Chhuta hua kuchh - 7 in Hindi Love Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | छूटा हुआ कुछ - 7

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छूटा हुआ कुछ - 7

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

7.

उस दिन सुबह उमा जी ने अपना मोबाइल फोन उठाया तो उन्हें उसमें एक व्हाट्सएप मैसेज़ नजर आया। उन्होंने तुरंत खोलकर देखा, गगन सर का ही मैसेज था। लिखा था – ‘खूबसूरत उमा जी को खूबसूरत सुबह मुबारक हो।‘ उमा जी के चेहरे पर एक मुस्कान खेल गई। उन्होंने जवाब में लिखा – ‘खूबसूरत सुबह आपको भी मुबारक हो। पर, आपको अपनी आंखें चेक करा लेनी चाहिए। पता नहीं मैं आपको खूबसूरत कहां से नजर आ रही हूं।‘

थोड़ी देर में ही गगन सर का जवाब आ गया – ‘किसने कहा आप खूबसूरत नहीं हैं? आपकी सादगी और भोलेपन में अद्भुत सौंदर्य है। मेरी आंखें बिलकुल ठीक हैं, आपको ही सच्चाई स्वीकार करने की आदत डालनी होगी।‘

‘आप भी कमाल करते हैं, हज़म नहीं हो रही आपकी बात’ – उमा जी ने लिखा था।

‘तो यूं कहिए ना कि आपका हाजमा खराब है। हाजमोला लीजिए। और एक बात कहूं खुद को मेरी नजर से देखेंगी तो और भी खूबसूरत नजर आएंगी।‘

‘आप भी..........बस।‘

‘ठीक है, आज शीशे में अच्छी तरह देखिए खुद को और फिर बताइये।‘

उमा जी ने फोन बंद कर दिया और सचमुच शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गईं। छप्पन साल की उम्र में भी वे आकर्षक नजर आ रही थीं। उन्हें खुद पर हंसी आ गई, गगन सर ने कहा और वे शीशे में खुद को निहारने लगीं। क्या हो गया था उन्हें।

अगले दिन जब वे सुबह उठीं तो एक और मैसेज़ उनका इंतजार कर रहा था – ‘हर सुबह नए दिन की शुरूआत होती है, किसी अपने से बात हो तो खास बात होती है। हंस कर प्यार से अपनों को सुप्रभात बोलो तो दिन भर खुशियां अपने साथ होती हैं। सुप्रभात उमा जी।‘

उमा जी की यह सुबह खास बन गई थी। उन्होंने तुरंत लिखा – ‘सच कहा आपने, नए दिन की शुरूआत आपके मैसेज से हुई है तो दिन खास लग रहा है। आपने सुप्रभात कहा है तो दिन भर खुशियां मेरे साथ रहनी ही हैं। आपको भी नए दिन की यह सुबह मुबारक हो।‘

‘”धन्यवाद उमा जी। किसी अपने से बात हो तो खास बात होती है ना, आपसे बात हुई तो मेरे लिए खास बात हुई। आपने प्यार से सुप्रभात बोला है तो मेरे साथ भी खुशियां दिन भर रहेंगी। काश आपकी आवाज भी सुन पाता तो मेरा दिन और भी खुशनुमा हो जाता।“

“आप बातें बहुत अच्छी करते हैं। सामने वाले को खुश कर देते हैं। पर, मैंने कहीं पढ़ा था – दोस्ती और संबंधों के लिए अच्छी आवाज और खूबसूरत चेहरे का होना जरूरी नहीं है। इसके लिए चाहिए खूबसूरत दिल और न टूटने वाला विश्वास।“

“मेरी बातों से अगर आप खुश होती हैं तो यह मेरे लिए खुशी की बात है। आपने जो भी पढ़ा है, ठीक ही पढ़ा है। लेकिन, मेरी खुशनसीबी देखो, आपके पास अच्छी आवाज, खूबसूरत चेहरा, खूबसूरत दिल और विश्वास सभी कुछ तो हैं। हां, शायद मेरे पास खूबसूरत चेहरा और आवाज नहीं है, पर एक नेक दिल और भरोसा जरूर है।“

“रहने दीजिए, आपको भी अपनी तारीफ सुननी है ना? तो सुनो, आप क्या कम हैंडसम और स्मार्ट दिखते हैं, सारी टीचर आप पर जान छिड़कने के लिए तैयार बैठी रहती थीं।“

“अच्छा, यह तो मुझे आज ही पता चला है। पर, एक टीचर जरूर ऐसी थी जिसने मुझे कभी भाव नहीं दिया। काश, दिया होता तो जिंदगी और खुशनुमा हो गई होती।“

“सच कहूं, आप मुझे भी अच्छे लगते थे, पर मैंने कभी आपको उस नजर से नहीं देखा।“

“किस नजर से?”

“जिस नजर से आप मुझे देखने का दावा करते हैं।“

“मैं समझा नहीं।“

“बनिए मत, कभी आपकी तरह आपको विशेष दोस्त बनाने की बात मन में नहीं आई।“

“आज तो विशेष दोस्त हूं ना?”

“पता नहीं।“

“उमा जी, किसी को अपनी पसंद बनाना कोई बड़ी बात नहीं है, पर किसी की पसंद बन जाना बहुत बड़ी बात है।“

“आपके पास तो है यह बड़ी बात। आप बहुत जल्दी किसी को भी अपना बना लेते हैं।“

“छोड़िए, आप खुद को नहीं जानतीं, आपमें वह खूबी है कि आप किसी की भी पसंद बन सकती हैं।“

“अब तक तो ऐसा नहीं हुआ। मैं किसी की पसंद नहीं बन सकी।“

“कौन कहता है? एक तो आपके पति ही हैं जिन्होंने आपको पसंद करके अपनी जिंदगी ही बना लिया और दूसरा मैं नहीं हूं क्या जिसके लिए आप विशेष बनती जा रही हैं। फिर मेरे जैसे और भी बहुत होंगे, जो आपको पसंद करते होंगे पर आपके स्वभाव की वजह से कुछ कह न पाए होंगे।“

“मुझे तो कभी लगा नहीं।“

“अच्छा ही है ना कोई और नहीं है, नहीं तो मेरा नंबर कहां लगता और क्या पता लगता भी या नहीं।“

“चलिए, खुश हो ना आप?”

“बहुत खुश। उमा जी, आप तो बहुत पढ़ती रहती हैं, आपने पढ़ा होगा ज़िंदगी का सबसे लंबा सफर एक मन से दूसरे मन तक पहुंचना है और इसी में सबसे ज्यादा समय लगता है।“

“हो सकता है, पर यह बहुत सी बातों पर निर्भर करता है।“

“हां, अब यही देख लो हमने यह दूरी सबसे कम समय में और बहुत दूर रहते हुए पूरी की है। गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जगह मिलनी चाहिए इसे।“

“बस भी करो अब गगन सर.......। चलो, अब बिछुड़ें?”

“बिछुड़ने के लिए चलना बड़ा मुश्किल होता है, उमा जी। पर, यह मुश्किल काम भी करना तो है ही, ओके।“

जवाब में उमा जी ने फोन बंद कर दिया। वे सोच रही थीं कि गगन सर सचमुच उनके विशेष दोस्त बन गए थे। उनसे फोन पर बात करने और चैट करने में उन्हें अनोखा आनंद आने लगा था। उन्हें याद आया कि वे कितनी बेचैनी से गगन सर के फोन का इंतजार करने लगी थीं और अब सुबह उठते ही वे गगन सर के मैसेज देखने लगी थीं। उन मैसेज का जवाब देना और फिर उन पर गगन सर की टिप्पणी उन्हें किसी और ही संसार में ले जातीं। उनसे किसी ने भी तो कभी वे बातें नहीं कहीं थीं, जो गगन सर सहज ही कह देते थे। वे खुद को पुष्पा और गगन सर को गोविंद की जगह रख कर देखने लगी थीं।

