यारबाज़
विक्रम सिंह
(2)
फिर एक कमांडर जीप आकर वहां रुकी। कमांडर जीप के रुकते ही लोग बची-खुची सीट पर बैठने लगे। कमांडर का खलासी और ड्राईवर दोनों भी कमांडर से उतर कर बाहर यात्रियों को ठूस ठूस कर कमांडर में बैठाने की कोशिश करने लगे। श्यामलाल ने भी मुझे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया और खुद बाहर खड़ा रहा। मेरे बैग को ऊपर कमांडर जीप पर रख दिया। जब मैंने श्यामलाल से कहा कि "तुम भी बैठ जाओ ।" तो श्यामलाल ने कहा,"बैठ जाता हूं" पर जैसे ही कमांडर स्टार्ट होकर आगे बढ़ी तो श्यामलाल लोहे की रॉड पकड़कर पायदान में पैर रखकर पीछे की तरफ कमांडर में लटक कर खड़ा हो गया। उसी तरह करीब चार- पांच लड़के और लटक गए। गाड़ी चल दी गाड़ी में अश्लील भोजपुरी गीत जोरों से बजने लगे। पूरे रास्ते अश्लील भोजपुरी गीत बजते रहे और लोग बाग अपनी जगह उतरते रहे और चढ़ते रहे। ना महिलाओं को ,ना पुरुष को, ना पिता को,ना मां को,ना भाई को, ना बहन को किसी को भी गानों से कोई आपत्ति नहीं थी। जैसे वह इस तरह के गानों के आदी हो चुके थे। पूरी सड़क पर बस मुझे छोटी-मोटी चाय पान की गुमटी ही नजर आई थी। सड़क के दोनों किनारे खेत ही खेत थे।
भंवरेपुर गांव के मेन रोड से एक अंदर की तरफ जाती पक्की सड़क के पास कमांडर आ कर रुक गई। मैं और श्याम गाड़ी से उतर गए। तभी कमांडर का खलासी पान चबाता हुआ मेरे पास आकर पैसे मांगता है। मै पर्स की तरफ हाथ बढ़ाता हूं। तभी श्याम कमांडर के खलासी से कहता है,"यह मेरे साथ है"। यह सुनते ही कमांडर का खलासी गाड़ी में बैठते हुए कहता है। "चला हो!" और गाड़ी चल देती है। गाड़ी के जाते ही मैंने श्याम से कहा,"पैसे क्यों नहीं देने दिए।"
"यहां कॉलेज के लड़के पैसे नहीं देते और कोई अगर ज्यादा बक -बक करता है तो उसकी पिटाई हो जाती है"
"मगर मुझे देने देते।"
"जब तुम मेरे साथ हो तो कैसे तुम्हारे पैसे खर्च होने देता। वैसे भी किसी भी कमांडर में बैठने के बाद अगर तुम कहोगे कि श्याम लाल यादव के घर जाना है फिर या तो तुम्हें वह बैठाएगा नहीं और अगर बैठा लिया तो फिर तुमसे पैसे नहीं मांगेगा।"
"ऐसा क्यों"
"मैंने कॉलेज के लड़कों के साथ कई कमांडर ड्राइवरों की पिटाई की है। तब से मुझे कई कमांडर वाले जान गए हैं"
" गजब की गुंडा गर्दी है। पर यह गलत है।"
"पहले गलत था मगर अब सही हो रहा है।"
फिर श्याम ने मुझे अपनी आपबीती बताई थी।
कॉलेज शुरू हुए थे और मेरा पहला दिन था। जुलाई का महीना था,मगर मौसम साफ था। कभी कभार हल्की बूंदाबांदी, छींटे पड़ने लगती थी। मैं कॉलेज जाने के लिए गांव के रास्ते के स्टाप पर खड़ा हो गया। कमांडर गाड़ी के लिए। मैंने पीठ में एक बैग टांग रखा था। कई कमांडर गाड़ियों को रोकने के लिए हाथ दे रहा था,मगर कोई भी गाड़ी रोक नहीं रहा था। उसी दिन मेरे सामने से एक लड़की जिसका नाम राधिका है, साइकिल से कॉलेज जा रही थी। मुझे देखते हुए निकल गई थीं। मैं बहुत देर तक गाड़ी रोकने का प्रयास करता रहा मगर अंत में थक कर वही रास्ते किनारे बैठ गया और आखिरकार हार कर घर वापस आ गया। फिर यह सिलसिला तो जैसे चल ही निकला। स्टॉप तक आना और वापस चले जाना। वापस आने पर मां एक ही सवाल करती थी कि क्या आज भी कोई गाड़ी वाला नहीं रोका क्या?
