narsi mehta in Hindi Spiritual Stories by suraj sharma books and stories PDF | नरसी मेहता

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नरसी मेहता

'वैष्णव जन तो तैणे कहिए जे पीड पराई जाणे रे'

आप सबने ये भजन बहोत बार सुना होगा, गांधीजी को भी ये भजन प्यार था। पर क्या आप जानते है, इस काव्य की रचना किसने की थी?
नरसी मेहता, एक ऐसे कृष्ण भक्त जिनके भक्तित्व की बाते करते ही हमारे अंदर भक्ति की वो ज्वाला प्रज्वलित होती है जो शायद ही कभी समाप्त हो। इनके जन्म की तिथि की लेकर कुछ स्पष्ट नहीं है पर इनका जन्म जूनागढ़ के "तलाजा" नामक गांव में हुआ, बचपन में ही नरसीजी ने अपने पिता को खो दिए, कहते है नरसीजी ८ वर्ष की आयु तक गूंगे रहे, फिर एक दिन कोई साधु आया जिसने उन्हें कृष्णा कहने को कहा तब से वो कृष्णा कृष्ण कहने लगे, कहते है वो साधु और कोई नहीं बल्कि साक्षात पालनहार थे. इनके जीवनकाल में अनगिनत घटनाएं हुई है जहां नरसीजी को भगवान का साक्षात्कार हुए. इनका पूरा जीवन केवल संघर्ष में ही व्यतीत हुआ.
उनके पास सबकुछ था पर जिसको हरी नाम की लगन लगी हो उसके लिए सबकुछ भी कुछ भी नहीं के बराबर है.. उन्होंने अपना सबकुछ दान कर दिया अब बस हरी नाम ही उनका सहारा था। हरी भक्ति के कारण उन्हें भाभी की कटूक्तियाँ का सामना करना पड़ता, और वे घर का त्याग करके जंगल चले गए. और बिना खाए पिये ७ दिन तक महादेव के मंदिर में महादेव का ध्यान करने लगे जब भगवान ने दर्शन दिए तो नरसीजी ने कृष्णा रासलीला देखने की इच्छा प्रकट की तब देवों के देव महादेव ने उनकी ये इच्छा पूरी की और वो रासलीला में इतना मग्न हो गए की मशाल से नरसीजी का हात जल रहा था पर वो तो हरी नाम में मस्त थे।
एक बार नरसी जी और उनके भाई तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे, रास्ते में एक जंगल था और उन्हें उस जंगल में से होकर गुजरना था। यात्रा दूर की करनी थी, चलते चलते भूक भी लग रही थी और दोनो थक भी गए, वहीं जंगल में पेड़ के नीचे बैठ गए. जब दोनो ने अपनी नजर घुमाई तो उन्हें कुछ दुरी पर एक गाँव दिखाई दिया। गांव के लोग भी जंगल में काम से आया जाया करते थे उन लोगो ने जैसे ही दोनो को देखा वो पूछने लगे की अगर आप कहें तो हम आपके लिए खाने का प्रबंध करके आप दोनो के लिए खाना लेकर आते है लेकिन हम शुद्र (नीच) जाती के हैं। तब उस हरी भक्त नरसीजी ने कहा आप ऐसा मत कहिए हम सभी उस कृपालु परमेश्वर की ही संतान है, उसके लिए हम सब एक है, मुझे आपसे भोजन लेने में तनिक भी आपत्ति नहीं है और उन्होंने खुशी से भोजन खाया लेकिन उनके भाई ने भोजन खाने से इनकार कर दिया। फिर उन्होंने सोचा इतना स्वादिष्ट भोजन देने के लिए मुझे गांव वालो को धन्यवाद कहना चाहिए, और वो जैसे ही गांव की ओर गए वाहा ना गांव था नाही कोई इंसान। ये तो प्रभु की लीला थी जो अपने भक्त को इस भुक के दर्द से बाहर निकलना चाहते थे।।

नरसी जी के जीवन में ऐसी अनगिनत हादसे हुए, जहां उनकी भक्ति देख नारायण को अपने भक्त के पास आना पड़ा। उम्मीद करता हूं कि नानी बाई का मायरा तो आप सबको पता ही होगा। कैसे कमलनयन ने अपने भक्त के भक्ति की लाज रखी.

। समाप्त।