Yadon ka shahar in Hindi Short Stories by Anand Raj Singh books and stories PDF | तेरी आंखों के दरिया का.....

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तेरी आंखों के दरिया का.....

कुछ बातें हम दिल के किसी कोने में छूपा देते हैं,और इतने गहरे से बांधते हैं कि वो दोबारा हमें ही नहीं मिलते।बस कभी किसी मोड़ पर अचानक वो सामने आ जाता है,और आँख खुली रह जाती है,और हम बेनकाब हो जाते हैं।उस रोज सृजन्या को आते देख ऐसे ही मैं रुका और ढेर सारी बातें, आँखों के सामने से गुज़र गईं।उसकी और मेरी गहरी दोस्ती,जिसमें कुछ भी छुपा नहीं था।
सृजन्या की और मेरी फैमिली एक ही कॉलोनी में रहती थी,(शहर आप अपने हिसाब से तय कर सकते हैं)हम दोनों क्लासमेट्स थे,सेंट जोसफ के।सृजन्या और मैं अक्सर क्लास में लगभग बराबर नंबर लाते थे।कुछ था जो हम दोनों महसूस करते थे,उसका मुझे देख कर मुस्कुरा देना।साथ सुबह और दोपहर की ऑटो शेयर करना,साथ में ट्यूशन,कभी मैंने या उसने प्यार जैसी बातें एक दूसरे से की ही नहीं,या यूं कहें कहने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई।
11 वीं जब थोड़ा थोड़ा चेहरे में दाढ़ी आ रही थी,और कुछ अलग हार्मोन्स का secretion शुरू हो रहा था,तब लगा कि नहीं कुछ तो है,लेकिन तब तक हमारे subjects अलग हो चुके थे,उसे bio पसंद था और मुझे maths। ख़ैर अब मिलना कम हो गया था, ट्यूशन भी अलग हो चला था,अब उम्मीद बस कैमिस्ट्री से बची थी,जहां वह भी पढ़ने आती और मैं भी। और इस बार 14 Feb को मैंने उससे बात करने का समय मांगा।
वह कोचिंग के बाद आई और बोली जल्दी करो अमित,बोलो क्या बोलना है।
मैंने हड़बड़ाते हुए बैग से चॉकलेट निकाला और उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोला happy valentine's Day।
और उसने चॉकलेट पकड़ा,ज्यादा कुछ नहीं बोली मुस्कुराते हुए चली गई। मैं खुश था,बहुत।फिर चिट्ठियों का एक दौर शुरू हुआ जो नोट्स के साथ अदला बदली कर दी जाती थीं।
चिट्ठियां भी अज़ीब होती हैं न,क्या वो हसने और रोने को भी समेट पाती हैं,पता नहीं,फिर भी वॉट्सएप से तो ज्यादा फील कराती थीं वो।
इसी फ़ेहरिस्त में एक अरसा बीत गया,और बारहवीं बोर्ड आ चुके थे।हमारी बातें भी अब कम ही चुकी थीं, प्रिबोर्ड के पहले की छुट्टियों में उसका आना कम हो चुका था।
और जैसे तैसे बोर्ड बीते,अब गर्मियां धड़ल्ले से आ चुकी थीं।सुबह शाम छत पर कभी कभी दिख जाती थी मुस्कुराते।फिर एक दिन दोपहर सो कर जगा तो पता चला रिज़ल्ट आ चुका है,भागकर साइबर कैफे पहुंचा और पहले उसका रिज़ल्ट देखा,उसने अच्छे नंबर पाए थे,और मैंने भी ठीक ठाक किया था।
मैं भाग कर उसके घर गया,उसकी मम्मी ने मुझे मिठाई खिलाई साथ में मेरे नंबर भी पूछे,मैंने बताया,तो उनका चेहरा बस ऐसा बना जैसे आलू के बांसी पराठे क्योंकि मेरे नंबर सृजन्या से ज्यादा थे।ख़ैर उसे इस बात का फ़र्क नहीं पड़ा लेकिन उसका चेहरा कुछ उतरा सा था,मैंने उससे आंखों से इशारा किया,क्या।
वो बोली,अमित हम कहीं और जा रहे हैं पापा का ट्रांसफर हो गया है।और उस रोज मेरी खुशी बहुत जल्दी गम में बदल चुकी थी।
और अगली सुबह वह चली गई,इस बीच मिला उसका एक ख़त,जिसमें उसने गुज़रे दिनों को खूबसूरत लिखा था,और मुझे कभी न भूलने का वादा।
आज हम फिर मिले थे, एक नए शहर में जहां मेरी नौकरी लगी थी,और उसी शहर में एक हॉस्पिटल में वह डॉक्टर थी,और मैं उस रोज इलाज़ कराने पहुंचा था,उसके हाथों में चूड़ियां थीं,मांग में हल्का सा सिंदूर,और आंखें हम दोनों की भीग चुकी थी,और वेटिंग रूम में एक गाना बज रहा था,कु

तेरी आंखों के दरिया का उतरना भी ज़रूरी था...
बस इतनी सी थी ये कहानी
लिखिए कैसा लगा।
आनंद