उस दिन जब वे सुबह उठीं और उन्होंने मैसेज़ बॉक्स खाली देखा तो उन्हें अजीब सा लगा। उन्होंने सोचा क्यों ना आज वे खुद गगन सर को मैसेज़ भेजें। उन्होंने कल ही एक पत्रिका में पढ़ा था – ‘रिश्ते बनते रहें इतना ही बहुत है, सब हंसते रहें इतना ही बहुत है, हर कोई हर वक्त साथ नहीं रह सकता, याद एक-दूसरे को करते रहें इतना ही बहुत है।‘ उन्होंने वह मैसेज़ टाइप किया और अंत में लिखा – गुड मार्निंग गगन सर। एक क्षण उन्होंने सोचा और फिर वह मैसेज गगन सर को भेज दिया।

कुछ ही देर में उनका जवाब आ गया – ”आज आपने मैसेज़ भेजा, बहुत अच्छा लगा। आगे भी आपके ऐसे ही सुंदर और सारगर्भित संदेशों का इंतजार रहेगा। इसी बहाने हमारे भीतर दबे जज़्बात भी सामने आ जाते हैं। अब आपके इसी मैसेज़ को देखें, कितना सारगर्भित है। हमारे बीच भी एक रिश्ता सा बन गया है। हम साथ नहीं हैं, फिर भी एक-दूसरे को शिद्दत से याद करते हैं। आज मुझे मैसेज़ भेजने में देर हो गई तो आपको लगा कि आप मैसेज़ भेजें। यही बात इस अनाम संबंध को मजबूती देती है। आपका दिन शुभ हो।“

उमा जी ने ध्यान से एक-एक शब्द पढ़ा और हर शब्द उनके दिल में उतरता गया। अनाम संबंध – कितना ठीक लिखा था गगन सर ने। वे समझ नहीं पा रही थीं कि उनके और गगन सर के बीच किस प्रकार का रिश्ता बनता चला जा रहा था। कुछ तो ऐसा घट रहा था उनकी जिदगी में जिसकी चाह उनके मन में कहीं दबी-ढकी रही थी। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि रिटायरमेंट के बाद उनके जीवन में ऐसे क्षण आएंगे जो उनके भीतर किसी के लिए चाहत जगा देंगे, उनके जीवन को उस सुखद अनुभूति से भर देंगे जिसके लिए उनके दिल में हूक उठती रही थी और कहानियों के पात्रों में वे खुद को तलाशने लगी थीं।

कल ही जब वे एक पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं तो कुछ पंक्तियां उनकी नजरों से गुजरी थीं जिन्होंने उन्हें अलग तरह से सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। लिखा था – जिंदगी बहुत तेजी से गुजरती है, इसका एक-एक क्षण कीमती है। हर पल को जीना और उसका आनंद उठाना चाहिए। कोई भी उम्र किसी भी काम के लिए गलत उम्र नहीं हो सकती। नए तरीके से सोचने और नए रास्ते ढ़ूंढ़ने में उम्र कभी आड़े नहीं आती। मुख्य चीज यह है कि जिस चीज में, जिस बात में हमें खुशी मिले उसे अंगीकार करें। हां, किसी भी गलत काम के लिए तो हर उम्र गलत है। पर, यह खुशी अगर लिखने-पढ़ने में मिलती हो, अपनी रुचि का कोई काम करने में मिलती हो या फिर किसी से दोस्ती या प्यार करने में मिलती हो तो उसे अपनाने में क्या हर्ज है। अपने जीवन का हर पल खुशियों और आनंद से भरने की जिम्मेदारी खुद हमारी है, किसी और की नहीं।