"नहीं।"
"बेटा! कल फिर कोशिश करना। कोई ना कोई गाड़ी वाला रोकेगा।"
फिर मां मुझे साइकिल लेने की भी सलाह देने लगी थी। गांव में ज्यादातर लोगो के पास हीरो साइकिल थी। मां ने यहां तक भी कहा था कि अगर साइकिल से नहीं जा पा रहे हो तो एक छोटी सी मोटरसाइकिल खरीद लो। छोटी सी मोटर साइकिल तात्पर्य कम दाम की पुरानी मोटर साइकिल। क्योंकि हमारे गांव के लोग हीरो होंडा मोटरसाइकिल पर बहुत विश्वास करते हैं और उसकी सेकेंड हैंड गाड़ी बिकने पर भी लोग कम दाम में खरीद लेते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि हीरो होंडा मोटरसाइकिल पुरानी भी हो जाए तो भी सही रहती है। और खूब पिकअप के साथ चलती है। खास कर हीरो होंडा के शॉकर भी मजबूत होता है,कितना भी उबड़ खाबड़ रास्ते में चले कमर में कभी दर्द नहीं होता। इस वजह गांव के लोग पुरानी हीरो होंडा मोटसाइकिल खरीदने के फिराक में रहते हैं। क्योंकि उनका मानना था बजाज की मोटर साइकिल पुरानी होने पर झड़झड़ा जाती है। पर मैं पापा पर किसी तरह का बोझ नहीं डालना चाहता था। मगर साला मैं भी जात का अहिर। इस बात की जिद पर आ गया था कि कमांडर जीप तो रुकवा कर ही रहूंगा।
मैं उसी तरह एक दिन गाड़ी रोकने की कोशिश करता रहा,मगर किसी ने गाड़ी नहीं रोकी। उस दिन भी राधिका मेरे सामने से हीरो साइकिल पर सवार हो गुजर गई। मैं थोड़ी देर उसे देखता रहा। उस दिन मुझे घर वापस जाना एकदम भी अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे बहुत ही बेइज्जती महसूस हो रही थी। फिर मैं उसके पीछे भागा। सुनो!सुनो!कहकर पुकारते हुए
दौड़ते हुए उसके पास पहुंच गया। मैंने हांफते हुए उससे कहा ,"क्या मुझे लेती चलोगी?"
"अगर मैं तुम्हें साइकिल से ले गई तो कल को बदनाम हो जाऊंगी, क्योंकि यह गांव है शहर नहीं"
"अभी से भविष्य के बारे में क्यों इतना सोचती हो? जब बदनामी होगी तब देखा जाएगा। फिलहाल तो कॉलेज चलते हैं।"
राधिका मुस्कुराई और बोली," ठीक है चलो।"
"ठीक है। तुम पीछे बैठो। मैं चलाता हूं।"
मैं उसे बैठाकर साइकिल चलाता रहा। राधिका चुपचाप पीछे बैठी रही। कुछ दूर साइकिल चलाने के बाद मैं थक गया । उस दिन मौसम उमस भरा था । मैंने हांफते हुए राधिका से पूछा ,"तुम डेली कॉलेज 15 किलोमीटर साइकिल चलाकर जाती हो?"
"वापस जाने से अच्छा है साइकिल चलाकर चले जाओ।" लड़की ने जैसे व्यंग्य बाण
छोड़ दिया हो।
मैं यह सुनकर चुप हो गया मुझे लगा कि आगे और बेइज्जती कराने से बेहतर है कि चुपचाप साइकिल खींचते रहो।
मैंने एक स्टैंड के पास जाकर देखा वही कमांडर ड्राइवर खड़े थे जो चौक में गाड़ी नहीं रोकते थे। मैंने अचानक साइकिल रोककर राधिका से कहा -,"तुम निकलो मैं आता हूं।"
राधिका निकल गई और मै कमांडर वालों के पास पहुंच गया। सभी ड्राईवर ने गले में गमछी लपेट रखी थी। सबने मुंह में पान गुटखा ठूस रखा था। मैंने एक कमांडर वाले से पूछा" भाई साहब!आप लोग गाड़ी क्यों नहीं रोकते हैं? हम हाथ देते हैं तो?"
"तुम्हारे बाप की गाड़ी है जो हाथ देने से रोक देंगे?" पान की पीक थूकते हुए कहा।
मेरा पूछना ही जैसे गुनाह हो गया था। यह सुनते ही मैं सकपका गया। मगर मैंने अपना आपा न खोकर कहा,''अरे आप गाड़ी चलाते ही हैं,सवारी ले जाने, ले आने के लिए ही तो।"
"मैं कॉलेज के लड़के -लड़कियों को ले जाने ले आने के लिए गाड़ी नहीं चलाता हूं। साले! कालेज के बच्चे चढ़ जाएंगे फिर 10 का 5 रुपए देंगे । फिर कहेंगे हम स्टूडेंट हैं।हमने कॉलेज ले जाने का डेका ले रखा है।उसका सीधा सा जवाब था।
"क्यों आपका कोई भाई बहन रिश्तेदार भी तो कॉलेज जाता ही होगा।"
ड्राइवर ने मुझे धक्का दे दिया फिर अचानक 2--4 ड्राइवर आ गए वह ड्राइवर से पूछा ,"क्या हुआ?"
