14 अगस्त, मुंबई।
मुंबई के एक बंगले में रहते मिस्टर मेहता आज थोड़े से उदास थे। वैसे तो मौका ख़ुशी का था, पर उस ख़ुशी को सेलिब्रेट करने के लिए उनके साथ कोई नहीं था। मेहता जी एक C.A. थे, और उनकी ऑफिस मुंबई में ही थी। उनकी इकलौती बेटी पूजा का बर्थ डे 15 अगस्त को है, पर वो अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी। फिर भी मेहता जी को उम्मीद थी 12 बजे तक वो शायद आ जाए। उसी के इंतज़ार में वो एक तरफ घड़ी को देख रहे थे और दूसरी तरफ दरवाजे को।
रात के 3 बजे अचानक से दरवाजे पर दस्तक हुई, मेहता जी आधी नींद से उठे तो उन्होंने देखा की उनकी बेटी शराब के नशे में चूर लड़खड़ाते हुए घर में प्रवेश कर रही थी। मेहता जी तुरंत अपनी बेटी को संभालने गए।
“ये क्या हालत बना रखी है? तुम दारू पी कर आ रही हो?” मेहता जी ने पूछा।
“यस डैड! अब मुझे नींद आ रही है। आप मुझे छोड़िए, मैं अपने कमरे में चली जाऊंगी।” पूजा ने कहा।
“तुझसे ठीक से संभला तो जा नहीं रहा है, कमरे तक कैसे जाएगी? रुक मैं छोड़ देता हूं।”
“ओह कम ऑन डैड! आई एम फ्री गर्ल। मैं अपने आप को संभाल सकती हूं।”
“ठीक है बेटा।” मेहता जी ने कहा, “बेटा अगर संभल सकती हो तो फ्रेश हो कर केक कट करने आ जाना। कब से तेरा इंतज़ार कर रहा था।”
“डैड! मैं केक कट करके ही आ रही हूं। मैंने अपने दोस्तों के साथ अपना बर्थ डे सेलिब्रेट कर लिया है। आप जाइए और सो जाइए और मुझे भी सोने दीजिए।” पूजा ने कहा।
“ऐसे बात करते है अपने पापा से?” मेहता जी को अब थोड़ा सा गुस्सा आ रहा था।
“ओह कम ऑन डैड! अब लेक्चर मत दीजिए। अब मैं छोटी बच्ची नहीं हूं, 18 साल की हो चुकी हूं। अब मैं जो चाहे वो कर सकती हूं, मैं आज़ाद हूं। इन फैक्ट, पूरा देश आज़ाद है। आज इंडिपेंडेंस डे भी है, और उससे भी बढ़कर आज मेरा बर्थ डे है। तो प्लीज़, मेरा आज का दिन खराब मत कीजिए। मम्मी को तो संभाल नहीं पाए, मुझे क्या संभालेंगे?” पूजा ने कहा और अपने कमरे में सोने चली गई।
मेहता जी आगे एक शब्द भी ना बोल पाए। बोलने के लिए अब कुछ बचा भी तो नहीं था। दूसरे दिन उन्होंने सुबह उठकर एक खत लिखा और उसे नाश्ते के टेबल पर छोड़ कर वो अपने ऑफिस चले गए और अपने नौकर से कहते गए कि पूजा को नाश्ते के साथ ये खत जरूर दे।
पूजा काफी लेट उठी और जब सुबह का नाश्ता करने टेबल पर बैठी तब उनके नौकर ने कहा, “साहब जी, ये खत आपके लिए छोड़कर गए है।”
पूजा ने खत खोला और उसे पढ़ने लगी, जो कुछ इस तरह से था।
पूजा बेटा, मैं जानता हूं तुम 18 साल की हो गई हो। मैं ये भी जानता हूं की तुम और ये देश दोनों आज़ाद है। ये भी पता है की तुम अपने आप को संभाल सकती हो, अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो। ये भी पता है की तुम्हारी अपनी लाइफ है, अपने दोस्त है, अपनी प्राइवेसी है। पर शायद एक बात तुम नहीं जानती जो मैं आज तुम्हें बताने जा रहा हूं।
तुमने मुझसे कहा कि, मैं तुम्हारी मम्मी को संभाल नहीं पाया। तुम सिर्फ इतना जानती हो कि मेरे और तुम्हारी माँ के बीच अच्छी नहीं बनी और वो मुझे छोड़ कर चली गई और उसने मुझे डिवोर्स दे दिया। हकीकत तो ये है बेटा, की उसे भी आज़ादी चाहिए थी, उसके और उसकी आज़ादी के बीच तुम आ गई थी। वो उस टाइम पर बच्चे के लिए तैयार नहीं थी, हमने कई सावधानियां रखी उसके बावजूद भी तुम पैदा हुई। वो तो तुम्हें अबो्र्ट भी करने को सोच रही थी, पर किसी तरह मैंने उसे ऐसा ना करने के लिए मना लिया। तुम्हारे जन्म के बाद भी उसे अपनी आज़ादी छिनती हुई नज़र आई, और इन सभी चीज़ों के लिए उसने मुझे दोषी ठहरा दिया। हमारे बीच रोज इस बात को लेकर अनबन होने लगी। आखिरकार मैंने उसे वो चीज़ दे दी जो उसे सबसे प्यारी थी, उसकी आज़ादी। हम दोनों अलग हो गए, पर किस क़ीमत पर? ना वो अपनी आज़ादी से ख़ुश हुई, और ना ही मैं तुम्हारी अच्छी परवरिश कर पाया।
बेटा, हमें किस प्रकार की आज़ादी चाहिए? देश आज़ाद हुआ तो स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या सोचकर हमें आज़ादी दिलाई थी? हमें सोचने की आज़ादी चाहिए, बोलने की आज़ादी चाहिए, अपने हक के लिए लड़ने के लिए आज़ादी चाहिए, कुछ करने की आज़ादी चाहिए। ये सारी आज़ादियां हमें देश के आज़ाद होने पर मिली हैं, जो हमें पहले नहीं मिलती थी। किंतु पश्चिमी संस्कृति का हमारे समाज पर इतना खराब असर हुआ है कि हमें शर्म आनी चाहिए। आज़ादी मिलना या उसका होना अच्छी बात है, पर आज़ादी के नाम पर कुछ भी करना मेरे हिसाब से तो आज भी हमारे समाज में गलत है। आज़ादी का हक सभी का है। अमीर, गरीब, औरत, मर्द, हिंदू, मुस्लिम, सबका। इसमें कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए।
कई बार लोग आज़ादी के नाम पर अपनी मनमानी करते है, कई औरते ‘feminism’ का लेबल चिपकाकर अश्लीलता प्रस्तुत करती है। ‘feminism’ ये नहीं कि कोई औरत रात को दारू पी सके, या फिर कोई भी कपड़े पहन सके। अपने देश में आज भी कई लड़कियां जन्म से पहले मार दी जाती है, जन्म होने के बाद भी उन्हें खत्म कर दिया जाता है। कई लोगो को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती। बोलने नहीं दिया जाता, पढ़ने नहीं दिया जाता, आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। हमें उन लोगो की मदद करनी चाहिए, असली आज़ादी की जरूर उन लोगो को है। मेरी बात शायद तुम्हें कड़वी लगेंगी, पर अभी तुमने आज़ाद देश में आज़ादी के लिए तड़पते लोगो को नहीं देखा है। हमें तो भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने हमें इतनी आज़ादी बख़्शी है। उस आज़ादी का हमें गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, वरना कोई एक इंसान नहीं पूरा समाज, पूरा देश बर्बाद हो जाएगा।
अगर मेरा ये ‘लेक्चर’ अब भी पसंद ना आया हो, तो मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम अपने मन से आज़ाद हो। कोई ज़ंजीर तुम्हें नहीं रोक पाएंगी। एक बात जरूर कहूंगा कि, ‘आज़ादी’ के नाम पर या ‘feminism’ के नाम पर कोई ग़लत राह मत चुन लेना। हमारे देश की महिलाओं को बहुत कम मौका मिलता है। ये अपने देश की कड़वी सच्चाई है कि, जहां एक तरफ हम औरतो को मर्दो से भी ऊपर मानते है, वहीं दूसरी तरफ औरतों को बराबरी का मौका भी नहीं मिल पाता।
ये चिट्ठी पढ़ने के बाद में ये उम्मीद करूँगा की शायद तुम्हें अपने आज़ादी के असली मायने समझ में आ जाए। और हां, फ्रिज़ में केक रखा हुआ है उसे भूख लगे तो खा लेना। न पसंद आए तो किसी भूखे को दे देना, उसे फेंकना मत। मैंने जो कल कहा और किया वो एक बाप की चिंता थी और प्यार था। अगर तुम्हें वो कुछ और लगा तो उसके लिए ‘sorry’!
पूजा खत पढ़कर रोने लगी, उसको अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने तुरंत अपने पापा को कॉल किया,
“Sorry आपको नहीं मुझे कहना चाहिए, पापा। Sorry, पापा!” पूजा ने रोते हुए मेहता जी से कहा।
“कोई बात नहीं बेटा, तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ ये ही मेरे लिए बहुत है। Happy Birthday, बेटा!”
“Love you, पापा!”
“Love you too, बेटा! और हां आज़ादी मुबारक!” मेहता जी ने कहा।
“Happy Independence Day!” पूजा ने कहा।
✍️ Anil Patel (Bunny)