पहले खुद को समझना होता है, फिर हम किसी को समझने–समझाने की बात कर सकते हैं। वो कहते हैं ना कि जब तक खुद दर्द के अहसास से ना गुजरो, किसी और का दर्द समझ में नहीं आ सकता। यह बात हर तरह के अहसास पर लागू होती है, प्रेम पर भी। जब तक किसी से प्यार ना हो उसके आनंद, उसके रोमांच को नहीं जाना जा सकता। हां, रूहानी प्यार और दैहिक प्यार को अलग रख कर देखना होगा। रूहानी प्यार की पवित्रता को दैहिक प्यार के क्षणिक सुख के तराजू में रख कर नहीं तोला जा सकता। ज्ञान और सूचना का अंतर समझ में आना चाहिए। सूचना कहीं से भी मिल सकती है, पर ज्ञान अनुभव से ही मिलता है। कहानियां पढ़कर प्यार को समझना और खुद प्यार के अहसास से गुजरना दोनों कितनी अलग चीजें हैं। उमा जी अब कहानियों के पन्नों से उपजे प्यार के अहसास के बजाय खुद के प्यार के अद्भुत अनुभव से गुजर रही थीं और पहली बार उसमें डूब-उतरा रही थीं। उन्हें ज़िंदगी में रस आने लगा था और हर पल वे सपनों के संसार में विचरण करने लगी थीं।

अगले दिन उमा जी ने गगन सर को गुड मॉर्निंग का संदेश भेजते हुए लिखा – “मैंने कहीं पढ़ा था कि ज़िंदगी का हर पल कीमती है। हर पल के साथ जिंदगी कम होती जा रही है। इसलिए जीवन में दिन नहीं, दिनों में जीवन भरना है। मुझे लगा यह बात आपके साथ शेयर करूं।“

गगन सर ने जवाब में लिखा – “वाकई जीवन के हर पल को खुशी के साथ जीने का यह संदेश बहुत गहरी बात कहता है। पल तो बिना कुछ करे भी गुजर ही जाएंगे और उम्र को घटाते चलेंगे। मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगा कि आपने इस संदेश के मर्म को समझा और इसे मेरे साथ शेयर किया है।“

“आपको अच्छा लगा? कितनी अच्छी बात कही है ना? सभी को इसे जीवन में उतारना चाहिए।“

“मेरे जीवन में तो यह बात पहले ही उतर चुकी है। मैं जिंदगी के हर पल को जम कर जी जरा हूं।“

“अच्छा, वो कैसे भला?”

“आपसे बात करके, आपका साथ महसूस करके। ऐसा लगता है जैसे उम्र रुक गई है और मेरा बचपन लौट आया है।“

“ओह तो इस उम्र में बच्चा बनने की कोशिश कर रहे हैं आप?”

“उम्र का तो पता नहीं, पर मन से तो बच्चा महसूस करने लगा हूं मैं। जिस दिन से लगा आप मन से मेरे साथ हैं, बस उस दिन से मन चहकता फिर रहा है। कहता है, मुझे चांद चाहिए।“

“इसमें क्या बड़ी बात है, थाली में पानी भर कर उसमें चांद को ले आइये अपने पास। चाहें तो उसे अपने हाथों से पकड़ने की कोशिश भी कर सकते हैं।“

“पकड़ने की कोशिश करूंगा तो पानी हिल नहीं जाएगा और मुझे इस सच्चाई से रूबरू नहीं करा जाएगा कि चांद मेरी पकड़ से दूर आसमान में है। मैं बस उसे देख सकता हूं, पर छूना मना है। कभी-कभी लगता है कि मैं परछाई पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं।“

“मैं समझ रही हूं, आप क्या कहना चाह रहे हैं। पर, इस बात को मत भूलिए कि चांद आसमान में ही अच्छा लगता है।“

“जानता भी हूं और समझता भी हूं। पर, बच्चा मन जिद तो करेगा ही।“

“करने दो, बच्चे की सारी जिदें पूरी करके उसे जिद्दी बनाने से बेहतर है..........।“

“जाने भी दीजिए उमा जी। मेरे मन में जो कुछ भी आता है, कह देता हूं।“

“वह तो आप कह ही दिया कीजिए, किसी भी बात को मन में रखने से अच्छा है उसे किसी अपने से कह डालना।“

