बच्चों की कहानियाँ कैसी हों
आर 0 के0 लाल
मुझे अगर कोई कठिन काम लगता था तो वह बच्चों को कहानी सुनाना था। मैं बड़ा सा बड़ा काम कर सकता हूं , चांद- सितारे तोड़ कर ला सकता हूं, परीक्षा देकर आई0 ए 0 एस0 तक बन सकता हूं पर बच्चों को कहानी सुनाने में मेरी हिम्मत जवाब दे जाती थी । बच्चे खुद ही कह देते थे, “क्या बकवास सुना रहे हैं”। फिर बच्चों से पहले मुझे ही नींद आ जाती थी।
अक्सर बच्चे कहानी सुनने की जिद करते हैं, कुछ बच्चे तो बिना कहानी सुने रात को सोते ही नहीं। बचपन में जब मेरी नानी आती थी तो मैं उनसे खूब कहानियाँ सुना करता था। वे कहती थी, “मनपसंद किस्सा सुनकर बच्चों का मनोरंजन होता है। साथ ही कहानियां उन्हें मानसिक रूप से संतुलित करने में सहायक होती हैं । कहानियां उन्हें उनके द्वारा एक कल्पित संसार में ले जाती हैं जहां वे स्वयं कहानी की पृष्ठभूमि में विभिन्न पात्रों का सृजन करते हैं और कहानी सुनाने वालों के बताए अंदाज़ के अनुसार ही उन पात्रों के कार्यकलापों का मूल्यांकन करते हैं”।
कभी मजबूरी में मुझे कहानी सुनाना पड़ता तो मेरी पत्नी कहानी शुरू करने से पहले ही टोंक देती थी कि बच्चों को खूब सोच समझकर ही कहानियां सुनानी चाहिए क्योंकि कहानियों के पात्रों में से एकाध को बच्चे अपना आदर्श मान बैठते हैं। कभी राजा -रानी को, कभी सुपरमैन को तो कभी किसी विलेन
या डाकू को। गलत आदर्श बना लेने से हो सकता है कि बच्चों का पूरा जीवन ही उसी के अनुरूप ढल जाए, फिर अथक प्रयासों के बावजूद भी गलत रास्तों से दूर कर पाना सहज नहीं रह जायेगा। इसलिए अच्छी रोचक एवं ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाना आसान नहीं होता अगर रोज कहानियां सुनानी पड़े तो और भी मुसीबत। बच्चे एक कहानी को दोबारा सुनना कतयी पसंद नहीं करते इसलिए कितनी कहानियां याद रखी जाए। मैं तो साफ कह देता था कि यह निरर्थक काम है। हाँ बच्चों के होमवर्क कराना हो अथवा क्रिकेट पर चर्चा करनी हो तो मुझसे कहो। बच्चों द्वारा कहानी की फरमाइश पर मैं अक्सर उन्हें डांट देता तो मेरी माता जी मुझे डांट देती थी । कहती थीं, “बच्चों को डांटने से उनकी मानसिकता पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है । तुम कैसे बाप हो , रोज न सही तो हफ्ते में एक दिन तो दस से पंद्रह मिनट की कहानी तो सुना ही सकते हो । यह बच्चों को सीख देगी और उनके सृजनात्मक में सहायता भी सहायता प्रदान करेगी”।
मेरे पड़ोसी सलूजा जी कहते हैं कि आज बड़े परिवारों के टूटने के रिवाज से बच्चों को कहानियां सुनाने के लिए दादा दादी भी कम जगह रह गए हैं। अब तो कहानी सुनाने का काम भी टीवी का हो गया है इसलिए टीवी स्टाइल में ही बच्चों का जीवन बीत रहा है। जो कुछ वे देखते हैं उस पर विचार विमर्श का मौका न मिलने से उन्हें अच्छे बुरे का पता ही नहीं चल पाता । इसलिए हम तो इस चैप्टर को ही घर से बाहर कर दिये हैं। वैसे हम कहानी सुनाना अच्छा मानते हैं क्योंकि आजकल अधिकांश बच्चे स्कूल से लेकर घर तक केवल किताबी कीड़ा ही बने रहते हैं। वे बहुत तनाव में रहते हैं । बच्चे खिलखिला कर हंस पड़े ऐसी कहानियां सुनाने से उनका तनाव कम होगा। इससे वे आगे की पढ़ाई के लिए तरोताजा हो सकेंगे। अच्छी कहानी सुनाने की घोषणा से ही बच्चे फटाफट अपना होम वर्क भी कर डालते हैं।
