TANABANA - 11 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | तानाबाना - 11

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तानाबाना - 11

11

आखिर यह दिन जैसे तैसे बीत गया । जो गुंधा आटा और दही वे साथ ले आए थे, रात को उसी को जैसे तैसे लकङियां इकट्ठी करके सेका गया । भूखे बच्चों के हिस्से एक एक रोटी ही आई । दो परिवार पास दरी पर बैठे थे । दोनों परिवारों के बच्चे भूख से बेहाल हो रहे थे तो चार चार रोटियाँ उन्हें दे दी गयी । पर रोटी किसी के गले नहीं उतरी । उतरती कैसे, न चकला, न बेलन, न तवा न कोई दाल सब्जी । यहाँ तक कि नमक की डली भी नहीं । कहाँ सारा परिवार दूध, मक्खन का आदी था, बच्चे चूरी के साथ दूध का छन्ना भरके पीते थे । यहाँ रोटी भी दुर्लभ हो गयी । किसी परिवार के पास थोङा गुङ था, उन्हें दो रोटी देकर थोङा सा गुङ लिया गया । तब दो निवाले खाए जा सके । रात में सब उसी दरी पर लेटे । कोई ऊँच –नीच नहीं । कोई पांधा पंडित नहीं । न कोई जमींदार न कोई कारिंदा । घर में मंजों - बिस्तरों के अंबार लगे थे पर यहाँ सब धरती पर बिना चादरों के लेटे भाग्य का खेल समझने की कोशिश कर रहे थे ।

सुबह होते होते ज्ञान को बुखार हो गया । दवा का इंतजाम कहाँ से हो जहाँ जीने के लाले पङे हों । जैसे तैसे एक वैद मिला, उसने दो पुङिया दी पर शाम होते होते बच्ची मर गयी । बच्ची को वहीं दफना दिया गया ।

पर मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई । शाम होते ही सरस्वती की तबीयत बिगङना शुरु हो गयी । कुछ तो चिंता, तनाव, कुछ बेआरामी, ऊपर से छतीस घंटे निराहार । काफिले में सौभाग्य से एक बूढी दाई भी थी, उसने मदद का हाथ बढाया । छहमासे बच्चे को तो नहीं बचाया जा सका पर सुरसती बच गयी । टूटा बिखरा मन और तन लिए ये औरतें मरदों को हौंसला देती । रोते बच्चों को संभालती । काफिलो आते जा रहे थे । भीङ बढती जा रही थी । कुछ स्वयंसेवी संस्थाए मदद करती पर वह मदद ऊँट के मुँह में जीरा साबित हो रही थी ।

लोग एक दूसरे से मिलते । अलग अलग इलाकों से लाये गये इन लोगों की अनेक कहानियाँ थी । किसी के घर को बलवइयों ने आग लगा दी थी । मिल्ट्री वाले उन्हें जलती आग से निकाल कर लाए थे । किसी की बहुओं को अगवा कर लिया गया था । किसी की बेटी गायब थी । किसी के घर के सब मारे जा चुके थे । किसी का बच्चा खो गया था । सब दुखी थे । सब बेबस और लाचार । एक अनुमान के अनुसार करीब डेढ लाख औरतें, लङकियाँ या तो बलात्कार के बाद मार दी गयी या अगवा कर घर में डाल ली गयी । बदले में इधर भी भयानक मारकाट हुई । लोग सहम गये । अजीब दहशत भरा माहौल था ।

आनेवाले शरणार्थियों की संख्या को देखते हुए सरकार ने लोगों को अलग अलग शहरों के कैंपों में भेजना शुरु किया । आर्मी की गाङियों में लोगों को बैठाया जाने लगा । कुछ लोग पहले ही पैदल निकल लिए थे । गाङियाँ जालंधर, लुधियाना, अंबाला, दिल्ली के लिए चल पङी । सहारनपुर जाने की गाङी लगी तो मंगला को अपनी रिश्ते की जेठानी की याद आई । जेठ कुछ साल पहले तक सहारनपुर स्टेशन के स्टेशन मास्टर थे । सो यह परिवार सहारनपुर वाली गाङी में बैठ गया । कई घंटों के सफर के बाद गाङी नुमाइश कैंप, केशव कैंप के सामने रुकी । यहाँ एक बार फिर से उनका रजिस्ट्रेशन किया गया । लोगों को टैंट अलाट किये गये । उम्र के हिसाब से बच्चों की छँटनी की गयी । पाँच साल से बङे बच्चों को कुछ स्वयंसेवकों द्वारा पढाना शुरु किया गया । सोलह साल से बङे बच्चों के नाम रोजगार के लिए लिख लिए गये ।

फिर आये जमीन के अधिकारी, लोगों को मुआवजा देने । जिनके पास कोई गवाह था या कोई कागज, उन्हे जमीन या घर अलाट किये गये । चंद्र गिरि को अबोहर के पास किसी गाँव में पाँच बीघा जमीन अलाट हुई । प्रीतम के पास कोई गवाह नहीं था, न कागज उसे कुछ नहीं मिला ।

इस बीच दोनों भाइयों ने स्टेशन से फकीरगिरि के बारे में पूछताछ की पर यहां कोई इस नाम के बंदे को जानता ही नहीं था । दोनों भाई हर रोज स्टेशन जाते . छोटा मोटा काम मिलता तो कर लेते । अठन्नी रुपया बन जाता । उन्हे यूँ कई रोज लगातार आते देखकर एक दिन एक तांगे वाले ने पूछा – भाई किसी को ढूँढ रहे हो ?

चंद्र ने बताया – हमारे रिश्ते के ताऊजी यहाँ के स्टेशन मास्टर हुआ करते थे ।

कहीं तुम अफ्रीका वाले साहब की बात तो नहीं कर रहे । चलो बैठो तांगे में, मैं उनकी हवेली लिए चलता हूँ ।

पर भाई पैसे ?

पैसे रहने दो, बुरे वक्त में इन्सान ही इन्सान के काम आता है । चलो बैठो तांगे में ।

और तांगेवाला उन्हें लेकर अफ्रीकावालों की हवेली पहुँचा । ताई जी अपने इन दामादों को देखकर बहुत खुश हुई । उन्हें शरबत पिलाया । इमरतियाँ और कचौरियों का नाश्ता कराया और अहमद को तुरंत सारे परिवार को हवेली ले आने का आदेश दिया । अहमद प्रीतम को लेकर केशव नगर कैंप गया और घंटे भर बाद ही मंगला अपनी बेटियों और नाती पोतों के साथ हवेली आ गयी । दोनों देवरानी –जेठानी गले लगकर देर तक रोती रही । फिर दोनों ने मिलकर रसोई बनाई । बच्चों को खिलाया । फिर बङे खाने बैठे । इसबीच ताईजी ने नीचे वाले दोनों कमरे खोल दिए । जेठानी और देवरानी की सारी रात दुख सुख करने में ही बीत गयी । जेठानी की दर्द भरी कहानी सुनकर मंगला अपना दर्द तो भूल ही गयी ।