Hamare swasth karmchari in Hindi Motivational Stories by Deepika Mona books and stories PDF | हमारे स्वास्थ्य कर्मचारी

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हमारे स्वास्थ्य कर्मचारी

सुनो सिमरन, तुम हॉस्पिटल नहीं जाओगी। अपने बारे में ना सही हम घर वालों के बारे में तो सोचो दो छोटे बच्चे हैं तुम्हारे उनके बारे में तो सोचो।


ऐसा कहकर दीपक कमरे के बाहर चला गया और सिमरन उसे जाते हुए एक तक देखती रही।


जब से देश में कोरोनावायरस का कहर आया है, तब से देश की व्यवस्था ही बिगड़ गई है।

सिमरन जो कि एक नर्स है और एक नर्स होने की खातिर कोविड-19 पेशेंट की देखभाल करती है वह अपना फर्ज बहुत ही शिद्दत से निभा रही है लेकिन दीपक को डर है कि सिमरन का यह फर्ज कहीं उसके और उसके बच्चों की जान पर ना बन आए। इसलिए आज उसने तंग आकर सिमरन को हॉस्पिटल जाने से मना कर दिया।

दीपक के कमरे से जाने के बाद सिमरन ने अपना बैग उठाया और चल पड़ी अपने फर्ज की तरफ। बहार जब दीपक ने देखा कि सिमरन पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ है, तो उसने सिमरन से कहा, "सिमरन अगर तुम्हें अपना फर्ज निभाना है तो निभाओ लेकिन अब घर मत आना" और ऐसा कहकर दीपक ने दरवाजा बंद कर दिया।

सिमरन हॉस्पिटल चली गई। कुछ दिनों बाद उनके छोटे बेटे बिट्टू को बुखार आया तो दीपक उसे लेकर हॉस्पिटल गया जहां बिट्टू के टेस्ट के बाद उसे कोविड-19 पॉजिटिव बताया गया।यह सुनकर दीपक के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई वह अपने बच्चे के बारे में सोच कर अंदर तक कांप गया लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह अपने बच्चे को देख सकें क्योंकि वह इतना तो वह भी जानता था कि अगर वह उसके पास गया तो शायद उसे भी यह छूत की बीमारी लग सकती है। और वह चाहता तब भी उसे बच्चे के पास नहीं जाने दिया जाता। दीपक को बच्चे से अलग कर दिया गया। दीपक अपने बच्चे के के लिए डॉक्टर से उसकी जान की भीख मांगने लगा और फूट-फूट कर रोने लगा। इतने में सिमरन, जो कि एक पेशेंट को देखकर आ रही थी उसने दीपक को हॉस्पिटल में देखा वह भाग कर उसके पास गई । दीपक ने सिमरन को बिट्टू के बारे में बताया और दीपक सिमरन से माफी मांगने लगा। सिमरन मुझे माफ कर दो आज मुझे समझ आया कि कितनी हिम्मत चाहिए दूसरों की देखभाल करने के लिए बिना अपनी जान की परवाह किए इस वायरस के डर से मैं खुद अपने बच्चे के पास नहीं जा पा रहा लेकिन तुमने निस्वार्थ अपना फर्ज निभाया। मैं तुम्हें दिल से सैल्यूट करता हूं । हो सके तो मुझे माफ कर देना।

सिमरन ने दीपक से कहा, "दीपक हम सबके अपने अपने फर्ज होते हैं। चाहे वो डॉक्टर हो नर्स हो पुलिस हो या फिर जनता हो सबको अपने कर्तव्य निभाने पड़ते हैं और हम सबको अपने करते में निभाने भी चाहिए यही हमारा फर्ज है। मैं एक नर्स हूं और मेरा फर्ज यह है कि मैं हॉस्पिटल में रहकर अपने डॉक्टर्स की मदद करूं और अपने पेशेंटस का ध्यान रखूं। ताकि वह जल्दी इस बीमारी को हराकर सही होकर, स्वस्थ होकर, अपने घर जा सके।हम डॉक्टर नर्स हम सबका अपना फर्ज है कि हम हॉस्पिटल में रहकर इस वायरस से लड़े। और हमारी जनता का यह फर्ज है कि वह घर पर रहकर इस वायरस को हराया। हम सबको मिलकर इस वायरस को हराना है और यही हमारी जीत है।

तुम चिंता मत करो दीपक, हमारा बिट्टू जल्दी ठीक हो जाएगा। ऐसा कहकर, एक मां "जो कि एक नर्स है" अपना फर्ज निभाने चली गई और आज दीपक की आंखें, जिसमें अपनी सिमरन के लिए इतना प्यार और गर्व दिख रहा है उसे जाते हुए देख कर छलक गई।