Purnata ki chahat rahi adhuri - 18 in Hindi Love Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 18

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पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 18

पूर्णता की चाहत रही अधूरी

लाजपत राय गर्ग

अठारहवाँ अध्याय

अम्बाला के लिये निकलने से पहले हरीश ने एडवोकेट सूद को फ़ोन कर दिया था। इसलिये जब वह सूद के घर पहुँचा तो सूद बिलकुल तैयार था। मीनाक्षी के यहाँ पहुँचने पर नीलू उनको ड्राइंगरूम में बिठाकर चाय-पानी का प्रबन्ध करवाने के लिये रसोई की ओर मुड़ गयी। बहादुर को दो कुर्सियाँ मीनाक्षी के बेडरूम में रखने को कहा। चाय पीने के पश्चात् हरीश एडवोकेट सूद को मीनाक्षी के पास ले गया। हरीश ने वैसे तो एडवोकेट सूद को सारी घटना से अवगत करवा रखा था, फिर भी सूद ने मीनाक्षी से कुछ सवाल-जवाब किये।

एडवोकेट सूद - ‘मैडम, हरीश जी ने मुझे बताया है कि आपके पति कैप्टन प्रीतम ने आप पर जानलेवा प्रहार किया, क्योंकि आपने उसे अपनी बहिन से अश्लील हरकतें करते देखकर उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश की। क्या आप इस दुर्घटना के बाद कैप्टन प्रीतम के विरुद्ध एफ़आइआर लॉज करवाने के अतिरिक्त कोई और कार्रवाई की भी सोच रही हैं?’

‘वकील साहब, एक तथ्य जो शायद हरीश ने आपको नहीं बताया, पहले वह जान लें। बाक़ी बातें उसी पर निर्भर करती हैं.....’ मीनाक्षी रुक कर सोचने लगी कि शुरुआत कैसे करूँ? सूद भी उत्सुक था यह जानने के लिये कि मैडम क्या नया तथ्य बताने जा रही है। आख़िर हिम्मत बटोरकर मीनाक्षी ने कहना आरम्भ किया - ‘वकील साहब, दरअसल नीलू मेरी बेटी है। जब मैंने कैप्टन को नीलू के साथ ज़बरदस्ती करने से रोका तो कहा-सुनी में अब तक छिपाया राज अनजाने में ही मेरे मुँह से निकल गया और उसी का परिणाम आपके सामने है।’

सुनकर वकील साहब भी सकते में आ गये, क्योंकि इस बात का खुलासा तो हरीश ने किया नहीं था। थोड़ी देर तक चिंतन-मनन करने के बाद एडवोकेट सूद ने कहा - ‘मैडम, अभी तो हम अपनी शिकायत में कैप्टन द्वारा आप पर किये गये जानलेवा हमले का ही उल्लेख करेंगे और उसकी वजह उसके नीलू के साथ किये गये अश्लील व्यवहार को बतायेंगे। नीलू आपकी बेटी है, का मुद्दा तो कैप्टन खुद उठायेगा, उसका जवाब समय और परिस्थिति के अनुसार तैयार कर लेंगे।’

‘वकील साहब, इस दुर्घटना के बाद मैं उस कमीने का मुँह भी नहीं देखना चाहती। क्या तलाक़ का केस भी साथ ही दायर करना होगा?’

‘नहीं। तलाक़ का केस हमारी ओर से नहीं, कैप्टन फाइल करे तो अच्छा होगा। बुरा ना मानना, एक तल्ख़ सवाल पूछ रहा हूँ।’

‘अपने वकील की बात का क्या बुरा मनाना! पूछिए, क्या पूछना चाहते हैं।’

‘मैडम, क्या आप तलाक़ के बाद पुनः विवाह का विचार रखती हैं?’

‘वकील साहब, आधा जीवन गुजर गया। चाहा था कि देर से ही सही, विवाह करके जीवन में पूर्णता प्राप्त होगी, किन्तु मेरी नियति में विधाता शायद मानव-जीवन की पूर्णता का सुख लिखना ही भूल गया है। दूसरे, इस इंसीडेंट के बाद तो विवाह शब्द से ही नफ़रत होने लगी है, इसलिये यह सवाल तो बेमानी है।’

‘फिर तो अपनी ओर से तलाक़ का केस दायर करना बिल्कुल भी उचित नहीं। पहली बात तो यह है कि कैप्टन को इस केस में सजा अवश्य होगी। वह कितना भी ज़ोर लगा ले, सलाख़ों के पीछे उसे जाना ही पड़ेगा। दूसरे, सजा भुगतने के बाद भी उसके पास विवाह करने का अवसर नहीं रहेगा जब तक कि वह कोर्ट से तलाक़ लेने में सफल नहीं होगा। उसे अपने कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ेगा।’

‘ठीक है वकील साहब, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपको यहाँ आना पड़ा। आप शिकायत तैयार करके एफ़आइआर लिखवाने की तैयारी करें। अभी हरीश आपको छोड़ आता है।’

एडवोकेट सूद ने अपने ब्रीफ़केस से वकालतनामा निकाला और मीनाक्षी की ओर बढ़ाते हुए कहा - ‘मैडम, इस पर साइन कर दीजिए, बाक़ी मैं सँभाल लूँगा।.... हरीश जी को कष्ट करने की आवश्यकता नहीं। मेरा ड्राइवर आ गया होगा, मैं उसको कहकर चला था।’

