Gavaksh - 16 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | गवाक्ष - 16

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गवाक्ष - 16

गवाक्ष

16==

"अच्छा ! संगीत व नृत्य-कला के पीछे भी कोई कहानी है क्या?"कॉस्मॉस अब निश्चिन्त हो गया था, उसे सत्यनिधि से वार्तालाप करने में आनंद आ रहा था उसे ।

" हाँ, है तो परन्तु इसमें सत्य कितना है ? यह नहीं कह सकती। "
" मुझे उससे कोई अंतर नहीं पड़ता । बस आप मुझे कहानी सुनाइए। " वह बच्चों की भाँति मचलने लगा। उसे देखकर सत्यनिधि के मुख पर कोमल मुस्कुराहट पसर गई ।
" सुनो --युगों में सदा परिवर्तन होता रहा है यानि हर युग के बाद परिवर्तन होता है, परिवर्तन के
दौरान कुछ बातें पुरानी रह जाती हैं तो कुछ नवीन जुड़जाती हैं । एक बार युग के परिवर्तन-काल में समाज मेंअसभ्यता तथा अशिष्टता फैलने लगी । लोग लालच तथा लालसा में फँसने लगे, क्रोध और ईर्ष्या का पारावारन था। भली व बुरी आत्माओं ने अपने-अपने झुण्ड बना लिए, कोई किसी की बात सुनने के लिए तत्पर न था । मनुष्य में ‘अहं’ सर्वोपरि हो गया । ”

“स्वर्ग में सिंहासन परबैठे इन्द्र घबरा गए । उन्होंने अपने अन्य देवताओं से मिलकर मंत्रणा की, सब ब्रह्मा के पास गए और उनसे विनती की कि इस वैमनस्य को रोकने के लिए धरतीवासियों को कोई खिलौना दिया जाए जो न केवल देखा जा सके किन्तु सुना भी जा सके जिससे धरती पर विकृति फ़ैलाने वालों का ध्यान दूसरी ओर आकर्षित होऔर लोग अपने अहं तथा बुरी आदतों को छोड़कर सकारात्मक कार्यों में संलग्न हो सकें। ”

“इस प्रकार सभी देवी-देवताओं ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि नृत्य व संगीत की स्वर्गिक कलाएं धरती पर प्रेषित की जाएं जिससे धरती पर मानवता के शिष्ट संस्कार सिंचित हो कें । इसके लिए ऐसे उच्च दिव्य गुणों वाले व्यक्तियों की आवश्यकता थी जो सही प्रकार से, सही समय पर, सही लोगों के माध्यम से इस कला का प्रचार, प्रसार कर सकें। इस महत्वपूर्ण कार्य का भार विद्वान, विवेकी नारद जी को सौंपा गया। "

"नारद जी ----वो चोटी वाले, जो अपने हाथ में कुछ तंबूरा सा पकड़े रहते हैं ---?कॉस्मॉस उत्साह से फड़कने लगा ।
" तुम जानते हो उन्हें ?---और सब देवी-देवताओं को भी?”सत्यनिधि के नेत्रों में चमक भर उठी । संभव है उसे भी कुछ ऐसा जानने को मिले जिसे कोई दूसरा न जान पाया हो । वह उत्फ़ुल हो उठी, कैसी लालसाएं रहती हैं मनुष्य के भीतर !
"अधिक तो नहीं, एक बार अपने स्वामी के साथ उनके निवास पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। "उसने धीरे से उत्तर दिया ।
"कैसा है उनका निवास ?"निधी के स्वर में से भरपूर उत्सुकता छलक रही थी ।
" उनका निवास एक आश्रम है, जिसमें सुन्दर, शीतल पवन के झौंके लहराते हैं, वाद्य-यंत्रों का गुंजन होता रहता है, श्लोकों की पावन ऋचाएँ गूंजती रहती हैं ---" वह जैसे किसी कल्पना लोक में खो गया था लेकिन पल भर में उससे बाहर भी निकल आया ।
“यही तो प्राकृतिक संगीत है, तुम तो पहले से ही इसका आस्वादन कर चुके हो, आगे बताओ "उसके नेत्रों में चमक तेज़ होने लगी थी।

"अब --बस --इससे अधिक कुछ नहीं जानता । आप अपनी बात पूरी करिए। " यकायक उसका सुर बदल गया था |
"ठीक है, तुम मुझे बताना नहीं चाहते ?" निधि के स्वर से नाराज़गी झलकी |
" नहीं, ऐसा कुछ नहीं है ---मैं तो एक अदना सा सेवक हूँ। मुझे सभी स्थानों पर जाने की आज्ञा तो नहीं हो सकती न ?" उसके स्वर में पीड़ा थी।
" मुझे क्षमा करना यदि मैंने तुम्हारा ह्रदय दुखाया हो---"

क्रमश..