Ek bund ishq - 22 in Hindi Love Stories by Chaya Agarwal books and stories PDF | एक बूँद इश्क - 22

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एक बूँद इश्क - 22

एक बूँद इश्क

(22)

ये संयोग ही है कि डा. कुशाग्र का एक ही घंटी पर फोन उठ गया।

कुशाग्र से लंबी बातचीत के दौरान यही निष्कर्ष निकला कि ऐसी स्थिति से घबराना नहीं है कि ऐसी स्तिथी अक्सर आएगी और यह इलाज का एक हिस्सा है जिसके लिए उसको पहले से माइंड मेकअप करना होगा स्थिति इतनी खतरनाक भी नहीं है जितनी की इलाज ना करने की दशा में होगी अच्छा यही होगा धैर्य से काम ले और घबराहट को हिम्मत में बदलें,,,,और फिर, रीमा को अकेले निकलने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्यों नहीं पहले ही उसको स्वेच्छा से वहां ले जाया गया? जो कि जरूरी था दुखी अवस्था में किया हुआ कार्य चोट तो बहुत पहुँचाता ही है नुकसानदेह भी हो सकता है। रीमा का उन सभी जगहों से साक्षात्कार शीघ्र ही होना चाहिए जहां से वह आत्मा से जुड़ी हुई है और मन ठहरा हुआ है........ यह उसका रूहानी रिश्ता है जो वर्तमान पर तब तक हावी रहेगा जब तक वह इसे स्वीकार ना ले ....सिर्फ इसका एक ही सुरक्षित इलाज है जो है तुम्हारा धैर्य,,,,, मत भूलो परेश, यह एक आम घटना नहीं है लापरवाही कितनी घातक हो सकती है ? यह तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते...... इसलिए एक-एक कदम सावधानी से और फूंक-फूंक के रखना होगा और ध्यान रहे उसके दिल को किसी भी तरह की ठेस ना पहुंचे मुझे विश्वास है कि तुम अपना काम इमानदारी से और असफलता से कर पाओगे.... याद रखो अभी उसे दवाइयों की नहीं आराम तुम्हारे प्रेम और तुम्हारे साथ की सख्त जरूरत है .....गॉड ब्लैस यू डियर..।

कुशाग्र ने एक बार फिर उसकी आँखें खोल दी हैं...'वह क्यों रीमा को पाने की जल्दीबाजी में लगा है? ....क्यों उसने उसे शारीरिक तौर पर पाने का प्रयास इस कठिन समय में किया? ....नही,,, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था मैं तो रीमा के निमंत्रण पर भटक गया था और फिर रोमांस के लिए आपसी सहमति दोनों ही तरफ से होती है खैर,,,,, यह गलती मैं दोबारा नहीं करूँगाा जब तक रीमा को उसके अतीत से बाहर न लाकर खड़ा कर दूं रीमा मैं तुमसे वादा करता हूं तुम पर अपना अधिकार नही जताऊँगा।'

सोच के ताने-बाने में लिपटा ही है कि रीमा को होश आ चुका है। गणेश और शंकर ने उसे जीप में बैठा दिया है।

रास्तें भर रीमा उन्हीं पहाड़ियों, सड़कों और नजारों को देखती रही...वह कुछ देर पहले की घटना भूल चुकी है और पूछ रही है - 'यहाँ क्यों आये हैं हम?'

"हम सब घूमने निकले हैं....देखो सबका साथ कितना अच्छा है?" परेश ने मुस्कुरा कर कहा।

रीमा को देख कर लगता ही नही कुछ देर पहले वह बेहोश थी।

रिजार्ट पहुँच कर तय हुआ कि आज दोपहर ही नदी पर जायेगें..गणेश दादा साथ होगें,,,,, नीचे जाने के लिये रिजार्ट की जीप को परेश ने बुक कर लिया है। सब सुबह से बगैर खाये-पिये ही निकले हैं सो सबसे पहले गणेश ने नाश्ता भिजवाया है। आज ब्रेड वटर, चाय ही। दोपहर के खाने में आलू के स्टफ पराठे और दही.....यह सब रीमा की पसंद का आर्डर किया गया।

गणेश ने आज रिजार्ट से फिर छुटटी ले ली है वह ठीक दो बजे उन दोनों को लेने आ गया है।