“तो आपने मुझे अपना मान लिया है? कितनी अच्छी हैं उमा जी आप।“

“आप भी बहुत अच्छे हैं गगन सर। जब आप मुझे अच्छी कहते हैं तो मुझे अच्छा लगता है। अब मुझे चलना पड़ेगा। काफी समय हो गया है, घर के सारे काम पड़े हैं।“

“मन तो नहीं भरा है। पर, जाइये अपने काम निपटाइये।“

उमा जी का मन बहुत प्रफुल्लित था। फोन बंद करने के बाद भी वह मन ही मन उन सभी बातों को दोहरा रही थीं जो अभी-अभी गगन सर के साथ हुई थीं। वे सोच रही थीं कि क्या किसी के साथ मन के रिश्ते बनते ही जिंदगी इतनी सुहानी हो जाती है। काश, ये क्षण उनके जीवन में तब आए होते जब वे उन्हें और शिद्दत से महसूस कर सकती थीं और उस उम्र में सरिता या पुष्पा की तरह रोम-रोम को झंकृत कर देने वाले इस अनुभव से गुजर सकती थीं। शायद, उसी कमी को पूरा करने के लिए ईश्वर ने रिटायरमेंट के बाद उन्हें इन क्षणों की सौगात दी है। कितनी अजीब बात है कि जिस उम्र में जीवन से सारी रंगीनिया विदा होने लगती हैं, उस उम्र में उनके जीवन के आकाश में सतरंगी इंद्रधनुष अपने सारे रंगों के साथ उग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सारे रंग उनकी मुट्टी में समाने की जिद किए बैठे हों।

घर के सब काम निपटाकर वे अपने कमरे में आ गईं। खाना खाने के बाद उनके पतिदेव काम करने जा बैठे। उमा जी ने बेख्याली में मोबाइल उठा लिया और वे आज की चैट को फिर से पढ़ने लगीं। वे एक-एक शब्द पढ़ती जा रही थीं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे गगन सर से वे आमने-सामने बातें कर रही हों। उनकी आंखे शब्दों पर दौड़ रही थीं और मस्तिष्क में गगन सर का चेहरा चहल-कदमी कर रहा था। अब तो वर्षों हो गए उन्हें देखे, पता नहीं अब वे कैसे लगते होंगे। उम्र के साथ-साथ चेहरा भी बदलता जाता है। उनका खुद का चेहरा भी अब वैसा कहां रह गया था। पर, बेहतर था कि वे उनके स्कूल वाले चेहरे को ही याद रखें। गगन सर को भी उनका वही चेहरा तो याद होगा। वे उन्हें सुंदर लगती हैं, उसी चेहरे के साथ तो लगती होंगी। अब अगर वे मुझे देखेंगे तो पता नहीं उन्हें कैसा लगेगा। वे अभी यह सब सोच ही रही थीं कि उनका मोबाइल वाइब्रेट करने लगा। वे एकदम चौंक गईं और मोबाइल उनके हाथ से गिरते-गिरते बचा। किसका फोन होगा यह देखने के लिए उन्होंने मोबाइल को सीधा किया तो गगन सर का नंबर चमकते देख उनके चेहरे पर एक मुस्कान खेल गई। उन्होंने फोन कान से लगाते हुए कहा – “कहिए गगन सर, कैसे याद किया?”

“आपको याद करने के लिए किसी बहाने की जरूरत है क्या?”

“मैं यह नहीं कह रही। सुबह ही आपसे इतनी लंबी चैट हुई थी, इसलिए कह रही थी, कोई खास बात है जो आपने फोन किया।“

“चैट ही हुई थी ना? आपकी आवाज तो नहीं सुनी थी। आपकी प्यारी आवाज सुननी थी इसलिए फोन किया।“

उमा जी के मन में गुदगुदी होने लगी – “क्या है, मेरी आवाज में ऐसा?”

“कितनी बार यह सवाल करोगी? बस यह समझ लो कि आपकी आवाज मेरे कानों में मधुरस घोलती है।“

“हे भगवान, बहुत बनाते हैं आप।“

“हां, हां बोलती रहो कुछ भी। आपकी आवाज सुनने के लिए ही तो फोन किया है।“

“अच्छा तो आप यह बताइये आप मुझे क्या समझते हैं?”

