Arman dulhan k - 4 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 4

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अरमान दुल्हन के - 4

अरमान दुल्हन के भाग 4

कविता बिस्तर से उठकर खड़ी हो जाती है। सरजू उसे बैठने के लिए कहता है। कविता फिर भी सकुचाई सी खड़ी रहती है मानो उसे कुछ सुनाई ही न दिया हो। सरजू हाथ पकड़ कर खींच लेता है और उसे अपने पास बैठा लेता है।कविता सरजू से थोड़ी दूर सरक कर असहज सी बैठ जाती है।थोड़ी देर कमरे में खामोशी छाई रहती है। घड़ी की टिक टिक रात की खामोशी को चीरकर दो बजने का इशारा दे रही है।सरजू भी बेहद थका हुआ है क्योंकि घर का इकलौता पुत्र होने नाते सारी जिम्मेदारी उसी पर तो थी।सभी मेहमानों को खाना खिलाकर उनके सोने का बंदोबस्त करके,नहा-धोकर अभी फ्री हुआ था। रात के सन्नाटे में कभी कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज भी सन्नाटे को भंग कर रही थी।
आखिर सरजू ने खामोशी को तोड़ा।
"मीनू तुम सोच रही होगी कि मैं यहाँ कहाँ आ गई? मां बी नहीं बोली होगी तुम्हारे साथ?"
रज्जो, पुन्नी,सुशी ने तुमसे बात की क्या? तुमने खाना खाया ?" सरजू ने एक साथ कई प्रश्न पूछ डाले।
कविता गर्दन झुकाकर बैठी रही। सरजू ने उसका हाथ प्यार पकड़ कर सहलाने लगा।
"देखो मीनू मैं नहीं जानता उन सबने तुमसे ठीक से बात की भी या नहीं? पर एक बात तुमसे कहना चाहता हूँ । पापा के जाने के बाद मैं बिलकुल अकेला पड़ गया हूँ।कोई मुझे समझना ही नहीं चाहता।तुमसे ब्याह भी मैंने घरवालों के मना करने के बावजूद किया है।ये बात तुम भी भलीभांति जानती होगी।"
मैं.......मैं? कविता ने विस्मय से सरजू की ओर देखा।
"हां मीनू तुमसे ब्याह करने के कारण और कुछ घरेलू कारणों की वजह से सब नाराज हैं । जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तो देखता ही रह गया था। तुमने मेरे प्रपोजल का कोई जवाब नहीं दिया था।मगर तुम्हारी मुस्कराहट से मुझे हां का जवाब मिल गया था।"
कविता वो दिन कैसे भूल सकती थी । जिस दिन ने उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी। वह दिन फिर से कविता की आंखों के सामने तैर गया।वह अपनी बूआ के घर छुट्टियां बिताने आई थी और सरजू अपनी बूआ के घर बूआ से मिलने आया हुआ था।दोनों की बूआओं का घर अगल- बगल था। सरजू बैठा अपनी भाभी से बतिया रहा था।कविता भी सरजू की भाभी को भाभी बुलाती थी। कविता भी दोपहर को भाभी से बतियाने आ जाया करती थी।
आज वह आई तो एक अजनबी को बैठा देखकर वापस मुड़ी ही थी कि भाभी ने आवाज लगा दी।
"कविता ए...ए पाच्छी क्यातैं मुड़ै सै(वापस क्यों जा रही है)? आज्या चा(चाय) पीवांगे।"
"ना भाभी फेर आज्यांगी मैं"
कविता अजनबी लोगों से बात करना कम ही पसंद करती थी। इसलिए वहां से खिसकना चाहती थी।
"ए घरकी आज्या नै चा बणरी सै।"
कविता भाभी के प्रस्ताव को ठुकरा न सकी । सरजू को सरसरी सी नजर से देखा और आकर चारपाई पर बैठ गई।
"यू मेरा देवर सै रिश्ता करादयुं के इसकै तेरा?" भाभी ने कविता की टांग खींची।
"भाभी?" कविता ने भाभी को घूरकर चुप रहने का इशारा किया।
"हीहीही... हांसु थी मैं तो"
भाभी खीखी करते हुए हंसकर रसोई में चाय बनाने चली गई।
अब सरजू और कविता अकेले थे।सरजू को तो बिन मांगे मुराद मिल गई थी। इतनी सुंदर लड़की सरजू के सामने बैठी थी मानो कोई अप्सरा बैठी हो। सरजू तो देखता ही रह गया। वह सरजू अनदेखा सा कर इधर उधर देख रही थी। सरजू बतियाना चाहता था किसी बहाने से और हिम्मत सी कर पूछ ही लिया।
"तु.....तु ....तुम कौन सी क्लास में.... पढ़ती हो"
सरजू मुश्किल से बोल पाया था।
"जी अभी दसवीं के एग्जाम दिये हैं"
कविता ने गर्दन झुकाये झुकाये ही जवाब दिया।
"आगे..... क्या .....करोगी?"
सरजूने हिम्मत करके पूछा।
"जी पढ़ना चाहती हूं पर.........."
"पर क्या?"
सरजू ने जिज्ञासा से पूछा।
"घर वाले रिश्ता देख रहे हैं। गांव मे बाहरवीं का स्कूल नहीं है और बाहर घर वाले भेजना नहीं चाहते।"
कविता की आंखों से न चाहते हुए भी आंसू छलछला आये थे । वह दूसरी तरफ मुहं करके आंसूं पोंछ लेना चाहती थी। मगर सरजू की नजरों से अपने आंसू छिपा न पायी थी।


क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा