द्रौपदी सभा मे जो भी बात कह रही थी।पांडवो की तरफ देखते हुए कह रही थी।पांडवो को जितना दुख द्रौपदी की दूर्दशा देख कर हो रहा था।उतना राज व अन्य वस्तएं छिन्न जाने पर भी नही हुआ था।
पांडवो को देखकर दुशासन,"ओ दासी,ओ दासी कहते हुए द्रौपदी को और भी जोर से घसीटने लगा।कर्ण और शकुनी उसकी प्रशंसा करके उसका उत्साहवर्धन कर रहे थे।दुशासन ने द्रोपदी को बीच सभा मे लाकर छोड़ दिया।
द्रौपदी सभा मे खड़े होते हुए बोली,"युधिष्ठर ने हारने के बाद मुझे दांव पर लगाया था।क्या हारा हुआ व्यक्ति किसी को दांव पर लगा सकता है?"
पांडवो का दुख और द्रौपदी की कातरता देखकर विकर्ण बोला,"द्रौपदी के प्रश्न पर विचार करके हमे सही सही उत्तर देना चाहिए।भीष्म पितामह,पिताश्री धृतराष्ट्र और विदुरजी इस प्रश्न का उत्तर क्यो नही दे रहे।आचार्य द्रोण और कृपाचार्य क्यो चुप है?राग द्वेषः छोड़कर पतिव्रता द्रौपदी के प्रश्न का सही सही उत्तर दे।"
विकर्ण के बार बार कहने पर भी सभा मे सन्नाटा छाया रहा।किसी ने कुछ नही कहा।तब विकर्ण हाथ मसलकर लंबी सांस लेते हुए बोला,"शिकार,शराब,जुआ और परस्त्रीगमन ये चार राजाओं के व्यसन है।युधिष्ठर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया।द्रौपदी केवल युधिष्ठिर की नही पांचों पांडवो की पत्नी है।इसलिए वह उसे अकेले दांव पर नही लगा सकता।उन्होंने स्वयं को हारने के बाद शकुनि के कहने पर दांव मे लगाया था।इसलिए मेरी राय में द्रौपदी जुए में नही हारी गई है।"
विकर्ण की बात सुनकर सभा मे कोलाहल होने लगा।लोग अपनी अपनी राय देने लगे।तब कर्ण गुस्से में विकर्ण से बोला,"तू ऐसी बात क्यो कर रहा है?द्रौपदी के बार बार पूछने पर भी कोई उसके प्रश्न का उत्तर नही दे रहा।इसका मतलब साफ है।सब लोग धर्म के अनुसार जीती हुई मानते हैं।बाकी चारो भाई भी युधिष्ठर के निर्णय से सहमत थे।तभी तो उन्होंने विरोध नही किया।तू समझता है।द्रौपदी को रजश्वला होने पर सभा मे नही लाना चाहिए था,तो उसका भी उत्तर सुन।हमारे शास्त्रों में औरत के एक ही पति का विधान है।द्रौपदी पांच की होने के कारण निसंदेह वेश्या हैं।वह पतिव्रता नही है।और एक वेश्या को रजश्वला या निर्वस्त्र होने पर भी सभा मे लाना अनुचित नही है।"कर्ण दुशासन की तरफ देखते हुए बोला,"विकर्ण बालक होकर बुढो की सी बात कर रहा है।तू उसकी बात पर ध्यान मत दे।पांडव जुए में सब कुछ हार चुके है।पांडवो के और उनकी पत्नी के सारे वस्त्र उत्तार लो।"
कर्ण की बात सुनते ही पांडवो ने तो अपने सारे वस्त्र उत्तार दिए।लेकिन बार बार कहने पर भी जब द्रौपदी ने अपने वस्त्र नही उतारे।तब दुशासन बल पूर्वक द्रौपदी के वस्त्र उतारने का प्रयास करने लगा।सभा मे
मौजूद किसी को भी दुशासन का विरोध न करते देखकर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारा था।द्रौपदी के बार बार गिड़गिड़ाने पर भी दुशासन ने उसके चीरहरण का प्रयास नही छोड़ा।तब भीम गुस्से में सभा मे बोला,"मैं सबके सामने शपथ लेता हूँ।युद्धभूमि में दुशासन की छाती फाड़कर उसका रक्त पिऊंगा।"
भीम की प्रतिज्ञा सुनकर सभा मे मौजूद लोगो के रोंगटे खड़े ही गए।विदुर बोले,"द्रौपदी के बार बार पूछने पर भी आओ लोगो ने उत्तर नही दिया।दुखी मनुष्य सभा की शरण लेता है।सभा मे उत्तर न देना अधर्म है।"
तेरह वर्ष के वनवास के बाद पांडव द्रौपदी के साथ वापस लौटे थे।लेजिन उन्हें लौटने पर राज नही दिया गया।श्रीकृष्ण युद्ध नही चाहते थे।इसलिए संधि का प्रस्ताव लेकर गए थे।लेकिन असफल होकर लोटे तब कुंती से मिले थे।
तब कुंती वर्षो पहले कौरव सभा मे अपनी पुत्रवधु के साथ हुए अपमान को याद करते हए बोली,"मेरे पुत्रो से कहना मैने इसी क्षण के लिए उन्हें जन्म दिया है।उन्हें याद दिलाना औरत घर की इज़्ज़त होती है।और उनके घर की इज़्ज़त को सरेआम कौरव सभा मे उछाला गया।उन्हें पत्नी के अपमान का बदला लेना है।अगर ऐसा नही करते तो क्षत्रिय कहलाने का उन्हें अधिजार नही है।"