एक दिन मेरी पत्नी ने कहा, “अगले हफ्ते बिटिया और बेटे के बच्चे आ रहें हैं , उनको रोज कहानी सुनानी पड़ेगी । इसलिए तैयारी कर लो”। मैं भागा भागा अपने दोस्त राहुल के पास गया कि वह शायद बता दे कि बच्चों को किस तरह की कहानियाँ सुनाई जाएँ और वह उनके लिए कहानियों की कोई किताब भी दे दे। राहुल ने तो पूरा एक लेक्चर ही दे डाला और कहा, “बच्चों को ऐसी कहानियां सुनाएं जो मनोरंजक हों और जिससे सिर्फ उनकी मानसिक थकान ही दूर न हो बल्कि उनका मानसिक विकास भी हो । कहानी सुनाते समय बीच-बीच में टीका टिप्पणी करके गलत सही का एहसास कराते रहना भी जरूरी होता है। आज स्कूलों में नैतिक शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है जबकि पूरे जीवन में इसकी बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि उसी पर जीवन की मान्यता बनती है । नैतिक शिक्षा की कमी को कहानियों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है । इसलिए मॉरल कहानियाँ भी बच्चों को सुनानी चाहिए। विज्ञान, गणित, पर्यावरण एवं सांसारिक समस्याओं पर आधारित कहानियां अगर बन सकें तो अच्छा रहेगा। उम्र के अनुसार उन्हें रोचक एवं छोटा- बड़ा बनाया जा सकता है। बाजारों में घटिया किस्म की कहानियों की पुस्तकों से बचना चाहिए। उन पर आधारित कहानियों को कभी न सुनाएं। उन्हें यह भी बता दें कि वे कहानियां घटिया क्यों हैं।
राहुल ने आगे कहा, “ कहानियों को एकत्रित करने में माता-पिता को मेहनत करना पड़ता है। अपने देश में अच्छी बाल- कहानियों की आज भी कमी है , मगर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं अखबारों के साप्ताहिक सिस्टम में अच्छे साहित्य प्रकाशित होते रहते हैं उनसे भी कहानियां ली जा सकती हैं। कहानियों को सुनाने का उद्देश्य पता होना चाहिए। हर बार उपदेशात्मक कहानियों से भी बचना चाहिए । ऐसी कहानियां चाहिए जिसमें उपदेशात्मक बातों के अतिरिक्त रोमांच, मनोरंजन एवं कुछ नयापन हो। आज के बच्चों का बौद्धिक स्तर पहले से बढ़ा हुआ पाया जाता है। कई बच्चे तो दूसरे लोक में अंतरिक्ष यान से जाकर अनोखे सपनों की कल्पना करते रहते हैं, कुछ बच्चे कामिक्स ज्यादा पसंद करते हैं तो कुछ रोमांचक, भूत-प्रेत वाली, हास्य अथवा रहस्यमयी कहानियाँ चाहते हैं। ध्यान रखिए कि कहानियों में रोमांच हो परंतु उसे बच्चों के मन में भय व्याप्त होने की आशंका न हो। आंख बंद कर सुनने वाली कहानियां ही पर्याप्त नहीं है। कहानियां सुनाते समय काल्पनिक ज्ञान को अधिक व्यावहारिक बनाने में सहायक सामग्री जैसे चित्र, मॉडल, प्राकृतिक वस्तुएं भी साथ में हों तो ज्यादा असर पड़ता है।
मुझे परेशान देख कर राहुल ने कहा , ‘आप बिना मतलब परेशान हैं । आप इस दिशा में मातृभारती की मदद ले सकते हैं । उनका प्रयास काफी सराहनीय है। उनके वेबसाइट पर बच्चों के लिए विशेष रूप से कहानियां प्रकाशित की जाती हैं और अलग संग्रहीत की जाती हैं। प्रकाशन से पूर्व इन कहानियों का अनुमोदन उनकी एडिटोरियल टीम द्वारा की जाती है जिससे एक स्वस्थ साहित्य ही बच्चों तक पहुंचता है। आप उन्हें संक्षिप्त करके अपने शब्दों में अपने बच्चों को रोजाना सोते समय कम से कम एक कहानी सुना सकते हैं। इस प्रकार मेरे दोस्त ने मेरा काम आसान बना दिया ।
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