ड्राइवर बोला ,"इन के अनुसार गाड़ी रोकनी और चलानी है?"
चारों ड्राइवर एक साथ हंसकर बोले "क्या बे!कौन है तू?"
"मैं जो भी हूं बस गाड़ी रोकते क्यों नहीं?"
एक ड्राइवर धक्का देकर बोला,"नहीं रोकते! जा क्या कर लेगा?"
मैंने ड्राइवर को जोर से धक्का दे दिया फिर कुछ ड्राइवर भी मुझे मारने आये मेरे और ड्राइवारो में धक्का-मुक्की और मुक्का- मुक्की दोनों चलनी शुरू हो गई थी।
मगर शुक्र था कि उसी वक्त कॉलेज का एक लड़का राकेश बाइक से कालेज जा रहा था। मुझे लड़ते हुए देख उसके मुंह से निकला था-"अरे तेरी मां की। और वह भी लड़ने आ गया। मगर उसने बुद्धिमानी या बुजदिली दिखाई यह मैं कह नहीं सकता बस वह लड़ा नहीं था। वह मुझे वहां से खींचकर बाहर ले गया था और अपनी हीरो होंडा 100 एस एस बाइक में बिठाकर कॉलेज ले जाने लगा था।
राकेश ने बाइक चलाते हुए मुझसे पूछा,"यार क्यों लड़ गए इन लोगों से।"
"यह सब गाड़ी नहीं रोकते गांव के चौक के पास"
"तो तुम इन सब से अकेले भिड़ गए?"
रवींद्र नाथ टैगोर जी ने कहा है कि यदि कोई साथ न दे तो एकला चलो। तो हम अकेले पिल गए इन सब से"
अरे दादा रे दादा-राकेश के मुंह से निकला
"मेरे साथ आ सकते हो। मैं तुम्हारे गांव में ही तो रहता हूं। दरअसल विद्यार्थी हाफ किराया देते हैं तो यह सब रोकते नहीं।"
मैं चाहता अगले दिन उसके साथ कॉलेज आ सकता था पर मुझे यह गवारा नहीं हुआ। मैंने उससे कहा,"मैं तो तुम्हारे साथ आ सकता हूं पर वह तमाम विद्यार्थी कैसे आएंगे जिनके पास कोई साधन नहीं है?"
मेरी बात सुनकर राकेश एकदम से चुप हो गया था पर उसके दिमाग में कई सारे सवाल जैसे उठने लगे थे कि मैंने जो कहा है वह कितना सच कहा है। अगले दिन वह मेरे पास अपने मित्रों को लेकर आया और मुझे साथ ले जा कर स्टाप पर खड़ा हो गया था। फिर मुझे पता चला कि राकेश ने बुजदिली नहीं बुद्धिमानी का ही काम किया था। स्टाप पर खड़े होने के पहले ही हम लोगों ने अपनी रणनीति तय कर ली थी। उस दिन जैसे ही कोई कमांडर जीप रोड पर आती थी तो सारे लड़के एक साथ रोड के ऊपर खड़े हो जाते थे। कमांडर दूर से ही ब्रेक मारता हुआ ठीक स्टाप पर ही आकर रुक जाता था। ड्राइवर गाड़ी रोककर सीधा पूछता था" क्या गुंडागर्दी है?"
मैं भी दबंगई मैं कहता हूं "कुछ लड़के पीछे लटक ले पैसा तो सीट का बनता है।"
दो तीन लड़के पीछे लटक गए। राकेश गाड़ी वाले से बोला," चल आगे तू निकल।" इसी तरह दो तीन गाड़ियों में बैठ सभी चले गए थे। दरअसल हमने उस दिन उन तमाम लड़कों को कमांडर जीप में बैठाकर भिजवाया था जो हफ्ते में एक या दो बार ही साइकिल से जाते थे, क्योंकि साधन ना होने की वजह से उन्होंने तो करीब- करीब कॉलेज जाना ही बंद कर दिया था।
मगर इसकी परिणति भी बहुत उल्टी हुई एक कमांडर मालिक ने मेरे नाम पर पुलिस में कंपलेन कर दी। धारा ३७९ चोरी, छिनताई केस दर्ज करा दिया। एक दिन पुलिस कॉलेज के उसी चौराहे पर आकर मुझे उठाकर ले गई। मैंने पुलिस वालों से पूछा कि मेरा जुर्म क्या है? उन्होंने बताया कि ड्राइवर से पैसे छीनने के लिए धारा ३७९ तुम्हारे ऊपर लगा है। फिर उन लोगो ने मुझे वही हवालात में डाल दिया।
तब तक यह बात पूरे कॉलेज में फैल गई थी कि मुझे पुलिस उठाकर ले गई है। चौराहे पर किसी कॉलेज के लड़के ने पुलिस को मुझे ले जाते हुए देख लिया था। उसके बाद राहुल ने मेरी जमानत करवाई।
राहुल का नाम आते ही मेरी जिज्ञासा हुई कि पूछो राहुल कौन है? पर में चुप रहा।
कोर्ट में भी पेशी लगी। मुकदमा शुरू हो गया । तारीख पड़ती तो मैं तारीख पर जाता ही नहीं था। मेरा फिर वारंट निकल गया । मैं जमानत पर छूट गया । दो बार ऐसा ही हुआ। फिर एक दिन मैं, नेता राहुल, राकेश और कॉलेज के अन्य लड़कों के साथ ड्राइवर मालिक के पास गया। कॉलेज के इतने लड़कों को एक साथ देखकर वह डर गया। राहुल नेता ने देसी कट्टा उसकी खोपड़ी से लगा दिया और कहा कि अभी तो सिर्फ सटाये हैं। केस वापस ले ले नहीं तो ठोक देंगे। उस दिन समझ में आया कि यह काम पहले कर लेते तो इतना बवाल ही नहीं होता। कोर्ट में उसने यह कह दिया कि मैंने गलत लड़के के ऊपर इल्जाम लगा दिया। दरअसल यह लड़का था ही नहीं। और उसने केस वापस ले लिया और केस डिसमिस हो गया। मगर मुझे उसे धमकाने वाली बात अच्छी नहीं लगी थी। मैं अगले दिन सुबह ही उसके पास जाकर माफी मांगना चाहता था। पर राकेश ने मुझे रोक लिया था। उसका कहना था,तुम्हारे ऎसा करने से वह यह समझेगा तुम डर रहे हो। इसलिए में रुक गया। लेकिन केस लेने के बाद मैं और राकेश उसके पास गए थे। मैंने उनसे माफी मांगते हुए यह कहा,कॉलेज स्कूल के विद्यार्थी तो सिर्फ सुबह और शाम के वक़्त ही तो कॉलेज आते जाते है। क्या आप नहीं चाहते गांव के लोग आगे बढ़े। पढ़ लिख कर कुछ बने। अगर आप के कमांडर गाड़ी में दो विद्यार्थी भी बैठ कर स्कूल कॉलेज चले जाएंगे। तो आप का कोई नुकसान नहीं हो जायेगा। अगर इसी तरह सारे कमांडर वाले सोच ले तो कितना भला हो जाएगा।
मेरी बात उसे अच्छी लगी। अब तो जहां भी मिलता है दुआ सलाम हो जाती है।
लेकिन फिर भी कमांडर ड्राइवर कहां मानते हैं ?
श्यामलाल फिर रास्ते में मेरी तरफ मुंह करके कहा,"बस उसके बाद से लड़कों ने पैसे देने ही बंद कर दिए हैं और जिस- जिस ने मांगे उसकी पिटाई हो गई।" यह सुन मैं चुप हो गया। अब तक उसकी हालत बात सही लगने लगी। तभी एक दुबला -पतला लड़का लूंगी संडो बंडी पहने हुए दौड़ते हुए आया और मुझसे हाथ मिलाया।
हाथ मिलाते हुए उसने मुझसे पूछा "आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई। मैं भी श्याम के साथ आपको लेने आता मगर क्या है अभी गेहूं की दौरी हो रही है, इसलिए नहीं आ पाया।"
"जी, नहीं कोई तकलीफ नहीं हुई।" मैंने उससे कहा। तब मुझे लगा कि श्याम ने पूरे गांव से लेकर शहर तक मेरे आने का डिंडोरा पीट रखा है। तब मुझे याहसस हुआ।जितनी मुझे श्याम के पास आने की बेचैनी थी उतनी ही श्याम को मेरे आने की बेचैनी थी।
श्याम ने उस लड़के का परिचय देते हुए कहा," यह मेरा मित्र है राकेश"
राकेश का नाम सुनते ही मुझे मन ही मन हंसी आ गई। मैं यह समझ रहा था राकेश कोई लंबा चौड़ा जवान लड़का होगा। उसकी शकल अमरेशपुरी जैसी होगी। पर यह उसके विपरीत दुबला पतला नाटे कद का साधारण दिंखने वाला लड़का था।
खैर मैंने मन की हंसी को रोक, सिर झुकाकर हैलो करते हुए कहा," अभी-अभी आप ही की चर्चा हो रही थी।"
राकेश ने भी मुस्कुरा कर कहा कि तब तो मैं सौ साल जिंदा रहूंगा।
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