जीप उसी ढलान से होती हुई नीचे उतर रही है। यह परेश के लिये एक अग्नि परीक्षा है और रीमा के लिये खूबसूरत सपनों का पूरा शहर। उसकी धड़कनें इतनी तेज हैं कि परेश भी सुन सकता है। गाल सुर्ख और आँखें नशीली सी हैं.....मिलन का उन्माद अपने चरम पर है....उसके के चेहरे की रंगत में पूरा गुलशन महक रहा है.....वह परेश से छिटकी हुई है...उसके लिये परेश सिर्फ नदी के दो किनारों का पुल भर है.....वह पुष्पों सी खिली अपनी ही महक में इतराई सी है....कई बार प्रश्न भी किये गये- "परेश, आज मुझे मेरा बैजू मिल जायेगा न??? तुम भी मिलना उससे...देखना कितना प्यारा है वोह......एकदम कृष्णा की तरह....साँवला है..मगर ,,, दिल तो चाँद से भी उजला है.....मेरा बैजू...." .कहते-कहते वह इतनी उत्साहित हो रही है जैसे खुशियों का सारा समन्दर ही पी रही हो.....और खुद को दुनिया का सबसे अमीर समझ रही हो........

अमीर तो वोह है ही,,,,,, दो पुरूषों का अथाह प्रेम एक स्त्री को कहाँ नसीब होता है? पुरुष एक साथ दो..तीन...चार...स्त्रियों को प्रेम कर सकता है पर स्त्री अमूनन नही करती....उसके प्रेम में एक ही पुरूष का साया होता है....यहाँ भी वह बैजू के प्रेम में है,,, वह अतीत जी रही है...परेश आभासी दुनिया का चरित्र है बस....आत्मा तो बैजू की पनाहों में पड़ी है.......

जीप जैसे-जैसे नीचे सरक रही है रीमा के दिल की धौंकनी तेज हो रही है...वह बताती जा रही है- "देखो.....परेश इन्हीं रास्तों पर हम घूमा करते हैं.....इन झाड़ियों को देखो....इन पेड़ों को देखों....सब जानते हैं हमें...कितनी बातें की हैं हमने इनसे??? बैजू कभी नही तोड़ने देता है इन पर खिले फूल हमें...वोह कहता है यह फूल इनका सौन्दर्य है और किसी का सौन्दर्य नष्ट करने का हमें कोई हक़ नही.....बैजू बहुत सारी अच्छी बातें बताता है हमें....."

अचानक वोह उदास हो गयी- " परेश देखों न,,,, कहाँ चला गया है वोह हमें छोड़ कर??? कई दिन से दिखा ही नही...शायद नीचें छुपा होगा गुलमोहर के पीछे...अब मिलने दो उसे, हम बात ही नही करेगें...हम भी रूठ जायेगें...फिर,,,,, खुद पीछे से आयेगा और अपने हाथों से हमारी आँखें बन्द कर देगा.....हम भी अब माफ करने वाले नही उसको....देख लेना....बहुत शरारती हो गया है.....उसने बहुत सताया है हमें...." कहते-कहते सिसक पड़ी रीमा।

परेश ने उसे अपनी बाँहों में कस लिया। एक बार को तो उसका दिल भी चित्कार गया है। अपनी पत्नी से उसका प्रेम प्रसंग सुन कर फिर अगले ही क्षण वह द्रवित हो उठा...कैसी तड़प रही है रीमा??? कितना अटूट प्रेम में बँधे हैं दोनों...आश्चर्यजनक सच....पवित्र प्रेम.. जिसको न समाज की फिक्र है न ...काल की....अतीत से वर्तमान...मृत्यु से फिर जन्म...फिर भी प्रेम वहीं हैं.....काश! मैं रीमा को बैजू से मिलवा सकता? काश आज बैजू भी जिन्दा होता?? क्या उसने भी कहीं जन्म लिया होगा? " धक्क से परेश का दिल काँप उठा।

विचारों के अपने-अपने पहिये दौड़ रहे हैं और जीप के पहिये अपनी रफ्तार से।

गणेश ने बताया- "बस नदी करीब ही है....आगे जीप नही जा सकती रास्ता बेहद संकरा और उबड़-खाबड़ है...यहाँ से हमें पैदल ही निकलना होगा।"

जीप से सब उतर गये सिवाय ड्राइवर को छोड़ कर- "शाब आप लोग होकर आओ हम यहीं आपका इन्तजार करेगें।"

गणेश, रीमा और परेश धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। बंदरों का झुण्ड उन्हें देखते ही किकियाने लगा है..उनके राज्य में किसी का प्रवेश अचम्भा ही है...इक्का-दुक्का लोग ही इस वीराने और डरावनी जगह पर आते हैं सो बंदरों को भी एकछत्र राज्य की आदत हो गयी है..ज्यादातर बंदर एक से दूसरे पेड़ पर उछल-उछल कर अपनी मैजूदगी दर्ज करवाने में लगे हैं। गणेश ने झाड़ियों से, पहले की तरह एक मजबूत डंडी तोड़ ली है।

