लघु कथा-- -शब्द संख्या- 350 (लगभग)
नैसर्गिक सुख
--राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
‘’कल्लो....कल्लो...।‘’ चिल्लाते-चिल्लाते, मेरी पत्नि धड़धड़ाते हुई, मेरे पास आकर पूछने लगी, ‘’कहॉं है कल्लो!ˆ मेरे उत्तर की परवाह किये बिना वह घर में ही भड़-भड़ाकर ढूँढने लगी, ‘’किधर हो कल्लो-कल्लो!’’’
‘’...यहाँ हूँ... मेम साब!’’ करता हुआ काम छोड़कर ‘’ हाँ मेम साब...?
‘’मेरे लिये दूघ गरम कर के, लाओ।‘’ आदेशात्मक लहजे में, ‘’बैडरूम में हूँ।‘’
‘’पहले डिनर लगाऊँ; मेमसाब ?’’
‘’नहीं! पार्टी में खा चुकी हूँ।‘’ कुछ नरम होकर कहा, ‘’बहुत नींद आ रही है, जल्दी ला।‘’
.....ये है, श्ष्टिाचारी, संस्कारी, सम्पन्न, सम्पूर्ण अर्धान्गिनी!
....मैंने पैग भरा। बैठ गया खिड़की खोलकर।
आज कुछ ठण्डक है। शायद वर्षा होने वाली है। बाहर देखा, पानी गिरने लगा। थोड़ी देर में जोर की बरसात होने लगी।
सामने बीरान खण्डहर पड़ी इमारत को देखा, कुछ हलचल दिखी।...गौर से देखा; एक महिला ईंटों का चूल्हा बनाकर भोजन बना रही है। उसी के पास एक पुरूष छोटे बच्चे को बेतरतीब गौद में पकड़े उकड़ूँ बैठा है। मुझे लगा वे छज्जे के नीचे तो है; बौछार जरूर उन पर आ रही होगी। भूख मिटाने के अलवा और ध्यान कहॉं जायेगा।
बर्तन के नाम पर सिर्फ एक हण्डी, एक थाली है। बस। इनके सहारे दोनों ने भोजन किया। बीच-बीच में बच्चे को भी खिलाया।
मैंने दुबारा पैग बनाया। जिज्ञासा हुई, पुन: उनकी और ध्यान गया----
.....ये क्या वे तो एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुये हैं, जैसे नाग- नागिन
गुथ्थम-गुथ्था होकर परस्पर दबोचकर चूस लेना चाहते हैं.....छक्कर....तृप्त......
मैं ऑंखें बन्दकर अपने आप में ही सिमटकर रह गया।
सूर्योदय के समय ऑंख खुली तो दंग रह गया। ऑंखें फटी के फटी रह गईं.....एक मटमैली सी जवान औरत निश्चिन्त गहरी नींद में है! बच्चे के मुँह में एक छाती है, दूसरी छाती पर उसकी नन्ही हथेली चिपकी हुई है।
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि यह ममत्व है; या मैं उस भरी पूरी छरहरी
मांसल देह के उभारों की वासना में खोता जा रहा हूँ।
मेरे पास सब कुछ होकर भी; मैं बिचलित-बैचेन हूँ, पर उनके सिर्फ शरीर हैं...नैसर्गिक सुख भोगने के वास्ते......।
न्न्न्न्न्न्न्
संक्षिप्त परिचय
नाम:- राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव,
जन्म:- 04 नवम्बर 1957
शिक्षा:- स्नातक ।
साहित्य यात्रा:- पठन, पाठन व लेखन निरन्तर जारी है। अखिल भारातीय पत्र-
पत्रिकाओं में कहानी व कविता यदा-कदा स्थान पाती रही हैं। एवं चर्चित
भी हुयी हैं। भिलाई प्रकाशन, भिलाई से एक कविता संग्रह कोंपल, प्रकाशित
हो चुका है। एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है।
सम्मान:- विगत एक दशक से हिन्दी–भवन भोपाल के दिशा-निर्देश में प्रतिवर्ष जिला स्तरीय कार्यक्रम हिन्दी प्रचार-प्रसार एवं समृद्धि के लिये किये गये आयोजनों से प्रभावित होकर, मध्य- प्रदेश की महामहीम राज्यपाल ने 2 अक्टूवर 2018 को हिन्दी भवन, भोपाल में राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया है।
भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर उ.प्र. वर्ष- 2014 फरवरी, में संस्थान के महासचिव माननीय डॉ. श्री राष्ट्रबन्धु जी (सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार) द्वारा गरिमामय कार्यक्रम में सम्मानित करके प्रोत्साहित किया। तथा स्थानीय अखिल भारतीय साहित्यविद् समीतियों द्वारा सम्मानित किया गया।
सम्प्रति :- म.प्र.पुलिस (नवम्बर 2017) से सेवानिवृत होकर स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क:-- 145-शांति विहार कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड के पास, भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) पिन-466001, व्हाट्सएप्प नम्बर:- 9893164140 एवं
मो. नं.— 8839407071.
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