हरीश और एडवोकेट जब बाहर आये तो वकील साहब का ड्राइवर इंतज़ार करता मिला। ‘गुड इवनिंग’ कहकर हरीश ने एडवोकेट सूद को विदा किया और अन्दर जाकर मीनाक्षी से जाने के लिये इजाज़त माँगी तो उसने उसे थोड़ी देर के लिये रोक लिया।

‘हरीश, नीलू की पढ़ाई को देखते हुए मैंने उसे कल जाने के लिये कह दिया है। उम्मीद है, वकील साहब कल शिकायत तैयार कर लेंगे और एफ़आइआर भी दर्ज हो जायेगी। यह अपराध नॉन बेलेबल है। एक बार एफ़आइआर दर्ज हो जाए तो पुलिस को कैप्टन को अरेस्ट करना ही पड़ेगा और कैप्टन जहाँ कहीं भी है, अरेस्ट होने से बचने की कोशिश करेगा।’

‘हाँ, ऐसा ही होगा। जैसा आप बता रही हैं कि नीलू कल जायेगी तो कुछ दिन आप हमारे पास चलकर रहो।’

‘हरीश भाई, रहना तो मुझे यहीं पड़ेगा, क्योंकि इलाज चल रहा है और वकील साहब को भी मेरे से कुछ पूछने-बतलाने की ज़रूरत पड़ सकती है।’

‘तो मैं कल शाम को सुरभि और बच्चों को ले आऊँगा। कोई तो अपना चाहिए आपकी देखभाल के लिये।’

‘हालात को देखते हुए मैं ना भी नहीं कर सकती। तुम्हें ज़रूर कष्ट होगा!’

‘दीदी, बहिन-भाई का रिश्ता स्नेह की डोर से बंधा होता है, इसमें किसी के कष्ट या किसी प्रकार की औपचारिकता का स्थान नहीं होता। हमें आपकी सेवा करने का मौक़ा मिलेगा, सुरभि के लिये तो यही सबसे बड़ी ख़ुशी होगी।’

‘हरीश, अब तुम जाओ, दिन ढल रहा है।’

..........

हरीश जब घर पहुँचा तो सूर्य छिप चुका था, किन्तु अँधेरा नहीं हुआ था। सुरभि रात का खाना बनाने में व्यस्त थी, फिर भी उसने मीनाक्षी के बारे में पूछा तो हरीश ने कहा- ‘तुम खाना बना लो। खाना खाने के बाद आराम से बातें करेंगे।’

इतना कहकर हरीश फ्रैश होने के लिये बाथरूम में चला गया। फ्रैश होने के बाद वह भी पम्मी और स्वीटी के साथ टी.वी. पर ‘चित्रहार’ देखने बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसने न्यूज चैनल लगाने के लिये स्वीटी से रिमोट माँगा तो उसे बुरा लगा। मुँह बनाते हुए कहने लगी - ‘पापा, आप और पन्द्रह मिनट लेटे आते तो अच्छा होता! हम ‘चित्रहार’ तो पूरा देख लेती।’

‘बेटे, अच्छे बच्चे ऐसा नहीं बोलते। मैं सुबह का गया अब घर आया हूँ। थोड़ी देर समाचार सुन लूँ, इतने तुम खाना खा लो।’

हरीश यह बात कह ही रहा था कि रसोई से सुरभि ने भी पम्मी और स्वीटी को खाने के लिये बुला लिया।

खाना आदि से निवृत्त होकर जब सुरभि सोने के लिये बेडरूम आयी तो उसे सम्बोधित करते हुए हरीश ने कहा - ‘सुरभि, दीदी ने नीलू को सारी स्थिति से अवगत करवा दिया है। एक बार तो ज़रूर उसे झटका लगा था, किन्तु जल्दी ही उसने स्वयं को सँभाल लिया। दीदी ने उसे कॉलेज जाने के लिये मना लिया है। कल वह जायेगी। इस हालत में दीदी की देखभाल के लिये कोई अपना हर समय उनके पास होना चाहिए। मैंने तो दीदी को यहाँ आने के लिये कहा था, किन्तु वे वहीं रहना चाहती हैं। अब तुम और बच्चे कुछ दिन उनके पास रहने के लिये तैयार हो जाओ। बच्चों की अभी छुट्टियाँ हैं। मैं कल तुम्हें छोड़ आऊँगा।’

‘यह तो आपने बिलकुल ठीक किया। नीलू की पढ़ाई का नुक़सान भी नहीं होगा और बच्चों की आऊटिंग भी हो जायेगी। कल किस वक़्त चलेंगे?’

‘मैं सोच रहा हूँ कि छुट्टी तो न लूँ। ऑफिस के बाद चले चलेंगे। तुमने कपड़े आदि धोने हों तो वह भी कर लेना। मैं रात को वहीं रुक जाऊँगा।’

‘आपकी प्लानिंग हमेशा परफ़ेक्ट होती है। कुछ भी चेंज करने की गुंजाइश नहीं छोड़ते।’

‘अरे, इतनी पम्पिंग मत करो, कहीं गुबारा फूट ही न जाए।’

इसी तरह आने वाले कल का कार्यक्रम बनाकर हँसते-हँसाते उन्होंने स्वयं को नींद के हवाले कर दिया।

क्रमश..