत से ही सर्व सुख करई। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाँई। कृपा करहु गुरु देव की नाईं। जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदी महासुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा। तुलसी दास सिदा हरि चेरा। कीजे नाथ हृदय महँ डेरा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, ह्रदय बसहु सुर भूप।
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🙏 ~आरती बजरंग बली की~🙏

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरवर कांपे। रोग दोष जाके निकट नझाँके।।
अंजनी पुत्र महा बलदाई। सन्तन को प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारी सिया सुधि लाये।।
लंका सो कोट समुन्द्र सी खाई। जात पवन सुत वार न लाई।।
लंका जारी असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनी सजीवन प्राण उबारे।।
पैठी पाताल टोरी जम-कारे, अहिरावण की भुजा उखारे।।
बाईं भुज असुर संहारे। दाईं भुजा सब सन्त उबारे।। सुर नर मुनि जन आरती उतारें। जय जय जय हनुमानजी उचारें।।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजनी माई। जो हनुमान जी की आरती गावै बसि बैकुण्ठ परम पद पावै।।
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🙏~भजन~🙏

दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखिया प्यासी रे -दर्शन दो घनश्याम।
मन मंदिर में ज्योति जगा दो घट-घट वासी रे -दर्शन दो घनश्याम।
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर में मूंगा बोले अंधा देखे, लगड़ा चलकर पहुँचे काशी रे -दर्शन दो घनश्याम।
मंदिर-२ मूरत तेरी, फिर भी न देखी सूरत तेरी युग बीते वही आयी मिलन की पूर्णमासी रे - दर्शन दो घनश्याम।
पानी पीकर प्यास बुझाऊँ, नैनन को कैसे समझाऊं
आंख मिचौली छोड़ो अब तो ब्रज के वासी रे - दर्शन दो घनश्याम।

।।श्रीमद्भगतगीता सम्पूर्ण ।।
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💝~Durgesh Tiwari~

जय श्रीकृष्ण!
प्रभु आपके अशीम कृपा से मैन आज अपना खुद को दिया हुआ वचन पूरा किया।
मैंने श्रीगीता जी को पढा तो मुझे बहुत सुकून और शान्ति मिला और मेरे जिंदगी के बहुत से सवालों का जबाब मुझे मिला। मैं बस अपने उन सभी बंधुओ के मुक्ति के लिए ये खुद से वचन लिया और आज इसे पूरा कर के मेरे आत्मा को बहुत तृप्ति मिली।
।।जय श्रीकृष्ण।। जय श्रीगीताजी ।। जय श्रीकृष्ण।।