“क्या समझते हैं, क्या मतलब? मैं तो आपको अपना दोस्त समझता हूं। एक ऐसा दोस्त जो दिल के बहुत नजदीक होता है और जिससे अपने मन की बातें की जा सकती हैं, एक ऐसा दोस्त जिससे बातें करना अच्छा लगता है और जो हर समय मन-मस्तिष्क में छाया रहता है।“

“मुझे भी आप ऐसे ही दोस्त लगने लगे हो। जब आप जैसा दोस्त दूर रह कर भी याद करता हो तो ............।“

“हां, हां, बोलो, तो क्या?”

“तो वे लम्हे खूबसूरत लगने लगते हैं। ऐसा लगता है, ये ही लम्हें ज़िंदगी को ज़िंदगी बनाते हैं। कोई आपको विशेष का दर्जा देता हो, आपसे बात करने के लिए उत्सुक रहता हो और वर्षों मिले बिना, देखे बिना आपको याद करता हो तो वे लम्हे खास बन जाते हैं। हैं ना?”

“सच कह रही हो। हम अनायास वैसी ही ज़िंदगी जीने लगे हैं। आपसे बात करने, आपको याद करने और आपके बारे में निरंतर सोचते रहने से हर लम्हा खूबसूरत बन गया है।“

“एक बात पूछूं?”

“हां, पूछो ना।“

“सच बताना, आप जो कुछ भी कहते हो वो मन से कहते हो या फिर सिर्फ मुझे खुश करने के लिए?”

“आपके बारे में शुरू से ही कुछ खास फीलिंग रही हैं मेरी। मैंने बताया था ना कि उस समय मैं चाह कर भी अपनी भावनाएं आप तक नहीं पहुंचा सका था। उमा जी, मैं दिल से कह रहा हूं, यह एक भावनात्मक लगाव ही है, इससे ज्यादा ना तो होना चाहिए और ना ही मैंने कभी सोचा है। मैं जो कुछ भी कहता-लिखता हूं, वह मन से ही कहता हूं। आप खुद सोचो इस उम्र में आपको झूठी खुशी देकर मुझे क्या मिल जाएगा? आपने मुझे समझा और अपना विशेष दोस्त स्वीकार किया, यह मेरे लिए बड़ी बात है।“

“हां, लगता तो मुझे भी है। जिस दोस्त की कल्पना मैं किया करती थी, वैसा दोस्त आपमें दिखाई दिया है। आप सच मानिए ज़िंदगी में मैंने कभी किसी के साथ इतनी बातें नहीं कीं। आपसे पता नहीं क्यों इतनी बातें करने लगी हूं, बहुत बक-बक करती हूं ना मैं?”

“आपके लिए बक-बक होगी उमा जी। मेरे लिए तो यह ठंडे पानी का सोता है जो मन की प्यास बुझाता है। यह जिसे आप बकबक कहती हैं, हमारे बीच संपर्क का एकमात्र माध्यम है। अगर आप मेरे पहले फोन के जवाब में ही अपनी बेरुखी दिखातीं और बात नहीं करतीं तो मैं क्या कर लेता?”

“यह तो है। शायद पिछले जन्म के कुछ संस्कार होंगे जो उम्र के इस मोड़ पर हमें साथ लाए हैं।“

“मैं सहमत हूं आपसे। बिना ऊपर वाले की इच्छा के तो पत्ता भी नहीं हिलता। शेष ज़िंदगी हम इसी तरह अच्छे दोस्त बने रहें बस। लेकिन, बार-बार हम अपनी उम्र का जिक्र क्यों करते हैं? दोस्ती तो किसी भी उम्र में हो सकती है। फिर, मैंने कहीं देखा था – एक बुजुर्ग आदमी की टी-शर्ट पर लिखा था – ‘मैं साठ साल का नहीं हूं, मैं चवालीस साल के अनुभव वाला सोलह साल का आदमी हूं।‘ मुझे लगता है उसने सही लिखा था। उम्र नहीं, हमारी मनोवृत्ति, हमारे रवैये पर निर्भर करता है सबकुछ।“