रीमा के पाँव स्वत: ही चल रहे हैं। वह सुध-बुध खोई बस एक-एक पेड़, पौधा, झाड़ियाँ, पत्थर को निहारे जा रही है...उसकी खोजी निगाहें व्याकुल हो इधर-उधर कुछ तलाश रही हैं.......कि वही पत्थर उसकी आँखों के आगे आ गया....वह रोती हुई फिर से चीख उठी-

"देखो परेश.....यही है वो पत्थर,,,,, जिसने मेरे बैजू को मारा है...इसने ही बैजू की जान ली है...ये हत्यारा है परेश...यह हत्यारा है....वह भाग कर उस पत्थर के पास पहुँच गयी और अपने हाथों से उसे मारने लगी। परेश ने फुर्ती से उसे पकड़ कर लिपटा लिया....वह उसकी बाँहों में रोती रही सुबकती रही...इतना रोई कि उसकी हिचकियाँ बँध गयीं।

गणेश असहाय सा खड़ा है उसका दिल बुरी तरह टूट रहा है...पिछली बार की पूरी घटना उसके आँखों के सामने घूम गयी।

"आओ रीमा....देखते हैं बैजू को....चलो नदी पर चलें...." परेश उसको नदी के बहते कल-कल करते पानी में ले गया है..पीछे-पीछे गणेश माहौल की हर संजीदगी से निबटने को तैयार है....वह बिल्कुल चौकन्ना है।

नदी के जल में पाँव के पड़ते ही वह सिहर उठी- "बैजू.....मेरे बैजू.....इसी पत्थर पर तो बैठते हैं.हम....इसी पर बैजू बाँसुरी बजाता है.....ये तो....हमारा सबसे प्यारा पत्थर है......यह देखो इस पर हमने अपना नाम भी लिखा है....बैजू-चन्दा...इस बैठ कर बैजू राजा और मैं रानी वाला खेल खेलते हैं...वह पत्थर से उठ कर बाहर जाता है और हम खाना पकाते हैं...फिर हमारे खूब सारे बच्चे होते हैं....हम और बैजू मिल कर उन्हें कहानियाँ सुनाते हैं....बैजू गोद में नही उठा पाता तो हम हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते हैं....जब बैजू हमें प्यार करता है तो छोटा वाला गुटटु रोने लगता है और बैजू ......हा हा हा हा .कितना मजा आता है इस खेल में.....??? .

परेश की धड़कने अपने अपाहिज प्रेम को बिखरते हुये देख रही हैं ....कौन सा सिरा पकडूँ जो फिसले न..? एक को थामूँ तो दूसरा छूटना तय है......डूबते हुये व्यक्ति को पीठ पर लाद कर बाहर निकलना कितना श्रमयी है यह वही जानता है जो भुग्तभोगी हो।

रीमा के मन की मिटटी में वहीं प्रेम कोपलें फूटने लगी हैं....जो कभी बैजू के प्रेम में लबालव होने पर फूटीं होगीं.....नव अंकुर जरा सी नमी को पाते ही बेपरवाह हो बढ़ने लगा है......रीमा अपने लिखे हुये नाम को बार-बार छू रही है...जैसे बैजू के स्पर्श को महसूस कर रही है....नदी की नमी ने उस जटिल प्रेम वृक्ष को असमय ही सींच दिया है......सब एक स्वचलित द्रश्य की भांति है जिसे चलाने की मारक क्षमता सिर्फ सृष्टि के हाथ में है.......रीमा के अन्दर बैजू को पाने की अकुलाहट उसे अधीर कर रही है....वह रो..रो..के कभी आकाश से..कभी पृथ्वी से और कभी उन पत्थरों से बैजू को माँग रही है.....यही वोह पल है जब परेश के संयम का इम्तहान है....वह पूरी तरह तैयार है.....रीमा का बेतहाशा फूट-फूट के रोना और फिर...धड़ाम से गिर कर बेहोश हो जाना .बेहद असहनिय है....गणेश के लिये नयी बात नही है वह पहले भी इस मंजर से गुजर चुका है। परेश ने उसे अपनी बाहों में संभाल कर उसी चौड़े समतल पत्थर पर लिटा दिया जिस पर वह और बैजू बैठ कर प्रेम की पेगें बढाया करते थे....गणेश को पता है कि रीमा कुछ ही देर होश में आ जायेगी इसलिये अपेक्षाकृत वो उतना नही घबराया है।

क्रमशः