“ठीक है, मै कोशिश करूंगी। फोन बहुत लंबा हो गया है, रख रही हूं। मैं नहीं चाहती कि पतिदेव को कोई शक हो। कोई नहीं मानेगा कि महिला-पुरुष के बीच सचमुच रूहानी प्रेम हो सकता है। कोई नहीं सोचेगा कि इतनी दूर रहते हुए हम केवल भावनात्मक संबंध जी रहे हैं।“

“आप निश्चिंत रह सकती हैं। मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी वजह से आपके परिवार में कोई परेशानी हो।“

“आपका यह आश्वासन मेरे लिए बहुत महत्त्व रखता है। पता ही नहीं चला, कब मैं पुष्पा बन गई और आप गोविंद। मैं नहीं चाहती कि भावुकता में गोविंद जैसा कोई कदम कभी आप उठाएं और पुष्पा की तरह मेरी ज़िंदगी तहस-नहस हो जाए।“

“कौन हैं ये लोग?”

“मेरी सहेली पुष्पा, जिसकी ज़िंदगी में गोविंद तूफान की तरह आया था और उसकी सिर्फ एक गलती ने पुष्पा के सपनों को ध्वस्त कर दिया था।“

“कौन सी गलती?”

“उसने पुष्पा को एक पत्र लिख दिया था जो पुष्पा के घरवालों के हाथ पड़ गया और फिर जो कुछ हुआ होगा उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।‘

“हूं, मैं पत्र लिखने जैसी कोई गलती नहीं करने वाला। पर, आपको भी सावधानी रखनी होगी। चैट करते समय हम कुछ भी लिख देते हैं, उसे तुरंत डिलीट कर दिया करो।“

“हां, इसके बजाय मैं सोच रही हूं अपने मोबाइल में आपके नाम से जो फोन नंबर मैंने सेव किया हुआ है, उसमें से आपका नाम हटा दूं और उस नंबर को किसी और नाम से सेव कर लूं।“

“आइडिया अच्छा है, किसके नाम से सेव करोगी?”

“मैं पुष्पा के नाम से आपका नंबर सेव करती हूं। कभी किसी ने गलती से देख भी लिया तो यही समझेगा कि मेरी सहेली का फोन आया होगा और उसी से चैट भी की होगी।“

“ठीक है, कर लो और कल सुबह पुष्पा के नाम से मेरी गुडमार्निंग का इंतजार करो।“

उमा जी ने फोन बंद करने के बाद पहला काम गगन सर के नंबर से उनका नाम हटा कर पुष्पा का नाम डालने का किया। ऐसा करते समय उन्हें लग रहा था जैसे वे अपने ही घर में चोरी कर रही हों। उन्हें खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि वे यह सब कर रही थीं। आखिर, किस दौर से गुजर रही थीं वे। क्या प्यार कराता है यह सब? प्यार को छुपाने के लिए लोग लड़कपन में जो करते होंगे क्या वही सब इस पकी उम्र में कर रही थीं वे? चोरी में भी एक थ्रिल होती है, क्या यह पहली बार महसूस कर रही थीं वे ?

उनका दिमाग चकराने लगा। उन्हें लग रहा था एक बहाव है, जिसमें वे चाहे-अनचाहे बही जा रही हैं। ये बहाव उन्हें कहां ले जाएगा, पता नहीं। पर, वे जिस अनुभव से गुजर रही थीं, वह सुखद था, रोमांचक था। उन्हें लगता, जैसे वह स्वयं को खोज रही हैं और इस क्रम में आनंद के सागर में गोते लगा रही हैं। वे उड़ रही हैं, सागर की सतह से आकाश की ओर। उनका “मैं’ कहीं खोता जा रहा है और कोई अलौकिक शक्ति है जो उन पर हावी होती जा रही है।